Tuesday, October 30, 2012

श्री खंड महादेव यात्रा




श्री खंड महादेव यात्रा

देवभूमि हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है। यहां पर कई धार्मिक धाम हैं। कई प्रकार की वार्षिक यात्राएं होती हैं। कई यात्राएं तो काफी प्रचलित हो चुकी हैं परन्तु कई यात्राएं असुविधा और प्रचार नहीं होने के कारण बहुत ही कम धर्म प्रेमी लोग उनके बारे में जान पाते हैं। इनमें से एक यात्रा प्रभु शंकर जी की श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा है जो श्रावण मास में शुरू होती है और लगभग 10 दिन की यात्रा में हजारों लोग 70 फुट ऊंची शंकर स्वरूप पिंडी के दर्शन करके पुण्य के भागी बनते हैं। हर साल  जुलाई से यात्रा का शुभारंभ होता  है |यह अत्यंत कठिन और साहसिक यात्रा है। इसे शारीरिक तौर पर स्वस्थ लोग ही कर पाते हैं।
                             श्री खंड महादेव की यात्रा हिमाचल के जिला कुल्लू के निरमंड इलाके से शुरू होती है परन्तु इसका प्रचलित मार्ग शिमला से रामपुर बुशहर होते हुए कुल्लू जिला की तहसील निरमंड में पहुंच जाता है। वहां से बागीपुल तक सड़क मार्ग से जाते हैं। बागीपुल से 7 किलोमीटर कच्ची सड़क से जांव तक पहुंचा जा सकता है। यहीं से२५ किलोमीटर की  पैदल यात्रा का शुभारंभ होता है। शिव भक्त शिव के जयकारे लगाते हुए प्रकृति की गोद में आगे बढ़ते चले जाते हैं। 3 किलोमीटर की दूरी तय करने पर पहले पड़ाव सिंह गाड नामक स्थल पर पहुंचा जाता है। जहां श्री खंड सेवा दल के सदस्य शिव भक्तों के इंतजार में सेवा के लिए तत्पर दिखाई देते हैं। यात्री विश्राम, रहने की व्यवस्था, भोजन और चाय पानी की प्रत्येक वस्तु का ध्यान रखा जाता है। रात के समय सेवा दल के सदस्यों द्वारा आनंदमय संकीर्तन का आयोजन भी किया जाता है।
              अगले दिन आगे की यात्रा आरंभ की जाती है। दूसरा पड़ाव थाचडू नामक स्थल आता है। अधिकतर यात्री यहीं विश्राम करते हैं। यहां भी सेवा दल के सदस्यों द्वारा शिव भक्तों के लिए प्रत्येक प्रबंध होता है। अगली सुबह नाश्ता  आदि करने के बाद भक्तजन तीसरे पड़ाव भीमद्वार के लिए जयकारों के साथ प्रस्थान करते हैं। भीमद्वार में रात्रि विश्राम की पूर्ण व्यवस्था होती है। भीमद्वार में ही बकासुर नामक स्थल है। कहते हैं कि पांडव जब अज्ञात वास के दौरान यहां से गुजर रहे थे तो उनका सामना बकासुर नामक राक्षस से हुआ। भीम ने उस राक्षस को जमीन पर पटक कर दे मारा था। जिस स्थल पर राक्षस को पटक कर मारा गया था वह स्थल आज भी लाल रंग का है और अंदर से निरंतर जलधारा प्रवाहित होती रहती है।रास्ते मे नैन सर स्थान आता है | कहते है जब भस्मासुर भगवान शिव पर हाथ रखने के आया तब पार्वती जी दर गयी थी | उनके आंसू निकाल आये और इन्ही आंसुओं से यह नैन सर झील बन गयी |
             भीमद्वार से यात्रा अगले दिन जल्द से जल्द शुरू करनी पड़ती है क्योंकि 7 किलोमीटर लम्बी यात्रा में ग्लेशियर और कठिन चढ़ाई को पार करने पर भोले शंकर के दर्शनीय स्थल पर पहुंचा जाता है। वहां पर शंकर जी के पूरे परिवार अर्थात प्रभु शंकर, मां पार्वती, गणेश जी और भगवान कार्तिकेय जी के पिंडी स्वरूप के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि आसपास कितनी भी बर्फबारी हो लेकिन इस पिंडी पर जरा भी बर्फ नहीं टिक पाती। इस स्थल की ऊंचाई समुद्र स्थल से लगभग 19985 फुट की है।
              शिव भक्तों से निवेदन है कि इस यात्रा को यात्रा समझा जाए न कि मौज मस्ती और पिकनिक। अत्यंत सर्दी होने के कारण गर्म कपड़ों का विशेष ध्यान रखा जाए तथा पर्यावरण को साफ़  रखते हुए प्लास्टिक लिफाफों का बिल्कुल प्रयोग न करें। श्री कैलाश खंड महादेव यात्रा सच में एक सम्पूर्ण यात्रा है। इस यात्रा को करके भगवान शिव का आशीर्वाद लें और पुण्य के भागी बनें।

