Monday, December 30, 2013
Friday, December 20, 2013
तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग – मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर
तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग – मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर
12 ज्योतिर्लिंगों से तो आप सभी परिचित हैं पर मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर
,आस्ट्रेलिया में पाया जाने शिव लिंग तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग है , यह बात कम ही जानी
जाती है .
यह ज्योतिर्लिंग नेपाल से लाकर आस्ट्रेलिया के मुक्ति गुप्तेश्वर
मंदिर में स्थापित किया गया है . इस लिंग का वर्णन महाभारत मे दिया गया है . युद्ध
में पराजित होने के बाद जब पांडव वन वास में थे ,तब वे नेपाल के एक आश्रम में रह
रहे थे . एक दिन अर्जुन जब शिकार पर गए तो उनका सामना एक जंगली शूकर से हुआ
.अर्जुन ने तीर चलाया और वो उस शूकर के
लगा . तभी एक अन्य शिकारी भी वहाँ आ गया और उस शूकर को अपना शिकार बताने लगा .इस पर अर्जुन व उस
शिकारी में विवाद हो गया और दोनों लड़ने लगे . यह लड़ाई 21 दिनों तक चली. अर्जुन अपने को कमजोर होता
देख कर एक मिट्टी का शिव लिंग बना कर उसका पूजन करने लगे . उसी समय वो दूसरा
शिकारी अपने असली रूप मे भगवान शंकर बन कर अर्जुन के सामने आ गए और कहा कि वो तो
अर्जुन की शक्ति की परीक्षा ले रहे थे . अर्जुन से उन्होंने वर माँगने को कहा तो
अर्जुन ने उनसे लिंग रूप में उस आश्रम में रहने का वर माँगा .
बाद में 1999 में उस लिंग को नेपाल के महाराजाधिराज बीर
बिक्रम शाह देव ने आस्ट्रेलिया भेज दिया .इस लिंग को आस्ट्रेलिया में 14 फरवरी 1999 शिवरात्री को मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर में स्थापित किया
गया . धर्म शास्त्रों में आस्ट्रेलिया को शिव जी के गले में नाग का मुख माना जाता
है .सोमनाथ मंदिर जिसे पहला ज्योतिर्लिंग माना गया है , वहाँ एक तीर का निशान है जो दक्षिण की ओर इंगित करता
है .कहते है कि सोमनाथ मंदिर का यह तीर सीधे इस आस्ट्रेलिया के मंदिर की तरफ इंगित
करता है जहाँ अंतिम तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग स्थापित है .
मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर में शिवलिंग एक गुफा के अंदर स्थापित किया
गया है . साथ में 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप भी स्थापित हैं . इसके साथ 108 अन्य मानव निर्मित
शिवलिंग व 1008 अन्य शिव प्रतिमाएं भी इस मंदिर में स्थापित हैं . इस तरह से मुख्य
ज्योतिर्लिंग के साथ 1128 अन्य छोटे मंदिर भी
यहाँ पर हैं .मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में 10 मीटर गहरे एक पात्र में 2 करोड़ ‘ओम नमः शिवाय’
लिखे हुए पत्र रखे गए हैं . साथ में विश्व की 81 प्रमुख नदियों का जल, 5 समुद्रों का जल व अष्ट
धातुओं को भी रखा गया है .
Tuesday, December 10, 2013
मनकामेश्वर मंदिर
मनकामेश्वर मंदिर:
भोले बाबा कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते. लखनऊ में गोमती नदी के
तट पर बने मनकामेश्वर मंदिर में तो महादेव अपने भक्तों की सभी इच्छाएं
पूरी कर देते हैं. डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये
मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. कहा जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने
के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शंकर की आराधना की थी,
जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी. उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर
मंदिर की स्थापना कर दी गई.
