Thursday, April 28, 2011

सुन्दरकाण्ड की महिमा अपरम्पार ..

जय जय श्री राम !!!
मेरी प्रिय ग्रंथों मे से एक है ..रामचरितमानस ....और रामचरित मानस मे पसंदीदा काण्ड है ...सुन्दरकाण्ड ...अनूठा काण्ड ..
पहला ..तो यह काण्ड रामचरित मानस की कथा को आगे बढ़ता है ....इसी काण्ड मे सीता माता की जानकारी प्राप्त होती है ..
इस काण्ड मे सुन्दर शब्द भी कई बार आया है .....(१) सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर ..(२)कनक कोट विचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना ..
(३)स्याम सरोज दाम सम सुन्दर ..(४)तब देखी मुद्रिका मनोहर |राम नाम अंकित अति सुन्दर ||..(५)सुनहु तात मोहि अतिसय भूखा |लागी देखि
सुन्दर फल रूखा ||..(६) सावधान मन करि पुनि संकर |लागे कहाँ कथा अति सुन्दर ||..(७)हरषि राम तब कीन्ह पयाना |सगुन भए सुन्दर सुभ नाना ||..
(८) सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती |सहज कृपन सन सुन्दर नीती ||..
जय जय श्री राम ...जय हनुमान ....
सुन्दर काण्ड एक आशीर्वादात्मक काण्ड है .....इसीलिए भक्ति ...भगवत्कृपा ....भगवत्प्रीती पाने का सरल मार्ग बताता है ..इस काण्ड मे हनुमान ज़ी को चार बार आशीर्वाद मिला है ..पहले ,सुरसा ने दिया .आशीर्वाद ...
.राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान|
आसिष देई गई सो हरषि चलेऊ हनुमान ||
फिर लंकिनी ने आशीर्वाद दिया ..
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा |ह्रदय राखि कोसलपुर राजा ||
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई |गोपद सिन्धु अनल सितलाई ||
गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही | राम कृपा करि चितवा जाही ||
इसी तरह माता सीता ने भी आशीर्वाद दिया ..
अजर अमर गुननिधि सुत होहू |करहुं बहुत रघुनायक छोहू ||
माँ जानकी की सुधि लाने के पश्चात श्रीराम ने अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा ..
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही |देखेउँ करि बिचार मन माही ||
राम ज़ी केवल हनुमान ज़ी की ओर निहारते रहे ..और उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही ..इससे ज्ञात होता है .वे उपकार के बोझ से इतने बोझिल हो रहे थे की समझ नहीं पा रहे थे कि वे कहें तो क्या कहें....हनुमानजी रामजी की विवशता समझ गए और स्वयं ही आशीर्वाद मांगने लगे..
नाथ भगति देहु अति सुखदायनी | देहु कृपा करि अनपायनी ||
इस पर राम ज़ी केवल एवमस्तु ही कह पाए |
जय श्री राम !!!!जय जय हनुमान !!!
विभीषण की शरणागति सुन्दरकाण्ड की अन्य विशेषता है | तम का सत के प्रति आत्म समर्पण ..
तामस तनु कछु साधन नाहीं |प्रीती न पद सरोज मन माहीं ||
शरणागति के पहले विभीषण के मन मे कुछ वासना थी ..जिसके लिए वे प्रार्थना करते है ..
उर कछु प्रथम वासना रही |प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ||
अब कृपाल निज भगति पावनी |देहु सदा सिव मन भावनी ||
श्रीराम ने एवमस्तु कहा और विभीषण के अंतर्मन की वासना को समाप्त करते हुए राजतिलक कर उन्हें लंकेश बना दिया |धन्य है श्रीराम की वत्सलता ...जो माँगा वह दिया ..जो नहीं माँगा वह भी दे दिया ...
श्री राम जय राम जय जय राम !!!
सुन्दरकाण्ड मे श्रीराम ने अपने मन की बात प्रकट करते हुए कहा है .
निर्मल मन जान सो मोहि पावा |मोहि कपट छल छिद्र न भावा ||
भगवान को निर्मल मन ही प्रिय है |कपट ..छल.. छिद्र..क्रमशः तन.मन .और आचरण से सम्बंधित है .कपट मानसिक होता है छल आचरण से या तन से ..तथा छिद्र चारित्रिक दोष से.रावन के मन मे कपट था ..और मारीच ने छल का प्रयोग किया था |