Monday, October 15, 2012

हनुमान जी की मूर्छा

हनुमान जी  की मूर्छा :
हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है.प्रभु आपने मुझे संजीवनी
बूटी लेने नहीं भेजा था.आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था.
 "सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू"


अर्थात - हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा
है,प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला
हूँ.भगवान बोले कैसे ?

हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है.आपको
पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने
बाण मारा और मै गिरा,तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैद्य  बुलाया. कितना भरोसा
है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया.

"जौ मोरे मन बच अरू काया,प्रीति राम पद कमल अमाया"

तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,जौ मो पर रघुपति अनुकूला

सुनत बचन उठि बैठ कपीसा ,कहि जय जयति कोसलाधीसा"


यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि
रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए.यह वचन
सुनते हुई मै श्री राम, जय राम, जय-जय राम कहता हुआ उठ बैठा.
प्रभुजी , मै नाम तो आपका लेता हूँ पर
भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने क्यों जाता,

बस ऐसा ही हम करते है हम नाम तो भगवान का लेते है पर भरोसा नही करते,बुढ़ापे में
बेटा ही सेवा करेगा,बेटे ने नहीं की तो क्या होगा? उस समय हम भूल जाते है जिस
भगवान का नाम हम जप रहे है वे है न,पर हम भरोसा नहीं करते.बेटा सेवा करे न करे पर
भरोसा हम उसी पर करते है.


2. - दूसरी बात प्रभु ! बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप
उठाये हुए थे और मै अभिमान कर रहा था कि मै उठाये हुए हूँ.मेरा दूसरा अभिमान टूट
गया, इसी तरह हम भी यही सोच लेते है कि गृहस्थी के बोझ को मै उठाये हुए हूँ,पर असल मे सारा बोझ तो भगवान ही उठाते हैं .

3. - फिर हनुमान जी कहते है -और एक बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है
जैसे बाण भरत जी के पास है.आपने सुबाहु मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया,आपका
बाण तो आपसे दूर गिरा देता है,पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है.मुझे
बाण पर बैठाकर आपके पास भेज दिया.


भगवान बोले - हनुमान जब मैंने ताडका को मारा और भी राक्षसों को मारा, तो वे सब मरकर
मुक्त होकर मेरे ही पास तो आये,इस पर हनुमान जी बोले प्रभु आपका बाण तो मारने के
बाद सबको आपके पास लाता है पर भरत जी का बाण तो जिन्दा ही भगवान के पास ले आता
है.भरत जी संत है और संत का बाण क्या है? संत का बाण है उसकी वाणी लेकिन हम करते
क्या है,हम संत वाणी को समझते तो है पर सटकते नहीं है,और औषधि सटकने पर ही फायदा
करती है.



4. - हनुमान जी को भरत जी ने पर्वत सहित अपने बाण पर बैठाया तो उस समय हनुमान जी को
थोडा अभिमान हो गया कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा ? परन्तु जब उन्होंने रामचंद्र
जी के प्रभाव पर विचार किया तो वे भरत जी के चरणों की वंदना करके चले.


इसी तरह हम भी कभी-कभी संतो पर संदेह करते है,कि ये हमें कैसे भगवान तक पहुँचा
देगे, संत ही तो है जो हमें सोते से जागते है जैसे हनुमान जी को जगाया, क्योकि उनका
मन,वचन,कर्म सब भगवान में लगा है.अरे उन पर भरोसा तो करो तुम्हे तुम्हारे बोझ सहित
भगवान के चरणों तक पहुँचा देगे.