गोमती नदी के किनारे बसा यह मंदिर
रामायणकाल का है और इनके नाम मनकामेश्वर से ही इस बात की एहसास हो जाता है
कि यहां मन मांगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती. जैसे ही भक्त इस मंदिर में
प्रवेश करते हैं उन्हें शांति की अनुभूति होती है. लोग यहां आकर मनचाहे
विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर बाबा का
बेलपत्र, गंगाजल और दूध आदि से श्रृंगार करते हैं .
सावन,
महाशिवरात्रि और कजरी तीज के मौके पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने
को मिलती है. यहां पर आरती का भी विशेष महत्व है. कहते हैं कि यहां की आरती
में शामिल होकर मन में जो भी कामना की जाती है वो अवश्य पूरी होती है.
फूल, बेलपत्र और गंगा जल से भोले भंडारी का अभिषेक होता है.
मंदिर
में सुबह और शाम को भव्य आरती होती हैं, जिसमें काफी संख्या में भक्त
हिस्सा लेते हैं. मनकामेश्वर मंदिर में काले रंग का शिवलिंग है और उस पर
चांदी का छत्र विराजमान होने के साथ मंदिर के पूरे फर्श में चांदी के
सिक्के लगे हैं, जिससे मंदिर मनोहारी लगता है.
भोले बाबा कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते. लखनऊ में गोमती नदी के तट पर बने मनकामेश्वर मंदिर में तो महादेव अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी कर देते हैं. डालीगंज में गोमती नदी के बाएं तट पर शिव-पार्वती का ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. कहा जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रुककर भगवान शंकर की आराधना की थी, जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी. उसके बाद कालांतर में मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई.
गोमती नदी के किनारे बसा यह मंदिर रामायणकाल का है और इनके नाम मनकामेश्वर से ही इस बात की एहसास हो जाता है कि यहां मन मांगी मुराद कभी अधूरी नहीं रहती. जैसे ही भक्त इस मंदिर में प्रवेश करते हैं उन्हें शांति की अनुभूति होती है. लोग यहां आकर मनचाहे विवाह और संतानप्राप्ति की मनोकामना करते हैं और उसे पूरा होने पर बाबा का बेलपत्र, गंगाजल और दूध आदि से श्रृंगार करते हैं .
सावन, महाशिवरात्रि और कजरी तीज के मौके पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. यहां पर आरती का भी विशेष महत्व है. कहते हैं कि यहां की आरती में शामिल होकर मन में जो भी कामना की जाती है वो अवश्य पूरी होती है. फूल, बेलपत्र और गंगा जल से भोले भंडारी का अभिषेक होता है.
मंदिर में सुबह और शाम को भव्य आरती होती हैं, जिसमें काफी संख्या में भक्त हिस्सा लेते हैं. मनकामेश्वर मंदिर में काले रंग का शिवलिंग है और उस पर चांदी का छत्र विराजमान होने के साथ मंदिर के पूरे फर्श में चांदी के सिक्के लगे हैं, जिससे मंदिर मनोहारी लगता है.
Friday, December 6, 2013
ठाकुर बांके बिहारी जी
मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष पंचमी को बांके बिहारी जी का आविर्भाव दिवस भी मनाया जाता है | श्रीधाम वृन्दावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नही चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत १९२१ के लगभग किया गया।स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महिने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजापुर नामक गाँव में हूआ था। इनके आराध्यदेव श्याम–सलोनी सूरत बाले श्रीबाँकेबिहारी जी थे।जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा की गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई | यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को निकाली गयी था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मानते है।
श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन श्री श्रीबाँकेबिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं । जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं । और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है । इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है। मंदिर की एक और विशेषता है कि यहाँ घंटी या शंख नहीं बजता है |
श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन श्री श्रीबाँकेबिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं । जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं । और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है । इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है उसका तो बेड़ा ही पार लग जाता है। मंदिर की एक और विशेषता है कि यहाँ घंटी या शंख नहीं बजता है |
Thursday, November 14, 2013
अमोघ शिव कवच ......
