Tuesday, January 31, 2012

मेरी रक्षा करो बजरंगबली

मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |
मेरी दुःख के भंवर में नाव चली,
मुझे सूझे किनारा ना कोई ,
मुझे सूझे सहारा ना कोई,
मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |


जब हो गए मुर्छित लछमन जी, तुम ही तो संजीवनी लाये थे,
तोड़ी थी भुजा अहिरावन की, तुम काम राम के आये थे,
मुझपर भी संकट छाया है मेरे दिल ने तुम्हे बुलाया है.
मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |

सुध लेने गए सिया माता की, सोने की लंका जला डाली,
हे महाबली तेरी शक्ती ने रावन की जड़े हिला डाली,
मेरा दुखों से मन हारा है, मैंने रो के तुम्हे पुकारा है.
मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |

तेरी दिव्य अलौकिक शक्ति का, कपि डंका चारो ओर बजे,
उसे भूत पिशाच न तंग करे जो मन से तेरा नाम जपे,
तुम भय भंजन सुखदायक हो, निर्दोष के सदा सहायक हो,
मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |

मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |
मेरी दुःख के भंवर में नाव चली,
मुझे सूझे किनारा ना कोई ,
मुझे सूझे सहारा ना कोई,
मेरी रक्षा करो बजरंगबली मेरी रक्षा करो बजरंगबली |

गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे

गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
हम से न बनी रे हम से न बनी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
कहा पाऊ सरयू मै कहा पाऊ गंगा
कहा पाऊ यमुना अमृत से भरी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
कहा पाऊ मोर मुकुट कहा पाऊ पताका
कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे
तेरी कहा पाऊ लकुटी हिरो से जड़ी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
कहा पाऊ चन्दन मै ..कहा पाऊ तुलसी
कहा पाऊ डलिया फूलो से भरी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
कहा पाऊ माखन.... मै कहा पाऊ मिश्री
कहा पाऊ मटकी माखन से भरी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
.मैंने सुना है तुम भक्ति से मिलते हो
कहा पाऊ भक्ति मै भाव भरी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे
गोपाल तेरी पूजा हम से न बनी रे
नंदलाला तेरी पूजा हम से न बनी रे

Sunday, January 29, 2012

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये

सीता राम भजन





सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..

मुख में हो राम नाम राम सेवा हाथ में .

तू अकेला नाहिं प्यारे राम तेरे साथ में .

विधि का विधान जान हानि लाभ सहिये .

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..





किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा .

होगा प्यारे वही जो श्री रामजी को भायेगा .

फल आशा त्याग शुभ कर्म करते रहिये .

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..





ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के .

महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे .

धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये .

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..





आशा एक रामजी से दूजी आशा छोड़ दे .

नाता एक रामजी से दूजे नाते तोड़ दे .

साधु संग राम रंग अंग अंग रंगिये .

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..





काम रस त्याग प्यारे राम रस पगिये .

सीता राम सीता राम सीताराम कहिये .

सारन को सार एक,राम राम भजिये..

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ..
मेरा राम
मेरा राम सब दुखियों का सहारा है ..

जो भी उसको टेर बुलाता उसके पास वो दौड़ के आता .
कह दे कोई वो नहीं आया यदि सच्चे दिल से पुकारा है ..

जो कोई परदेस में रहता उसकी भी वो रक्षा करता .
हर प्राणी है उसको प्यारा अपना बस यही नारा है ..

