स्तुति
अक्ष मारि लंका दही ,जनकसुता दुःख टारि ।
वीर अन्जनानंद को बंदहूँ बारम्बार। ।
सीताजी का दुःख दूर करने वाले मेरा भी दुःख दूर करो । वीर बजरंगी को नमन करते हुए यही प्रार्थना करती हूँ ,
हे हनुमान !महाबलवान ,
सुजान महा दुःख कष्ट मेटैया ।
ज्ञान को पोषक ,भक्त कोतोषक बंध कटैया।
अंजनी पूत ,श्रीराम को दूत भगावत भूत जो मंजू बचैया।
राम को दास ,पूरे सब आस , मेट भव त्रास जो रामरटैया।
Wednesday, April 28, 2010
Sunday, April 25, 2010
जय श्री राम
इंसान के जीवन में सुख दुःख दोनों ही आते है । सुख में तो हम मस्ती में अपना जीवन बिता लेते है , पर दुःख में हम बहुत जल्दी विचलित होने लगते है । ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ ,सुख में तो पता नहीं कैसे दिन बीत गए पर विपदा में श्री राम जी हनुमान जी के साथ पग पग पर आत्म शक्ति देते रहे । मैं तो यही प्रार्थना करती रही ----
मामभिरक्षय रघुकुल नायक ,धृत बरु चाप रुचिर कर सायक । ।
यह चौपाई बहुत ही सहायक सिद्ध होती रही है ।
मैं शबरी और मीरा की तरह भक्ति तो नहीं कर सकती ,हाँ यह प्रार्थना जरूर करती हूँ ----
मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुख दाई
राजीव विलोचन भव मय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई
विनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मांगू बर आना
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना
श्री राम जय राम जय जय राम
इंसान के जीवन में सुख दुःख दोनों ही आते है । सुख में तो हम मस्ती में अपना जीवन बिता लेते है , पर दुःख में हम बहुत जल्दी विचलित होने लगते है । ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ ,सुख में तो पता नहीं कैसे दिन बीत गए पर विपदा में श्री राम जी हनुमान जी के साथ पग पग पर आत्म शक्ति देते रहे । मैं तो यही प्रार्थना करती रही ----
मामभिरक्षय रघुकुल नायक ,धृत बरु चाप रुचिर कर सायक । ।
यह चौपाई बहुत ही सहायक सिद्ध होती रही है ।
मैं शबरी और मीरा की तरह भक्ति तो नहीं कर सकती ,हाँ यह प्रार्थना जरूर करती हूँ ----
मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुख दाई
राजीव विलोचन भव मय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई
विनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मांगू बर आना
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना
श्री राम जय राम जय जय राम
Saturday, April 24, 2010
प्रार्थना
ह्रदय बसों बन मेरे स्वामी ,लाल लंगोटे वाले
दया करो अब भगवन मुझपे , बनो मेरे रखवाले .
माना तुमको काम बहुत है पर मैं छोटा भाई ,
संकट भारी आया मुझपे तभी गोहार लगाई .
मंत्र विभीषण को देकर लंकेश्वर उन्हें बनाया
थोड़ी कृपा यहाँ भी कर दो, शरण तुम्हारी आया
गदा उठा कर दुश्मन मारो संकट मेरा टारो
तन मन धन सब अर्पण तुमको नैया मेरी पारो
नव ग्रह क्या कर सकते उसका जिसकी रक्षा करते आप
अज्ञानी हूँ पर हूँ तेरा ,काटो सारे मेरे पाप
राम शपथ है तुमको हनुमत बेड़ा पार लगाना है
, दया दृष्टि करके तुमको, सब संकट आज मिटाना है
दया करो अब भगवन मुझपे , बनो मेरे रखवाले .
माना तुमको काम बहुत है पर मैं छोटा भाई ,
संकट भारी आया मुझपे तभी गोहार लगाई .