जय श्री राम ..जय जय हनुमान ....
"चलेऊ हरषि हियँ धरि रघुनाथा "हनुमान ज़ी सभी कार्य भगवत स्मरण के साथ करते है जिस कार्य को हर्षोल्लास के साथ किया जाता है उसमे सफलता जरूर मिलती है ...फिर राम नाम के साथ ...क्या कहना ...भगवान् को हनुमान ज़ी ने अपने कर्म का साक्षी बनाया .चलेऊ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ..इससे पता चलता है कि हनुमान ज़ी लंका अकेले नहीं गए थे ..श्री राम ज़ी को अपने ह्रदय के सिंहासन पर विराजमान कर ले गए थे |तभी तो सीता ज़ी के सामने हनुमान ज़ी के ह्रदय मे विराजित राम ज़ी अपनी विरह व्यथा स्वयं कहते है ....कहेहु राम वियोग तव सीता ..अन्यथा हनुमान ज़ी अपनी माता स्वरुप सीता ज़ी से क्या यह कह सकते थे --जानत प्रिया एकु मनु मोरा ...या ..सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं |जानु प्रीति रसु एतनेहीं माहीं ||यहाँ राम ज़ी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी व्यथा कह रहे है |
श्री राम जय राम जय जय राम !!!
जय श्री राम ..जय जय हनुमान !!!
"लंकहि चलेऊ सुमिरि नरहरि" यहाँ राम को ही नरहरि शब्द से संबोधित किया गया है | रावन जैसे शत्रु कि नगरी मे जाने से पहले हिरन्यकश्यप के संहारक प्रहलाद जैसे भक्त के संरक्षक नरहरि भगवान का स्मरण उचित ही है | तुलसीदास के गुरु भी स्वामी नरहरि दास थे | एक भाव से तुलसीदास ज़ी ने अपने गुरु का स्मरण कर महान चरित का लेखन किया है |
हनुमान ज़ी कि जब सीता ज़ी से भेंट हो गई ..उन्हें सौपा गया कार्य पूरा हो गया ..तब उन्हें बहुत जोर कि भूख लग आई ....सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा |लागि देखि सुन्दर फल रूखा ||
सुन्दरकाण्ड मे राजनीति ,नीतिशास्त्र ,और व्यवहारशास्त्र का यथास्थान प्रयोग हुआ है |राजनीति के क्षेत्र मे "नीति विरोध न मारिअ दूता "...शत्रु पक्ष के किसी उपयुक्त व्यक्ति को अपने पक्ष मे मिलाकर दल बदल करा देना यह भी राजनीति की एक चाल है
हनुमान ज़ी ने विभीषण को श्री राम ज़ी से मिला कर राजनीती शास्त्र का उचित प्रयोग किया |सुन्दरकाण्ड मे समाज नीति और व्यवहार नीति का भी उचित प्रयोग किया गया है
परिवार की मर्यादा का विभीषण ने जिस तरह पालन किया वोह भी अनूठा है ...रावण का पाद प्रहार सहन करते हुए उन्होंने सहनशीलता का परिचय दिया ..तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहिं मारा ...इस पर भी ..अनुज गहे पद बारहिं बारा..
हनुमानजी स्वर्ण शैलाभदेह थे "कनक भूधराकार सरीरा "और "कंचन बरन बिराज सुबेसा "थे |
हनुमान ज़ी ने अपनी भूमिका मे कई वर्णों की भूमिका निभाई ...विप्र वेश मे सुग्रीव के कहने पर राम -लक्ष्मण से भेंट करने गए |लंकापुरी मे उन्होंने विभीषण को "विप्र रूप धरि वचन सुनाये " ब्राह्मन धर्म का निर्वाह किया |
लंकापुरी मे वाटिका विध्वंस ..अक्षय कुमार का वध ..मेघनाद के समक्ष अपना शौर्य और युद्ध कौशल प्रकट कर क्षत्रिय धर्म का निर्वाह किया ..धनिक वैश्य की भी भूमिका निभाई -वैश्य कर्जा देता है ऋण बांटता है ..हनुमान ज़ी राम ज़ी को कर्जा देकर यह काम पूरा किया और उनको सदा सदा के लिए कर्जदार बना दिया |श्री राम स्वयं कहते है .."सुनु सुत तोहि उरिन मै नाहीं |देखेउँ करि विचार मन माहीं ||
अनुष्ठान की दृष्टि से भी सुन्दरकाण्ड का विशेष महत्व है
कार्य की सफलता के लिए ...."प्रबिसि नगर कीजै सब काजा |....भारी से भारी विपदा के निवारण हेतु .."दीनदयाल बिरिदु सम्भारी |हरहु नाथ मम संकट भारी ||"का पाठ किया जाता है सुन्दरकाण्ड की महिमा अपरम्पार ..
जय श्री राम ..जय जय हनुमान ....
श्री राम जय राम जय जय राम !!!!

