Friday, September 24, 2010

हनुमत्सहस्त्र नामावली

हनुमत्सहस्त्र नामावली
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीहनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः हनुमान देवता, अनुष्टुप छन्द, ह्रां बीजं श्रीं शक्ति, श्रीहनुमत्प्रीत्यर्थं-तद्सहस्त्रनामभिरमुकसंख्यार्थ पुष्पादिद्रव्य समर्पणे विनियोगः।

ध्यानः-
ध्यायेद् बालदिवाकर-द्युतिनिभ देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रमुख-प्रशा्तयकसं देदीप्यमान रुचा।
सुग्रीवादिसमतवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम्।।
उद्यदादित्यसंकाशमुदारभुजविक्रमम्।
कन्दर्पकोटिलावण्य सर्वविद्याविशारदम्।।
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम्।
अभयं वरदं दोर्म्मा चिन्तयेन्मारुतात्मजम्।।

ॐ हनुमते नमः |
ॐ श्री प्रदाय नमः |
ॐ वायु पुत्राय नमः |
ॐ रुद्राय नमः |
ॐ अनघाय नमः |
ॐ अजराय नमः |
ॐ अमृत्यवे नमः |
ॐ वीरवीराय नमः |
ॐ ग्रामावासाय नमः |
ॐ जनाश्रयाय नमः |
ॐ धनदाय नमः |
ॐ निर्गुणाय नमः |
ॐ अकायाय नमः |
ॐ वीराय नमः |
ॐ निधिपतये नमः |
ॐ मुनये नमः |
ॐ पिंगाक्षाय नमः |
ॐ वरदाय नमः |
ॐ वाग्मीने नमः ।
ॐ सीता-शोक-विनाशाय नमः |
ॐ शिवाय नमः |
ॐ शर्वाय नमः |
ॐ पराय नमः |
ॐ अव्यक्ताय नमः |
ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः |
ॐ रसा-धराय नमः |
ॐ पिंग-केशाय नमः |
ॐ पिंग-रोमम्णे नमः ।
ॐ श्रुति-गम्याय नमः |
ॐ सनातनाय नमः |
ॐ अनादये नमः |
ॐ भगवते नमः |
ॐ देवाय नमः |
ॐ विश्व-हेतवे नमः |
ॐ निरामयाय नमः |
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः ।
ॐ विश्वेशाय नमः |
ॐ विश्वनाथाय नमः |
ॐ हरीश्वराय नमः |
ॐ भर्गाय नमः |
ॐ रामाय नमः |
ॐ राम-भक्ताय नमः |
ॐ कल्याणाय नमः |
ॐ प्रकृति-स्थिराय नमः |
ॐ विश्वम्भराय नमः |
ॐ विश्वमूर्तये नमः |
ॐ विश्वाकाराय नमः |
ॐ विश्वदाय नमः |
ॐ विश्वात्मने नमः |
ॐ विश्वसेव्याय नमः |
ॐ विश्वाय नमः |
ॐ विश्वराय नमः |
ॐ रवये नमः |
ॐ विश्व-चेष्टाय नमः |
ॐ विश्व-गम्याय नमः |
ॐ विश्व-ध्येयाय नमः |
ॐ कला-धराय नमः |
ॐ प्लवंगमाय नमः |
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः |
ॐ ज्येष्ठाय नमः ।
ॐ विद्यावते नमः |
ॐ वनेचराय नमः |
ॐ बालाय नमः |
ॐ वृद्धाय नमः |
ॐ यूने नमः ।
ॐ तत्त्वाय नमः |
ॐ तत्त्व-गम्याय नमः |
ॐ सख्ये नमः |
ॐ अजाय नमः |
ॐ अन्जना-सूनवे नमः |
ॐ अव्यग्राय नमः |
ॐ ग्राम-ख्याताय नमः |
ॐ धरा-धराय नमः |
ॐ भूर्लोकाय नमः |
ॐ भुवर्लोकाय नमः ।
ॐ स्वर्लोकाय नमः |
ॐ महर्लोकाय नमः |
ॐ जनलोकय नमः |
ॐ तपसे नमः |
ॐ अव्ययाय नमः |
ॐ सत्ययाय नमः |
ॐ ओंकार-गम्याय नमः |
ॐ प्रणवाय नमः |
ॐ व्यापकाय नमः |
ॐ अमलाय नमः |
ॐ शिवाय नमः |
ॐ धर्म-प्रतिष्ठात्रे नमः ।
ॐ रामेष्टाय नमः |
ॐ फाल्गुण-प्रियाय नमः |
ॐ गोष्पदिने नमः |
ॐ कृत-वारीशाय नमः |
ॐ पूर्ण-कामाय नमः |
ॐ धराधिपाय नमः |
ॐ रक्षोघ्नाय नमः |
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः |
ॐ शरणागत-वत्सलाय नमः |
ॐ जानकी-प्राण-दात्रे नमः |
ॐ रक्षः-प्राणहारकाय नमः |
ॐ पूर्णाय नमः ।
ॐ सत्याय नमः | १००
ॐ पीतवाससे नमः ।
ॐ दिवाकर-समप्रभाय नमः |
ॐ देवोद्यान-विहारीणे नमः ।
ॐ देवता-भय-भञ्जनाय नमः ।
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्त-लब्धाय नमः ।
ॐ भक्त-पालन-तत्पराय नमः ।
ॐ द्रोणहर्षाय नमः ।
ॐ शक्तिनेत्राय नमः ।
ॐ शक्तये नमः |
ॐ राक्षस-मारकाय नमः |
ॐ अक्षघ्नाय नमः |
ॐ राम-दूताय नमः |
ॐ शाकिनी-जीव-हारकाय नमः |
ॐ बुबुकार-हतारातये नमः |
ॐ गर्वाय नमः |
ॐ पर्वत-मर्दनाय नमः |
ॐ हेतवे नमः |
ॐ अहेतवे नमः |
ॐ प्रांशवे नमः |
ॐ विश्वभर्ताय नमः ।
ॐ जगद्गुरवे नमः |
ॐ जगन्नेत्रे नमः ।
ॐ जगन्नथाय नमः |
ॐ जगदीशाय नमः |
ॐ जनेश्वराय नमः |
ॐ जगद्धिताय नमः ।
ॐ हरये नमः |
ॐ श्रीशाय नमः |
ॐ गरुडस्मयभंजनाय नमः |
ॐ पार्थ-ध्वजाय नमः |
ॐ वायु-पुत्राय नमः |
ॐ अमित-पुच्छाय नमः |
ॐ अमित-विक्रमाय नमः |
ॐ ब्रह्म-पुच्छाय नमः |
ॐ परब्रह्म-पुच्छाय नमः |
ॐ रामेष्ट-कारकाय नमः |
ॐ सुग्रीवादि-युताय नमः |
ॐ ज्ञानिने नमः ।
ॐ वानराय नमः |
ॐ वानरेश्वराय नमः |
ॐ कल्पस्थायिने नमः ।
ॐ चिरंजीविने नमः ।
ॐ तपनाय नमः |
ॐ सदा-शिवाय नमः |
ॐ सन्नताय नमः |
ॐ सद्गते नमः |
ॐ भुक्ति-मुक्तिदाय नमः |
ॐ कीर्ति-दायकाय नमः |
ॐ कीर्तये नमः |
ॐ कीर्ति-प्रदाय नमः |
ॐ समुद्राय नमः |
ॐ श्रीप्रदाय नमः |
ॐ शिवाय नमः |
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्तगम्याय नमः ।
ॐ भक्त-भाग्य-प्रदायकाय नमः ।
ॐ उदधिक्रमणाय नमः |
ॐ देवाय नमः |
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः |
ॐ वार्धि-बंधनकृदाय नमः ।
ॐ विश्व-जेताय नमः ।
ॐ विश्व-प्रतिष्ठिताय नमः |
ॐ लंकारये नमः |
ॐ कालपुरुषाय नमः |
ॐ लंकेश-गृह- भंजनाय नमः |
ॐ भूतावासाय नमः |
ॐ वासुदेवाय नमः |
ॐ वसवे नमः |
ॐ त्रिभुवनेश्वराय नमः |
ॐ श्रीराम-रुपाय नमः |
ॐ कृष्णस्तवे नमः |
ॐ लंका-प्रासाद-भंजकाय नमः |
ॐ कृष्णाय नमः |
ॐ कृष्ण-स्तुताय नमः |
ॐ शान्ताय नमः |
ॐ शान्तिदाय नमः |
ॐ विश्वपावनाय नमः |
ॐ विश्व-भोक्त्रे नमः ।
ॐ मारिघ्नाय नमः |
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः |
ॐ ऊर्ध्वगाय नमः |
ॐ लान्गुलिने नमः ।
ॐ मालिने नमः।
ॐ लान्गूला-हत-राक्षसाय नमः |
ॐ समीर-तनुजाय नमः |
ॐ वीराय नमः |
ॐ वीर-ताराय नमः |
ॐ जय-प्रदाय नमः |
ॐ जगन्मन्गलदाय नमः |
ॐ पुण्याय नमः |
ॐ पुण्य-श्रवण-कीर्तनाय नमः |
ॐ पुण्यकीर्तये नमः |
ॐ पुण्य-गीतये नमः |
ॐ जगत्पावन-पावनाय नमः |
ॐ देवेशाय नमः |
ॐ जितमाराय नमः |
ॐ राम-भक्ति-विधायकाय नमः |
ॐ ध्यात्रे नमः।
ॐ ध्येयाय नमः |
ॐ लयाय नमः |
ॐ साक्षिणे नमः ।
ॐ चेत्रे नमः।
ॐ चैतन्य-विग्रहाय नमः |
ॐ ज्ञानदाय नमः |
ॐ प्राणदाय नमः |
ॐ प्राणाय नमः |
ॐ जगत्प्राणाय नमः |
ॐ समीरणाय नमः |
ॐ विभीषण-प्रियाय नमः |
ॐ शूराय नमः |
ॐ पिप्पलाश्रयाय नमः |
ॐ सिद्धिदाय नमः |
ॐ सिद्धाय नमः |
ॐ सिद्धाश्रयाय नमः |
ॐ कालाय नमः |
ॐ महोक्षाय नमः ।
ॐ काल-जान्तकाय नमः |
ॐ लंकेश-निधन-स्थायिने नमः |
ॐ लंका-दाहकाय नमः ।
ॐ ईश्वराय नमः |
ॐ चन्द्र-सूर्य-अग्नि-नेत्राय नमः |
ॐ कालाग्ने नमः |
ॐ प्रलयान्तकाय नमः |
ॐ कपिलाय नमः |
ॐ कपीशाय नमः |
ॐ पुण्यराशये नमः |
ॐ द्वादश राशिगाय नमः |
ॐ सर्वाश्रयाय नमः |
ॐ अप्रमेयत्माय नमः ।
ॐ रेवत्यादि-निवारकाय नमः |
ॐ लक्ष्मण-प्राणदात्रे नमः ।
ॐ सीता-जीवन-हेतुकाय नमः |
ॐ राम-ध्येयाय नमः |
ॐ हृषीकेशाय नमः |
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः |
ॐ जटिने नमः |
ॐ बलिने नमः |
ॐ देवारिदर्पघ्ने नमः |
ॐ होत्रे नमः |
ॐ कर्त्रे नमः |
ॐ धार्त्रे नमः |
ॐ जगत्प्रभवे नमः |
ॐ नगर-ग्राम-पालाय नमः |
ॐ शुद्धाय नमः |
ॐ बुद्धाय नमः |
ॐ निरन्तराय नमः |
ॐ निरंजनाय नमः |
ॐ निर्विकल्पाय नमः |
ॐ गुणातीताय नमः |
ॐ भयंकराय नमः |
ॐ हनुमते नमः ।
ॐ दुराराध्याय नमः |
ॐ तपस्साध्याय नमः |
ॐ महेश्वराय नमः |
ॐ जानकी-घन-शोकोत्थतापहर्त्रे नमः ।
ॐ परात्पराय नमः |
ॐ वाङ्मयाय नमः |
ॐ सद-सद्रूपाय नमः |
ॐ कारणाय नमः |
ॐ प्रकृतेः-पराय नमः |
ॐ भाग्यदाय नमः |
ॐ निर्मलाय नमः |
ॐ नेत्रे नमः |
ॐ पुच्छ-लंका-विदाहकाय नमः |
ॐ पुच्छ-बद्धाय नमः |
ॐ यातुधानाय नमः |
ॐ यातुधान-रिपुप्रियाय नमः |
ॐ छायापहारिणे नमः |
ॐ भूतेशाय नमः |
ॐ लोकेशाय नमः |
ॐ सद्गति-प्रदाय नमः |
ॐ प्लवंगमेश्वराय नमः |
ॐ क्रोधाय नमः |
ॐ क्रोध-संरक्तलोचनाय नमः |
ॐ क्रोध-हर्त्रे नमः |
ॐ ताप-हर्त्रे नमः |
ॐ भक्ताऽभय-वरप्रदाय नमः |
ॐ वर-प्रदाय नमः |
ॐ भक्तानुकंपिने नमः |
ॐ विश्वेशाय नमः |
ॐ पुरु-हूताय नमः |
ॐ पुरंदराय नमः |
ॐ अग्निने नमः |
ॐ विभावसवे नमः |
ॐ भास्वते नमः |
ॐ यमाय नमः |
ॐ निष्कृतिरेवचाय नमः |
ॐ वरुणाय नमः |
ॐ वायु-गति-मानाय नमः |
ॐ वायवे नमः |
ॐ कौबेराय नमः |
ॐ ईश्वराय नमः |
ॐ रवये नमः |
ॐ चन्द्राय नमः |
ॐ कुजाय नमः |
ॐ सौम्याय नमः |
ॐ गुरवे नमः |
ॐ काव्याय नमः |
ॐ शनैश्वराय नमः |
ॐ राहवे नमः |
ॐ केतवे नमः |

