Monday, September 24, 2012

चिरंजीवी हनुमान

भारतीय विद्यानों ने सात लोगों को  चिरंजीवी माना  है :-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांन  विभीषण।
कृप: परशुराम सप्तैते चिरंजीवीतः||

अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेद व्यास, हनुमान विभीषण , कृपाचार्य व परुशाराम को चिरंजीवी माना गया है | इसी श्रृंखला में हनुमान जी का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि हनुमान जी का लक्ष्य इनमे सबसे  बडा है, बल्कि अनन्त है। उसे एक सामान्य मानव जीवन अवधि तो क्या ऊपर वर्णित दीर्घायु में भी प्राप्त करना संभव नहीं। यह तो तभी संभव है जब प्राणी अनन्त समय तक  अहर्निश सशरीर प्रयास रत रहे। अब प्रश्न  उठता है कौन सा है वह लक्ष्य है व  क्यों होती है आवश्यकता उसे पाने के लिए अहर्निश प्रयास की |
     वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के चालीसवें सत्र में इस बारे में प्रकाश डाला गया है। लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञता स्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमान जी श्री राम से याचना करते हैं कि- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय: ||
"अर्थात हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहे।"" इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते है कि- एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका  तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा  अर्थात् ""हे कपिश्रेष्ठ। ऎसा ही होगा। इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेगी।"" स्पष्ट है हनुमान जी ने जब श्रीराम कथा के प्रचलित रहने तक शरीर में प्राण रखने की कामना प्रकट की तो श्रीराम ने उन्हें न केवल तब तक उनके शरीर में प्राण रहने का आर्शीवाद दिया अपितु इन लोकों अर्थात् ब्रह्माण्ड  के बने रहने तक रामकथा के स्थिर रहने का वचन भी दिया।
 सीधे शब्दों में  कहा जा सकता है कि जब तक यह ब्रह्माण्ड  रहेगा रामकथा स्थिर रहेगी और रामकथा की स्थिरता तक हनुमान जी सशरीर विद्यमान रहेगें। 
      राम चरित मानस में माँ जानकी ने भी उन्हें अजर एवं अमर होने का आर्शीवाद  दिया है। अजर अमर गुन निधि सुत होहु। करहु बहुत रघुनायक छोहु
         स्पष्ट है हनुमान जी 6 चिरंजीवियों से भी आगे बढकर अजर एवं अमर हैं और फिर वे अजर एवं अमर क्यों नहीं हो जब इन्होंने संकल्प लिया है कि - वांछितार्थ प्रदस्यामि भक्तानां राघवस्य तु। सर्वदा जागरूको स्मि, राम कार्य धुरंधर: श्री राम रहस्योपनिषद में  उनकी यह घोषणा है कि वह श्रीराम के भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए संकल्पित एवं मनसा-वाचा-कर्मणा सचेष्ट हैं। वह राम काज करने में न केवल धुरंधर हैं अपितु सदैव सजग एवं क्रियाशील भी हैं। रामकाज प्रारम्भ करने पर उसे पूर्ण किये बिना विश्राम लेना उन्हें तनिक भी पसन्द नहीं।
उनकी रामकथा सुनने की आतुरता एवं रामकाज के प्रति उत्साह की झलक हमें हर युग में मिलती  है। त्रेता युग में दशरथ पुत्र श्रीराम की सेवा में अपलक समर्पित हैं तो द्वापर में अर्जुन के रथ के ध्वज पर आसीन होकर महाभारत के चक्षुदर्शी साक्षी है। महाभारत की समाप्त पर भीम के बल दर्प को दूर करने के लिए वृद्ध  बानर के रूप में प्रस्तुत हैं तो कलियुग में भक्त कवि तुलसीदास को चित्रकूट के घाट पर श्रीराम के दर्शन कराने के लिए विप्ररूप में उपस्थित हैं। ये कुछ घटनाएं मात्र उदाहरण स्वरूप हैं वरना वे प्रतिदिन उन करोडों लोगों की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहायता करते हैं जो श्रीराम का स्मरण करते हैं और हाँ वे उनके सामने सशरीर प्रकट होने को भी आतुर हैं जो उन्हें अपने दृढ संकल्प, अगाध श्रद्घा एवं पूर्ण समर्पण से प्राप्त करने की क्षमता एवं पात्रता रखते हैं।

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

बजरंग बाण
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग
अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
बजरंग बाण ध्यान
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

Sunday, September 16, 2012

श्री गणेश सहस्त्र नाम


ॐ गणेश्वरो गणक्रीडो गणनाथो गणाधिपः .
एकदन्तो वक्रतुण्डो गजवक्त्रो महोदरः .. १..

लम्बोदरो धूम्रवर्णो विकटो विघ्ननाशनः .
सुमुखो दुर्मुखो बुद्धो विघ्नराजो गजाननः .. २..

भीमः प्रमोद आमोदः सुरानन्दो मदोत्कटः .
हेरम्बः शम्बरः शम्भुर्लम्बकर्णो महाबलः .. ३..

नन्दनो लम्पटो भीमो मेघनादो गणञ्जयः .
विनायको विरूपाक्षो वीरः शूरवरप्रदः .. ४..

महागणपतिर्बुद्धिप्रियः क्षिप्रप्रसादनः .
रुद्रप्रियो गणाध्यक्ष उमापुत्रोऽघनाशनः .. ५..

कुमारगुरुरीशानपुत्रो मूषकवाहनः .
सिद्धिप्रियः सिद्धिपतिः सिद्धः सिद्धिविनायकः .. ६..

अविघ्नस्तुम्बुरुः सिंहवाहनो मोहिनीप्रियः .
कटङ्कटो राजपुत्रः शाकलः संमितोऽमितः .. ७..