Tuesday, April 26, 2011

जय देवि...जय देवि..

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥३॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥३॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्िछतदायिनि सिद्धिवरे॥५॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥

Monday, April 25, 2011

दुर्लभ है श्री राम

जगत के वैभव सब बेकाम ..दुर्लभ है श्री राम ..
बिना भजन काहे का जीवन .फ़ोकट सारे काम ..
दुर्लभ है श्री राम ...
भजन न भाता .बक झक भाती....शान्ति न आठों याम ..
गाँठ न कौड़ी ,हरि की पौड़ी ..निर्धन के धन राम ..
दुर्लभ है श्री राम ...
श्री राम जय राम जय जय राम ..

हनुमान जी द्वारा माँ सीता की स्तुति

हनुमान जी द्वारा माँ सीता की स्तुति

जानकि त्वाम् नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥

दारिद्र्यरणसन्हर्त्री भक्तानामिष्टदायिनीम् ॥

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम ॥

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ॥

पौलस्त्यैश्वर्यसन्हर्त्री भक्ताभीष्टाम् सरस्वतीम् ॥

पतिव्रताधुरीणां त्वाम् नमामि जनकात्मजां ॥

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम ॥

आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहं ॥

प्रसादाभिमुखीम् लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभां ॥

नमामि चन्द्रभगिनीम् सीताम् सर्वाङ्गसुन्दरीम् ॥

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरं ॥

पद्मालयां पद्महस्तां विष्णु वक्षः स्थलालयां ॥

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥

आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥

नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥

सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥

(स्कन्द पुराण ४६/५०-५७)

जो मनुष्य वायुपुत्र हनुमान द्वारा वर्णित श्री राम और सीताजी के इन पाप नाशक स्तोत्रों का प्रतिदिन पाठ करता है , वह सदा मनोवांछित महान एश्वर्य का उपभोग करता है |( श्री राम की स्तुति का स्तोत्र 22.4.2011 को दिया जा चुका है )

Sunday, April 24, 2011

.जय जय हनुमान

..जय जय हनुमान ..
मेरे बजरंगी बड़े निराले ..बड़े अलबेले ...
निपटाते रहते ,सबके झमेले ..
जय बजरंगी ..जय जय बजरंगी ..
राम दुआरे पहरा देते ..राम नाम की माला जपते ..
मेरे बजरंगी बड़े महान ..
जय हनुमान ..जय जय हनुमान ....
मेरे बजरंगी बड़े निराले ..बड़े अलबेले ...
निपटाते रहते ,सबके झमेले ..
जय बजरंगी ..जय जय बजरंगी ..
राम दुआरे पहरा देते ..राम नाम की माला जपते ..
मेरे बजरंगी बड़े महान ..
जय हनुमान ..जय जय हनुमान ...

