Monday, August 19, 2013

हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर

हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर
 
 महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित रोमांचक और बेहद आकर्षक पर्वतीय स्थल पर बने एक किले को ' हरिश्चन्द्रगढ़' के नाम से जाना जाता है.

हरिश्चन्द्रगढ़, यहां बने मुख्य मंदिर हरिश्चंद्रेश्वर और गुफाओं के लिए जाना जाता है. इन्हीं गुफाओं में है एक शिव मंदिर जो लगभग पूरे साल पानी में डूबा रहता है. इस मंदिर तक पहुंचना भी ख़ासा मुश्किल काम है. इन सब से हट कर एक ख़ास तथ्य जो इस मंदिर को अनूठा बनाती है वह है इसकी छत. मंदिर की छत वैसे तो चार पिलर पर टिकी है लेकिन, इसके तीन पिलर टूट चुके हैं और फिलहाल सिर्फ एक पिलर शिवलिंग पर बनी इस छत का भार थामे हुए है. ऐसी मान्यता है कि जिस दिन इस छत की आखिरी पिलर टूटेगी वही दिन इस दुनिया में प्रलय का दिन होगा.
यह शिवलिंग चारों ओर पानी से घिरा हुआ है. शिवलिंग लगभग पांच फीट ऊंचा है और इस तक पहुंचने के लिए कमर तक भरे बेहद ठंडे पानी से होकर गुजरना पड़ता है. बरसात के मौसम में इस शिवलिंग तक पहुंचना और भी दुष्कर होता है क्योंकि, तब यहां पानी का स्तर न सिर्फ बढ़ जाता है बल्कि, उसका बहाव भी काफी तेज होता है.

भादवा माँ

भादवा माँ
 
 हमारे देश में कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जहाँ माता चमत्कारी मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। माता की एक ऐसी ही चमत्कारी मूर्ति है 'भादवा माता धाम' में। मध्यप्रदेश के नीमच से लगभग 18 किमी की दूरी पर स्थि‍त माँ भादवा का मंदिर एक विश्वविख्यात धार्मिक स्थल है। जहाँ दूर-दूर से लकवा, नेत्रहीनता, कोढ़ आदि रोगों से ग्रसित रोगी आते हैं व निरोगी होकर जाते हैं।

भादवा माँ की ज्योत

माँ भादवा की मोहक प्रतिमा :-
भादवा माता के मंदिर में सुंदर चाँदी के सिंहासन पर विराजित हैं माँ की चमत्कारी मूर्ति। इस मूर्ति के नीचे माँ नवदुर्गा के नौ रूप विराजित हैं। कहते हैं मूर्ति भी चमत्कारी है व उससे ज्यादा चमत्कारी वो ज्योत है, जो कई सालों से अखंडित रूप से जलती जा रही है। यह ज्योत कभी नहीं बुझी और माँ के चमत्कार भी कभी नहीं रूके। आज भी यह ज्योत माँ की प्रतिमा के समीप ही प्रज्ज्वलित हो रही है।

यहाँ होते हैं चमत्कार :-
माता के इस मंदिर में आपको साक्षात चमत्कार देखने को मिलेंगे। देश के अलग-अलग इलाकों से यहाँ लकवाग्रस्त व नेत्रहीन रोगी आते हैं, जो माँ के मंदिर के सामने ही ‍रात्रि विश्राम करते हैं। बारह महीने यहाँ भक्तों का जमावड़ा रहता है। मंदिर परिसर में आपको इधर-उधर डेरा डाले कई लकवा रोगी देखने को मिल जाएँगे, जो निरोगी होने की उम्मीद से कई मीलों का सफर तय करके भादवा धाम आए हैं।

कहा जाता है कि रोज रात को माता मंदिर में फेरा लगाती हैं तथा अपने भक्तों को आशीष देकर उन्हें निरोगी करती हैं। कई लोग यहाँ आए तो दूसरों के कंधों के सहारे परंतु गए बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर।

जब से मंदिर है तब से यहाँ प्राचीन बावड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से जो भी स्नान करेगा, वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा। मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी का जल अमृत तुल्य है। माता की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं।