ॐ मरुते नमः |
ॐ धात्रे नमः |
ॐ धर्त्रे नमः |
ॐ हर्त्रे नमः |
ॐ समीरजाय नमः |
ॐ मशकीकृत-देवारये नमः |
ॐ दैत्यारये नमः |
ॐ मधुसूदनाय नमः |
ॐ कामाय नमः |
ॐ कपये नमः |
ॐ कामपालाय नमः |
ॐ कपिलाय नमः |
ॐ विश्व जीवनाय नमः |
ॐ भागीरथी-पदांभोजाय नमः |
ॐ सेतुबंध-विशारदाय नमः |
ॐ स्वाहा-काराय नमः |
ॐ स्वधा-काराय नमः |
ॐ हविषे नमः |
ॐ कव्याय नमः |
ॐ हव्यवाहकाय नमः |
ॐ प्रकाशाय नमः |
ॐ स्वप्रकाशाय नमः |
ॐ महावीराय नमः |
ॐ लघवे नमः |
ॐ अमित-विक्रमाय नमः |
ॐ प्रडीनोड्डीनगतिमानाय नमः |
ॐ सद्गतये नमः |
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः |
ॐ जगदात्मने नमः |
ॐ जगद्योनये नमः |
ॐ जगदंताय नमः |
ॐ अनंतकाय नमः |
ॐ विपात्मने नमः |
ॐ निष्कलंकाय नमः |
ॐ महते नमः |
ॐ महदहंकृतये नमः |
ॐ खाय नमः |
ॐ वायवे नमः |
ॐ पृथिव्यै नमः |
ॐ आपोभ्य नमः |
ॐ वह्नये नमः |
ॐ दिक्पालाय नमः |
ॐ एकस्थाय नमः |
ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः |
ॐ क्षेत्र-पालाय नमः |
ॐ पल्वली-कृत-सागराय नमः |
ॐ हिरण्मयाय नमः |
ॐ पुराणाय नमः |
ॐ खेचराय नमः |
ॐ भुचराय नमः |
ॐ मनसे नमः |
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः |
ॐ सूत्राम्णे नमः |
ॐ राज-राजाय नमः |
ॐ विशांपतये नमः |
ॐ वेदांत-वेद्याय नमः |
ॐ उद्गीथाय नमः |
ॐ वेदवेदांग- पारगाय नमः |
ॐ प्रति-ग्राम-स्थिताय नमः |
ॐ साध्याय नमः |
ॐ स्फूर्ति दात्रे नमः |
ॐ गुणाकराय नमः |
ॐ नक्षत्र-मालिने नमः |
ॐ भूतात्मने नमः |
ॐ सुरभये नमः |
ॐ कल्प-पादपाय नमः |
ॐ चिन्ता-मणये नमः |
ॐ गुणनिधये नमः |
ॐ प्रजापतये नमः |
ॐ अनुत्तमाय नमः |
ॐ पुण्यश्लोकाय नमः |
ॐ पुरारातये नमः |
ॐ ज्योतिष्मते नमः |
ॐ शर्वरीपतये नमः |
ॐ किलिकिल्यारवत्रस्त-प्रेत-भूत-पिशाचकाय नमः |
ॐ ऋणत्रय-हराय नमः |
ॐ सूक्ष्माय नमः |
ॐ स्थूलाय नमः |
ॐ सर्वगतये नमः |
ॐ पुंसे नमः |
ॐ अपस्मार-हराय नमः |
ॐ स्मर्त्रे नमः |
ॐ श्रुतये नमः |
ॐ गाथायै नमः |
ॐ स्मृतये नमः |
ॐ मनवे नमः |
ॐ स्वर्ग-द्वाराय नमः |
ॐ प्रजा-द्वाराय नमः |
ॐ मोक्ष-द्वाराय नमः |
ॐ यतीश्वराय नमः |
ॐ नाद-रूपाय नमः |
ॐ पर-ब्रह्मणे नमः |
ॐ ब्रह्मणे नमः |
ॐ ब्रह्म-पुरातनाय नमः |
ॐ एकाय नमः |
ॐ अनेकाय नमः |
ॐ जनाय नमः |
ॐ शुक्लाय नमः |
ॐ स्वयज्योतिषे नमः |
ॐ अनाकुलाय नमः |
ॐ ज्योति-ज्योतिषे नमः |
ॐ अनादये नमः |
ॐ सात्त्विकाय नमः |
ॐ राजसत्तमाय नमः |
ॐ तमसे नमः |
ॐ तमो-हर्त्रे नमः |
ॐ निरालंबाय नमः |
ॐ निराकाराय नमः |
ॐ गुणाकराय नमः |
ॐ गुणाश्रयाय नमः |
ॐ गुणमयाय नमः |
ॐ बृहत्कायाय नमः |
ॐ बृहद्यशसे नमः |
ॐ बृहद्धनुषे नमः |
ॐ बृहत्पादाय नमः |
ॐ बृहन्नमूर्ध्ने नमः |
ॐ बृहत्स्वनाय नमः |
ॐ बृहत्कर्णाय नमः |
ॐ बृहन्नासाय नमः |
ॐ बृहन्नेत्राय नमः |
ॐ बृहत्गलाय नमः |
ॐ बृहध्यन्त्राय नमः |
ॐ बृहत्चेष्टाय नमः |
ॐ बृहत्पुच्छाय नमः |
ॐ बृहत्कराय नमः |
ॐ बृहत्गतये नमः |
ॐ बृहत्सेव्याय नमः |
ॐ बृहल्लोक-फलप्रदाय नमः |
ॐ बृहच्छक्तये नमः |
ॐ बृहद्वांछा-फलदाय नमः |
ॐ बृहदीश्वराय नमः |
ॐ बृहल्लोकनुताय नमः |
ॐ द्रंष्टे नमः |
ॐ विद्या-दात्रे नमः |
ॐ जगद्गुरवे नमः |
ॐ देवाचार्याय नमः |
ॐ सत्य-वादिने नमः |
ॐ ब्रह्म-वादिने नमः |
ॐ कलाधराय नमः |
ॐ सप्त-पातालगामिने नमः |
ॐ मलयाचल-संश्रयाय नमः |
ॐ उत्तराशास्थिताय नमः |
ॐ श्रीदाय नमः |
ॐ दिव्य-औषधि-वशाय नमः |
ॐ खगाय नमः |
ॐ शाखामृगाय नमः |
ॐ कपीन्द्राय नमः |
ॐ पुराणाय नमः |
ॐ श्रुति-संचराय नमः |
ॐ चतुराय नमः |
ॐ ब्राह्मणाय नमः |
ॐ योगिने नमः |
ॐ योगगम्याय नमः |
ॐ परात्पराय नमः |
ॐ अनादये नमः |
ॐ निधनाय नमः |
ॐ व्यासाय नमः |
ॐ वैकुण्ठाय नमः |
ॐ पृथ्वी-पतये नमः |
ॐ अपराजितये नमः |
ॐ जितारातये नमः |
ॐ सदानन्दाय नमः |
ॐ ईशित्रे नमः |
ॐ गोपालाय नमः |
ॐ गोपतये नमः |
ॐ गोप्त्रे नमः |
ॐ कलये नमः |
ॐ कालाय नमः |
ॐ परात्पराय नमः |
ॐ मनोवेगिने नमः |
ॐ सदा-योगिने नमः |
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः |
ॐ तत्त्व-दात्रे नमः |
ॐ तत्त्वज्ञाय नमः |
ॐ तत्त्वाय नमः |
ॐ तत्त्व-प्रकाशाय नमः |
ॐ शुद्धाय नमः |
ॐ बुद्धाय नमः |
ॐ नित्यमुक्ताय नमः |
ॐ भक्त-राजाय नमः |
ॐ जयप्रदाय नमः |