Friday, October 12, 2012

नवदुर्गा यानी दिव्य नौ औषधियाँ

नवदुर्गा यानी दिव्य नौ औषधियाँ

माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाती है।
नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में भी कार्य करते हैं। यह नवरात्रि इसीलिए सेहत नवरात्रि के रूप में भी जानी जाती है। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षष्ठमं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍र‍ीति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।

ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।
ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।




भय दूर करती है शैलपुत्री :
प्रथम शैलपुत्री (हरड़)- प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इस भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है।
हरीतिका (हरी) जो भय को हरने वाली है। 
पथया - जो हित करने वाली है।
कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
अमृता - अमृत के समान
हेमवती - हिमालय पर होने वाली।
चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
श्रेयसी (यशदाता) शिवा - कल्याण करने वाली।


स्मरण शक्ति को बढ़ाती है ब्रह्मचारिणी : द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) - दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति ने ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।


हृदय रोग ठीक करती है देवी चंद्रिका : तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) - दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। (इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, खत को शुद्ध करने वाली एवं हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी ने चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।



रक्त विकार को ठीक करती हैं कुष्माण्डा : चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) - दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। ये औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हडा भी कहते हैं। यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। यह दो प्रकार की होती है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।



कफ रोगों का नाश करती हैं स्कंदमाता : पंचम स्कंदमाता (अलसी) - दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है। इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए



कंठ रोग का शमन करती हैं कात्यायनी : षष्ठम कात्यायनी (मोइया) - दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी ने कात्यायनी की माचिका प्रस्थिकाम्बष्ठा तथा अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका, खताविसार पित्तास्त्र कफ कण्डामयापहस्य।



मस्तिष्क विकारों को हरती हैं कालरात्रि : सप्तम कालरात्रि (नागदौन) - दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।




रक्त शोधक होती हैं महागौरी : अष्टम महागौरी (तुलसी) - दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्‍नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।





बलबुद्धि बढ़ाती हैं सिद्धिदात्री : नवम सिद्धिदात्री (शतावरी) - दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।

जय जय महावीर हनुमान

जय जय महावीर हनुमान |
असुर निकंदन, भव भय भंजन,रघुनन्दन प्रिय प्राण ||

अंजनि पुत्र केसरी नंदन, पवन पुत्र गुण वान,
अष्टम रूद्र महा बलशाली बजरंगी बलवान ||

बालक पन में सूरज निगला कौतुक करा महान,
वज्र इन्द्र का निष्फल कीन्हा, नाम पड़ा हनुमान ||

माँ सीता का हरण हुआ फिर मिले राम भगवान्,
निर्वासित सुग्रीव मिला कर हुई मित्र पहचान ||

सौ योजन का सागर लांघा ऐसी भरी कुदान,
लंका फूँक दशानन का सब तोड़ दिया अभिमान ||

राम मुद्रिका दे सीता को फूँक दिए नव प्राण,
दिया मुग्ध हो कर माता ने अष्ट सिद्धि वरदान ||

एक निष्ठ सेवक रघुवर के राम कथा में बसते प्राण,
जगत रांम मय कण कण में प्रभु, जयति जयति जय जय हनुमान ||

