Friday, February 28, 2014

माता श्री नैना देवी

माता श्री नैना देवी

श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है | कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं |

एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुदको यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए | उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया |इसने स्वर्ग में सभी देवताओं को भयभीत कर दिया कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है| भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें | श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं |

मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है| एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है| उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा| एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है| नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया| जब राजा ने देखा कि यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया|

श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर माँ श्री नयना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था| किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था|इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया | राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा सके| देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई| महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा| देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी|लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं|

एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है|जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया| आशीर्वाद मिलने के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया|
 
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घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग- उत्तर प्रदेश

एक मान्यता के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कुम्भापुर ग्राम में स्थित है |पौराणिक मान्यताओं तथा प्राचीन विद्वानों के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक घुश्मेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग है।यंहा पर घुश्मेश्वरनाथ-ज्योतिर्लिंग का दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है | प्रतापगढ़ की इस पावन धरा एवं पौराणिक नगरी का नाम “बाबा घुइसरनाथ धाम” है|
श्री घुश्मेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं व सुखसमृद्धि की प्राप्ति होती है। बाबा हर रूप में, हर रंग में करते हैं भक्तों का कल्याण, वो न सिर्फ देते हैं भक्तों को वरदान बल्कि अनिष्ट की आशंका से भी सावधान करते हैं |
अमेठी और प्रतापगढ़ घुइसरनाथ के करीबी रेलवे स्टेशन है , धाम पहुँचने के लिए आप कुंडा रेलवे स्टेशन पर भी उतर सकते हैं | धाम से दोनो रेलवे स्टेशनों की दूरी मात्र 32 किमी है |
इसके ज्योतिर्लिंग होने के बारे में निम्न तर्क दिए जाते हैं -
१- वाशिष्ठी नदी के किनारे बिल्व पत्रों एवं मंदार के वन ...
शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में वाशिष्ठी नदी बहती थी , जिसके किनारे मंदारवन(आकड़ों का वन ) तथा बेल पत्र के वन थे जिनसे भगवान घुश्मेश्वर की प्रतिदिन पूजा की जाती थी .ग्राम कुम्भापुर (पहले इलापुर) स्थित ज्योतिर्लिंग क्षेत्र के पास सई नदी बहती है जो पूर्वकाल की वाशिष्ठी नदी ही है तथा इसके किनारे बिल्वपत्रों का वन आज भी विरल रूप में स्थित है . मंदार के पौधे आज भी झुण्ड रूप में वन क्षेत्र में विद्यमान हैं |
२- उपलिंग का होना ....
शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में एक उपलिंग जरूर होता है | बाबा घुश्मेश्वरनाथ धाम के नजदीक ही देऊम में बूढ़ेनाथ धाम मंदिर में स्थित बूढ़ेश्वर शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यहां के शिवलिंग की स्थापना किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं की, बल्कि उनका उद्भव स्वयं हुआ है और १२वें ज्योतिर्लिंग भगवान घुश्मेश्वर जी के उपलिंग के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं |
३- जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा और प्रार्थना इस प्रकार की है–
इलापुरे रम्याविशालकेऽस्मिन्।
समुल्लसन्तं च जगदवरेण्यम्।।
वन्दे महोदारतरस्वभावं।
घुश्मेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये।।
और इलापुर ही बाद में कुम्भापुर गाँव नाम से जाना गया |
इस मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए www.ghuisarnathdham.com पर जा सकते हैं |

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग--राजस्थान


घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शंकर के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक है . अधिकतर लोगों को इस ज्योतिर्लिंग के महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास होने की जानकारी है . परन्तु इसके दो अन्य स्थानों पर होने का दावा भी वहाँ के स्थानीय लोग करते हैं . इनमें एक राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में व एक अन्य उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में होना माना जाता है .
राजस्थान में यह सवाई माधोपुर जिले के शिवार स्थान पर स्थित है . जयपुर से कोटा के मुख्य मार्ग पर करीब ८० किलोमीटर जाने पर बरोनी आता है . यहाँ से शिवार जाने के लिए मुडना होता है और फिर २० किलोमीटर जाना होता है .सवाई माधोपुर –जयपुर रेल मार्ग पर इसारदा स्टेशन से यह स्थान केवल ३ किलोमीटर दूर है..
इस स्थान पर घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के बारे स्थानीय लोग निम्न तर्क देते हैं -
1. शिवपुराण (कोटि रुद्र सम्हिता)अध्याय ३२-३३ के अनुसार घुश्मेश्वर शिवलिंग शिवालय में होना चाहिए.
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम ||
| उज्जयिन्यां महाकालंओंकारं ममलेश्वरम |||
केदारं हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम ||
| वाराणस्यां च विश्वेशं त्रयम्बकं गोतमी तटे |||
वैधनाथं चितभूमौ नागेशं दारुकावने ||
| सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये |||
शिवालय का नाम ही बदलकर शिवाल और फिर शिवार हो गया है .
2. इस स्थान के दक्षिण में देवगिरी पर्वत है जैसा कि शिवपुराण (कोटि रुद्र सम्हिता)अध्याय ३३ में कहा गया है.
दक्षिणस्यां दिशि श्रैष्ठो गिरिर्देवेति संज्ञकः महाशोभाविन्तो नित्यं राजतेऽदभुत दर्शन:|
तस्यैव निकटः ऐको भारद्वाज कुलोदभव: सुधर्मा नाम विप्रशच न्यवसद् ब्रह्मवित्तमः ।।|

 इस मंदिर के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें -http://www.ghushmeshwar.com/