ॐ प्रलयाय नमः |
ॐ अमित-मायाय नमः |
ॐ मायातीताय नमः |
ॐ विमत्सराय नमः |
ॐ माया-निर्जित-रक्षसे नमः |
ॐ माया-निर्मित-विष्टपाय नमः |
ॐ मायाश्रयाय नमः |
ॐ निर्लेपाय नमः |
ॐ माया-निर्वंचकाय नमः |
ॐ सुखाय नमः |
ॐ सुखिने नमः |
ॐ सुखप्रदाय नमः |
ॐ नागाय नमः |
ॐ महेशकृत-संस्तवाय नमः |
ॐ महेश्वराय नमः |
ॐ सत्यसंधाय नमः |
ॐ शरभाय नमः |
ॐ कलि-पावनाय नमः |
ॐ रसाय नमः |
ॐ रसज्ञाय नमः |
ॐ सम्मानाय नमः |
ॐ तपस्चक्षवे नमः |
ॐ भैरवाय नमः |
ॐ घ्राणाय नमः |
ॐ गन्धाय नमः |
ॐ स्पर्शनाय नमः |
ॐ स्पर्शाय नमः |
ॐ अहंकारमानदाय नमः |
ॐ नेति-नेति-गम्याय नमः |
ॐ वैकुण्ठ-भजन-प्रियाय नमः |
ॐ गिरीशाय नमः |
ॐ गिरिजा-कान्ताय नमः |
ॐ दूर्वाससे नमः |
ॐ कवये नमः |
ॐ अंगिरसे नमः |
ॐ भृगुवे नमः |
ॐ वसिष्ठाय नमः |
ॐ च्यवनाय नमः |
ॐ तुम्बुरुवे नमः |
ॐ नारदाय नमः |
ॐ अमलाय नमः |
ॐ विश्व-क्षेत्राय नमः |
ॐ विश्व-बीजाय नमः |
ॐ विश्व-नेत्राय नमः |
ॐ विश्वगाय नमः |
ॐ याजकाय नमः |
ॐ यजमानाय नमः |
ॐ पावकाय नमः |
ॐ पित्रे नमः |
ॐ श्रद्धायै नमः |
ॐ बुद्धये नमः |
ॐ क्षमायै नमः |
ॐ तन्त्राय नमः |
ॐ मन्त्राय नमः |
ॐ मन्त्रयुताय नमः |
ॐ स्वराय नमः |
ॐ राजेन्द्राय नमः |
ॐ भूपतये नमः |
ॐ रुण्ड-मालिने नमः |
ॐ संसार-सारथये नमः |
ॐ नित्याय नमः |
ॐ संपूर्ण-कामाय नमः |
ॐ भक्त कामदुधे नमः |
ॐ उत्तमाय नमः |
ॐ गणपाय नमः |
ॐ केशवाय नमः |
ॐ भ्रात्रे नमः |
ॐ पित्रे नमः |
ॐ मात्रे नमः |
ॐ मारुतये नमः |
ॐ सहस्र-शीर्षा-पुरुषाय नमः |
ॐ सहस्राक्षाय नमः |
ॐ सहस्रपाताय नमः |
ॐ कामजिते नमः |
ॐ काम-दहनाय नमः |
ॐ कामाय नमः |
ॐ काम्य-फल-प्रदाय नमः |
ॐ मुद्रापहारिणे नमः |
ॐ रक्षोघ्नाय नमः |
ॐ क्षिति-भार-हराय नमः |
ॐ बलाय नमः |
ॐ नख-दंष्ट्रा-युधाय नमः |
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः |
ॐ अभय-वर-प्रदाय नमः |
ॐ दर्पघ्ने नमः |
ॐ दर्पदाय नमः |
ॐ इष्टाय नमः |
ॐ शत-मूर्त्तये नमः |
ॐ अमूर्त्तिमते नमः |
ॐ महा-निधये नमः |
ॐ महा-भागाय नमः |
ॐ महा-भर्गाय नमः |
ॐ महार्थदाय नमः |
ॐ महाकाराय नमः |
ॐ महा-योगिने नमः |
ॐ महा-तेजसे नमः |
ॐ महा-द्युतये नमः |
ॐ महा-कर्मणे नमः |
ॐ महा-नादाय नमः |
ॐ महा-मन्त्राय नमः |
ॐ महा-मतये नमः |
ॐ महाशयाय नमः |
ॐ महोदराय नमः |
ॐ महादेवात्मकाय नमः |
ॐ विभवे नमः |
ॐ रुद्र-कर्मणे नमः |
ॐ अकृत-कर्मणे नमः |
ॐ रत्न-नाभाय नमः |
ॐ कृतागमाय नमः |
ॐ अम्भोधि-लंघनाय नमः |
ॐ सिंहाय नमः |
ॐ नित्याय नमः |
ॐ धर्माय नमः |
ॐ प्रमोदनाय नमः |
ॐ जितामित्राय नमः |
ॐ जयाय नमः |
ॐ सम-विजयाय नमः |
ॐ वायु-वाहनाय नमः |
ॐ जीव-दात्रे नमः |
ॐ सहस्रांशवे नमः |
ॐ मुकुन्दाय नमः |
ॐ भूरि-दक्षिणाय नमः |
ॐ सिद्धर्थाय नमः |
ॐ सिद्धिदाय नमः |
ॐ सिद्ध-संकल्पाय नमः |
ॐ सिद्धि-हेतुकाय नमः |
ॐ सप्त-पातालचरणाय नमः |
ॐ सप्तर्षि-गण-वन्दिताय नमः |
ॐ सप्ताब्धि-लंघनाय नमः |
ॐ वीराय नमः |
ॐ सप्त-द्वीपोरुमण्डलाय नमः |
ॐ सप्तांग-राज्य-सुखदाय नमः |
ॐ सप्त-मातृ-निशेविताय नमः |
ॐ सप्त-लोकैक-मुकुटाय नमः |
ॐ सप्त-होता-स्वराश्रयाय नमः |
ॐ सप्तच्छन्द-निधये नमः |
ॐ सप्तच्छन्दसे नमः |
ॐ सप्त-जनाश्रयाय नमः |
ॐ सप्त-सामोपगीताय नमः |
ॐ सप्त-पातल-संश्रयाय नमः |
ॐ मेधावी-कीर्तिदाय नमः |
ॐ शोक-हारिणे नमः |
ॐ दौर्भाग्य-नाशनाय नमः |
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः |
ॐ गर्भ-दोषघ्नाय नमः |
ॐ पुत्र-पौत्र-दाय नमः |
ॐ प्रतिवादि-मुखस्तंभिने नमः |
ॐ तुष्टचित्ताय नमः |
ॐ प्रसादनाय नमः |
ॐ पराभिचारशमनाय नमः |
ॐ दवे नमः |
ॐ खघ्नाय नमः |
ॐ बंध-मोक्षदाय नमः |
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः |
ॐ नव-द्वार-निकेतनाय नमः |
ॐ नर-नारायण-स्तुत्याय नमः |
ॐ नरनाथाय नमः |
ॐ महेश्वराय नमः |
ॐ मेखलिने नमः |
ॐ कवचिने नमः |
ॐ खद्गिने नमः |
ॐ भ्राजिष्णवे नमः |
ॐ जिष्णुसारथये नमः |
ॐ बहु-योजन-विस्तीर्ण-पुच्छाय नमः |
ॐ पुच्छ-हतासुराय नमः |
ॐ दुष्टग्रह-निहंत्रे नमः |
ॐ पिशाच-ग्रह-घातकाय नमः |
ॐ बाल-ग्रह-विनाशिने नमः |
ॐ धर्माय नमः |
ॐ नेता-कृपाकराय नमः |
ॐ उग्रकृत्याय नमः |
ॐ उग्रवेगिने नमः |
ॐ उग्र-नेत्राय नमः |
ॐ शत-क्रतवे नमः |
ॐ शत-मन्युस्तुताय नमः |