कूष्माण्डसामसम्भूतिर्दुर्जयो धूर्जयो जयः .
भूपतिर्भुवनपतिर्भूतानां पतिरव्ययः .. ८..

विश्वकर्ता विश्वमुखो विश्वरूपो निधिर्गुणः .
कविः कवीनामृषभो ब्रह्मण्यो ब्रह्मवित्प्रियः .. ९..

ज्येष्ठराजो निधिपतिर्निधिप्रियपतिप्रियः .
हिरण्मयपुरान्तःस्थः सूर्यमण्डलमध्यगः .. १०..

कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलः पूषदन्तभित् .
उमाङ्ककेलिकुतुकी मुक्तिदः कुलपावनः .. ११..

किरीटी कुण्डली हारी वनमाली मनोमयः .
वैमुख्यहतदैत्यश्रीः पादाहतिजितक्षितिः .. १२..

सद्योजातः स्वर्णमुञ्जमेखली दुर्निमित्तहृत् .
दुःस्वप्नहृत्प्रसहनो गुणी नादप्रतिष्ठितः .. १३..

सुरूपः सर्वनेत्राधिवासो वीरासनाश्रयः .
पीताम्बरः खण्डरदः खण्डवैशाखसंस्थितः .. १४..

चित्राङ्गः श्यामदशनो भालचन्द्रो हविर्भुजः .
योगाधिपस्तारकस्थः पुरुषो गजकर्णकः .. १५..

गणाधिराजो विजयः स्थिरो गजपतिध्वजी .
देवदेवः स्मरः प्राणदीपको वायुकीलकः .. १६..

विपश्चिद्वरदो नादो नादभिन्नमहाचलः .
वराहरदनो मृत्युञ्जयो व्याघ्राजिनाम्बरः .. १७..

इच्छाशक्तिभवो देवत्राता दैत्यविमर्दनः .
शम्भुवक्त्रोद्भवः शम्भुकोपहा शम्भुहास्यभूः .. १८..

शम्भुतेजाः शिवाशोकहारी गौरीसुखावहः .
उमाङ्गमलजो गौरीतेजोभूः स्वर्धुनीभवः .. १९..

यज्ञकायो महानादो गिरिवर्ष्मा शुभाननः .
सर्वात्मा सर्वदेवात्मा ब्रह्ममूर्धा ककुप्श्रुतिः .. २०..

ब्रह्माण्डकुम्भश्चिद्व्योमभालःसत्यशिरोरुहः .
जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषोऽग्न्यर्कसोमदृक् .. २१..

गिरीन्द्रैकरदो धर्माधर्मोष्ठः सामबृंहितः .
ग्रहर्क्षदशनो वाणीजिह्वो वासवनासिकः .. २२..

भ्रूमध्यसंस्थितकरो ब्रह्मविद्यामदोदकः .
कुलाचलांसः सोमार्कघण्टो रुद्रशिरोधरः .. २३..

नदीनदभुजः सर्पाङ्गुलीकस्तारकानखः .
व्योमनाभिः श्रीहृदयो मेरुपृष्ठोऽर्णवोदरः .. २४..

कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषः .
पृथ्वीकटिः सृष्टिलिङ्गः शैलोरुर्दस्रजानुकः .. २५..

पातालजङ्घो मुनिपात्कालाङ्गुष्ठस्त्रयीतनुः .
ज्योतिर्मण्डललाङ्गूलो हृदयालाननिश्चलः .. २६..

हृत्पद्मकर्णिकाशाली वियत्केलिसरोवरः .
सद्भक्तध्याननिगडः पूजावारिनिवारितः .. २७..

प्रतापी काश्यपो मन्ता गणको विष्टपी बली .
यशस्वी धार्मिको जेता प्रथमः प्रमथेश्वरः .. २८..

चिन्तामणिर्द्वीपपतिः कल्पद्रुमवनालयः .
रत्नमण्डपमध्यस्थो रत्नसिंहासनाश्रयः .. २९..

तीव्राशिरोद्धृतपदो ज्वालिनीमौलिलालितः .
नन्दानन्दितपीठश्रीर्भोगदो भूषितासनः .. ३०..

सकामदायिनीपीठः स्फुरदुग्रासनाश्रयः .
तेजोवतीशिरोरत्नं सत्यानित्यावतंसितः .. ३१..

सविघ्ननाशिनीपीठः सर्वशक्त्यम्बुजालयः .
लिपिपद्मासनाधारो वह्निधामत्रयालयः .. ३२..

उन्नतप्रपदो गूढगुल्फः संवृतपार्ष्णिकः .
पीनजङ्घः श्लिष्टजानुः स्थूलोरुः प्रोन्नमत्कटिः .. ३३..

निम्ननाभिः स्थूलकुक्षिः पीनवक्षा बृहद्भुजः .
पीनस्कन्धः कम्बुकण्ठो लम्बोष्ठो लम्बनासिकः .. ३४..

भग्नवामरदस्तुङ्गसव्यदन्तो महाहनुः .
ह्रस्वनेत्रत्रयः शूर्पकर्णो निबिडमस्तकः .. ३५..

स्तबकाकारकुम्भाग्रो रत्नमौलिर्निरङ्कुशः .
सर्पहारकटीसूत्रः सर्पयज्ञोपवीतवान् .. ३६..

सर्पकोटीरकटकः सर्पग्रैवेयकाङ्गदः .
सर्पकक्षोदराबन्धः सर्पराजोत्तरच्छदः .. ३७..

रक्तो रक्ताम्बरधरो रक्तमालाविभूषणः .
रक्तेक्षनो रक्तकरो रक्तताल्वोष्ठपल्लवः .. ३८..

श्वेतः श्वेताम्बरधरः श्वेतमालाविभूषणः .
श्वेतातपत्ररुचिरः श्वेतचामरवीजितः .. ३९..

सर्वावयवसम्पूर्णः सर्वलक्षणलक्षितः .
सर्वाभरणशोभाढ्यः सर्वशोभासमन्वितः .. ४०..