|| पितृस्त्रोत~Pitru Stotra ||

|| पितृस्त्रोत~Pitru Stotra ||
 
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।


इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।


मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।


नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।


देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।


प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।


नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।


सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।


ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।


तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।

Wednesday, October 10, 2012

केवट और भगवान



केवट और भगवान
    जब केवट प्रभु के चरण धो चूका तो भगवान कहते है - भाई ! अब तो गंगा पार करा दे, इस
पर केवट कहता है प्रभु नियम तो आपको पता ही है कि जो पहले आता है उसे पहले पार
उतारा जाता है इसलिए प्रभु अभी थोडा और रुको.
 भगवान कहते है -भाई ! यहाँ तो मेरे सिवा और कोई दिखायी नहीं देता इस घाट पर तो केवल
मै ही हूँ फिर पहले किसे पार लगना है.?
 केवट बोला - प्रभु! अभी मेरे पूर्वज बैठे हुए है जिनको पार लगाना है.झट गंगा जी में
उतरकर प्रभु के चरणामृत से अपने पूर्वजो का तर्पण करता है,धन्य है केवट जिसने अपना,
अपने परिवार और सारे कुल का उद्धार करवाया.
फिर भगवान को नाव में बैठाता है,दूसरे किनारे तक ले जाने से पहले फिर घुमाकर वापस
ले जाता है,जब बार-बार केवट ऐसा करता है तो प्रभु पूछतें हैं  -भाई बार बार चक्कर क्यों लगवाता है
मुझे चक्कर आने लगे हैं |
केवट कहता है - प्रभु ! यही तो मै भी कह रहा हूँ | ८४ लाख योनियों के चक्कर लगाते
लगाते मेरी बुद्धि भी चक्कर खाने लगी है, अब और चक्कर मत लगवाओ.
 गंगा पार पहुँचकर केवट प्रभु को दंडवत प्रणाम करता है | उसे दंडवत करते देख भगवान को
संकोच हुआ कि मैंने इसे कुछ दिया नहीं.
   "केवट उतरि दंडवत कीन्हा,प्रभुहि सकुच एहि नहि कछु दीन्हा"

कितना विचित्र द्रश्य है जहाँ देने वाले को संकोच हो रहा है और लेने वाला केवट उसकी
भी विचित्र दशा है कहता है-
 "नाथ आजु मै काह न पावा मिटे दोष दुःख दारिद्र दावा

  बहुत काल मै कीन्ह मजूरी
    आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी"

लेने वाला कहे  बिना लिए ही कह रहा है कि हे नाथ !आज मैंने क्या नहीं पाया मेरे दोष
दुःख और दरिद्रता सब मिट गई | आज विधाता ने बहुत अच्छी मजदूरी दे दी |
आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिये | भगवान उसे को सोने की अंगूठी देने लगते
है |
   केवट कहता है प्रभु उतराई कैसे ले सकता हूँ. हम दोनों एक ही बिरादरी के है और
बिरादरी वाले से मज़दूरी  नहीं लिया करते.

दरजी, दरजी से न ले सिलाई
 धोबी, धोबी से न ले धुलाई
 नाई, नाई से न ले बाल कटाई
 फिर केवट, केवट से कैसे ले उतराई
 आप भी केवट, हम भी केवट, अंतर इतना है हम नदी मे  इस पार से उस पार लगाते है, आप संसार
सागर से पार लगाते हो, हमने आपको पार लगा दिया, अब जब मेरी बारी आये तो आप मुझे पार
लगा देना |
   प्रभु आज तो सबसे बड़ा धनी मै ही हूँ क्योकि वास्तव में धनी कौन है? जिसके
पास आपका नाम है, आपकी कृपा है, आज मेरे पास दोनों ही है. मै ही सबसे बड़ा धनी हूँ.



