Monday, November 26, 2012

आज मंगलवार है महावीर का वार है

आज मंगलवार है महावीर का वार है, ये सच्चा दरबार है .
सच्चे  मन सो जो कोइ ध्यावे उसका बेड़ा पार है .

चेत सुदी पूनम मंगल को  जन्म वीर ने पाया है, जन्म वीर ने पाया है,
लाल लंगोट गदा हाथ है, सिर पर मुकुट सजाया है, सिर पर मुकुट सजाया है
शंकर का अवतार है, महावीर का वार है,

सच्चे  मन सो जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है.
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है…

ब्रह्माजी के ब्रह्म ज्ञान का फल भी तुम ने पाया है, फल भी तुमने पाया है
राम काज शिव शंकर ने वानर रूपी अवतार  लिया है, वानर रूपी अवतार लिया है
लीला अपारम्पार है, महावीर का वार है,

सच्चे  मन सो जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है

बालापन में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है, हरदम ध्यान लगाया है
शरण दिया ऋषियों को  तुम को, ब्रह्म का ध्यान लगाया है, ब्रह्म का ध्यान लगाया है
राम नाम तो अपार  है, महावीर का वार है

सच्चे  मन से जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह  सच्चा दरबार है

राम जन्म जब हुआ अयोध्या, कैसा नाच नचाया है, कैसा नाच नचाया है
कहा राम ने लक्ष्मण से, यह वानर मन को भाया है वानर मन को भाया है
राम चरण से प्यार है महावीर का वार है

सच्चे  मन जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है

पंचवटी से माता को जब रावण लेकर आया है, रावण लेकर आया है
लंका में जाकर तुम ने माता का पता लगाया है, माता का पता लगाया है
अक्षय का संहार  है, महावीर का वार है,

सच्चे  मन से जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है

मेघनाथ ने ब्रह्म पाश में तुमको आन फँसाया है, तुमको आन फँसाया है
ब्रह्मपाश फँस  ब्रह्माजी तुमने  मान बढ़ाया है,ब्रह्मा का मान बढ़ाया है,
बजरंगी  की मार है, महावीर का वार है,

सच्चे  मन सो जो कोई ध्यावे उसका बेड़ा पार है,
आज मंगलवार है, महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है

लंका जलाई तुमने तब  रावण भी घबराया है, तब  रावण भी घबराया है
राम लखन को वापस आ माँ का संदेश सुनाया है, माँ का संदेश सुनाया है
सीता को शोक  अपार है, महावीर का वार है,

सच्चे  मन सो जो कोई ध्यावे  उसका बेड़ा पार है
आज मंगलवार है, महावीर का वार है,यह सच्चा दरबार है

 

Friday, November 23, 2012

शनैश्चर स्तवराज

 शनैश्चर स्तवराज

शनि के कोप से बचने के लिये ही शास्त्रों में दोपहर में शनि पूजा कर शनैश्चर स्तवराज का पाठ बहुत असरदार माना गया है। विशेष तौर पर शनि दशा में यह शनि को अनुकूल बनाता है। अगर आप शनि दशा से गुजर रहे हैं या शनि दशा लगने वाली हो तो नीचे लिखी सरल विधि से शनि पूजा और मंत्र स्तुति करें - शनिवार के दिन दोपहर में शनि मंदिर में शनि प्रतिमा को गंध, तिल का तेल, काले तिल, उड़द, काला कपड़ा व तेल से बने व्यजंन चढ़ाकर नीचे लिखे शनैश्चर स्तवराज का पाठ करें -

ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा यान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।

Thursday, November 15, 2012

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक हिन्दी अर्थ सहित

बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहुँ सो जात न टारो।
देवन आनि क
री बिनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग मे कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥१॥