Wednesday, January 25, 2012

भगवान शिव के 108 नाम और उनके अर्थ

भगवान शिव के 108 नाम और उनके अर्थ

1. शिव अर्थात जो कल्याण स्वरूप

2. महेश्वर अर्थात जो माया के अधीश्वर

3. शम्भू अर्थात जो आनंद स्वरूप वाले

4. पिनाकी अर्थात जो पिनाक धनुष धारण करने वाले

5. शशिशेखर अर्थात जो सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले

6. वामदेव अर्थात जो अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले

7. विरूपाक्ष अर्थात जो भौंडी आँख वाले

8. कपर्दी अर्थात जो जटाजूट धारण करने वाले

9. नीललोहित अर्थात जो नीले और लाल रंग वाले

10. शंकर अर्थात जो सबका कल्याण करने वाले

11. शूलपाणी अर्थात जो हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

12.खटवांगी अर्थात जो खटिया का एक पाया रखने वाले

13. विष्णुवल्लभ अर्थात जो भगवान विष्णु के अतिप्रेमी

14.शिपिविष्ट अर्थात जो सितुहा में प्रवेश करने वाले

15.अंबिकानाथ अर्थात जो भगवति के पति

16.श्रीकण्ठ अर्थात जो सुंदर कण्ठ वाले

17.भक्तवत्सल अर्थात जो भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले

18.भव अर्थात जो संसार के रूप में प्रकट होने वाले

19. शर्व अर्थात जो कष्टों को नष्ट करने वाले

20. त्रिलोकेश अर्थात जो तीनों लोकों के स्वामी

21.शितिकण्ठ अर्थात जो सफेद कण्ठ वाले

22. शिवाप्रिय अर्थात जो पार्वती के प्रिय

23. उग्र अर्थात जो अत्यंत उग्र रूप वाले

24. कपाली अर्थात जो कपाल धारण करने वाले

25. कामारी अर्थात जो कामदेव के शत्रुअंधकार

26.सुरसूदन अर्थात जो अंधक दैत्य को मारने वाले

27. गंगाधर अर्थात जो गंगा जी को धारण करने वाले

28. ललाटाक्ष अर्थात जो ललाट में आँख वाले

29. कालकाल अर्थात जो काल के भी काल

30.कृपानिधि अर्थात जो करूणा की खान

31.भीम अर्थात जो भयंकर रूप वाले

32. परशुहस्त अर्थात जो हाथ में फरसा धारण करने वाले

33. मृगपाणी अर्थात जो हाथ में हिरण धारण करने वाले

34.जटाधर अर्थात जो जटा रखने वाले

35.कैलाशवासी अर्थात जो कैलाश के निवासी

36.कवची अर्थात जो कवच धारण करने वाले

37.कठोर अर्थात जो अत्यन्त मजबूत देह वाले

38.त्रिपुरांतक अर्थात जो त्रिपुरासुर को मारने वाले

39.वृषांक अर्थात जो बैल के चिह्न वाली झंडा वाले

40.वृषभारूढ़ अर्थात जो बैल की सवारी वाले

41. भस्मोद्धूलितविग्रह अर्थात जो सारे शरीर में भस्म लगाने वाले

42. सामप्रिय अर्थात जो सामगान से प्रेम करने वाले

43.स्वरमयी अर्थात जो सातों स्वरों में निवास करने वाले

44. त्रयीमूर्ति अर्थात जो वेदरूपी विग्रह करने वाले

45.अनीश्वर अर्थात जो जिसका और कोई मालिक नहीं है

46.सर्वज्ञ अर्थात जो सब कुछ जानने वाले

47.परमात्मा अर्थात जो सबका अपना आपा

48.सोमसूर्याग्निलोचन अर्थात जो चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले

49.हवि अर्थात जो आहूति रूपी द्रव्य वाले

50.यज्ञमय अर्थात जो यज्ञस्वरूप वाले

51. सोम अर्थात जो उमा के सहित रूप वाले

52.पंचवक्त्र अर्थात जो पांच मुख वाले

53.सदाशिव अर्थात जो नित्य कल्याण रूप वाल

54.विश्वेश्वर अर्थात जो सारे विश्व के ईश्वर

55.वीरभद्र अर्थात जो बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले

56.गणनाथ अर्थात जो गणों के स्वामी

57.प्रजापति अर्थात जो प्रजाओं का पालन करने वाले

58.हिरण्यरेता अर्थात जो स्वर्ण तेज वाले

59.दुर्धुर्ष अर्थात जो किसी से नहीं दबने वाले

60.गिरीश अर्थात जो पहाड़ों के मालिक

61.गिरिश अर्थात जो कैलाश पर्वत पर सोने वाले

62,अनघ अर्थात जो पापरहित

63.भुजंगभूषण अर्थात जो साँप के आभूषण वाले

64.भर्ग अर्थात जो पापों को भूंज देने वाले

65.गिरिधन्वा अर्थात जो मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

66.गिरिप्रिय अर्थात जो पर्वत प्रेमी

67.कृत्तिवासा अर्थात जो गजचर्म पहनने वाले

68.पुराराति अर्थात जो पुरों का नाश करने वाले

69.भगवान् अर्थात जो सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न

70.प्रमथाधिप अर्थात जो प्रमथगणों के अधिपति

71.मृत्युंजय अर्थात जो मृत्यु को जीतने वाले

72.सूक्ष्मतनु अर्थात जो सूक्ष्म शरीर वाले

73.जगद्व्यापी अर्थात जो जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले

74.जगद्गुरू अर्थात जो जगत् के गुरू

75.व्योमकेश अर्थात जो आकाश रूपी बाल वाले

76.महासेनजनक अर्थात जो कार्तिकेय के पिता

77.चारुविक्रम अर्थात जो सुन्दर पराक्रम वाले

78.रूद्र अर्थात जो भक्तों के दुख देखकर रोने वाले

79.भूतपति अर्थात जो भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी

80.स्थाणु अर्थात जो स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81.अहिर्बुध्न्य अर्थात जो कुण्डलिनी को धारण करने वाले

82.दिगम्बर अर्थात जो नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले

83.अष्टमूर्ति अर्थात जो आठ रूप वाले

84.अनेकात्मा अर्थात जो अनेक रूप धारण करने वाले

85.सात्त्विक अर्थात जो सत्व गुण वाले

86.शुद्धविग्रह अर्थात जो शुद्धमूर्ति वाले

87.शाश्वत अर्थात जो नित्य रहने वाले

88.खण्डपरशु अर्थात जो टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

89.अज अर्थात जो जन्म रहित

90.पाशविमोचन अर्थात जो बंधन से छुड़ाने वाले

91.मृड अर्थात जो सुखस्वरूप वाले

92.पशुपति अर्थात जो पशुओं के मालिक

93.देव अर्थात जो स्वयं प्रकाश रूप

94.महादेव अर्थात जो देवों के भी देव

95.अव्यय अर्थात जो खर्च होने पर भी न घटने वाले

96.हरि अर्थात जो विष्णुस्वरूप

97.पूषदन्तभित् अर्थात जो पूषा के दांत उखाड़ने वाले

98.अव्यग्र अर्थात जो कभी भी व्यथित न होने वाले

99.दक्षाध्वरहर अर्थात जो दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाल

100.हर अर्थात जो पापों व तापों को हरने वाले

101.भगनेत्रभिद् अर्थात जो भग देवता की आंख फोड़ने वाले

102.अव्यक्त अर्थात जो इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले

103.सहस्राक्ष अर्थात जो अनंत आँख वाले

104.सहस्रपाद अर्थात जो अनंत पैर वाले

105.अपवर्गप्रद अर्थात जो कैवल्य मोक्ष देने वाले

106.अनंत अर्थात जो देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित

107.तारक अर्थात जो सबको तारने वाला

108.परमेश्वर अर्थात जो सबसे परे ईश्वर

Monday, January 23, 2012

नव ग्रह चालीसा




तुलसी कवचम्


श्री गणेशाय नमः II
अस्य श्री तुलसीकवच स्तोत्रमंत्रस्य I
श्री महादेव ऋषिः I अनुष्टुप्छन्दः I
श्रीतुलसी देवता I मन ईप्सितकामनासिद्धयर्थं जपे विनियोगः I
तुलसी श्रीमहादेवि नमः पंकजधारिणी I
शिरो मे तुलसी पातु भालं पातु यशस्विनी II १ II
दृशौ मे पद्मनयना श्रीसखी श्रवणे मम I
घ्राणं पातु सुगंधा मे मुखं च सुमुखी मम II २ II
जिव्हां मे पातु शुभदा कंठं विद्यामयी मम I
स्कंधौ कह्वारिणी पातु हृदयं विष्णुवल्लभा II ३ II
पुण्यदा मे पातु मध्यं नाभि सौभाग्यदायिनी I
कटिं कुंडलिनी पातु ऊरू नारदवंदिता II ४ II
जननी जानुनी पातु जंघे सकलवंदिता I
नारायणप्रिया पादौ सर्वांगं सर्वरक्षिणी II ५ II
संकटे विषमे दुर्गे भये वादे महाहवे I
नित्यं हि संध्ययोः पातु तुलसी सर्वतः सदा II ६ II
इतीदं परमं गुह्यं तुलस्याः कवचामृतम् I
मर्त्यानाममृतार्थाय भीतानामभयाय च II ७ II
मोक्षाय च मुमुक्षूणां ध्यायिनां ध्यानयोगकृत् I
वशाय वश्यकामानां विद्यायै वेदवादिनाम् II ८ II
द्रविणाय दरिद्राण पापिनां पापशांतये II ९ II
अन्नाय क्षुधितानां च स्वर्गाय स्वर्गमिच्छताम् I
पशव्यं पशुकामानां पुत्रदं पुत्रकांक्षिणाम् II १० II
राज्यायभ्रष्टराज्यानामशांतानां च शांतये I
भक्त्यर्थं विष्णुभक्तानां विष्णौ सर्वांतरात्मनि II ११ II
जाप्यं त्रिवर्गसिध्यर्थं गृहस्थेन विशेषतः I
उद्यन्तं चण्डकिरणमुपस्थाय कृतांजलिः II १२ II
तुलसीकानने तिष्टन्नासीनौ वा जपेदिदम् I
सर्वान्कामानवाप्नोति तथैव मम संनिधिम् II १३ II
मम प्रियकरं नित्यं हरिभक्तिविवर्धनम् I
या स्यान्मृतप्रजा नारी तस्या अंगं प्रमार्जयेत् II १४ II
सा पुत्रं लभते दीर्घजीविनं चाप्यरोगिणम् I
वंध्याया मार्जयेदंगं कुशैर्मंत्रेण साधकः II १५ II
साSपिसंवत्सरादेव गर्भं धत्ते मनोहरम् I
अश्वत्थेराजवश्यार्थी जपेदग्नेः सुरुपभाक II १६ II
पलाशमूले विद्यार्थी तेजोर्थ्यभिमुखो रवेः I
कन्यार्थी चंडिकागेहे शत्रुहत्यै गृहे मम II १७ II
श्रीकामो विष्णुगेहे च उद्याने स्त्री वशा भवेत् I
किमत्र बहुनोक्तेन शृणु सैन्येश तत्त्वतः II १८ II
यं यं काममभिध्यायेत्त तं प्राप्नोत्यसंशयम् I
मम गेहगतस्त्वं तु तारकस्य वधेच्छया II १९ II
जपन् स्तोत्रं च कवचं तुलसीगतमानसः I
मण्डलात्तारकं हंता भविष्यसि न संशयः II २० II
II इति श्रीब्रह्मांडपुराणे तुलसीमाहात्म्ये तुलसीकवचं नाम स्तोत्रं श्रीतुलसी देवीं समर्पणमस्तु II

तुलसी स्तुतिः

नारायण उवाच

अन्तर्हितायां तस्यां च गत्वा च तुलसीवनम् I

हरिः सम्पूज्य तुष्टाव तुलसीं विरहातुरः II १ II

श्रीभगवानुवाच

वृन्दारूपाश्च वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति च I

विदुर्बुधास्तेन वृन्दां मत्प्रियां तां भजाम्यहम् II २ II

पुरा बभूव या देवी त्वादौ वृन्दावने वने I

तेन वृन्दावनी ख्याता सौभाग्यां तां भजाम्यहम् II 3 II

असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् I

तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् II ४ II

असंख्यानि च विश्वानि पवित्राणि यया सदा I

तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् II ५ II

देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना I

तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः II ६ II

विश्वे यत्प्राप्तिमात्रेण भक्तानन्दो भवेद् ध्रुवम् I

नन्दिनी तेन विख्याता सा प्रीता भवताद्धि मे II ७ II

यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु निखिलेषु च I

तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् II ८ II

कृष्णजीवनरुपा या शश्वत्प्रियतमा सती I

तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् II ९ II



II इति श्रीब्रह्मवैवर्ते प्रकृतिखण्डे तुलसी स्तुतिः श्रीतुलसिमातां समर्पणमस्तु ई

तुलसी स्तुति





तुलसी स्तुति संस्कृत भाषा में है | भगवान नारायण ने कहा है कि यह स्तुति स्वयं भगवान श्री हरी ने कही है |भगवान श्री हरी ने कहा है कि पृथ्वी पर स्थित वृंदावन में वृंदा ( तुलसी) के पौधे की महिमा अपरम्पार है |मैं तुलसी का पूजन करता हूँ जिनका नाम वृंदा है |वृंदावन में जन्म लेने के कारण तुलसी को वृंदावनी कहा जाता है |मैं वृंदावनी देवी का पूजन करता हूँ |सभी पेड़ व् पौधों में तुलसी जी का पूजन होता है, इस लिए तुलसी को विश्वपूजिता कहते हैं | मैं जिन तुलसी देवी को पूरा विश्व पूजता है , उनकी पूजा करता हूँ |देवी तुलसी ने पूरे विश्व को अपनी उपस्थिति से पवित्र कर दिया है |मैं विश्वपावनी देवी तुलसी का पूजन करता हूँ |भगवान के पूजन में पुष्प के साथ तुलसी चढाने पर ही भगवान प्रसन्न होते हैं |इसलिए देवी तुलसी को पुष्पसारा भी कहा जाता है |कष्टों में तुलसी के पूजन व् दर्शन से देवी का आशीर्वाद मिलता है |तुलसी का दर्शन ही प्रसन्नता देता है| इस लिए तुलसी को नंदिनी कहते हैं |मैं तुलसी जी से वरदान मांगता हूँ |तुलसी जी की पूरे विश्व में कोई तुलना नहीं है ,इसी लिए इन्हें तुलसी कहा गया है |मैं तुलसी देवी को प्रणाम करता हूँ |पवित्र तुलसी देवी भगवान श्री कृष्ण से अलग नहीं हो सकती हैं ,इस लिए इन्हें कृष्णजीवनी कहते हैं | मैं तुलसी देवी से अपने जीवन की रक्षा करने का वरदान मांगता हूँ |