ॐ स्तुत्याय नमः |
ॐ स्तुतये नमः |
ॐ स्तोत्रे नमः |
ॐ महा-बलाय नमः |
ॐ समग्र-गुणशालिने नमः |
ॐ अव्यग्राय नमः |
ॐ रक्षाय नमः |
ॐ विनाशकाय नमः |
ॐ रक्षोघ्न-हस्ताय नमः |
ॐ ब्रह्मेशाय नमः |
ॐ श्रीधराय नमः |
ॐ भक्त-वत्सलाय नमः |
ॐ मेघ-नादाय नमः |
ॐ मेघ-रूपाय नमः |
ॐ मेघ-वृष्टि-निवारकाय नमः |
ॐ मेघ-जीवन-हेतवे नमः |
ॐ मेघ-श्यामाय नमः |
ॐ परात्मकाय नमः |
ॐ समीर-तनयाय नमः |
ॐ बोध्-तत्त्व-विद्या-विशारदाय नमः |
ॐ अमोघाय नमः |
ॐ अमोघहृष्टये नमः |
ॐ इष्टदाय नमः |
ॐ अनिष्ट-नाशनाय नमः |
ॐ अर्थाय नमः |
ॐ अनर्थापहारिणे नमः |
ॐ समर्थाय नमः |
ॐ राम-सेवकाय नमः |
ॐ अर्थिने नमः |
ॐ धन्याय नमः |
ॐ असुरारातये नमः |
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः |
ॐ आत्मभूवे नमः |
ॐ संकर्षणाय नमः |
ॐ विशुद्धात्मने नमः |
ॐ विद्या-राशये नमः |
ॐ सुरेश्वराय नमः |
ॐ अचलोद्धारकाय नमः |
ॐ नित्याय नमः |
ॐ सेतुकृते नमः |
ॐ राम-सारथये नमः |
ॐ आनन्दाय नमः |
ॐ परमानन्दाय नमः |
ॐ मत्स्याय नमः |
ॐ कूर्माय नमः |
ॐ निधये नमः |
ॐ शूराय नमः |
ॐ वाराहाय नमः |
ॐ नारसिंहाय नमः |
ॐ वामनाय नमः |
ॐ जमदग्निजाय नमः |
ॐ रामाय नमः |
ॐ कृष्णाय नमः |
ॐ शिवाय नमः |
ॐ बुद्धाय नमः |
ॐ कल्किने नमः |
ॐ रामाश्रयाय नमः |
ॐ हराय नमः |
ॐ नन्दिने नमः |
ॐ भृन्गिने नमः |
ॐ चण्डिने नमः |
ॐ गणेशाय नमः |
ॐ गण-सेविताय नमः |
ॐ कर्माध्यक्ष्याय नमः |
ॐ सुराध्यक्षाय नमः |
ॐ विश्रामाय नमः |
ॐ जगतांपतये नमः |
ॐ जगन्नथाय नमः |
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः |
ॐ सर्ववासाय नमः |
ॐ सदाश्रयाय नमः |
ॐ सुग्रीवादिस्तुताय नमः |
ॐ शान्ताय नमः |
ॐ सर्व-कर्मणे नमः |
ॐ प्लवंगमाय नमः |
ॐ नखदारितरक्षसे नमः |
ॐ नख-युद्ध-विशारदाय नमः |
ॐ कुशलाय नमः |
ॐ सुघनाय नमः |
ॐ शेषाय नमः |
ॐ वासुकये नमः |
ॐ तक्षकाय नमः |
ॐ स्वराय नमः |
ॐ स्वर्ण-वर्णाय नमः |
ॐ बलाढ्याय नमः |
ॐ राम-पूज्याय नमः |
ॐ अघनाशनाय नमः |
ॐ कैवल्य-दीपाय नमः |
ॐ कैवल्याय नमः |
ॐ गरुडाय नमः |
ॐ पन्नगाय नमः |
ॐ गुरवे नमः |
ॐ क्लिक्लिरावणहतारातये नमः |
ॐ गर्वाय नमः |
ॐ पर्वत-भेदनाय नमः |
ॐ वज्रांगाय नमः |
ॐ वज्र-वेगाय नमः |
ॐ भक्ताय नमः |
ॐ वज्र-निवारकाय नमः |
ॐ नखायुधाय नमः |
ॐ मणिग्रीवाय नमः |
ॐ ज्वालामालिने नमः |
ॐ भास्कराय नमः |
ॐ प्रौढ-प्रतापाय नमः |
ॐ तपनाय नमः |
ॐ भक्त-ताप-निवारकाय नमः |
ॐ शरणाय नमः |
ॐ जीवनाय नमः |
ॐ भोक्त्रे नमः |
ॐ नानाचेष्टा नमः |
ॐ चंचलाय नमः |
ॐ सुस्वस्थाय नमः |
ॐ अस्वास्थ्यघ्ने नमः |
ॐ दवे नमः |
ॐ खशमनाय नमः |
ॐ पवनात्मजाय नमः |
ॐ पावनाय नमः |
ॐ पवनाय नमः |
ॐ कान्ताय नमः |
ॐ भक्तागाय नमः |
ॐ सहनाय नमः |
ॐ बलाय नमः |
ॐ मेघनाद-रिपवे नमः |
ॐ मेघनाद-संहृतराक्षसाय नमः |
ॐ क्षराय नमः |
ॐ अक्षराय नमः |
ॐ विनीतात्मा वानरेशाय नमः |
ॐ सतांगतये नमः |
ॐ शिति-कण्ठाय नमः |
ॐ श्री-कण्ठाय नमः |
ॐ सहायाय नमः |
ॐ सहनायकाय नमः |
ॐ अस्थलाय नमः |
ॐ अनणवे नमः |
ॐ भर्गाय नमः |
ॐ देवाय नमः |
ॐ संसृतिनाशनाय नमः |
ॐ अध्यात्म-विद्याय नमः |
ॐ साराय नमः |
ॐ अध्यात्म-कुशलाय नमः |
ॐ सुधिये नमः |
ॐ अकल्मषाय नमः |
ॐ सत्य-हेतवे नमः |
ॐ सत्यगाय नमः |
ॐ सत्य-गोचराय नमः |
ॐ सत्य-गर्भाय नमः |
ॐ सत्य-रूपाय नमः |
ॐ सत्याय नमः |
ॐ सत्य-पराक्रमाय नमः |
ॐ अन्जना-प्राणलिंगाय नमः |
ॐ वायु-वंशोद्भवाय नमः |
ॐ शुभाय नमः |
ॐ भद्र-रूपाय नमः |
ॐ रुद्र-रूपाय नमः |
ॐ सुरूपस्चित्र-रूपधृताय नमः |
ॐ मैनाक-वंदिताय नमः |
ॐ सूक्ष्म-दर्शनाय नमः |
ॐ विजयाय नमः |
ॐ जयाय नमः |
ॐ क्रान्त-दिग्मण्डलाय नमः |
ॐ रुद्राय नमः |
ॐ प्रकटीकृत-विक्रमाय नमः |
ॐ कम्बु-कण्ठाय नमः |
ॐ प्रसन्नात्मने नमः |
ॐ ह्रस्व-नासाय नमः |
ॐ वृकोदराय नमः |
ॐ लंबोष्टाय नमः |
ॐ कुण्डलिने नमः |
ॐ चित्र-मालिने नमः |
ॐ योग-विदावराय नमः |
ॐ वराय नमः |
ॐ विपश्चिताय नमः |
ॐ कविरानन्द-विग्रहाय नमः |
ॐ अनन्य-शासनाय नमः |
ॐ फल्गुणीसूनुरव्यग्राय नमः |
ॐ योगात्मने नमः |
ॐ योगतत्पराय नमः |
ॐ योग-वेद्याय नमः |
ॐ योग-कर्त्रे नमः |
ॐ योग-योनये नमः |
ॐ दिगंबराय नमः |
ॐ अकारादि-क्षकारान्ताय नमः |
ॐ वर्ण-निर्मिताय नमः |
ॐ विग्रहाय नमः |