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यः सर्वकारणकारणम् .
सर्वदेववरः शार्ङ्गी बीजपूरी गदाधरः .. ४१..

शुभाङ्गो लोकसारङ्गः सुतन्तुस्तन्तुवर्धनः .
किरीटी कुण्डली हारी वनमाली शुभाङ्गदः .. ४२..

इक्षुचापधरः शूली चक्रपाणिः सरोजभृत् .
पाशी धृतोत्पलः शालिमञ्जरीभृत्स्वदन्तभृत् .. ४३..

कल्पवल्लीधरो विश्वाभयदैककरो वशी .
अक्षमालाधरो ज्ञानमुद्रावान् मुद्गरायुधः .. ४४..

पूर्णपात्री कम्बुधरो विधृताङ्कुशमूलकः .
करस्थाम्रफलश्चूतकलिकाभृत्कुठारवान् .. ४५..

पुष्करस्थस्वर्णघटीपूर्णरत्नाभिवर्षकः .
भारतीसुन्दरीनाथो विनायकरतिप्रियः .. ४६..

महालक्ष्मीप्रियतमः सिद्धलक्ष्मीमनोरमः .
रमारमेशपूर्वाङ्गो दक्षिणोमामहेश्वरः .. ४७..

महीवराहवामाङ्गो रतिकन्दर्पपश्चिमः .
आमोदमोदजननः सप्रमोदप्रमोदनः .. ४८..

संवर्धितमहावृद्धिरृद्धिसिद्धिप्रवर्धनः .
दन्तसौमुख्यसुमुखः कान्तिकन्दलिताश्रयः .. ४९..

मदनावत्याश्रिताङ्घ्रिः कृतवैमुख्यदुर्मुखः .
विघ्नसंपल्लवः पद्मः सर्वोन्नतमदद्रवः .. ५०..

विघ्नकृन्निम्नचरणो द्राविणीशक्तिसत्कृतः .
तीव्राप्रसन्ननयनो ज्वालिनीपालितैकदृक् .. ५१..

मोहिनीमोहनो भोगदायिनीकान्तिमण्डनः .
कामिनीकान्तवक्त्रश्रीरधिष्ठितवसुन्धरः .. ५२..

वसुधारामदोन्नादो महाशङ्खनिधिप्रियः .
नमद्वसुमतीमाली महापद्मनिधिः प्रभुः .. ५३..

सर्वसद्गुरुसंसेव्यः शोचिष्केशहृदाश्रयः .
ईशानमूर्धा देवेन्द्रशिखः पवननन्दनः .. ५४..

प्रत्युग्रनयनो दिव्यो दिव्यास्त्रशतपर्वधृक् .
ऐरावतादिसर्वाशावारणो वारणप्रियः .. ५५..

वज्राद्यस्त्रपरीवारो गणचण्डसमाश्रयः .
जयाजयपरिकरो विजयाविजयावहः .. ५६..

अजयार्चितपादाब्जो नित्यानन्दवनस्थितः .
विलासिनीकृतोल्लासः शौण्डी सौन्दर्यमण्डितः .. ५७..

अनन्तानन्तसुखदः सुमङ्गलसुमङ्गलः .
ज्ञानाश्रयः क्रियाधार इच्छाशक्तिनिषेवितः .. ५८..

सुभगासंश्रितपदो ललिताललिताश्रयः .
कामिनीपालनः कामकामिनीकेलिलालितः .. ५९..

सरस्वत्याश्रयो गौरीनन्दनः श्रीनिकेतनः .
गुरुगुप्तपदो वाचासिद्धो वागीश्वरीपतिः .. ६०..

नलिनीकामुको वामारामो ज्येष्ठामनोरमः .
रौद्रीमुद्रितपादाब्जो हुम्बीजस्तुङ्गशक्तिकः .. ६१..

विश्वादिजननत्राणः स्वाहाशक्तिः सकीलकः .
अमृताब्धिकृतावासो मदघूर्णितलोचनः .. ६२..

उच्छिष्टोच्छिष्टगणको गणेशो गणनायकः .
सार्वकालिकसंसिद्धिर्नित्यसेव्यो दिगम्बरः .. ६३..

अनपायोऽनन्तदृष्टिरप्रमेयोऽजरामरः .
अनाविलोऽप्रतिहतिरच्युतोऽमृतमक्षरः .. ६४..

अप्रतर्क्योऽक्षयोऽजय्योऽनाधारोऽनामयोऽमलः .
अमेयसिद्धिरद्वैतमघोरोऽग्निसमाननः .. ६५..

अनाकारोऽब्धिभूम्यग्निबलघ्नोऽव्यक्तलक्षणः .
आधारपीठमाधार आधाराधेयवर्जितः .. ६६..

आखुकेतन आशापूरक आखुमहारथः .
इक्षुसागरमध्यस्थ इक्षुभक्षणलालसः .. ६७..

इक्षुचापातिरेकश्रीरिक्षुचापनिषेवितः .
इन्द्रगोपसमानश्रीरिन्द्रनीलसमद्युतिः .. ६८..

इन्दीवरदलश्याम इन्दुमण्डलमण्डितः .
इध्मप्रिय इडाभाग इडावानिन्दिराप्रियः .. ६९..

इक्ष्वाकुविघ्नविध्वंसी इतिकर्तव्यतेप्सितः .
ईशानमौलिरीशान ईशानप्रिय ईतिहा .. ७०..

ईषणात्रयकल्पान्त ईहामात्रविवर्जितः .
उपेन्द्र उडुभृन्मौलिरुडुनाथकरप्रियः .. ७१..

उन्नतानन उत्तुङ्ग उदारस्त्रिदशाग्रणीः .
ऊर्जस्वानूष्मलमद ऊहापोहदुरासदः .. ७२..