Tulsi Stuti





Tulsi Stuti or Tulsi praise is in Sanskrit. Bhagwan Narayan had said that this Stuti is done by Bhagwan ShriHari. First Bhagwan ShriHari performed pooja of Devi Tulsi and then he praised Devi Tulsi. He said: Wise people call a place as ‘Vrinda Van‘where Vrinda (Tulsi) and other Vrinda type trees grow together. I worship my beloved Tulsi who is famous by the name “Vrinda”. She appeared in Vrindavan in very old times. Hence she is called as Vrindavani. I worship Devi Vrindavani. She is being worshiped among many trees. Hence she is called as “Vishwapoojita”. Thus I worship her who is being worshiped by many in the world. Devi Tulsi has made the entire world pious by her presence; I worship Such “Vishwapawani” (Devi Tulsi) and remember her. Even we worship Gods with many flowers they get pleased when they are offered Tulsi patra (leaf of Holy Tulsi). Hence Devi Tulsi is called as “Pushpasara”. In deep sorrow I worship her to bless me with the Darshan. Devotee becomes happy when he finds Tulsi patra. Thus she makes all devotees happy and she has been called and famous as “Nandini” by them. I request her to bless me now. She can’t be compared in the whole world (meaning of the word “tulana”). As such she has become by the name “Tulsi”. I bow to her. That very pious Devi Tulsi is inseparable from God Shrikrishna as such she is famous as “Krishnajivani’. I request such Devi Tulsi to protect my life.

Shri Medha Suktam





Shri Medha Suktam



Shri Medha Suktam is in Sanskrit and it is from Rugveda. This is a very pious and powerful suktam. By reciting this suktam daily with faith, devotion and concentration we can acquire a good and powerful memory, fame, good thoughts, courage, wisdom, internal light, good creative energy, sound health and we become younger not only by mind but by body also, irrespective of our age. All this we receive by the blessings of Medha Devi.

1) Angaris, Saptrushi, God Indra, Aghni and God Brahma may give me powerful memory which will never vanish.

2) God Varun, Goddess Saraswati and AshiviniKumar may bless me and give me good Intellect, Wisdom.

3) O! Goddess Medha, Gandharvas, Apsaras and Gods always possess good intellect. Same type of Intellect is to be received by me by your blessings.

4) O! Goddess Medha, I have never read Vedas but I request you to bestow the knowledge of Vedas to me which is always found with the people who have a vast knowledge of Vedas. The knowledge acquired by me through my organs, be always remembered by me.

5) O! Goddess Medha, My body should always remain young. My power of speech should always envy the bad things which attract my mind and lead the mind to do bad things. I should always remember what I am hearing. I should always be enthusiastic. I must have always faith for God Sun (Divine light) and true Knowledge.

6) O! Goddess Medha, please bestow good intellect and knowledge to me, which is found with Gandharvas and Godlike strong people. Divine light and knowledge always remain with me by your blessings. My body is becoming weak day by day, please bless me and see that my body becomes young.

7) O! Goddess Medha, God Indra likes his miraculous intellect and wisdom which has fulfilled all his ambitions and it is because of your blessings to him. Please bless me with the same intellect and wisdom.

8) O! Goddess Medha, Gods and my fore fathers always worship you. I request you to bless me. I should receive good thinking power and creative energy with your blessings.

9) O! Goddess Medha, I will become healthy, filled with faith, divine light, creative energy, and dedicated, famous, courageous and intellectual orator because of your blessings. I will influence the world with my knowledge.

Here ends Shri MedhaSuktam which is from Rugveda.

Saturday, January 21, 2012

मौनी अमावस्या

मौनी अमावस्या



माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. इस दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं. मौनी अमावस्या अथवा माघ स्नान 23 जनवरी 2012 के दिन है. इस दिन सृष्टि के निर्माण करने वाले मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है. ऎसा माना गया है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरुपा को प्रकट करके सृष्टि की शुरुआत की थी. इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है इसलिए भी इस अमावस्या का महत्व और बढ़ जाता है. इस दिन इलाहाबाद के संगम पर स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. कुछ विद्वानों के अनुसार इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखना चाहिए. मौन व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए. धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है. कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं. वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है. कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है.

प्रत्येक मनुष्य के अंदर तीन प्रकार का मैल होता है. कर्म का मैल, भाव का मैल तथा अज्ञान का मैल. इन तीनों मैलों को त्रिवेणी के संगम पर धोने का महत्व है. त्रिवेणी के संगम पर गंगा, यमुना तथा सरस्वती में स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित मैल का नाश होता है और उसकी अन्तरआत्मा स्वच्छ होती है. इसलिए व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए. अपनी वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है. मौनी अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद मौन व्रत रखकर एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए. इससे चित्त की शुद्धि होती है. आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है.

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति स्नान तथा जप आदि के बाद हवन, दान आदि कर सकता है. ऎसा करने से पापों का नाश होता है. त्रिवेणी के संगम में मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है अथवा इस दिन संगम में स्नान करना और अश्वमेघ यज्ञ करना दोनों के फल समान है. माघ मास की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व इस मास में होता है. इस मास में यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं. समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों के मध्य संघर्ष में जहाँ-जहाँ अमृत गिरा था उन स्थानों पर स्नान करना पुण्य कर्म माना जाता है.