अर्थ - हे हनुमान जी ! आप बालक थे तब आपने सूर्य को अपने मूख मे रख लिया जिससे तीनो लोकों मे अँधेरा हो गया। इससे संसार भर मे विपति छा गई, और उस संकट को कोई भी दूर नही कर सका। देवताओं ने आकर आपकी विनती की और आपने सूर्य को मुक्त कर दिया। इस प्रकार संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रुप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥२॥

अर्थ - बालि के डर से सुग्रीव पर्वत पर रहते थे। उन्होनें श्री रामचन्द्रजी को आते देखा, उन्होनें आपको पता लगा के लिए भेजा। आपने अपना ब्राह्मण का रुप धर कर के श्री रामचन्द्र जी से भेंट की और उनको अपने साथ लिवा लाये, जिससे आपने सुग्रीव के शोक का निवारण किया। हे, हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाए सिया सुधि प्रान उबारो।
को नही जानत है, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥३॥

अर्थ- सुग्रीव ने अंगद के साथ सीता जी की खोज के लिए अपनी सेना को भेजते समय कह दिया था कि यदि सीता जी का पता लगाकर नही लाए तो हम तुम सब को मार डालेंगे। सब ढ़ूँढ़ ढ़ूँढ़कर हार गये। तब आप समुद्र के तट से कूद कर सीता जी का पता लगाकर लाये, जिससे सबके प्राण बचे। हे हनुमान जी संसार मे ऐसा कौन है, जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सो कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सिय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
को नहीं जानत हैं, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥४॥

अर्थ - जब रावण ने श्री सीता जी को भय दिखाया और कष्ट दिया और सब राक्षसियों से कहा कि सीता जी को मनावें, हे महावीर हनुमानजी, उस समय आपने पहुँच कर महान राक्षसों को मारा। सीता जी ने अशोक वृक्ष से अग्नि माँगी परन्तु आपने उसी वृक्ष पर से श्री रामचन्द्रजी कि अँगूठी डाल दी जिससे सीता जी कि चिन्ता दूर हुई। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

बान लग्यो उर लक्षिमण के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गृह द्रोन सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत हैं जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥५॥

अर्थ - रावन के पुत्र मेघनाद ने बाण मारा जो लक्ष्मण जी की छाती पर लगा और उससे उनके प्राण संकट मे पड़ गए। तब आपही सुषेन वैद्य को घर सहित उठा लाए और द्रोणाचल पर्वत सहित संजीवनी बूटी ले आये जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच गये। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग मे कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥६॥

अर्थ - रावण ने घोर युद्ध करते हुए सबको नागपाश मे बाँध लिया तब श्री रघुनाथ सहित सारे दल मे यह मोह छा गया की यह तो बहुत भारी संकट है। उस समय, हे हनुमान जी आपने गरुड़ जी को लाकर बँधन को कटवा दिया जिससे संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥७॥

अर्थ - अब अहिरावन श्री रघुनाथ जी को लक्षमण सहित पाताल को ले गया, और भलिभांति देवि जी की पूजा करके सबके परामर्श से यह निशचय किया कि इन दोनों भाइयों की बलि दूंगा, उसी समय आपने वहाँ पहुंच कर अहिरावन को उसकी सेना समेत मार डाला। हे हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता॥

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु बेखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो।
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

अर्थ - हे महाबीर आपने बड़े बड़े देवों के कार्य संवारे है। अब आप देखिये और सोचीए कि मुझ दीन हीन का ऐसा कौन सा संकट है जिसको आप दुर नहीं कर सकते। हे महाबीर हनुमानजी, हमारा जो कुछ भी संकट हो आप उसे शीघ्र ही दूर कर दीजीए। हे हनुमानजी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

॥दोहा॥

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

अर्थ- आपका शरीर लाल है, आपकी पूँछ लाल है और आपने लाल सिंदूर धारण कर रखा है, आपके वस्त्र भी लाल है। आपका शरीर बज्र है, और आप दुष्टों का नाश कर देते है। हे हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो, जय हो॥