Friday, April 22, 2011

हनुमान जी द्वारा अपने आराध्य श्री राम की स्तुति

हनुमान जी द्वारा अपने आराध्य श्री राम की स्तुति

नमो रामाय हरये विष्णवे प्रभविष्णवे ॥

आदिदेवाय देवाय पुराणाय गदाभृते ॥

विष्टरे पुष्पके नित्यं निविष्टाय महात्मने ॥

प्रहष्ट वान रानीकजुष्टपादाम्बुजाय ते ॥

निष्पिष्ट राक्षसेन्द्राय जगदिष्टविधायिने ॥

नमः सहस्त्रशिरसे सहस्त्रचरणाय च ॥

सहस्त्राक्षाय शुद्धाय राघवाय च विष्णवे ॥

भक्तार्ति हारिणे तुभ्यं सीतायाः पतये नमः ॥

हरये नारसिन्हाय दैत्य राज विदारिणे ॥

नमस्तुभ्यं वराहाय दन्ष्ट्रोध्दतवसुन्धर ॥

त्रिविक्रमयाय भवते बलियज्ञविभेदिने ॥

नमो वामन रूपाय नमो मन्दरधारिणे ॥

नमस्ते मत् स्यरूपाय त्रयीपालनकारिणे ॥

नमः परशुरामाय क्षत्रियान्तकराय ते ॥

नमस्ते राक्षसघ्नाय नमो राघवरूपिणे ॥

महादेव महाभीम् महाकोदण्डभेदिने ॥

क्षत्रियान्तकरक्रूरभार्गवत्रासकारिणे ॥

नमोस्त्वहिल्यासंतापहारिणे चापहारिणे ॥

नागायुतबलोपेतताटकादेहहारिणे ॥

शिलाकठिनविस्तारवालिवक्षोविभेदिने ॥

नमो माया मृगोन्माथकारिणेsज्ञानहारिणे ॥

दशस्यन्दनदु:खाब्धिशोषणागत्स्यरूपिणे ॥

अनेकोर्मिसमाधूतसमुद्रमदहारिणे ॥

मैथिलीमानसाम्भोजभानवे लोकसाक्षिणे ॥

राजेन्द्राय नमुस्तुभ्यं जानकीपतये हरे ॥

तारकब्रह्मणे तुभ्यं नमो राजीवलोचने ॥

रामाय रामचन्द्राय वरेण्याय सुखात्मने ॥

विश्वामित्रप्रियायेदं नमः खरविदारिणे ॥

प्रसीद देवदेवेश भक्तानामभयप्रद ॥

रक्ष मां करुणासिन्धो रामचन्द्र नमोsस्तु ते ॥

रक्ष मां वेदवचसामप्यगोचर राघव ॥

पाहि मां कृपया राम शरणं त्वामुपैम्यहम्॥

रघुवीर महामोहमपाकुरु ममाधुना ॥

स्नाने चाचमने भुक्तौ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तिषु ॥

सर्वावस्थासु सर्वत्र पाहि मां रघुनन्दन ॥

महिमानं तव स्तोतुं कः समर्थो जगत्त्रये ॥

त्वमेव त्वन्महत्वं वै जानासि रघुनन्दन ॥

(स्कन्द पुराण ४६/३१-४९)

Thursday, April 21, 2011

श्रीहनुमान कृपाष्टक

श्रीहनुमान कृपाष्टक

बुद्धि शरीर निरोग रहे , प्रभु पूजन में न करें कृपणाई।
पावन भाव बसे उर में , जग दे सियाराम स्वरूप दिखाई।।
कान सुने रघुनाथ कथा , हरि का गुणगान सदा सुखदाई।
...हे हनुमान कृपा करिये मन में सिय साथ रहे रघुराई।।