मंत्र विभीषण को देकर लंकेश्वर उन्हें बनाया
थोड़ी कृपा यहाँ भी कर दो, शरण तुम्हारी आया
गदा उठा कर दुश्मन मारो संकट मेरा टारो
तन मन धन सब अर्पण तुमको नैया मेरी पारो
नव ग्रह क्या कर सकते उसका जिसकी रक्षा करते आप
अज्ञानी हूँ पर हूँ तेरा ,काटो सारे मेरे पाप
राम शपथ है तुमको हनुमत बेड़ा पार लगाना है
, दया दृष्टि करके तुमको, सब संकट आज मिटाना है
Thursday, April 22, 2010
जय श्री राम
जय हनुमान
मैं तो पूरी तरह से इनके शरण में जा चुकी हूँ । यह मार्ग तो मुझे मेरे पति ने दिखाया है ,जब मैं बहुत बीमार थी ,१९९५ में ,मैं कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित थी दिल्ली में सभीडॉक्टर ने जवाब दे दिया था ,तब भी मेरे पति ने हिम्मत नहीं हारी ,भगवान् पर भरोसा कर मेरे इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी . मुंबई में टाटा अस्पताल में तीन साल बड़े धैर्य से इलाज करवाया मुझे याद है हर समय मेरे पति श्री महेश नारायण दीक्षित बजरंग बली के सामने बैठे रहते और सुमिरन करते रहते , ,को नहीं जानत है कपिसंकटमोचन नाम तेहारो ।
आज मैं इनकी तपस्या से जीवित हूँ ,और श्री दीक्षित जी की तरह ही ईश्वर के पूजा अर्चना में रत हो गई हूँ सच
कहूं तो अब इसी में आनंद आने लगा है ।
जब महाभारत जैसे युद्ध में श्री कृष्ण ने हनुमान जी की सहायता लेकर युद्ध प्रारंभ किया और विजयी हुए तो हम लोग साधारण मनुष्य है। बहुत ही आसानी से हमारा काज सँवारेगे। बस मुझे उन पर भरोसा करते हुए अपने काम को करते जाना है ,परिणाम तो शत प्रतिशत अच्छा ही आयेगा ।
और देवता चित्त न धरहिं
हनुमत सेई सर्व सुख करहीं
श्री राम जय राम जय जय राम
जय हनुमान
मैं तो पूरी तरह से इनके शरण में जा चुकी हूँ । यह मार्ग तो मुझे मेरे पति ने दिखाया है ,जब मैं बहुत बीमार थी ,१९९५ में ,मैं कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित थी दिल्ली में सभीडॉक्टर ने जवाब दे दिया था ,तब भी मेरे पति ने हिम्मत नहीं हारी ,भगवान् पर भरोसा कर मेरे इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी . मुंबई में टाटा अस्पताल में तीन साल बड़े धैर्य से इलाज करवाया मुझे याद है हर समय मेरे पति श्री महेश नारायण दीक्षित बजरंग बली के सामने बैठे रहते और सुमिरन करते रहते , ,को नहीं जानत है कपिसंकटमोचन नाम तेहारो ।
आज मैं इनकी तपस्या से जीवित हूँ ,और श्री दीक्षित जी की तरह ही ईश्वर के पूजा अर्चना में रत हो गई हूँ सच
कहूं तो अब इसी में आनंद आने लगा है ।
जब महाभारत जैसे युद्ध में श्री कृष्ण ने हनुमान जी की सहायता लेकर युद्ध प्रारंभ किया और विजयी हुए तो हम लोग साधारण मनुष्य है। बहुत ही आसानी से हमारा काज सँवारेगे। बस मुझे उन पर भरोसा करते हुए अपने काम को करते जाना है ,परिणाम तो शत प्रतिशत अच्छा ही आयेगा ।
और देवता चित्त न धरहिं
हनुमत सेई सर्व सुख करहीं
श्री राम जय राम जय जय राम
अजेय जय दिलाओ हनुमान जी

जय श्री राम
यदि मन में सच्चाई है, सबके प्रति प्रेम है, अपने समीप ही राम का अनुभव करोगे । कहावत है कि राम को पाना है तो हनुमान की पूजा करो और भक्ति का वरदान मांगो तो सीताराम प्रसन्न होते है । अब तो यही कोशिश कर रही हूं ,कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ।
जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं । ।
(अजेय जय दिलाने वाले हनुमान जी आपकी जय हो आप कृपया अपने गुरु सूर्य भगवान की तरह हमपर कृपा करिए । सूर्य देव की यह विशेषता है कि वो सबको प्रकाश व शक्ति देते है भले ही कोई उनकी पूजा करे या न करे। इसी तरह हनुमान जी आप भी कृपा करिए भले ही हम आपकी पूजा करने लायक हो या न हो )