ऋग्यजुःसामनयन ऋद्धिसिद्धिसमर्पकः .
ऋजुचित्तैकसुलभो ऋणत्रयविमोचनः .. ७३..

लुप्तविघ्नः स्वभक्तानां लुप्तशक्तिः सुरद्विषाम् .
लुप्तश्रीर्विमुखार्चानां लूताविस्फोटनाशनः .. ७४..

एकारपीठमध्यस्थ एकपादकृतासनः .
एजिताखिलदैत्यश्रीरेधिताखिलसंश्रयः .. ७५..

ऐश्वर्यनिधिरैश्वर्यमैहिकामुष्मिकप्रदः .
ऐरंमदसमोन्मेष ऐरावतसमाननः .. ७६..

ओंकारवाच्य ओंकार ओजस्वानोषधीपतिः .
औदार्यनिधिरौद्धत्यधैर्य औन्नत्यनिःसमः .. ७७..

अङ्कुशः सुरनागानामङ्कुशाकारसंस्थितः .
अः समस्तविसर्गान्तपदेषु परिकीर्तितः .. ७८..

कमण्डलुधरः कल्पः कपर्दी कलभाननः .
कर्मसाक्षी कर्मकर्ता कर्माकर्मफलप्रदः .. ७९..

कदम्बगोलकाकारः कूष्माण्डगणनायकः .
कारुण्यदेहः कपिलः कथकः कटिसूत्रभृत् .. ८०..

खर्वः खड्गप्रियः खड्गः खान्तान्तःस्थः खनिर्मलः .
खल्वाटशृङ्गनिलयः खट्वाङ्गी खदुरासदः .. ८१..

गुणाढ्यो गहनो गद्यो गद्यपद्यसुधार्णवः .
गद्यगानप्रियो गर्जो गीतगीर्वाणपूर्वजः .. ८२..

गुह्याचाररतो गुह्यो गुह्यागमनिरूपितः .
गुहाशयो गुडाब्धिस्थो गुरुगम्यो गुरुर्गुरुः .. ८३..

घण्टाघर्घरिकामाली घटकुम्भो घटोदरः .
ङकारवाच्यो ङाकारो ङकाराकारशुण्डभृत् .. ८४..

चण्डश्चण्डेश्वरश्चण्डी चण्डेशश्चण्डविक्रमः .
चराचरपिता चिन्तामणिश्चर्वणलालसः .. ८५..

छन्दश्छन्दोद्भवश्छन्दो दुर्लक्ष्यश्छन्दविग्रहः .
जगद्योनिर्जगत्साक्षी जगदीशो जगन्मयः .. ८६..

जप्यो जपपरो जाप्यो जिह्वासिंहासनप्रभुः .
स्रवद्गण्डोल्लसद्धानझङ्कारिभ्रमराकुलः .. ८७..

टङ्कारस्फारसंरावष्टङ्कारमणिनूपुरः .
ठद्वयीपल्लवान्तस्थसर्वमन्त्रेषु सिद्धिदः .. ८८..

डिण्डिमुण्डो डाकिनीशो डामरो डिण्डिमप्रियः .
ढक्कानिनादमुदितो ढौङ्को ढुण्ढिविनायकः .. ८९..

तत्त्वानां प्रकृतिस्तत्त्वं तत्त्वंपदनिरूपितः .
तारकान्तरसंस्थानस्तारकस्तारकान्तकः .. ९०..

स्थाणुः स्थाणुप्रियः स्थाता स्थावरं जङ्गमं जगत् .
दक्षयज्ञप्रमथनो दाता दानं दमो दया .. ९१..

दयावान्दिव्यविभवो दण्डभृद्दण्डनायकः .
दन्तप्रभिन्नाभ्रमालो दैत्यवारणदारणः .. ९२..

दंष्ट्रालग्नद्वीपघटो देवार्थनृगजाकृतिः .
धनं धनपतेर्बन्धुर्धनदो धरणीधरः .. ९३..

ध्यानैकप्रकटो ध्येयो ध्यानं ध्यानपरायणः .
ध्वनिप्रकृतिचीत्कारो ब्रह्माण्डावलिमेखलः .. ९४..

नन्द्यो नन्दिप्रियो नादो नादमध्यप्रतिष्ठितः .
निष्कलो निर्मलो नित्यो नित्यानित्यो निरामयः .. ९५..

परं व्योम परं धाम परमात्मा परं पदम् .. ९६..
परात्परः पशुपतिः पशुपाशविमोचनः .

पूर्णानन्दः परानन्दः पुराणपुरुषोत्तमः .. ९७..
पद्मप्रसन्नवदनः प्रणताज्ञाननाशनः .

प्रमाणप्रत्ययातीतः प्रणतार्तिनिवारणः .. ९८..
फणिहस्तः फणिपतिः फूत्कारः फणितप्रियः .

बाणार्चिताङ्घ्रियुगलो बालकेलिकुतूहली .
ब्रह्म ब्रह्मार्चितपदो ब्रह्मचारी बृहस्पतिः .. ९९..

बृहत्तमो ब्रह्मपरो ब्रह्मण्यो ब्रह्मवित्प्रियः .
बृहन्नादाग्र्यचीत्कारो ब्रह्माण्डावलिमेखलः .. १००..

भ्रूक्षेपदत्तलक्ष्मीको भर्गो भद्रो भयापहः .
भगवान् भक्तिसुलभो भूतिदो भूतिभूषणः .. १०१..

भव्यो भूतालयो भोगदाता भ्रूमध्यगोचरः .
मन्त्रो मन्त्रपतिर्मन्त्री मदमत्तो मनो मयः .. १०२..

मेखलाहीश्वरो मन्दगतिर्मन्दनिभेक्षणः .
महाबलो महावीर्यो महाप्राणो महामनाः .. १०३..