जीभ कभी न कहे अपशब्द , चखे रसना हीरनाम मिठाई।
हाथ करे प्रभु का पदपूजन , दान परिश्रम दीन भलाई।।
नित्य चले पग मंदिर में , शुभ धाम फिरे न करे कठिनाई।
हे हनुमान कृपा करिये , मन में सिय साथ रहे रघुराई।।

काम कदापि न क्लेश करे , रमणी गण में झलके निज माई।
क्रोध तजे प्रतिशोध सभी , उर वास करे समता करूणाई।।
लोभ न चाह करे धन या यश , मोह मिटे बिनसे कुटिलाई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

जीवन में न रहे त्रयताप , विवेक रहे उर शीतलताई।
हो न अभाव कभी धन का , गृह गोरस अन्*न रहे बहुलाई।।
दूर रहे सब भूत पिशाच , फले सुख संपत्ति की अमराई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

विश्व लगे परिवार , लगे सबलोग सुता जनननी सुत भाई।
भेद घृणा लवलेश न हो , उर में सब जीव करे समताई।।
मानव मानव एक लगें , मिट जाए विभेदक मोह बुराई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

पा नर देह कभी न करूं , मनसा वचसा तन से अघमाई।
राघव के पद पंकज में , मनभृंग रहे तज चंचलताई।।
मानस स्वच्छ रहे मलहीन , मिटे अभिमान तथा अघकाई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

याद रहे चपला सम यौवन , जीवन की क्षणभंगुरताई।
पुत्र-कलत्र-धरा-गृह-संपत्ति , साथ तजे पद-मान-बडाई।।
याद रहे अगले पथ में , बस साधन धर्म अधर्म कमाई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

प्राण प्रयाण करें तब , शोक विषाद न हो मन में दुखदाई।
'राम' रटे रसना प्रतिभाषित हो , सियनायक की प्रभुताई।।
पुत्र रखे मुख में तुलसीदल , कान पडे हरिनाम सुनाई।
हे हनुमान कृपा करिये मन में , सिय साथ रहे रघुराई।।

Wednesday, April 20, 2011

जय राम . जय जय राम.

मन रे जपो जय राम.
जय जय राम.
मन रे जपो जय राम.

राम नाम है पाप-विनाशक
देता हरि का धाम
मन रे जपो जय राम
१ .
विमलबुद्धिदायक सुखदायक रघुनायक प्रभु राम.
जय जय राम .
नीलकमल-सम-नयन-समुज्ज्वल .
ध्यान करो शुभ-धाम.

मन रे जपो जय राम.
सजल-जलद-सुन्दर-तनु-शोभित, सकल-भुवन-आधार .
शंख-चक्र-वर-अभय लिए जो पालें सब संसार.
मन रे जपो जय राम .
जय जय राम.
मन रे जपो जय राम.
नाम लिया तो गया अजामिल भव-सागर के पार .
कलि में राम भजन की साधो .
महिमा अमित अपार.

मन रे जपो जय राम .
जय जय राम.
मन रे जपो जय राम.

Tuesday, April 19, 2011

पूजन श्री अंजनी कुमार का !


पूजन श्री अंजनी कुमार का !

शिवस्वरूप मारुतनंदन केसरी सुअन कलियुग कुठार का |

पूजन श्री अंजनी कुमार का !

हिय में राम सीय नित राखत ,मुख सों राम नाम गुण भाखत |

सुमधुर भक्ति प्रेम रस चाखत मंगलकर मंगलाकार का ||

पूजन श्री अंजनी कुमार का !

अतुलित बल,विस्मृत बल पौरुष, दहन दनुज वन,हित दावानल |

ज्ञान मुकुट मणि,सकल पूर्ण गुण ,मंजु भूमि ,शुभ सदाचार का ||

पूजन श्री अंजनी कुमार का !

मन इन्द्रिय विजयी ,विशालमति,कला निधान , निपुण गायक अति |

छंद व्याकरण शास्त्र अमित गति,राम भक्त अतिशय उदार का ||

पूजन श्री अंजनी कुमार का !