मुर्गे और बकरे करते है माँ का गुणगान :-
अपनी मुराद पूरी होने पर इस मंदिर में जिंदा मुर्गे व बकरे छोड़कर जाने का भी चलन है। इसके अलावा यहाँ चाँदी व सोने की आँख, हाथ आदि भी माता को चढ़ाए जाते हैं। यह सब निर्भर करता है आपकी ली गई मन्नत पर।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब भादवा माँ की आरती होती है तब ये मुर्गा, कुत्ता, बकरी आदि सभी जानवर तल्लीनता से माँ की आरती में शामिल होते हैं। आरती के समय आपको मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ में कई मुर्गे व बकरी घूमते हुए दिख जाएँगे।

प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक माह में नवरात्रि पर भादवा माता मंदिर परिक्षेत्र में विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें शामिल होने दूर-दूर से भक्त आते हैं। कुछ भक्त नंगे पैर माँ के दरबार में हा‍जिरी लगाते हैं। नवरात्रि पर विशेष रूप से माँ भादवा के धाम तक की कई बसे चलती हैं।

पति परमेश्वर

पति परमेश्वर 

प्रत्येक पुरुष में एक स्त्री छुपी होती है इसीलिए संत अक्सर कहते है कि
ईश्वर हमारे पति है और हम सब उनकी पत्नियाँ |

पति ही परमेश्वर है, इसका अर्थ अक्सर हम लोग गलत लगाते है |इसका अर्थ यह नहीं है कि पति परमेश्वर है बल्कि जो परमेश्वर है, वे ही हमारे पति है | इसलिए ईश्वर को जगतपति कहा जाता
है | यह सारी सृष्टि योनियो से भरी पड़ी है| प्रत्येक पुरुष भी एक योनी है , लिंग
रूप तो केवल भगवान शिव ही है| हम सभी मनुष्य है और मनुष्य भी एक योनी है |
जितने भी पेड-पौधे और पशु-पक्षी है, वह भी एक योनी है कोई भी योनी से मुक्त नहीं है
| योनियो से तो एकमात्र शिव ही मुक्त है, इसलिए शिव को अजन्मा कहा जाता है | भगवान
शिव लिंग रूप है और वे ही जगतपति है , वे ही पशुपति और वे ही जगतनाथ है |

Saturday, August 10, 2013

श्री वैद्यनाथाष्टकम्

श्रीरामसौमित्रिजटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय ।
श्रीनीलकण्ठाय दयामयाय श्रीवैद्यनाथाय नमःशिवाय ॥ १॥
गङ्गाप्रवाहेन्दु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहन्त्रे ।
समस्त देवैरभिपूजिताय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ २॥
भक्तःप्रियाय त्रिपुरान्तकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् ।
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ३॥
प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवन्दिताय ।
प्रभाकरेन्द्वग्नि विलोचनाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ४॥
वाक् श्रोत्र नेत्राङ्घ्रि विहीनजन्तोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय ।
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहन्त्रे श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ५॥
वेदान्तवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरद्येय पदाम्बुजाय ।
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ६॥
स्वतीर्थमृद्भस्मभृताङ्गभाजां पिशाचदुःखार्तिभयापहाय ।
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ७॥
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय स्रक्गन्ध भस्माद्यभिशोभिताय ।
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्रीवैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ ८॥
वालाम्बिकेश वैद्येश भवरोगहरेति च ।
जपेन्नामत्रयं नित्यं महारोगनिवारणम् ॥ ९॥
॥ इति श्री वैद्यनाथाष्टकम् ॥

Saturday, August 3, 2013

संकट में हैं प्राण ...आओ श्री हनुमान !

संकट में हैं प्राण ...आओ श्री हनुमान !

संकट में हैं प्राण , हमको कष्ट महान ,

ओ कृपानिधान ! संकटमोचन श्री हनुमान |

महावीर तुम कर देते हो हर मुश्किल आसान |

आओ कृपानिधान ! संकटमोचन श्री हनुमान |

एक छलांघ में सौ योजन का सागर तुमने पार किया ,

माँ सीता को श्रीराम का अमृतमय सन्देश दिया ,

लंका सहित जला डाला रावण का सब अभिमान |

राम भक्त !!!सब वीरों में तुम सर्वाधिक बलवान ,

आओ कृपानिधान ! संकटमोचन श्री हनुमान |

दया करो हम पर भी हनुमत ! विनती यही हमारी है ,

पवनपुत्र तुमसे बढ कर ना कोई पर उपकारी है |

हम मतिहीन नहीं गा सकते तेरा महिमा गान ,

आओ कृपानिधान ! संकटमोचन श्री हनुमान !