यज्ञो यज्ञपतिर्यज्ञगोप्ता यज्ञफलप्रदः .
यशस्करो योगगम्यो याज्ञिको याजकप्रियः .. १०४..

रसो रसप्रियो रस्यो रञ्जको रावणार्चितः .
राज्यरक्षाकरो रत्नगर्भो राज्यसुखप्रदः .. १०५..

लक्षो लक्षपतिर्लक्ष्यो लयस्थो लड्डुकप्रियः .
लासप्रियो लास्यपरो लाभकृल्लोकविश्रुतः .. १०६..

वरेण्यो वह्निवदनो वन्द्यो वेदान्तगोचरः .
विकर्ता विश्वतश्चक्षुर्विधाता विश्वतोमुखः .. १०७..

वामदेवो विश्वनेता वज्रिवज्रनिवारणः .
विवस्वद्बन्धनो विश्वाधारो विश्वेश्वरो विभुः .. १०८..

शब्दब्रह्म शमप्राप्यः शम्भुशक्तिगणेश्वरः .
शास्ता शिखाग्रनिलयः शरण्यः शम्बरेश्वरः .. १०९..

षडृतुकुसुमस्रग्वी षडाधारः षडक्षरः .
संसारवैद्यः सर्वज्ञः सर्वभेषजभेषजम् .. ११०..

सृष्टिस्थितिलयक्रीडः सुरकुञ्जरभेदकः .
सिन्दूरितमहाकुम्भः सदसद्भक्तिदायकः .. १११..

साक्षी समुद्रमथनः स्वयंवेद्यः स्वदक्षिणः .
स्वतन्त्रः सत्यसंकल्पः सामगानरतः सुखी .. ११२..

हंसो हस्तिपिशाचीशो हवनं हव्यकव्यभुक् .
हव्यं हुतप्रियो हृष्टो हृल्लेखामन्त्रमध्यगः .. ११३..

क्षेत्राधिपः क्षमाभर्ता क्षमाक्षमपरायणः .
क्षिप्रक्षेमकरः क्षेमानन्दः क्षोणीसुरद्रुमः .. ११४..

धर्मप्रदोऽर्थदः कामदाता सौभाग्यवर्धनः .
विद्याप्रदो विभवदो भुक्तिमुक्तिफलप्रदः .. ११५..

आभिरूप्यकरो वीरश्रीप्रदो विजयप्रदः .
सर्ववश्यकरो गर्भदोषहा पुत्रपौत्रदः .. ११६..

मेधादः कीर्तिदः शोकहारी दौर्भाग्यनाशनः .
प्रतिवादिमुखस्तम्भो रुष्टचित्तप्रसादनः .. ११७..

पराभिचारशमनो दुःखहा बन्धमोक्षदः .
लवस्त्रुटिः कला काष्ठा निमेषस्तत्परक्षणः .. ११८..

घटी मुहूर्तः प्रहरो दिवा नक्तमहर्निशम् .
पक्षो मासर्त्वयनाब्दयुगं कल्पो महालयः .. ११९..

राशिस्तारा तिथिर्योगो वारः करणमंशकम् .
लग्नं होरा कालचक्रं मेरुः सप्तर्षयो ध्रुवः .. १२०..

राहुर्मन्दः कविर्जीवो बुधो भौमः शशी रविः .
कालः सृष्टिः स्थितिर्विश्वं स्थावरं जङ्गमं जगत् .. १२१..

भूरापोऽग्निर्मरुद्व्योमाहंकृतिः प्रकृतिः पुमान् .
ब्रह्मा विष्णुः शिवो रुद्र ईशः शक्तिः सदाशिवः .. १२२..

त्रिदशाः पितरः सिद्धा यक्षा रक्षांसि किन्नराः .
सिद्धविद्याधरा भूता मनुष्याः पशवः खगाः .. १२३..

समुद्राः सरितः शैला भूतं भव्यं भवोद्भवः .
सांख्यं पातञ्जलं योगं पुराणानि श्रुतिः स्मृतिः .. १२४..

वेदाङ्गानि सदाचारो मीमांसा न्यायविस्तरः .
आयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वं काव्यनाटकम् .. १२५..

वैखानसं भागवतं मानुषं पाञ्चरात्रकम् .
शैवं पाशुपतं कालामुखंभैरवशासनम् .. १२६..

शाक्तं वैनायकं सौरं जैनमार्हतसंहिता .
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं सचेतनमचेतनम् .. १२७..

बन्धो मोक्षः सुखं भोगो योगः सत्यमणुर्महान् .
स्वस्ति हुंफट् स्वधा स्वाहा श्रौषट् वौषट् वषण् नमः ..

१२८..
ज्ञानं विज्ञानमानन्दो बोधः संवित्समोऽसमः .

एक एकाक्षराधार एकाक्षरपरायणः .. १२९..
एकाग्रधीरेकवीर एकोऽनेकस्वरूपधृक् .

द्विरूपो द्विभुजो द्व्यक्षो द्विरदो द्वीपरक्षकः .. १३०..
द्वैमातुरो द्विवदनो द्वन्द्वहीनो द्वयातिगः .

त्रिधामा त्रिकरस्त्रेता त्रिवर्गफलदायकः .. १३१..
त्रिगुणात्मा त्रिलोकादिस्त्रिशक्तीशस्त्रिलोचनः .

चतुर्विधवचोवृत्तिपरिवृत्तिप्रवर्तकः .. १३२..
चतुर्बाहुश्चतुर्दन्तश्चतुरात्मा चतुर्भुजः .

चतुर्विधोपायमयश्चतुर्वर्णाश्रमाश्रयः .
चतुर्थीपूजनप्रीतश्चतुर्थीतिथिसम्भवः .. १३३..

पञ्चाक्षरात्मा पञ्चात्मा पञ्चास्यः पञ्चकृत्तमः .. १३४..
पञ्चाधारः पञ्चवर्णः पञ्चाक्षरपरायणः .