ॐ उलूखल-मुखाय नमः |
ॐ सिंहाय नमः |
ॐ संस्तुताय नमः |
ॐ परमेश्वराय नमः |
ॐ श्लिष्ट-जंघाय नमः |
ॐ श्लिष्ट-जानवे नमः |
ॐ श्लिष्ट-पाणये नमः |
ॐ शिखा-धराय नमः |
ॐ सुशर्मणे नमः |
ॐ अमित-शर्मणे नमः |
ॐ नारायण-परायणाय नमः |
ॐ जिष्णवे नमः |
ॐ भविष्णवे नमः |
ॐ रोचिष्णवे नमः |
ॐ ग्रसिष्णवे नमः |
ॐ स्थाणुरेवाय नमः |
ॐ हरये नमः |
ॐ रुद्रानुकृते नमः |
ॐ वृक्ष-कंपनाय नमः |
ॐ भूमि-कंपनाय नमः |
ॐ गुण-प्रवाहाय नमः |
ॐ सूत्रात्मने नमः |
ॐ वीत-रागाय नमः |
ॐ स्तुति-प्रियाय नमः |
ॐ नाग-कन्या-भय-ध्वंसिने नमः |
ॐ ऋतु-पर्णाय नमः |
ॐ कपाल-भृताय नमः |
ॐ अनाकुलाय नमः |
ॐ भवोपायाय नमः |
ॐ अनपायाय नमः |
ॐ वेद-पारगाय नमः |
ॐ अक्षराय नमः |
ॐ पुरुषाय नमः |
ॐ लोक-नाथाय नमः |
ॐ रक्ष-प्रभवे नमः |
ॐ दृडाय नमः |
ॐ अष्टांग-योगाय नमः |
ॐ फलभुवे नमः |
ॐ सत्य-संधाय नमः |
ॐ पुरुष्टुताय नमः |
ॐ श्मशान-स्थान-निलयाय नमः |
ॐ प्रेत-विद्रावणाय नमः |
ॐ क्षमाय नमः |
ॐ पंचाक्षर-पराय नमः |
ॐ पञ्च-मातृकाय नमः |
ॐ रंजनाय नमः |
ॐ ध्वजाय नमः |
ॐ योगिने नमः |
ॐ वृन्द-वंद्याय नमः |
ॐ शत्रुघ्नाय नमः |
ॐ अनन्त-विक्रमाय नमः |
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः |
ॐ इन्द्रिय-रिपवे नमः |
ॐ धृतदण्डाय नमः |
ॐ दशात्मकाय नमः |
ॐ अप्रपंचाय नमः |
ॐ सदाचाराय नमः |
ॐ शूर-सेना-विदारकाय नमः |
ॐ वृद्धाय नमः |
ॐ प्रमोदाय नमः |
ॐ आनंदाय नमः |
ॐ सप्त-जिह्व-पतिर्धराय नमः |
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः |
ॐ प्रत्यग्राय नमः |
ॐ सामगायकाय नमः |
ॐ षट्चक्रधाम्ने नमः |
ॐ स्वर्लोकाय नमः |
ॐ भयहृते नमः |
ॐ मानदाय नमः |
ॐ अमदाय नमः |
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः |
ॐ शक्तिरनन्ताय नमः |
ॐ अनन्त-मंगलाय नमः |
ॐ अष्ट-मूर्तिर्धराय नमः |
ॐ नेत्रे नमः |
ॐ विरूपाय नमः |
ॐ स्वर-सुन्दराय नमः |
ॐ धूम-केतवे नमः |
ॐ महा-केतवे नमः |
ॐ सत्य-केतवे नमः |
ॐ महारथाय नमः |
ॐ नन्दि-प्रियाय नमः |
ॐ स्वतन्त्राय नमः |
ॐ मेखलिने नमः |
ॐ समर-प्रियाय नमः |
ॐ लोहांगाय नमः |
ॐ सर्वविदे नमः |
ॐ धन्विने नमः |
ॐ षट्कलाय नमः |
ॐ शर्वाय नमः |
ॐ ईश्वराय नमः |
ॐ फल-भुजे नमः |
ॐ फल-हस्ताय नमः |
ॐ सर्व-कर्म-फलप्रदाय नमः |
ॐ धर्माध्यक्षाय नमः |
ॐ धर्म-फलाय नमः |
ॐ धर्माय नमः |
ॐ धर्म-प्रदाय नमः |
ॐ अर्थदाय नमः |
ॐ पं-विंशति-तत्त्वज्ञाय नमः |
ॐ तारक-ब्रह्म-तत्पराय नमः |
ॐ त्रि-मार्गवसतये नमः |
ॐ भीमाये नमः |
ॐ सर्व-दुष्ट-निबर्हणाय नमः |
ॐ ऊर्जस्वानाय नमः |
ॐ निष्कलाय नमः |
ॐ मौलिने नमः |
ॐ गर्जाय नमः |
ॐ निशाचराय नमः |
ॐ रक्तांबर-धराय नमः |
ॐ रक्ताय नमः |
ॐ रक्त-माला-विभूषणाय नमः |
ॐ वन-मालिने नमः |
ॐ शुभांगांय नमः |
ॐ श्वेताय नमः |
ॐ श्वेतांबराय नमः |
ॐ जयाय नमः |
ॐ जय-परीवाराय नमः |
ॐ सहस्र-वदनाय नमः |
ॐ कपये नमः |
ॐ शाकिनी-डाकिनी-यक्ष-रक्षाय नमः |
ॐ भूतौघ-भंजनाय नमः |
ॐ सद्योजाताय नमः |
ॐ कामगतये नमः |
ॐ ज्ञान-मूर्तये नमः |
ॐ यशस्कराय नमः |
ॐ शंभु-तेजसे नमः |
ॐ सार्वभौमाय नमः |
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः |
ॐ चतुर्नवति-मन्त्रज्ञाय नमः |
ॐ पौलस्त्य-बल-दर्पहाय नमः |
ॐ सर्व-लक्ष्मी-प्रदाय नमः |
ॐ श्रीमानाय नमः |
ॐ अन्गदप्रियाय नमः |
ॐ स्मृतये नमः |
ॐ सुरेशानाय नमः |
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः |
ॐ उत्तमाय नमः |
ॐ श्रीपरिवाराय नमः |
ॐ सदागतिर्मातरये नमः |
ॐ राम-पादाब्ज-षट्पदाय नमः |
ॐ नील-प्रियाय नमः |
ॐ नील-वर्णाय नमः |
ॐ नील-वर्ण-प्रियाय नमः |
ॐ सुहृताय नमः |
ॐ राम दूताय नमः |
ॐ लोक-बन्धवे नमः |
ॐ अन्तरात्मा-मनोरमाय नमः |
ॐ श्री राम ध्यानकृद् वीराय नमः |
ॐ सदा किंपुरुषस्स्तुताय नमः |
ॐ राम कार्यांतरंगाय नमः |
ॐ शुद्धिर्गतिरानमयाय नमः |
ॐ पुण्य श्लोकाय नमः |
ॐ परानन्दाय नमः |
ॐ परेशाय नमः |
ॐ प्रिय सारथये नमः |
ॐ लोक-स्वामिने नमः |
ॐ मुक्ति-दात्रे नमः |
ॐ सर्व-कारण-कारणाय नमः |
ॐ महा-बलाय नमः |
ॐ महा-वीराय नमः |
ॐ पारावारगतये नमः |
ॐ समस्त-लोक-साक्षिणे नमः |
ॐ समस्त-सुर-वंदिताय नमः |
ॐ सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवा-धुरंधराय नमः |

