Wednesday, March 30, 2011

मन्त्रात्मकं श्रीमारुतिस्तोत्रं

मन्त्रात्मकं श्रीमारुतिस्तोत्रं

ॐ नमो वायुपुत्राय भीमरूपाय धीमते |

नमस्ते रामदूताय कामरूपाय श्रीमते ||१

मोहशोकविनाशाय सीताशोकविनाशिने |

भग्नाशोकवनायास्तु दग्धलङ्काय वाग्मिने ||२

गतिनिर्जितवाताय लक्ष्मणप्राणदाय च |

वनौकसां वरिष्ठाय वशिने वनवासिने ||३

तत्वज्ञानसुधासिन्धुनिमग्नाय महीयसे|

आञ्जनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते ||४

जन्ममृत्युभयघ्नाय सर्वक्लेशहराय च |

नेदिष्ठाय प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे ||५

यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरूपिणे|

यक्षराक्षसशार्दूलसर्पवृश्चिकभीहते ||६

महाबलाय वीराय चिरंजीविन उद्धते |

हारिणे वज्र देहाय चोल्लन्घितमहाब्धये ॥७

बलिनामग्रगण्याय नमो नः पाहि मारुते |

लाभदोऽसि तवमेवाशु हनुमन राक्षसान्तक ॥८

यशो जयं च मे देहि शत्रून नाशय नाशय |

स्वाश्रिता नाम भयदं य एवं स्तौति मारुतिं ॥

हानिः कुतौ भवेत्तस्य सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ 9

Monday, March 28, 2011

परशुरामकृतं कालीस्तोत्रम्

परशुरामकृतं कालीस्तोत्रम्

परशुराम उवाच

नम: शंकरकान्तायै सारायै ते नमो नमः।

नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः॥

नमो नमो जगद्धायै जगत्कर्यै नमो नमः।

नमोऽस्तु ते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः॥

प्रसीद जगतां मात: सृष्टिसंहारकारिणि।

त्वत्पादे शरणं यामि प्रतिज्ञां सार्थिकां कुरु॥

त्वयि मे विमुखायां च को मां रक्षितुमीश्वरः।

त्वं प्रसन्ना भव शुभे मां भक्तं भक्तवत्सले॥

युष्माभि: शिवलोके च मह्यं दत्तो वर: पुरा।

तं वरं सफलं कर्तु त्वमर्हसि वरानने॥

जामदग्न्यस्तवं श्रुत्वा प्रसन्नाभवदम्बिका।

मा भैरित्येवमुक्त्वा तु तत्रैवान्तरधीयत॥

एतद् भृगुकृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च य: पठेत्।

महाभयात् समुत्तीर्ण: स भवेदवलीलया॥

स पूजितश्च त्रैलोक्ये त्रैलोक्यविजयी भवेत्।

ज्ञानिश्रेष्ठो भवेच्चैव वैरिपक्षविमर्दकः॥

Monday, March 7, 2011

त्रिकोनेश्वर मंदिर

त्रिकोनेश्वर मंदिर

– त्रिकोनेश्वर मंदिर श्री लंका में उत्तर पूर्व तट पर स्थित त्रिन्कोमाल्ली शहर में है | यहाँ पर पार्वती देवी को शंकरी देवी के नाम से जाना जाता है | यह एक शक्तिपीठ भी है और कहते हैं कि यहाँ पर सती देवी का जांघ का हिस्सा गिरा था |श्री लंका में इस स्थान को बहुत पवित्र मानते हैं |

इस मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने शंकर जी से कहा हमारे पास रहने के लिए कोई सुन्दर महल नही है |मुझे अपने परिवार के लिए एक महल चाहिए | शंकर जी ने हँस कर कहा कि मैं तो योगी हूँ और मुझे रहने के लिए महल की क्या आवश्यकता है | पर पार्वती देवी ने जिद कर ली और कहा कि मुझे तो अभी आप महल बनवा कर दीजिये |

पार्वती जी की जिद पर शंकर जी ने विश्वकर्मा को एक सुन्दर महल बनाने को कहा |विश्वकर्मा कैलाश से दक्षिण की ओर गए और एक सुन्दर स्थान का चयन कर वहां महल बना दिया | यह स्थान वर्त्तमान लंका में था और वहां शीघ्र ही एक भव्य महल तैयार हो गया | पार्वती जी इस भव्य महल को देख कर अति प्रसन्न हो गयीं और शंकर जी से शीघ्र गृह प्रवेश के लिए एक विद्वान् पंडित को बुलाने को कहा | शंकर जी को तभी किसी पंडित के द्वारा ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप सुनाई पड़ा |उस शब्द की ओर जाने पर शिव जी और पार्वती जी को एक विद्वान् ब्राहमण के दर्शन हुए | उस ब्राहमण के दस मुख थे और वो उन मुखों से शिव नाम का जप कर रहा था |

उसे देख कर शिवजी ने कहा कि आज तुम्हारा तप पूर्ण हुआ है |पार्वती ने भी विद्वान् ब्राहमण को देख कर गृह प्रवेश उसी से कराने के लिए कहा |

रावण ने गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त निकाला और पूरे विधि विधान से पूजन करवाया |उसकी पूजा से प्रसन्न हो कर माँ पार्वती ने रावण से दक्षिणा में कुछ माँगने के लिए कहा |