पञ्चतालः पञ्चकरः पञ्चप्रणवमातृकः .. १३५..
पञ्चब्रह्ममयस्फूर्तिः पञ्चावरणवारितः .

पञ्चभक्षप्रियः पञ्चबाणः पञ्चशिखात्मकः .. १३६..
षट्कोणपीठः षट्चक्रधामा षड्ग्रन्थिभेदकः .

षडङ्गध्वान्तविध्वंसी षडङ्गुलमहाह्रदः .. १३७..
षण्मुखः षण्मुखभ्राता षट्शक्तिपरिवारितः .

षड्वैरिवर्गविध्वंसी षडूर्मिभयभञ्जनः .. १३८..
षट्तर्कदूरः षट्कर्मा षड्गुणः षड्रसाश्रयः .

सप्तपातालचरणः सप्तद्वीपोरुमण्डलः .. १३९..
सप्तस्वर्लोकमुकुटः सप्तसप्तिवरप्रदः .

सप्ताङ्गराज्यसुखदः सप्तर्षिगणवन्दितः .. १४०..
सप्तच्छन्दोनिधिः सप्तहोत्रः सप्तस्वराश्रयः .

सप्ताब्धिकेलिकासारः सप्तमातृनिषेवितः .. १४१..
सप्तच्छन्दो मोदमदः सप्तच्छन्दो मखप्रभुः .

अष्टमूर्तिर्ध्येयमूर्तिरष्टप्रकृतिकारणम् .. १४२..
अष्टाङ्गयोगफलभृदष्टपत्राम्बुजासनः .

अष्टशक्तिसमानश्रीरष्टैश्वर्यप्रवर्धनः .. १४३..
अष्टपीठोपपीठश्रीरष्टमातृसमावृतः .

अष्टभैरवसेव्योऽष्टवसुवन्द्योऽष्टमूर्तिभृत् .. १४४..
अष्टचक्रस्फुरन्मूर्तिरष्टद्रव्यहविःप्रियः .

अष्टश्रीरष्टसामश्रीरष्टैश्वर्यप्रदायकः .
नवनागासनाध्यासी नवनिध्यनुशासितः .. १४५..

नवद्वारपुरावृत्तो नवद्वारनिकेतनः .
नवनाथमहानाथो नवनागविभूषितः .. १४६..

नवनारायणस्तुल्यो नवदुर्गानिषेवितः .
नवरत्नविचित्राङ्गो नवशक्तिशिरोद्धृतः .. १४७..

दशात्मको दशभुजो दशदिक्पतिवन्दितः .
दशाध्यायो दशप्राणो दशेन्द्रियनियामकः .. १४८..

दशाक्षरमहामन्त्रो दशाशाव्यापिविग्रहः .
एकादशमहारुद्रैःस्तुतश्चैकादशाक्षरः .. १४९..

द्वादशद्विदशाष्टादिदोर्दण्डास्त्रनिकेतनः .
त्रयोदशभिदाभिन्नो विश्वेदेवाधिदैवतम् .. १५०..

चतुर्दशेन्द्रवरदश्चतुर्दशमनुप्रभुः .
चतुर्दशाद्यविद्याढ्यश्चतुर्दशजगत्पतिः .. १५१..

सामपञ्चदशः पञ्चदशीशीतांशुनिर्मलः .
तिथिपञ्चदशाकारस्तिथ्या पञ्चदशार्चितः .. १५२..

षोडशाधारनिलयः षोडशस्वरमातृकः .
षोडशान्तपदावासः षोडशेन्दुकलात्मकः .. १५३..

कलासप्तदशी सप्तदशसप्तदशाक्षरः .
अष्टादशद्वीपपतिरष्टादशपुराणकृत् .. १५४..

अष्टादशौषधीसृष्टिरष्टादशविधिः स्मृतः .
अष्टादशलिपिव्यष्टिसमष्टिज्ञानकोविदः .. १५५..

अष्टादशान्नसम्पत्तिरष्टादशविजातिकृत् .
एकविंशः पुमानेकविंशत्यङ्गुलिपल्लवः .. १५६..

चतुर्विंशतितत्त्वात्मा पञ्चविंशाख्यपूरुषः .
सप्तविंशतितारेशः सप्तविंशतियोगकृत् .. १५७..

द्वात्रिंशद्भैरवाधीशश्चतुस्त्रिंशन्महाह्रदः .
षट्त्रिंशत्तत्त्वसंभूतिरष्टत्रिंशत्कलात्मकः .. १५८..

पञ्चाशद्विष्णुशक्तीशः पञ्चाशन्मातृकालयः .
द्विपञ्चाशद्वपुःश्रेणीत्रिषष्ट्यक्षरसंश्रयः .

पञ्चाशदक्षरश्रेणीपञ्चाशद्रुद्रविग्रहः .. १५९..
चतुःषष्टिमहासिद्धियोगिनीवृन्दवन्दितः .

नमदेकोनपञ्चाशन्मरुद्वर्गनिरर्गलः .. १६०..
चतुःषष्ट्यर्थनिर्णेता चतुःषष्टिकलानिधिः .

अष्टषष्टिमहातीर्थक्षेत्रभैरववन्दितः .. १६१..
चतुर्नवतिमन्त्रात्मा षण्णवत्यधिकप्रभुः .

शतानन्दः शतधृतिः शतपत्रायतेक्षणः .. १६२..
शतानीकः शतमखः शतधारावरायुधः .

सहस्रपत्रनिलयः सहस्रफणिभूषणः .. १६३..
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् .

सहस्रनामसंस्तुत्यः सहस्राक्षबलापहः .. १६४..
दशसाहस्रफणिभृत्फणिराजकृतासनः .

अष्टाशीतिसहस्राद्यमहर्षिस्तोत्रपाठितः .. १६५..
लक्षाधारः प्रियाधारो लक्षाधारमनोमयः .