अनेन सहस्त्रनाम्नाऽमुकद्रव्यसमर्पणेन श्री हनुमद्देवता प्रीयताम् न मम।।

Wednesday, September 15, 2010

भगवती मंगल-चण्डिका

भगवती मंगल-चण्डिका
‘चण्डी’ शब्द का प्रयोग ‘दक्षा’ (चतुरा) के अर्थ में होता है और ‘मंगल′ शब्द कल्याण का वाचक है। जो मंगल-कल्याण करने में दक्ष हो, वही “मंगल-चण्डिका” कही जाती है। ‘दुर्गा’ के अर्थ में भी चण्डी शब्द का प्रयोग होता है और मंगल शब्द भूमि-पुत्र मंगल के अर्थ में भी आता है। अतः जो मंगल की अभीष्ट देवी है, उन देवी को ‘मंगल-चण्डिका’ कहा गया है।
मनुवंश में ‘मंगल′ नामक राजा थे। सप्त-द्वीपवती पृथ्वी उनके शासन में थी। उन्होंने इन देवी को अभीष्ट देवता मानकर पूजा की थी। इसलिए भी ये ‘मंगल-चण्डी’ नाम से विख्यात हुई। जो मूलप्रकृति भगवती जगदीश्वरी ‘दुर्गा’ कहलाती हैं, उन्हीं का यह रुपान्तर है। ये देवी कृपा की मूर्ति धारण करके सबके सामने प्रत्यक्ष हुई हैं। स्त्रियों की ये इष्टदेवी हैं।