पावन परम सुभक्ति प्रदायक ,शरणागत को सब सुख दायक |

विजयीवानर सेना नायक ,सुगति पोत के कर्णधार का ||

पूजन श्री अंजनी कुमार का !!!

मन्त्र पुष्पांजलि

मन्त्र पुष्पांजलि

Mantras for offering flowers to Mother Durga

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचंत यत्र पूर्वे साध्याः संति देवाः ॥

“OM YAGYEN YAGYA MAYA JANT DEVAASTAANI DHARMAANI PRATHMAA NYAASAN.

THE NAAKAM MAHIMAANAH SACHANT YATRA POORVEY SAADHYAH SANTI DEVAAH.”

ॐ कात्यायन्यै च विद्महे, कन्यकुमार्यै धीमहि ।

तन्नो दुर्गा प्रचोदयत् ॥

OM KATYAYANYAI CH VIDMAHE KANYAKUMARYAI DHEEMAHI,

TANNO DURGA PRACHODAYAT.


ॐ वक्रतुण्डाय विद्महे एक दन्ताय धीमहि ।

तन्नो दन्ति प्रचोदयात्‌ ॥

OM VAKRA TUNDAAYE VIDMAEHEY EK DANTAAYE DHEEMAHI,

TANNO DANTI PRACHODAYAAT.

ॐ ना ना सुगन्धि पुष्पाणि रितु कालो भवानी च, पुष्पान्जलि मर्यादत्त ग्रिहाण परमेश्वरि ।

“OM NAA NAA SUGANDHI PUSHPAANI RITU KAALO BHAWAANEE CHA,

PUSHPAANJALI MARYAADATTA GRIHAAN PARMESHWARI

Monday, April 18, 2011

जय जय हनुमान ....

जय जय हनुमान ....

दुनियां में देव हजारों है, बजरंग बली का क्या कहना,

इनकी शक्ति का क्या कहना, इनकी भक्ति का क्या कहना, जय जय हनुमान

ये सात समुन्दर लाँघ गये, ये गढ़ लंका में कूद गये, जय हनुमान ..जय जय हनुमान ....

रावण को डराना क्या कहना, लंका को जलाना क्या कहना,जय हनुमान जय जय हनुमान ''

जब लक्ष्मण जी बेहोश हुए, संजीवन बूंटी लाने गये,जय हनुमान जय जय हनुमान ....

पर्वत को उठाना क्या कहना, लक्ष्मण को जिलाना क्या कहना,जय हनुमान जय जय हनुमान .....

ये राम दीवाना क्या कहना, गुण गाये ज़माना क्या कहना,जय हनुमान जय जय हनुमान ....

Wednesday, April 6, 2011

दुर्गा स्तुति

मिटटी का तन हुआ पवित्र , गंगा के स्नान से ,
अन्तः करण हो जाये पवित्र , जगदम्बे के ध्यान से । 1

शक्ति शक्ति दो मुझे , करूँ तुम्हारा ध्यान ,
पथ निर्विघ्न हो मेरा , मेरा हो कल्याण । 2

हृदय सिंघासन पर आ बैठो मेरी माँ,
सुनो विनय मम दीन की , दो मुझको वरदान |3

सुन्दर दीपक घी भरा , करा आज तैयार ,
ज्ञान उजाला माँ करो , मेटो मोह अन्धकार |4

चन्द्र सूर्य की रोशनी , चमके चमन अखंड ,
सब से ज्यादा तेज है ,तेरा तेज प्रचंड |5

दुर्गा जग जननी मेरी , रक्षा करो सदैव ,
दूर करो माँ अम्बिके , मेरे सारे क्लेश |6

श्रद्धा और विश्वास से , तेरी ज्योत जलाऊँ ,
तेरा ही है आसरा , तेरे ही गुण गाऊँ |7

मैं अनजान मलिन मन, ना जानूँ कोई रीत ,
अट पट वाणी को ही माँ, समझो मेरी प्रीत |8

मेरे अवगुण बहुत हैं , करना ना तुम ध्यान .
सिंघवाहिनी माँ मेरी, करो मेरा कल्याण | 9