मौनी अमावस्या अथवा माघ स्नान की विधि

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है. स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें. इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें. इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है.

इसके बाद व्यक्ति को इस दिन ब्रह्मदेव तथा गायत्री का जाप अथवा पाठ करना चाहिए. मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए. दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिए.

मौनी अमावस्या अथवा माघ अमावस्या की कथा

माघ मास की मौनी अमावस्या के साथ कथा का भी महत्व जुडा़ है. प्राचीन समय में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी का नाम धनवती था. देवस्वामी की आठ संताने थी. सात पुत्र और एक पुत्री थी. उसकी पुत्री का नाम गुणवती था. ब्राह्मण ने अपने सातों पुत्र के विवाह के बाद अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की तलाश में अपने सबसे बडे़ पुत्र को भेजा. उसी दौरान किसी ज्योतिषी ने कन्या की कुण्डली देखकर कहा कि विवाह समाप्त होते ही वह विधवा हो जाएगी. इससे देवस्वामी तथा अन्य सदस्य चिन्तित हो गये. देवस्वामी ने गुणवती के वैधव्य दोष के निवारण के बारे में ज्योतिषी से पूछा तब उसने कहा कि सिंहल द्वीप में सोमा नाम की धोबिन रहती है. सोमा का पूजन करने से गुणवती के वैधव्य दोष का निवारण हो सकता है. आप किसी भी प्रकार सोमा को विवाह होने से पहले यहाँ बुला लें. यह सुनने के पश्चात गुणवती और उसका सबसे छोटा भाई सिंहल द्वीप की ओर चल दिए. सिंहल द्वीप सागर के मध्य स्थित था. दोनों बहन-भाई सागर तट पर एक वृक्ष के नीचे सागर को पार करने की प्रतीक्षा में बैठ गए. दोनों को सागर पार करने की चिन्ता थी. उसी वृक्ष के ऊपर एक गिद्ध ने अपना घोंसला बना रखा था. उस घोंसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे. जब शाम को गिद्ध अपनी पत्नी के साथ घोंसलें में लौटा तब उसके बच्चों ने बताया कि इस वृक्ष के नीचे बहन-भाई सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वह दोनों खाना नहीं खाएंगें. हम भी भोजन ग्रहण नहीं करेगें. गिद्ध ने दोनों बहन-भाइयों को भोजन कराया तथा उनके वहाँ आने का कारण पूछा तब उन्होंने सारा वृतांत सुनाया. सारी बातें जानने के बाद गिद्ध ने उन्हें सिंहल द्वीप पर पहुंचाने का आश्वासन दिया. अगले दिन सुबह ही गिद्ध ने दोनों को सिंहल द्वीप पहुंचा दिया.

सिंहल द्वीप पर आने के बाद दोनों बहन-भाइयों ने सोमा धोबिन के घर का काम करना शुरु कर दिया. सारे घर की साफ सफाई तथा घर के अन्य कार्य दोनों बहन-भाई बहुत ही सफाई से करने लगे. सुबह सोमा जब उठती तब उसे हैरानी होती कि कौन यह सब कम कर रहा है. सोमा ने अपनी पुत्रवधु से पूछा तब उसने बडे़ ही चतुराई से कहा कि हम करते हैं और कौन करेगा. सोमा को अपनी बहु की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उसने उस रात जागने का निर्णय किया. तब सोमा ने देखा कि गुणवती अपने छोटे भाई के साथ सोमा के घर का सारा कार्य निबटा रही है. सोमा उन दोनों से बहुत प्रसन्न हुई और उनके ऎसा करने का कारण पूछा तब उन्होंने गुणवती के विवाह तथा उसके वैधव्य की बात बताई. सोमा ने गुणवती को आशीर्वाद दिया. लेकिन दोनों बहन-भाई सोमा से अपने साथ विवाह में चलने की जिद करने लगे. सोमा उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गई और अपनी पुत्रवधु से कहा कि यदि परिवार में किसी कि मृत्यु हो जाती है तब उसका अंतिम संस्कार ना करें, मेरे घर आने की प्रतीक्षा करें.

गुणवती का विवाह होने लगा. विवाह समाप्त होते ही गुणवती के पति का देहांत हो गया. सोमा ने अपने अच्छे कर्मों के बल पर गुणवती के मरे हुए पति को अपने आशीर्वाद से दुबारा जीवित कर दिया. लेकिन ऎसा करने पर सोमा के सभी अच्छे कर्म समाप्त हो गये और सिंहल द्वीप पर रहने वाले उसके परिवार के सदस्यों का देहान्त हो गया. सोमा ने वापिस अपने घर जाते हुए रास्ते में ही अपने संचित कर्मों को फिर से एकत्रित करने की बात सोची और रास्ते में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा की और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की. ऎसा करने पर उसके परिवार के मृतक सदस्य दुबारा जीवित हो गये. सोमा को उसके नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल मिल गया.