मंगल-चण्डिका-स्तोत्रम्
मन्त्रः- “ॐ ह्रीं श्रीम क्लीं सर्व-पूज्ये देवि मंगल-चण्डिके। ऐं क्रू फट् स्वाहा।।” (२१ अक्षर)
(देवीभागवत, नवम स्कन्ध, अध्याय ४७ के अनुसार मन्त्र इस प्रकार हैः- “ॐ ह्रीं श्रीम क्लीं सर्व-पूज्ये देवि मंगल-चण्डिके। हूं हूं फट् स्वाहा।।”)
ध्यानः-
देवीं षोड्शवष यां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्। सर्वरुपगुणाढ्यां च कोमलांगीं मनोहराम् ।।१
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् । वह्निशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् ।।२
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् । विम्बोष्ठीं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् ।।३
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोत्पललोचनाम् । जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसम्पदाम् ।।४
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे।।५
देव्याश्च द्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने । प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः ।।
सुस्थिर यौवना भगवती मंगल-चण्डिका सदा सोलह वर्ष की ही जान पड़ती है। ये सम्पूर्ण रुप-गुण से सम्पन्न, कोमलांगी एवं मनोहारिणी हैं। श्वेत चम्पा के समान इनका गौरवर्ण तथा करोड़ों चन्द्रमाओं के तुल्य इनकी मनोहर कान्ति है। ये अग्नि-शुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये रत्नमय आभूषणों से विभूषित है। मल्लिका पुष्पों से समलंकृत केशपाश धारण करती हैं। बिम्बसदृश लाल ओठ, सुन्दर दन्त-पंक्ति तथा शरत्काल के प्रफुल्ल कमल की भाँति शोभायमान मुखवाली मंगल-चण्डिका के प्रसन्न वदनारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही है। इनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले हुए नीलकमल के समान मनोहर जान पड़ते हैं। सबको सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करने वाली ये जगदम्बा घोर संसार-सागर से उबारने में जहाज का काम करती हैं। मैं सदा इनका भजन करता हूँ।

।।शंकर उवाच।।
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके । हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके ।।
हर्ष-मंगल-दक्षे च हर्ष-मंगल-चण्डिके । शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके ।।
मंगले मंगलार्हे च सर्व-मंगल-मंगले । सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये ।।
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते । पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम् ।।
मंगलाधिष्ठातृदेवि मंगलानां च मंगले । संसार-मंगलाधारे मोक्ष-मंगल-दायिनी ।।
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् । प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे ।।
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगलचण्डिकाम् । प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः ।।
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः । तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमंगलम् ।।
(ब्रह-वैवर्त्त-पुराण । प्रकृतिखण्ड । ४४ । २०-३६)
महादेवजी ने कहाः- ‘जगन्माता भगवती मंगल-चण्डिके ! तुम सम्पूर्ण विपत्तियों का विध्वंस करने वाली हो एवं हर्ष तथा मंगल प्रदान करने को सदा प्रस्तुत रहती हो। मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। खुले हाथ हर्ष और मंगल देनेवाली हर्ष-मंगल-चण्डिके ! तुम शुभा, मंगलदक्षा, शुभमंगल-चण्डिका, मंगला, मंगलार्हा तथा सर्व-मंगल-मंगला कहलाती हो। देवि ! साधु-पुरुषों को मंगल प्रदान करना तुम्हारा स्वाभाविक गुण है। तुम सबके लिये मंगल का आश्रय हो। देवि ! तुम मंगलग्रह की इष्ट-देवी हो। मंगलवार के दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिए। मनुवंश में उत्पन्न राजा मंगल की पूजनीया देवी हो। मंगलाधिष्ठात्री देवि ! तुम मंगलों के लिए भी मंगल हो। जगत् के समस्त मंगल तुम पर आश्रित हैं। तुम सबको मोक्षमय मंगल प्रदान करती हो। मंगलवार के दिन सुपूजित होने पर मंगलमय सुख प्रदान करने वाली देवि ! तुम संसार की सारभूता मंगलधारा तथा समस्त कर्मों से परे हो।’
इस स्तोत्र से स्तुति करके भगवान् शंकर ने देवी मंगल-चण्डिका की उपासना की। वे प्रति मंगलवार के दिन उनका पूजन करके चले जाते हैं। यों ये भगवती सर्वमंगला सर्वप्रथम भगवान् शंकर से पूजित हुई। उनके दूसरे उपासक मंगल ग्रह हैं। तीसरी बार राजा मंगल ने तथा चौथी बार मंगलवार के दिन कुछ सुन्दर स्त्रियों ने इन देवी की पूजा की। पाँचवीं बार मंगल कामना रखने वाले बहुसंख्यक मनुष्यों ने मंगलचण्डिका का पूजन किया। फिर तो विश्वेश शंकर से सुपूजित ये देवी प्रत्येक विश्व में सदा पूजित होने लगी। मुने ! इसके बाद देवता, मुनि, मनु और मानव – सभी सर्वत्र इन परमेश्वरी की पूजा करने लगे।
जो पुरुष मन को एकाग्र करके भगवती मंगल-चण्डिका के इस मंगलमय स्तोत्र का श्रवण करता है, उसे सदा मंगल प्राप्त होता है। अमंगल उसके पास नहीं आ सकता। उसके पुत्र और पौत्रों में वृद्धि होती है तथा उसे प्रतिदिन मंगल ही दृष्टिगोचर होता है।

गणेशजी को दूर्वा, शमीपत्र तथा मोदक चढ़ाने का रहस्य -

गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं। अतः सभी अनिषिद्ध पत्र-पुष्प इन पर चढ़ाये जा सकते हैं। तुलसीं वर्जयित्वा सर्वाण्यपि पत्रपुष्पाणि गणपतिप्रियाणि। (आचारभूषण) गणपति को दूर्वा अधिक प्रिय है। अतः इन्हें सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिये। दूर्वा की फुनगी में तीन या पाँच पत्ती होनी चाहिये।

हरिताः श्वेतवर्णा वा पंचत्रिपत्रसंयुताः। दूर्वांकुरा मया दत्ता एकविंशतिसम्मिताः।। (गणेशपुराण)

भगवान् गणेशजी को 3 या 5 गांठ वाली दूर्वा (दूब-घास) अर्पण करने से वह प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। पूजा के अवसर पर दूर्वा-युग्म अर्थात् दो दूर्वा तथा होम के अवसर पर तीन दूर्वाओं के ग्रहण का विधान तन्त्रशास्त्र में मिलता है। जीव सुख और दुःख भोगने के लिये जन्म लेता है। इस सुख और दुःख रूप द्वन्द को दूर्वा-युग्म से समर्पण किया जाता है। होम के अवसर पर तीन दूर्वाओं का ग्रहण इस तात्पर्य का अवगमक है – आवण, कार्मण और मायिक रूपी तीन मलों को भस्मीभूत करना। इसके सम्बन्ध में पुराण में एक कथा का उल्लेख मिलता है – ‘‘एक समय पृथ्वी पर अनलासुर नामक राक्षस ने भयंकर उत्पात मचा रखा था। उसका अत्याचार पृथ्वी के साथ-साथ स्वर्ग और पाताल तक फैलने लगा था। वह भगवद् भक्ति व ईश्वर आराधना करने वाले ऋषि-मुनियों और निर्दोष लागों को जिन्दा निगल जाता था। देवराज इन्द्र ने उससे कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्हें हमेशा पराजित होना पड़ा। अनलासुर से त्रस्त होकर समस्त देवता भगवान् शिव के पास गए। उन्होंने बताया कि उसे सिर्फ गणेशजी ही खत्म कर सकते हैं, क्योंकि उनका पेट बड़ा है इसलिये वे उसको पूरा निगल लेंगे। इस पर देवताओं ने गणेश की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। गणेशजी ने अनलासुर का पीछा किया और उसे निगल गए। इससे उनके पेट में काफी जलन होने लगी। अनेक उपाय किए गए, लेकिन ज्वाला शांत नहीं हुई। जब कश्यप ऋषि को यह बात मालूम हुई, तो वे तुरन्त कैलाश गये और 21 दूर्वा एकत्रित कर एक गांठ तैयार कर गणेशजी को खिलाई, जिससे उनके पेट की ज्वाला तुरन्त शांत हो गई।