चतुर्लक्षजपप्रीतश्चतुर्लक्षप्रकाशकः .. १६६..
चतुरशीतिलक्षाणां जीवानां देहसंस्थितः .

कोटिसूर्यप्रतीकाशः कोटिचन्द्रांशुनिर्मलः .. १६७..
शिवोद्भवाद्यष्टकोटिवैनायकधुरन्धरः .

सप्तकोटिमहामन्त्रमन्त्रितावयवद्युतिः .. १६८..
त्रयस्त्रिंशत्कोटिसुरश्रेणीप्रणतपादुकः .

अनन्तदेवतासेव्यो ह्यनन्तशुभदायकः .. १६९..
अनन्तनामानन्तश्रीरनन्तोऽनन्तसौख्यदः .

अनन्तशक्तिसहितो ह्यनन्तमुनिसंस्तुतः .. १७०..
इति वैनायकं नाम्नां सहस्रमिदमीरितम् .

इदं ब्राह्मे मुहूर्ते यः पठति प्रत्यहं नरः .. १७१..
करस्थं तस्य सकलमैहिकामुष्मिकं सुखम् .

आयुरारोग्यमैश्वर्यं धैर्यं शौर्यं बलं यशः .. १७२..
मेधा प्रज्ञा धृतिः कान्तिः सौभाग्यमभिरूपता .

सत्यं दया क्षमा शान्तिर्दाक्षिण्यं धर्मशीलता .. १७३..
जगत्संवननं विश्वसंवादो वेदपाटवम् .

सभापाण्डित्यमौदार्यं गाम्भीर्यं ब्रह्मवर्चसम् .. १७४..
ओजस्तेजः कुलं शीलं प्रतापो वीर्यमार्यता .

ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं स्थैर्यं विश्वासता तथा .. १७५..
धनधान्यादिवृद्धिश्च सकृदस्य जपाद्भवेत् .

वश्यं चतुर्विधं विश्वं जपादस्य प्रजायते .. १७६..
राज्ञो राजकलत्रस्य राजपुत्रस्य मन्त्रिणः .

जप्यते यस्य वश्यार्थे स दासस्तस्य जायते .. १७७..
धर्मार्थकाममोक्षाणामनायासेन साधनम् .

शाकिनीडाकिनीरक्षोयक्षग्रहभयापहम् .. १७८..
साम्राज्यसुखदं सर्वसपत्नमदमर्दनम् .

समस्तकलहध्वंसि दग्धबीजप्ररोहणम् .. १७९..
दुःस्वप्नशमनं क्रुद्धस्वामिचित्तप्रसादनम् .

षड्वर्गाष्टमहासिद्धित्रिकालज्ञानकारणम् .. १८०..
परकृत्यप्रशमनं परचक्रप्रमर्दनम् .

संग्राममार्गे सवेषामिदमेकं जयावहम् .. १८१..
सर्ववन्ध्यत्वदोषघ्नं गर्भरक्षैककारणम् .

पठ्यते प्रत्यहं यत्र स्तोत्रं गणपतेरिदम् .. १८२..
देशे तत्र न दुर्भिक्षमीतयो दुरितानि च .

न तद्गेहं जहाति श्रीर्यत्रायं जप्यते स्तवः .. १८३..
क्षयकुष्ठप्रमेहार्शभगन्दरविषूचिकाः .

गुल्मं प्लीहानमशमानमतिसारं महोदरम् .. १८४..
कासं श्वासमुदावर्तं शूलं शोफामयोदरम् .

शिरोरोगं वमिं हिक्कां गण्डमालामरोचकम् .. १८५..
वातपित्तकफद्वन्द्वत्रिदोषजनितज्वरम् .

आगन्तुविषमं शीतमुष्णं चैकाहिकादिकम् .. १८६..
इत्याद्युक्तमनुक्तं वा रोगदोषादिसम्भवम् .

सर्वं प्रशमयत्याशु स्तोत्रस्यास्य सकृज्जपः .. १८७..
प्राप्यतेऽस्य जपात्सिद्धिः स्त्रीशूद्रैः पतितैरपि .

सहस्रनाममन्त्रोऽयं जपितव्यः शुभाप्तये .. १८८..
महागणपतेः स्तोत्रं सकामः प्रजपन्निदम् .

इच्छया सकलान् भोगानुपभुज्येह पार्थिवान् .. १८९..
मनोरथफलैर्दिव्यैर्व्योमयानैर्मनोरमैः .

चन्द्रेन्द्रभास्करोपेन्द्रब्रह्मशर्वादिसद्मसु .. १९०..
कामरूपः कामगतिः कामदः कामदेश्वरः .

भुक्त्वा यथेप्सितान्भोगानभीष्टैः सह बन्धुभिः .. १९१..
गणेशानुचरो भूत्वा गणो गणपतिप्रियः .

नन्दीश्वरादिसानन्दैर्नन्दितः सकलैर्गणैः .. १९२..
शिवाभ्यां कृपया पुत्रनिर्विशेषं च लालितः .

शिवभक्तः पूर्णकामो गणेश्वरवरात्पुनः .. १९३..
जातिस्मरो धर्मपरः सार्वभौमोऽभिजायते .

निष्कामस्तु जपन्नित्यं भक्त्या विघ्नेशतत्परः .. १९४..
योगसिद्धिं परां प्राप्य ज्ञानवैराग्यसंयुतः .

निरन्तरे निराबाधे परमानन्दसंज्ञिते .. १९५..
विश्वोत्तीर्णे परे पूर्णे पुनरावृत्तिवर्जिते .

लीनो वैनायके धाम्नि रमते नित्यनिर्वृते .. १९६..
यो नामभिर्हुतैर्दत्तैः पूजयेदर्चयेएन्नरः .

राजानो वश्यतां यान्ति रिपवो यान्ति दासताम् .. १९७..
तस्य सिध्यन्ति मन्त्राणां दुर्लभाश्चेष्टसिद्धयः .