हनुमान जी की पूजा करने से सब तरफ विजय ही मिलती है । विजय तो मिलेगी ही क्यों कि अजेय हनुमान कीभक्ति करने से हम भी अजेय होंगे ऐसा मेरा विश्वास है ।
Wednesday, April 21, 2010
ॐ गणेशाय नमः
जय गणेश जय गणेश
जय शिव शंकर जय शिव शंकर
जय श्री राम जय हनुमान
भारतमाता की जय
मेरे प्यारे देश वासियों
मैं प्रभु श्री राम को प्रणाम कर के अपना यह एक छोटा प्रयोग प्रारंभ करती हूँ । श्री राम के बारे में कुछ कहना या कुछ लिखना किसी मानव के बस की बात नहीं है फिर भी अपनी अल्प बुध्दि से कुछ अपने कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ । आशा है आप गलतियों को भूल कर मेरा मार्ग दर्शन करेगे ।
मेरे राम अपने हनुमान के साथ हमेशा हमारे साथ रहे हैं । हर पल मैं इनको अपने समीप ही आभास करती हूँ । रामायण की एक एक चौपाई में जीवन की हर समस्या का समाधान है । जब भी मैं बीमार हुई हूँ या अपने आप को असहाय अनुभव किया है, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड और रामायण की चौपायिओं ने मेरी आत्मशक्ति को बढाया है ।
जब भी किसी काम मेंअटकती हूँ, हनुमान चालीसा की यह चौपाई कितनी मददगार हो सकती है आप सोच भी नहीं सकते हैं ।
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरेतेते
आप ही सोच कर या अनुभव कर के देखे ,यदि काम में सच्चाई है जिंदगी में कितनी भी अड़चन हो मन में हनुमान और श्री राम का ध्यान कर ये चौपाई का मनन करे काम अवश्य पूरा होगा. कितनी सच्चाई है मेरे बजरंगी में।
अपनी कृपा दृष्टि डालो मुझ पर कृपावान हो, मेरे सभी काम ,कठिन से कठिन काम को सरलतम करो ।



जय गणेश जय गणेश
जय शिव शंकर जय शिव शंकर
जय श्री राम जय हनुमान
भारतमाता की जय
मेरे प्यारे देश वासियों
मैं प्रभु श्री राम को प्रणाम कर के अपना यह एक छोटा प्रयोग प्रारंभ करती हूँ । श्री राम के बारे में कुछ कहना या कुछ लिखना किसी मानव के बस की बात नहीं है फिर भी अपनी अल्प बुध्दि से कुछ अपने कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ । आशा है आप गलतियों को भूल कर मेरा मार्ग दर्शन करेगे ।
मेरे राम अपने हनुमान के साथ हमेशा हमारे साथ रहे हैं । हर पल मैं इनको अपने समीप ही आभास करती हूँ । रामायण की एक एक चौपाई में जीवन की हर समस्या का समाधान है । जब भी मैं बीमार हुई हूँ या अपने आप को असहाय अनुभव किया है, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड और रामायण की चौपायिओं ने मेरी आत्मशक्ति को बढाया है ।
जब भी किसी काम मेंअटकती हूँ, हनुमान चालीसा की यह चौपाई कितनी मददगार हो सकती है आप सोच भी नहीं सकते हैं ।
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरेतेते
आप ही सोच कर या अनुभव कर के देखे ,यदि काम में सच्चाई है जिंदगी में कितनी भी अड़चन हो मन में हनुमान और श्री राम का ध्यान कर ये चौपाई का मनन करे काम अवश्य पूरा होगा. कितनी सच्चाई है मेरे बजरंगी में।
अपनी कृपा दृष्टि डालो मुझ पर कृपावान हो, मेरे सभी काम ,कठिन से कठिन काम को सरलतम करो ।


श्री राम स्तुति
श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारूणम।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारूणमऽऽ
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरद सुंदरम।
पटपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनकसुतावरमऽऽ
भज दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकंदनम।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथनंदनमऽऽ
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारू अंगविभूषणम।
आजानुभुज शरचाप धर संग्रामजित खरदूषणमऽऽ
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम।
मम हृदयकुंज निवास कुरू कामादि खलदल गंजनमऽऽ
_ तुलसीदास


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