Tuesday, October 9, 2012

धार्मिक क्रियाकलापों का वैज्ञानिक महत्त्व

धार्मिक क्रियाकलापों का वैज्ञानिक महत्त्व
 हमारा पूरा ब्रह्मांड ऊर्जा के प्रवाह पर ही आधारित है। ऊर्जा अलग-अलग रंगों की कंपन शक्ति से मिलकर कहीं अधिक, कहीं कम, कहीं सकारात्मक तथा कहीं नकारात्मक रूप में प्रवाह होती रहती है। यदि ऊर्जा का प्रवाह हमारे शरीर, घर, मंदिर या किसी भी स्थान पर असंतुलित होता है, तो वह किसी भी सजीव वस्तु के लिए शारीरिक या मानसिक असंतुलन पैदा करने का कारण होता है। प्राचीन समय में हमारे ऋषि-मुनियों को हर प्रकार की ऊर्जा के बारे में ज्ञात था, इसीलिए उन्होंने हमारी पूजा के क्रियाकलाप या धार्मिक क्रियाकलाप को इस तरह से बनाया कि वह हमारी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा को सकारात्मक तरीके से संतुलित बनाये रखता है। इसी प्रकार कुछ ऐसे पशुओं व पेड़ों को पहचान लिया था  जिनका ऊर्जा क्षेत्र मानव के ऊर्जा क्षेत्र से दोगुना या चैगुना बड़ा है | ऐसे पशुओं व वृक्षों को  हमारी धार्मिक क्रिया में शामिल किया गया था।
     नकारात्मक ऊर्जाएं हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं। यदि हम नकारात्मक विचार रखते हैं, तो मानसिक अस्थिरता का कारण होते हैं और हमारे शरीर की कंपन शक्ति में बदलाव आता  है। न केवल हमारे शरीर में, बल्कि यह हमारे घर के वातावरण को भी प्रभावित करती है क्योंकि यह नकारात्मक विचार एक कंपन शक्ति के रूप में प्रवाह करते हैं। हमारी मानसिक स्थिति वास्तु  दोष की तीव्रता को दोगुना या
चौगुना कर देती है। हमारे नकारात्मक विचार कंपन शक्ति के रूप में उसमें जुड़ते रहते हैं | इसी तरह से रत्नों  तंत्र-मंत्र तथा यंत्रो मे भी सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा होती है |
      घर में प्रतिदिन हम दीपक जलाते हैं, दीपक जलाते समय हम गाय का घी, सरसों का तेल या तिल का तेल आदि प्रयोग करते हैं। इसका वैज्ञानिक कारण यह है, कि गाय का घी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है तथा सरसों का तेल व तिल का तेल नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करता है। अतः हमें दीपक जलाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि हम किस उद्देश्य से दीपक जला रहे हैं। हम घर में कपूर भी जलाते हैं , कपूर को जलाने से पहले उसकी कंपन शक्ति कम होती है, परंतु जलाने के बाद उसकी  कंपन शक्ति बढ़ जाती है। तिरुपति भगवान के प्रसाद के लड्डू में भी खाने वाले कपूर का प्रयोग किया जाता है। कपूर वायरस को रोकता है। घर या मंदिर में पूजा करते समय जो हम घंटी बजाते हैं, उस ध्वनि से एक कंपन शक्ति उत्पन्न होती है जो नकारात्मक ऊर्जा को काटती है। इसीलिए घर के हर कोने में घंटी बजानी चाहिए। पूजा में नारियल का भी अपना महत्व है,नारियल को पंचभूतों का प्रतीक माना जाता है। जब हम चोटी वाला नारियल हाथ से पकड़कर तोड़ते हैं, तो हमारी हथेली के सारे एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दवाब पड़ता है।
    इसी प्रकार जब हम किसी को तिलक लगाते हैं  तो उसका भी एक अपना महत्व है। हमारी पांचों अंगुलियां पंचभूतों का प्रतीक हैं। अंगूठा अग्नि का, तर्जनी अंगुली वायु का, मध्यमा अंगुली गगन का, अनामिका पृथ्वी का तथा कनिष्ठिका जल का प्रतीक होती हैं। हम तिलक लगाने में अधिकतर अनामिका अंगुली का प्रयोग करते हैं इसका अर्थ है, कि जिसको तिलक लगा रहे हैं वह भूमि तत्व से जुड़ा रहे। प्राचीन समय में योद्धा जब युद्ध पर जाते थे, तो उन्हें अंगूठे से त्रिकोण के रूप में तिलक लगाया जाता था, अग्नि वाली अंगुली से अग्नि के प्रतीक के रूप में तिलक लगाने से उनके आग्नेय चक्र में अग्नि रूप शक्ति समाहित हो जाती थी, जिससे वह बड़ी वीरता के साथ युद्ध स्थल में युद्ध करते थे। तिलक हमेशा गोलाकार या त्रिकोण (पिरामिड आकार) के रूप में ही लगाया जाता है। पहले समय में तिलक को लगाने के लिए कुमकुम, सिंदूर और केसर को मिलाकर प्रयोग किया जाता था, जिससे बैंगनी रंग की ऊर्जा निकलती थी जो हमारी आग्नेय चक्र की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाती थी। उस समय स्त्रियां जब तिलक लगाती थीं तथा मांग भरती थीं, तो वह हमारे ऊपर के चक्रों को बैंगनी रंग की ऊर्जा से हमारे आध्यात्मिक चक्रों को ऊर्जा प्रदान करती थी। आजकल हम बिंदी के नाम पर स्टीकर लगाते हैं उसके पीछे जो चिपकाने वाला पदार्थ होता है वह सूअर की चर्बी से बना होता है, जिनको लगाने से हमारी बुद्धि भ्रष्ट होती जा रही है।