Monday, January 16, 2012

श्री राम चालीसा

श्री राम चालीसा

दोहा
गणपति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल ।।
लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल ।।
राम चरित वर्णन करौं । रामहिं हृदय मनाई ।।
मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई ।।


चौपाई
राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ।।
राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ।।
रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं ।।
राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ।।
राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ।।
राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ।।
रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ।।
राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ।।
राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ।।
राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ।।
रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ।।
राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ।।
राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ।।
राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ।।
रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ।।
राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ।।
रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ।।
राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें ।। .
राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ।।
राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ।।
रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ।।
राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ।।
राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ।।
राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ।।
राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ।।
रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ।।
राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ।।
राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ।।
रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ।।
राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ।।
राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ।।
रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ।।
राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ।।
राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ।।
रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ।।
राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ।।
राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ।।
रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ।।
रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ।।


दोहा
राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई ।।
मम्ता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई ।।

Tuesday, January 10, 2012

आदित्यहृदयम्‌

आदित्यहृदयम्‌
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌॥१॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवानृषिः॥२॥

Rama, exhausted and about to face Ravana ready for a fresh battle was lost deep in contemplation.
The all knowing sage agastya who had joined the gods to witness the battle spoke to Rama thus .. 1,2

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्‌।
येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि॥३॥

Oh Rama, mighty-armed Rama, listen to this eternal secret
Which will help you destroy all your enemies in battle. 3

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम्‌॥४॥

This holy hymn dedicated to the Sun deity will result in destroying all enemies
And bring you victory and never ending supreme bliss. 4

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌।
चिंताशोकप्रशमनं आयुर्वर्धनमुत्तमम्‌॥५॥

This hymn is supreme and is a guarantee of complete prosperity and is the destroyer of sin,
Anxiety, anguish and is the bestower of longevity. 5

रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌॥६॥

Worship the One, possessed of rays when he has completely risen, held in reverence by the devas and asuras and who is the Lord of the universe by whose efflugence all else brighten. 6

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभिः॥७॥

He indeed represent the totality of all celestial beings. He is self-luminous and sustains all with his rays. He nourishes and energizes the inhabitants of all the worlds and the race of Devas and Asuras. 7

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥८॥

He is Brahma, Vishnu, Shiva, Skands, Prajapati.
He is also Mahendra, Kubera, Kala, Yama, Soma and Varuna. 8

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥९॥

He is the Pitrs, Vasus, Sadhyas, Aswini Devas, Maruts, Manu,
Vayu, Agni, Prana and, being the source of all energy and light, is the maker of all the six seasons. 9

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्‌।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥१०॥ or भानुर्विश्वरेता

He is the son of Aditi, creator of the universe, inspirer of action, transverser of the heavens. He is the sustainer, illumination of all directions, the golden hued brilliance and is the maker of the day. 10

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌।
तिमिरोन्मथनः शंभुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्‌॥११॥ or मार्तण्ड

He is the Omnipresent One who pervades all with countless rays. He is the power behind the seven sense organs, the dispeller of darkness, bestower of happiness and prosperity, the remover of misfortunes and is the infuser of life. 11

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥१२॥

He is the primordial being manifesting as the Trinity. He ushers in the Day and is the teacher (of Hiranyagarbha),
The fire-wombed, the son of Aditi, and has a vast and supreme felicity. He is the remover of intellectual dull-headedness. 12

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथी प्लवङ्गमः॥१३॥

He is the Lord of the firmament, dispeller of darkness. Master of all the vedas,
He is a friend of the waters and causes rain. He has crossed the Vindya range and sports in the Brahma Nadi. 13

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥१४॥

He, whose form is circular and is colored yellow, is intensely absorbed and inflicts death.
He is the destroyer of all and is the Omniscient one being exceedingly energetic sustains the universe and all action. 14

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोऽस्तु ते॥१५॥

He is the lord of stars, planets and all constellations. He is the origin of everything in the universe
And is the cause of the lustre of even the brilliant ones. Salutations to Thee who is the One being manifest in the twelve forms of the Sun. 15

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥१६॥

Salutations to the Eastern and western mountain,
Salutations to the Lord of the stellar bodies and the Lord of the Day. 16

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥१७॥

Salutations to the One who ordains victory and the prosperity that follows. Salutations to the one possessed of yellow steeds and to the thousand rayed Lord, and to Aditya. 17

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥१८॥ or मार्तण्डाय

Salutations to the Terrible one, the hero, the one that travels fast.
Salutations to the one whose emergence makes the lotus blossom and to the
fierce and omnipotent one. 18

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥१९॥

Salutations to the Lord of Brahma, shiva and Achyuta, salutations to the
powerful and to the effulgence in the Sun that is both the illuminator and
devourer of all and is of a form that is fierce like Rudra. 19

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥२०॥

Salutations to he transcendental atman that dispels darkness, drives away all fear, and destroys all foes. Salutations also to the annihilator of the ungrateful and to the Lord of all the stellar bodies. 20

तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे। or हरये विश्वकर्मणे
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥२१॥

Salutations to the Lord shining like molten gold, to the transcendental fire, the fire of supreme knowledge, the architect of the universe, destroyer of darkness and salutations again to the efflugence that is the Cosmic witness. 21

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥२२॥

Salutations to the Lord who destroys everything and creates them again.
Salutations to Him who by His rays consumes the waters, heats them up and sends them down as rain. 22

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌॥२३॥

Salutations to the Lord who abides in the heart of all beings keeping awake when they are asleep. He is both the sacrificial fire and the fruit enjoyed by the worshippers. 23

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥२४॥

The Sun is verily the Lord of all action in this universe. He is verily the vedas, the sacrifices mentioned in them and the fruits obtained by performing the sacrifices. 24

॥फलश्रुतिः॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन्‌ पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥२५॥

Raghava, one who recites this hymn in times of danger, during an affliction or when lost in the wilderness and having fear, he will not lose heart (and become brave). 25

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्‌।
एतत्‌ त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥२६॥

Raghava, worship this Lord of all Gods and the Universe with one-pointed devotion. Recite this hymn thrice and you will win this battle. 26

अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदाऽगस्त्यो जगाम च यथागतम्‌॥२७॥

O mighty armed one, you shall slayRavana this very moment.
Having spoken thus, Agastya returned his original place. 27

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्‌॥२८॥

Raghava became free from worry after hearing this.
He was greatly pleased and became brave and energetic. 28

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्‌।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌॥२९॥

Gazing at the sun with devotion, He recited this hymn thrice and experienced bliss.
Purifying Himself by sipping water thrice, He took up His bow with His mighty arms. 29

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्‌।
सर्व यत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्‌॥३०॥

Seeing Ravana coming to fight,
He put forth all his effort with a determination to destroy Ravana. 30

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥३१॥

Then knowing that the destruction of the lord of prowlers at night (Ravana) was near, Aditya, who was at the center of the assembly of the Gods, looked at Rama and exclaimed 'Hurry up' with great delight. 31

Monday, January 9, 2012




उलटे हनुमान का मंदिर



भारत की धार्मिक नगरी उज्जैन से केवल 30 किमी दूर स्थित है यह धार्मिक स्थान जहाँ भगवान हनुमान जी की उल्टे रूप में पूजा की जाती है. यह मंदिर साँवरे नामक स्थान पर स्थापित है इस मंदिर को कई लोग रामायण काल के समय का बताते हैं. मंदिर में भगवान हनुमान की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति विराजमान है.