शमी-वृक्ष को ‘वह्निवृक्ष’ भी कहते हैं। वह्निपत्र गणपति के लिये प्रिय वस्तु है। यह शिव का द्योतक है। यहाँ ज्ञातव्य है कि भूततत्त्वरूपी गणेश का मूलाधार स्थान है। इस प्रकार जानकर वह्निपत्र से विनायक को पूजने से जीव ब्रह्मभाव को प्राप्त कर सकता है।

श्रीगणेशजी को ‘मोदकप्रिय’ कहा जाता है। वे अपने एक हाथ में मोदक पूर्ण पात्र रखते हैं। ‘मन्त्र महार्णव’ में उन्मत्त उच्छिष्टगणपति का वर्णन है - चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशंकुशौ मोदकपात्रदन्तौ। करैर्दधानं सरसीरूहस्थमुन्मत्तमुच्छिष्टगणेशमीडे।।

‘मन्त्र महार्णव’ में एक ध्यान में श्रीगणेश की सूँड के अग्रभाग पर मोदक भूषित है - कवषाणाकुंशावक्षसूत्रं च पाशं दधानं करैर्मोदकं पुष्करेण। स्वपत्न्या युतं हेमभूषाम्बराढ्यं गणेशं समुद्यद्दिनेशाभमीडे।।

मोदक को महाबुद्धि का प्रतीक बताया गया है। त्रिवेन्द्रम् में स्थापित केवल गणपति मूर्ति के हाथों में अंकुश, पाश, मोदक और दाँत शोभित है। मोदक आगे के बाँये हाथ में सुशोभित है। मोदक धारी गणेश का चित्रण है - …………………………………………रूपमादधे। चतुर्भुजं महाकायं मुकुटाटोपमस्तकम्। परशुं कमलं मालां मोदकानावहत्।। (गणेशपु., उपा. 21। 22)

हिमाचल ने भगवती पार्वती को श्रीगणेश का ध्यान करने की जो विधि बतायी है, उसमें उन्होनें मोदक का उल्लेख किया है - एकदन्तं शूपकर्णं गजवक्त्रं चतुर्भुंजं।। पाशांकुशधरं देवं मोकान् बिभ्रतं करै। (गणेशपु., उपा. 49। 21-22)

पद्मपुराण के अनुसार (सृष्टिखण्ड 61। 1 से 63। 11) – एक दिन व्यासजी के शिष्य महामुनि संजय ने अपने गुरूदेव को प्रणाम करके प्रश्न किया कि गुरूदेव! आप मुझे देवताओं के पूजन का सुनिश्चित क्रम बतलाइये। प्रतिदिन की पूजा में सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिये ? तब व्यासजी ने कहा – संजय विघ्नों को दूर करने के लिये सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करनी चाहिये। पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (स्कन्द तथा गणेश) माता से माँगने लगे। तब माता ने मोदक के प्रभावों का वर्णन कर कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसी को मैं यह मोदक दूँगी। माता की ऐसी बात सुनकर स्कन्द मयूर पर आरूढ़ हो मुहूर्तभर में सब तीर्थों की स्न्नान कर लिया। इधर लम्बोदरधारी गणेशजी माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गये। तब पार्वतीजी ने कहा- समस्त तीर्थों में किया हुआ स्न्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिये यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। अतः देवताओं का बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूँ। माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी। तत्पश्चात् महादेवजी बोले- इस गणेश के ही अग्रपूजन से सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हों।

गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है - ‘‘यो दूर्वाकुंरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति। यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति, स मेधावान् भवति। यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।……………….’’ अर्थात् ‘जो दूर्वाकुंरों द्वारा यजन करता है, वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजा (धान-लाई) के द्वारा यजन करता है, वह यशस्वी होता है, मेधावान् होता है। जो सहस्त्र (हजार) मोदकों के द्वारा यजन करता है, वह मनोवांछित फल प्राप्त करता है।’ श्री गणपति की दूर्वाकुंर से प्रियता तथा मोदकप्रियता को प्रदर्शित करता है। देवताओं ने मोदकों से विघ्नराज गणेश की पूजा की थी- ‘लड्डुकैश्च ततो देवैर्विघ्ननाथस्समर्चितः।। (स्कन्दपु., अवन्ती. 36। 1) उपरोक्त पौराणिक आख्यान से गणेश जी की मोदकप्रियता की पुष्टि होती है। गणेशजी को मोदक यानी लड्डू काफी प्रिय हैं। इनके बिना गणेशजी की पूजा अधूरी ही मानी जाती है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने विनय पत्रिका – 1 में कहा है - गाइये गनपति जगबंदन। संकर-सुवन भवानी-नंदन।। सिद्धि-सदन गज बदन विनायक। कृपा-सिंधु सुन्दर सब लायक।। मोदकप्रिय मुद मंगलदाता। विद्या वारिधि बुद्धि विधाता।। श्रीज्ञानेश्वरजी ने शब्दब्रह्म गणेश के रूप-वर्णन में उनके हाथ में शोभित मोदक को परम मधुर अद्वैत वेदान्त का रूपक बताया है - ‘वेदान्तु तो महारसु। मोदक मिरवे।’ (ज्ञानेश्वरी 1। 11) प्रसिद्ध श्रीगणेश आरती में जन-जन गाता है – ‘…………..लडुवन का भोग लगे संत करे सेवा।’ पं. श्रीपट्टाभिराम शास्त्री, मीमांसाचार्य ने कल्याण श्रीगणेश अंक वर्ष 48 अंक 1 पृष्ठ 151-152 पर गणेशजी को दूर्वा, शमीपत्र तथा मोदक चढ़ाने का रहस्य की अत्यन्त सुन्दर व्याख्या की है - ‘………………मोद-आनन्द ही मोदक है -‘आनन्दो मोदः प्रमोदः’ श्रुति है। इसका परिचायक है – ‘मोदक’। मोदक का निर्माण दो-तीन प्रकार से होता है। कई लोग बेसन को भूँजकर चीनी की चासनी बनाकर लड्डू बनाते हैं। इसको ‘मोदक’ कहते हैं। यह मूँग के आटे से भी बनाया जाता है। कतिपय लोग गरी या नारियल के चूर्ण को गुड़-पाक कर, गेहूँ, जौ या चावल से आटे को सानकर कवच बनाकर, उसमें सिद्ध गुड़पाक को थोड़ा रखकर घी में तल लेते हैं या वाष्प से पकाते हैं। आटे के कवच में जिस गुड़पाक को रखते हैं, उसका ‘पूर्णम्’ नाम है। ‘पूर्णम्’ से 51 संख्या निकलती है। यह संख्या अकारादि 51 अक्षरों की परिचायिका है। यही तन्त्रशास्त्र में ‘मातृका’ कहलाती है। ‘न क्षरजीति अक्षरम्’ – नाशरहित परिपूर्ण सच्चिदानन्द ब्रह्मशक्ति का यह द्योतक है। पूर्ण ब्रह्मतत्त्व माया से आच्छादित होने से वह दीखता नहीं, यह हमें ‘मोदक’ सिखलाता है। गुड़पाक आनन्दप्रद है। उसको आटे का कवच छिपाता है। वह आस्वाद से ही गम्य है, इसी प्रकार ब्रह्मतत्त्व स्वानुभवैक-गम्य है। विनायक भगवान् के हाथ में इस मोदक को रखते हैं तो वे स्वाधीनमाय, स्वाधीनप्रपंच आदि शब्दों में व्यवहृत होते है।’