    स्त्रियां जो कांच की चूड़ियां पहनती हैं वह सिलीकान  मिट्टी से बनी होती  हैं तथा ये भूमि तत्व का प्रतीक होती हैं। स्त्रियों के ऊपर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने पर चूड़ियां उस ऊर्जा को अपने ऊपर लेकर टूट जाती है। स्त्रियों की कलाई में गर्भाशय के एक्यूप्रेशर बिदुं भी होते हैं, चूड़ियों के इधर-उधर खिसकने से उन पर दवाब पड़ता रहता है जिससे वे सक्रिय रहते हैं और स्त्रियों को गर्भाशय संबंधी परेशानी का सामना बहुत कम करना पड़ता है | परंतु आजकल फैशन के इस दौर में केवल शादी या पार्टी के समय जब साड़ी पहनते हैं तभी कुछ स्त्रियाँ   कभी-कभी एक-दो घंटे के लिए कांच की चूड़ियां पहन लेती  हैं, अन्यथा इनका प्रयोग विशेषकर शहरों में स्त्रियों ने बिल्कुल ही बंद कर दिया है।यह सब घोर मूर्खता के कारण हो रहा है |
  नवजात शिशु को काली पोत की माला पहनाने से उनपर राहु-केतू व शनि की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता है। स्त्रियों को कमर से निचले भाग में चांदी का आभूषण पहनने के लिए कहा गया है । इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि चांदी नकारात्मक ऊर्जा को रोकती है, स्त्री का गर्भाशय एक उल्टा पिरामिड शेप में है जिसका नीचे का नुकीला हिस्सा ऊर्जा ऊपर की तरफ खींचता है तथा स्त्री जब गर्भधारण करती है, तब गर्भाशय मूलाधार चक्र से ऊपर की तरफ ऊर्जा खींचता है जो बच्चे के विकास में सहायक होता है। पैरों से होती हुई नकारात्मक ऊर्जा गर्भाशय तक न पहुंचे, उसे रोकने के लिए पैरों में चांदी की पायल तथा कमर बंध का प्रयोग किया जाता था। दक्षिण भारत की स्त्रियां पैरों में हल्दी लगाती हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को रोकने में सहायक होती है। प्राचीन समय में पुरुष भी पैरों में चांदी के मोटे-मोटे कड़े पहनते थे जिसका कारण था कि वे नगें पैर लंबा सफर भी पैदल ही करते थे। पैरों के द्वारा नकारात्मक ऊर्जा उनके शरीर में न आ सके, इसलिए पैरों में चांदी का प्रयोग किया जाता था। हमारे भारत में मेंहदी लगाने का एक विशेष महत्व है। जब मौसम बदलता है तो शरीर की सारी गर्मी निकालने के लिए मेंहदी का प्रयोग हाथ और पैरों में लगाकर करते हैं क्योंकि हाथ-पैरों में हमारे नाड़ियों के बिंदु होते हैं जिसके द्वारा यह ऊर्जा बाहर निकलती है।
   भारत में शादी भी एक उच्चतर वैज्ञानिक प्रक्रिया है। शादी से पहले लड़के और लड़की को हल्दी और बेसन का उबटन लगाया जाता है जो शरीर के अंदर वाली नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालती है तथा बाहर से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को रोकती है। आग के चारों तरफ भांवर या सात फेरे लेने का भी अपना महत्व है क्योंकि पंचभूतों में अग्नि ही सबसे पवित्र ऊर्जा मानी जाती है। किसी भी वस्तु को शुद्ध करने के लिए उसे आग में तपाया जाता है तथा इच्छानुसार आकार दिया जा सकता है| इसी तरह  वर-वधु एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जब सात फेरे अग्नि के चारों तरफ लेते हैं, तो उन दोनों के बीच की जो नकारात्मक ऊर्जा होती है वह उस अग्नि में भस्म हो जाती है और उनका एक नया रिश्ता आकार लेता है। सात फेरे सात दिन का भी प्रतीक होते हैं। वधू को लाल कपड़े पहनने को कहा जाता है क्योंकि लाल और पीला रंग नकारात्मक शक्ति को रोकता है। शादी के बाद लड़की को काली पोत का मंगल सूत्र पहनाया जाता है जिससे उसको कोई नकारात्मक शक्ति प्रभावित न करे। पूजा स्थल जैसे, मंदिर हमारे यहां सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का स्थान माना जाता है। यहां पर लोग अपने दुःख-दर्द लेकर आते हैं तथा यहां पर आकर उनको मानसिक शांति का अनुभव होता है। इसलिए इनकी स्थापना करते समय हमें बहुत ही ध्यान रखना चाहिए। मंदिर को बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा का क्षेत्र बनाना चाहिए। जब मंदिर के लिए भूमि पूजन होते हैं व  वहां पर मूर्ति की स्थापना होनी होती है, वहां पर नव धान्य नवरत्न गाड़ देते हैं तथा वहां पर गायमूत्र छिड़कते थे | मंदिर में हमेशा मंत्रोंच्चारण होते रहते हैं तथा हवन व यज्ञ होते रहते हैं जिससे मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है| भगवान को फूलों से अलंकृत किया जाता है क्योंकि प्रत्येक फूल का ऊर्जा क्षेत्र मानव के ऊर्जा से अधिक होता है इसलिए दक्षिण भारत की स्त्रियां अपने बालों में फूलों व गजरों का प्रयोग करती हैं। पूजा के समय हाथ में कलावा बांधा जाता है। यह बाहरी नकारात्मक ऊर्जा को रोकता है तथा शरीर के अंदर की ऊर्जा को खींचता है। जब इसका रंग फीका पड़ने लगे या अधिक से अधिक नौ दिनों में हमें इसे अपने हाथ से खोल देना चाहिए। वेद मंत्रों का उच्चारण कपूर आदि जलाकर मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा इतनी बढ़ायी जाती है कि वहां पर जाकर हमें एक आत्मिक आनंद का अहसास होता है। भारत में कई तीर्थ स्थल ऐसे हैं, जिनका अपना एक विशेष महत्व है तथा वह ऐसी ऊर्जा ग्रहित क्षेत्रों में स्थापित किये गये हैं कि वहां जाने पर वहां की सकारात्मक ऊर्जा हमारी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है|
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प्रार्थना