मूलमन्त्रादपि स्तोत्रमिदं प्रियतमं मम .. १९८..
नभस्ये मासि शुक्लायां चतुर्थ्यां मम जन्मनि .

दूर्वाभिर्नामभिः पूजां तर्पणं विधिवच्चरेत् .. १९९..
अष्टद्रव्यैर्विशेषेण कुर्याद्भक्तिसुसंयुतः .

तस्येप्सितं धनं धान्यमैश्वर्यं विजयो यशः .. २००..
भविष्यति न सन्देहः पुत्रपौत्रादिकं सुखम् .

इदं प्रजपितं स्तोत्रं पठितं श्रावितं श्रुतम् .. २०१..
व्याकृतं चर्चितं ध्यातं विमृष्टमभिवन्दितम् .

इहामुत्र च विश्वेषां विश्वैश्वर्यप्रदायकम् .. २०२..
स्वच्छन्दचारिणाप्येष येन सन्धार्यते स्तवः .

स रक्ष्यते शिवोद्भूतैर्गणैरध्यष्टकोटिभिः .. २०३..
लिखितं पुस्तकस्तोत्रं मन्त्रभूतं प्रपूजयेत् .

तत्र सर्वोत्तमा लक्ष्मीः सन्निधत्ते निरन्तरम् .. २०४..
दानैरशेषैरखिलैर्व्रतैश्च

तीर्थैरशेषैरखिलैर्मखैश्च .
न तत्फलं विन्दति

यद्गणेशसहस्रनामस्मरणेन सद्यः .. २०५..
एतन्नाम्नां सहस्रं पठति दिनमणौ प्रत्यहं

प्रोज्जिहाने सायं मध्यन्दिने वा
त्रिषवणमथवा सन्ततं वा जनो यः .

स स्यादैश्वर्यधुर्यः प्रभवति वचसां
कीर्तिमुच्चैस्तनोति दारिद्र्यं हन्ति विश्वं

वशयति सुचिरं वर्धते पुत्रपौत्रैः .. २०६..
अकिञ्चनोऽप्येकचित्तो नियतो नियतासनः .

प्रजपंश्चतुरो मासान् गणेशार्चनतत्परः .. २०७..
दरिद्रतां समुन्मूल्य सप्तजन्मानुगामपि .

लभते महतीं लक्ष्मीमित्याज्ञा पारमेश्वरी .. २०८..
आयुष्यं वीतरोगं कुलमतिविमलं

सम्पदश्चार्तिनाशः कीर्तिर्नित्यावदाता भवति
खलु नवा कान्तिरव्याजभव्या .

पुत्राः सन्तः कलत्रं गुणवदभिमतं
यद्यदन्यच्च तत्तन् नित्यं यः स्तोत्रमेतत्

पठति गणपतेस्तस्य हस्ते समस्तम् .. २०९..
गणञ्जयो गणपतिर्हेरम्बो धरणीधरः .

महागणपतिर्बुद्धिप्रियः क्षिप्रप्रसादनः .. २१०..
अमोघसिद्धिरमृतमन्त्रश्चिन्तामणिर्निधिः .

सुमङ्गलो बीजमाशापूरको वरदः कलः .. २११..
काश्यपो नन्दनो वाचासिद्धो ढुण्ढिर्विनायकः .

मोदकैरेभिरत्रैकविंशत्या नामभिः पुमान् .. २१२..
उपायनं ददेद्भक्त्या मत्प्रसादं चिकीर्षति .

वत्सरं विघ्नराजोऽस्य तथ्यमिष्टार्थसिद्धये .. २१३..
यः स्तौति मद्गतमना ममाराधनतत्परः .

स्तुतो नाम्ना सहस्रेण तेनाहं नात्र संशयः .. २१४..
नमो नमः सुरवरपूजिताङ्घ्रये नमो नमो

निरुपममङ्गलात्मने .
नमो नमो विपुलदयैकसिद्धये नमो नमः

करिकलभाननाय ते .. २१५..
किङ्किणीगणरचितचरणः

प्रकटितगुरुमितचारुकरणः .
मदजललहरीकलितकपोलः

शमयतु दुरितं गणपतिनाम्ना .. २१६..
.. इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे
ईश्वरगणेशसंवादे गणेशसहस्रनामस्तोत्रं

Monday, September 10, 2012

मैया ओढ़े है चुनरी



आई सिंह पे सवार, मैया ओढ़े है चुनरी |
मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
आदि शक्ति है मातु भवानी,जय दुर्गे माँ काली |
बड़े बड़े राक्षस संहारे, रणचंडी मतवाली ||
करती भक्तों का उद्धार ,मैया ओढ़े है चुनरी ||  
मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
महिषासुर था  महाबली, देवों को खूब सताया |
छीन लिया इन्द्रासन और देवों को मार भगाया ||
करी तब देवों ने पुकार,मैया ओढ़े है चुनरी |
 मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
दुर्गा का अवतार लिया झट महिषासुर झट महिषासुर संहारी |
दूर किया देवों का संकट ,लीला तेरी न्यारी ||
किया देवों पे उपकार ,मैया ओढ़े है चुनरी |
मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
जो भी जिस आशा से माता द्वार तिहारे आता |
हर इच्छा होती है पूरी, मुँह माँगा फल पाता ||
तेरा गुण गावे संसार मैया ओढ़े है चुनरी |
 मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
कष्ट अनेको मुझको घेरे ,कौन हरे दुःख मेरे |
नाम तेरा रटता हूँ मैया मैं हर साँझ सबेरे |
सेवक करता है पुकार मैया ओढ़े है चुनरी |
  मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||
आई सिंह पे सवार, मैया ओढ़े है चुनरी |
मैया ओढ़े है चुनरी, मैया ओढ़े है चुनरी ||