संकट में हैं प्राण , हमको कष्ट महान ,

आओ कृपानिधान ! संकटमोचन श्री हनुमान |

Friday, August 2, 2013

ब्रह्मा जी की श्रष्टि रचना

ब्रह्मा जी की श्रष्टि रचना : ब्रह्मा जी ने आदि देव भगवान की खोज करने के लिए कमल की नाल के छिद्र में प्रवेश कर जल में अंत तक ढूंढा। परंतु भगवान उन्हें कहीं भी नहीं मिले। ब्रह्मा जी ने अपने अधिष्ठान भगवान को खोजने में सौ वर्ष व्यतीत कर दिये। अंत में ब्रह्मा जी ने समाधि ले ली। इस समाधि द्वारा उन्होंने अपने अधिष्ठान को अपने अंतःकरण में प्रकाशित होते देखा। शेष जी की शैय्या पर पुरुषोत्तम भगवान अकेले लेटे हुए दिखाई दिये। ब्रह्मा जी ने पुरुषोत्तम भगवान से सृष्टि रचना का आदेश प्राप्त किया और कमल के छिद्र से बाहर निकल कर कमल कोष पर विराजमान हो गये। इसके बाद संसार की रचना पर विचार करने लगे।

ब्रह्मा जी ने उस कमल कोष के तीन विभाग भूः भुवः स्वः किये। ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का दृढ़ संकल्प लिया और उनके मन से मरीचि, नेत्रों से अत्रि, मुख से अंगिरा, कान से, पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुये। इसी प्रकार उनके दायें स्तन से धर्म, पीठ से अधर्म, हृदय से काम, दोनों भौंहों से क्रोध, मुख से सरस्वती, नीचे के ओंठ से लोभ, लिंग से समुद्र तथा छाया से कर्दम ऋषि प्रकट हुये। इस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा जी के मन और शरीर से उत्पन्न हुये।
इसके बाद ब्रह्मा जी के पूर्व वाले मुख से ऋग्वेद, दक्षिण वाले मुख से यजुर्वेद, पश्चिम वाले मुख से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की ऋचाएँ निकलीं। तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद और स्थापत्व आदि उप-वेदों की रचना की। उन्होंने अपने मुख से इतिहास पुराण उत्पन्न किया और फिर योग विद्या, दान, तप, सत्य, धर्म आदि की रचना की। उनके हृदय से ओंकार, अन्य अंगों से वर्ण, स्वर, छन्द आदि तथा क्रीड़ा से सात सुर प्रकट हुये।

इस सबके बावजूद भी ब्रह्मा जी को लगा कि मेरी सृष्टि में वृद्धि नहीं हो रही है तो उन्होंने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त कर दिया जिनका नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। मनु और शतरूपा ने मानव संसार की शुरुआत की।

Thursday, August 1, 2013

लिंगाष्टकम ...
ब्रह्ममुरारी सुरार्चित लिंङगं |
निर्मल भासित शोभित लिंङगं ||
जन्मज दुःख विनाशक लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || १ ||

देवमुनि प्रवारार्चित लिंङगं |
कामदहन करुणाकर लिंङगं ||
रावण दर्प विनाशक लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || २ ||

सर्व सुगंध सुलेपित लिंङगं |
बुद्धी विवर्धन कारण लिंङगं ||
सिद्ध सुरासुर वंदित लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ३ ||

कनक महामणि भूषित लिंङगं |
फणिपती वेष्टित शोभित लिंङगं ||
दक्ष सुयज्ञ निनाषन लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ४ ||

कुंकुम चंदन लेपित लिंङगं |
पंकज हार सुशोभित लिंङगं ||
संचित पाप विनाशक लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ५ ||

देवागणार्चित सेवित लिंङगं |
भावै-र्भक्तिभिरेव च लिंङगं ||
दिनकर कोटी प्रभाकर लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ६ ||

अष्टोदलोपरीवेष्टित लिंङगं |
सर्वसमुद्भव कारण लिंङगं ||
अष्टदरिद्र विनाषन लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ७ ||

सुरगुरु सुरवर पूजित लिंङगं |
सुरवन पुष्प सदार्चित लिंङगं ||
परात्पर परामात्मक लिंङगं |
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंङगं || ८ ||

लिंङगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेश्शिव संनिधौ |
शिवलोकमवाप्नोती शिवेन सह मोदिते ||