रावण को वह महल ही पसंद आ गया था |उसने एक बार फिर माँ से कहा कि क्या उसे माँ मांगी दक्षिणा मिलेगी |माँ द्वारा उसे फिर आश्वस्त किये जाने पर उसने अपनी दक्षिणा मे वह महल ही मांग लिया |पार्वती अपने वचन से बंध गयी थी और उन्होंने वह महल रावण को दे दिया | रावण को आशा नहीं थी कि माँ पार्वती उसे यह महल दे देंगी पर महल मिल जाने पर उसने माँ से कहा कि आप जब तक चाहे इस महल में रह सकती है और आप से महल खाली करने को कोई नहीं कहेगा |

पार्वती देवी ने रावण की यह बात मान ली पर कहा अगर रावण ने माँ का कोई कहना नहीं माना तो वो उसके महल को छोड़ कर चली जायेंगी |

रावण ने माँ के लिए महल में एक पहाड़ी पर सुन्दर मंदिर बनवाया और माँ को वहां पर निवास दिया |माँ की कृपा से लंका हर तरह की सुख समृद्धि से भर गया |

जब रावण सीता का हरण करके लंका मे आया तब माँ उसके इस आचरण से बहुत क्रोधित हुई और सीता को वापस करने का आदेश दिया |पर रावण ने माँ की आज्ञा न मानी | उसकी बात पर माँ ने लंका नगरी छोड़ दी और उसके बाद लंका के राजा का सर्व नाश हो गया |जब रावण की मृत्यु के बाद विभीषण ने लंका का राज्य लिया तब उन्होंने माँ पार्वती से वापस आ कर लंका में रहने की प्रार्थना की |देवी ने प्रार्थना स्वीकार करके देवी शंकरी के रूप में पुनः लंका के इस स्थान पर रहना प्रारम्भ कर दिया |

Friday, March 4, 2011

अच्युताष्टकम्

अच्युताष्टकम् आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित सर्वश्रेष्ठ एवं कर्णप्रिय स्तुतियों में से एक है।

अच्युतं केशवं स्वामिनारायणम् कृष्णदामोदरम् वासुदेवम् हरिम् ।

श्रीधरं माधवं गोपीकावल्ल्भं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥१॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।

इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनंदनं नंदजं संदधे ॥२॥

विष्णवे जिष्णवे शंखिने चक्रिणे रुक्मिणीरागिणे जानकीजानये ।

बल्लवीवल्लभायाऽर्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नम: ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।

अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रोपदीरक्षक ॥४॥

राक्षसक्षोभित: सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारण: ।

लक्ष्मणेनान्वितो वानरै: सेवितोऽगस्त्यसंपूजितो राघव: पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकोऽनिष्टकृद् द्वेषिणां केशिहा कंसह्रद्वंशिकावादक: ।

पूतनाकोपक: सूरजाखेलनो बालगोपालक: पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवान् प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत् प्रोल्लसद्विग्रहम् ।

वन्यया मालया शोभितोरस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

कुञ्चितै: कुन्तलैर्भ्राजमानाननम् रत्नमौलिं लसत् कुंडलं गण्डयो: ।

हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं य: पठेदिष्टदं प्रेमत: प्रत्यहं पूरुष: सस्पृहम् ।

वृत्तत: सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरं तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं अच्युताष्टकं संपूर्णम् ॥

  1. I adore Rāmachandra, Who is infallible, Who is Keśava, Rāma, Nārāyaṇa, Kṛṣṇa, Dāmodara, Vāsudeva, Hari, Śrīdhara, Mādhava, Who is dear to Gopikā, and Who is the consort of Jānakī.[1]

  2. I offer a salute with my hands together to Keśava, Who is infallible, Who is the consort of Satyabhāmā (as Kṛṣṇa), Mādhava, Śrīdhara, Who is longed-for by Rādhikā, Who is the temple of Lakṣmī (Indirā), Who is beautiful by thought, Who is dear to Devakī, and Who is dear to all.[2]

  3. Salutations for Viṣṇu, Who conquers everyone, Who holds a conch-shell and a discus, Who is dear to Rukmiṇī (Kṛṣṇa), Who is the consort of Jānakī (Rāma), Who is dear to cowherdesses, Who is offered [in sacrifices], Who is the Ātman (soul), Who destroyed Kaṁsa, and Who plays the flute.[3]

  4. O Kṛṣṇa! O Govinda! O Rāma! O Nārāyaṇa, Who is the consort of Lakṣmī! O Vāsudeva, Who attained the treasure of Lakṣmī! O Acyuta, Who is immeasurable! O Mādhava, O Adhokṣaja, Who is the leader of Dvārikā, and Who is the protector of Draupadī!1[4]

  5. May Rāghava — Who upsetted the demons, Who adorned Sītā, Who is Danḍaka-forest purification cause, Who is accompanied by Lakṣmaṇa, Who was served by monkeys, and Who is revered by Sage Agastya — protect me.[5]

  6. May Baby Gopāla (Kṛṣṇa) — Who was unfavorable to Dhenukāsura and Ariṣṭāsura, Who destroyed Keśī, Who killed Kaṁsa, Who plays the flute, and Who got angry on Pūtanā — always protect me.[6]

  7. I sing praise of Acyuta, Who is adorned by a lightening like shining yellow robe, Whose body is resplendent like a cloud of the rainy-season, Who is adorned by a wild-flower garland at His chest, Whose twin-feet are of copper-red color, and Who has lotus-like eyes.[7]

  8. I sing praise of that Śyāma, Whose face is adorned by falling locks of curly tresses, Who has jewels at forehead, Who has shining ear-rings on the cheeks, Who is adorned with a Keyūra (flower) garland, Who has a resplendent bracelet, and Who has a melodious anklet.[8]