प्रार्थना
बजरंग तुम्हारे दर पर हम सब सम्पति हार के आये हैं |
संतो ने कहा तेरे द्वारे पर सब राम रतन धन पाए हैं ||
हम भी आये ये आस बाँध, खाली झोली भर जायेगी |
अब तक तो सुख के लालच में बस पाप ही पाप कमाए हैं ||
है रोम रोम में राम तेरे तू राम भक्ति का वृक्ष घना |
जब जब धर्मों का पतन हुआ ,रक्षक उद्धारक तू ही बना ||

कभी वाल्मीकि कभी तुलसी से श्री राम चरित रचवायें  हैं |
भक्तों  को उनके भगवन के दर्शन अद्भुत करवाएं हैं ||
बजरंग तुम्हारे दर पर हम सब सम्पति हार के आये हैं |
संतो ने कहा तेरे द्वारे पर सब राम रतन धन पाए हैं ||

कुछ कहते पाप ही फलता है, पर तू राम भक्त मुझे  फलता है |
बजरंग तुम्हारे  भरोसे ही  मेरा  बिगड़ा काम संवरता है ||
है अहोभाग्य हम लोगों का ,हनुमान धरा पर  आये हैं |
जिनके प्रयास से पुण्य जमीं  पर अभी न मिटने पाए हैं ||
बजरंग तुम्हारे दर पर हम सब सम्पति हार के आये हैं |
संतो ने कहा तेरे द्वारे पर सब राम रतन धन पाए हैं ||

था गर्व भरा मस्तक मेरा, जिसको अपनों ने काट दिया |
अपने तो अपने कभी न थे, यह सबक भाग्य ने मुझे दिया ||
हनुमान तुम्हारी आशा है, जग ने मुझको ठुकराया है |
सब अज्ञानी इंसान, व्यर्थ दुनिया मे रोता आया है ||      
बजरंग तुम्हारे दर पर हम सब सम्पति हार के आये हैं |
संतो ने कहा तेरे द्वारे पर सब राम रतन धन पाए हैं ||