सांवेर का हनुमान मंदिर हनुमान भक्तों का महत्वपूर्ण स्थान है यहाँ आकर भक्त भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं. यह स्थान ऐसे भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया .

उलटे हनुमान कथा

भगवान हनुमान के सभी मंदिरों में से अलग यह मंदिर अपनी विशेषता के कारण ही सभी का ध्यान अपनी ओर खींचता है. साँवेर के हनुमान जी के विषय में एक कथा बहुत लोकप्रिय है. कहा जाता है कि जब रामायण काल में भगवान श्री राम व रावण का युद्ध हो रहा था, तब अहिरावण ने एक चाल चली. उसने रूप बदल कर अपने को राम की सेना में शामिल कर लिया और जब रात्रि समय सभी लोग सो रहे थे,तब अहिरावण ने अपनी जादुई शक्ति से श्री राम एवं लक्ष्मण जी को मूर्छित कर उनका अपहरण कर लिया .

वह उन्हें अपने साथ पाताल लोक में ले जाता है. जब वानर सेना को इस बात का पता चलता है तो चारों ओर हडकंप मच जाता है. सभी इस बात से विचलित हो जाते हैं. इस पर हनुमान जी भगवान राम व लक्ष्मण जी की खोज में पाताल लोक पहुँच जाते हैं और वहां पर अहिरावण से युद्ध करके उसका वध कर देते हैं तथा श्री राम एवं लक्ष्मण जी के प्राँणों की रक्षा करते हैं. उन्हें पाताल से निकाल कर सुरक्षित बाहर ले आते हैं. मान्यता है की यही वह स्थान था जहाँ से हनुमान जी पाताल लोक की और गए थे. उस समय हनुमान जी के पाँव आकाश की ओर तथा सर धरती की ओर था जिस कारण उनके उल्टे रूप की पूजा की जाती है.

उलटे हनुमान मंदिर की मान्यता

इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल के विषय में बहुत सी अन्य दंत कथाएं भी प्रचलित है जो इसकी मान्यता को और भी बढा देती हैं जिस कारण उलटे हनुमान का यह मंदिर क्षेत्र में विख्यात है तथा एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर भी है. इस जैसी प्रतिमा और कहीँ नहीँ मिलती. भगवान हनुमान जी का यह मंदिर आस्थाओं व विश्वास का अनुठा संगम है.

साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में एक मुख्य मान्यता यह है कि यदि कोई व्यक्ति तीन मंगलवार या पाँच मंगलवारों तक इस मन्दिर के दर्शनों के लिए लगातार आता है तो उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा उसकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है. मंगलवार को हनुमानजी को चोला भी चढ़ाया जाता है।

उलटे हनुमान मंदिर का महत्व

उलटे हनुमान मंदिर के दर्शन मात्र से ही सभी समस्याएं दूर हो जाती है. यहां भक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ता दिखाई पड़ता है. मंदिर में श्रीराम, सीता, लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती जी की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं. मंदिर में स्थित हनुमान जी की प्रतिमा को अत्यंत चमत्कारी माना जाता है. इसके साथ ही उलटे हनुमान मंदिर में वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं भी हैं.

शिवरीनारायण मंदिर


शिवरीनारायण मंदिर

शिवरीनारायण मंदिर छत्तीसगढ़ प्रांत के चंपा जांजगीर जिले के अंतर्गत आने वाले वाला एक प्रमुख प्रसिद्ध मन्दिर है | शिवरीनारायण मंदिर महानदी, जोंक नदी एवं शिवनाथ नदी के त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थित है | यह पावन स्थल हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है | शिवरी नारायण मंदिर के कारण ही यह स्थान छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है | मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा स्थापित रही थी, परंतु बाद में इस प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था |

इसी आस्था के फलस्वरूप माना जाता है कि आज भी भगवान जगन्नाथ जी यहां पर आते हैं | इसके साथ ही साथ इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि यहीं इस पवित्र स्थान पर भगवान श्री राम जी ने सीता की खोज करते हुए आगमन किया था तथा अपनी परम भक्त शबरी को दर्शन दिए व शबरी के जूठे बेर भी खाए थे | माना जाता है कि यहीं पर ऋषि मतंग का आश्रम भी था जहां पर भक्तिन शबरी ने श्री राम जी का इंतजार किया और उनके दर्शन प्राप्त किए | इस स्थान का उल्लेख सभी युगों में देखा जा सकता है जिस कारण यह स्थल सतयुग का बैकुंठपुर, त्रेता का रामपुर, द्वापर का विष्णुपुर तथा कलयुग का शिवरीनारायण कहलाया |

शिवरीनारायण मंदिर कथा

शिवरीनारायण मंदिर के संदर्भ में अनेक विचारों का प्रादुभार्व देखा जा सकता है | इस स्थान के बारे में विभिन्न धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है |इसके साथ ही मंदिर के साथ कई किवदंतीयां भी जुडीं हुई हैं, जिनसे मंदिर के महत्व तथा उसके धार्मिक स्वरूप के बारे में ज्ञात होता है | यह स्थल गुप्त तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है | माना जाता है कि श्री राम जी का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं |

इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि जगन्नाथ जी की विग्रह प्रतिमा को इस स्थान से पुरी ले जाया गया था अत: इस कारण हर साल माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ यहां पधारते हैं एवं इस दौरान जगन्नाथ में भगवान को भोग भी नहीं लगता है| याज्ञवलक्य संहिता ग्रंथ में इस बात के प्रमाण प्राप्त होते हैं |

स्कंद पुराण के अनुसार शबरीनारायण श्री सिंदूर गिरि क्षेत्र था| यहां पर घने जंगल होते थे तथा इस स्थान पर शबर जाति का शासन हुआ करता था | कहते हैं जब श्री कृष्ण जी को श्रापवश जरा नाम के शबर का तीर लगता है तो उनकी मृत्यु हो जाती है, जिस कारण शबर बहुत व्याकुल एवं ग्लानि से भरा होता है | वह दुखी एवं शोक के कारण पश्चाताप की अग्नि में जल रहा होता है |

इस दौरान श्री कृष्ण जी का दाह संस्कार किया जाता है व उनके मृत शरीर को समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाता है|. जरा को जब इस बात के बारे में पता चलता है तो वह भगवान के मृत शरीर को समुद्र से निकाल कर श्रीसिंदूरगिरि क्षेत्र में ले आता है जहाँ वह उस देह की पूजा करता है तथा तंत्र साधना की शुरूवात करता है और यही मृत देह 'नीलमाधव नाम से विख्यात होता है| .

इस बात का भी उल्लेख है कि बाद में नील माधव को पुरी में स्थापित किया गया था | कुछ विचारकों का कहना है कि नीलमाधव प्रतिमा को इंद्रभूति ने संभल के पहाडी क्षेत्र में स्थित एक गुफा में रखा और उस प्रतिमा के समक्ष तंत्र साधना आरंभ किया तथा इसी प्रकार इंद्रभूति के वंशज लगातार नीलमाधव की पूजा एवं उनके समक्ष तंत्र साधना करते रहे परन्तु बाद में इस प्रतिमा को पुरी में स्थापित कर दिया गया |

कहा जाता है कि जब जरा को नीलमाधव के चले जाने के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया और विलाप करने लगे | तब भगवान नीलमाधव ने उन्हें नारायणी रूप में दर्शन दिए तथा अपने इस रूप के गुप्त रूप से विराजमान रहने का वरदान भी दिया| तभी से यह स्थान गुप्त धाम कहलाया|

शिवरीनारायण मंदिर महत्व

शिवरीनारायण में प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है तथा स्नान दान के पवित्र कार्य संपन्न किए जाते हैं | जो भी इस पावन पर्व के समय यहां के दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है | इस अवसर पर देश भर से लोग यहाँ पहुँचते हैं तथा यहाँ पर होने वाली रथ यात्रा में भी शामिल होते हैं |

Wednesday, January 4, 2012

खरमास में शुभ कार्य क्यों नहीं होते?

खरमास में शुभ कार्य क्यों नहीं होते?

भारतीय पंचांग पद्धति में प्रतिवर्ष सौर पौष मास को खर मास कहते हैं। इसे मल मास या काला महीना भी कहा जाता है। इस महीने का आरंभ 16 दिसम्बर से होता है और ठीक मकर संक्रांति को खर मास की समाप्ति होती है। खर मास के दौरान हिन्दू जगत में कोई भी धार्मिक कृत्य और शुभमांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके अलावा यह महीना अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभकार्यों की चर्चाओं के लिए भी वर्जित है।

इस वर्ष भी खर मास 16 दिसम्बर 2011 से आरम्भ हो चुका है। और 14 जनवरी 2012 को मल मास यानी खर मास की समाप्ति होगी। खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह या अन्य हवन कर्मकांड आदि तक का निषेध है। सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है। अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है।

इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा। इसी कारण उन्होंने अर्जुन से पुनः एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसलिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।

खर मास को खर मास क्यों कहा जाता है यह भी एक पौराणिक किंवदंती है। खर गधे को कहते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है। और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निबटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने लगे। लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा ने विराम नहीं लेना है। नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा| तत्काल ही सूर्य भगवान पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधो को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए। अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। शायद यही कारण है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं। अपने इस अघोर कर्म से निवृत्त होने के लिए 14 जनवरी यानि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य पुनः अपने सात अश्वों पर सवार होकर आगे बढ़े और धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

मकर संक्रांति का एक महत्व यह भी है कि उस दिन सूर्य अपने अधम सवारी से मुक्त होकर असली अश्व रथ पर आरूढ़ हुए और दुनिया को अपनी ऊर्जा से प्रभावित करते रहे। इस साल यह खर मास अभी 14 जनवरी 2012 तक जारी रहेगा। श्रद्धालु जन तब तक शुभकार्यों की निवृत्ति हेतु प्रतीक्षा करेंगे। जिस दिन सूर्य गधे यानी खर के रथ को छोड़कर अपने असली अश्व रथ पर सवार होंगे उस दिन भारत में सर्वत्र मकर संक्रांति का पर्व भी मनाया जाएगा।

Tuesday, January 3, 2012

नमस्कार

पायो निधि राम नाम

पायो निधि राम नाम
पायो निधि राम नाम
पायो निधि राम नाम .
सकल शांति सुख निधान
सकल शांति सुख निधान
पायो निधि राम नाम |
सुमिरन से पीर हरै
काम क्रोध मोह जरै
आनंद रस अजर झरै
होवै मन पूर्ण काम
पायो निधि राम नाम|
रोम रोम बसत राम
जन जन में लखत राम
सर्व व्याप्त ब्रह्म राम
सर्व शक्तिमान राम
पायो निधि राम नाम |
ज्ञान ध्यान भजन राम
पाप ताप हरण नाम .
सुविचारित तथ्य एक
आदि मध्य अंत राम
पायो निधि राम नाम |