।।श्रीगणेशाय नम:।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्ति:। रं कीलकम्। श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:। करन्यास ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:| ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम: |
अंगन्यास ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट |
अथ दिग्बन्धन: —
ॐ भूर्भुव: स्व: |
ध्यानम—
कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम | सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||
।।ऋषभ उवाच।। अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निशे:षपापौघहरं पवित्रम् । जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥ २ ॥ नमस्कृत्य महादेवं विश्वव्यापिनमीश्वरम्। वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ ३ ॥ शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: । जितेन्द्रियो जितप्राणश्चिंतयेच्छिवमव्ययम् ॥ ४ ॥ ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् । अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥ ५ ॥ ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्चरं चितानन्दनिमग्नचेता: । षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥ ६ ॥ मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे तन्नाम दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ ७ ॥ सर्वत्रमां रक्षतु विश्वमूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्चिदात्मा । अणोरणीयानुरुशक्तिरेक: स ईश्वर: पातु भयादशेषात् ॥ ८ ॥ यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्वं पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ॥ योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥ ९ ॥ कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: । स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥ १० ॥ प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: । चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥ ११ ॥ कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: । चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ १२ ॥ कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: । त्र्यक्षश्चतुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ १३ ॥ वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: । त्रिलोचनश्चारुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥ १४ ॥ वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ॥ सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥ १५ ॥ मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: । नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्वनाथ: ॥ १६ ॥ पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली । वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥ १७ ॥ कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: । दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥ १८ ॥ मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी । हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्वरो मे ॥ १९ ॥ ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्वरोऽव्यात् । जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥ २० ॥ महेश्वर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥ त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥ २१ ॥ पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे । गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥ २२ ॥ अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् । तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥ २३ ॥ तिष्ठतमव्याद्भुवनैकनाथ: पायाद्व्रजंतं प्रथमाधिनाथ: । वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥ २४ ॥ मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: । अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥ २५ ॥ कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: । घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥ २६ ॥ पत्त्यश्वमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् । अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया २७ ॥ निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य । शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥ २८ ॥ दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि । उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रहार्ति व्याधींश्च नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ २९ ॥ ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सर्वमंत्रस्वरूपाय सर्वयंत्राधिष्ठिताय सर्वतंत्रस्वरूपाय सर्वत्त्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकंठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणिमुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलाधारैकनिलयाय तत्त्वातीताय गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदांतसाराय त्रिवर्गसाधनायानंतकोटिब्रह्माण्डनायकायानंतवासुकितक्षककर्कोटकङ्खकुलिक पद्ममहापद्मेत्यष्टमहानागकुलभूषणायप्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाशदिक्स्वरूपायग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय सकललोकैकर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकल वेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय शाश्वतनिजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्चिंताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कारणाय निरंतकाय निष्प्रपंचाय नि:संगाय निर्द्वंद्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियय निस्तुलाय नि:संशयाय निरंजनाय निरुपमविभवायनित्यशुद्धबुद्ध परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय जय जय रुद्रमहारौद्रभद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव कपालमालाधर खट्वांगखड्गचर्मपाशांकुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्तिभिंदिपालतोमरमुसलमुद्गरपाशपरिघ भुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदनविकटाट्टहासविस्फारितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार नागेन्द्रवलय नागेंद्रचर्मधरमृयुंजय त्र्यंबकपुरांतक विश्वरूप विरूपाक्ष विश्वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वल ज्वल महामृत्युमपमृत्युभयं नाशयनाशयचोरभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान्मारय मारय ममशमनुच्चाट्योच्चाटयत्रिशूलेनविदारय कुठारेणभिंधिभिंभधि खड्गेन छिंधि छिंधि खट्वांगेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय वाणै: संताडय संताडय रक्षांसि भीषय भीषयशेषभूतानि निद्रावय कूष्मांडवेतालमारीच ब्रह्मराक्षसगणान्संत्रासय संत्रासय ममाभय कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्वासयाश्वासय नरकमहाभयान्मामुद्धरसंजीवय संजीवयक्षुत्तृड्भ्यां मामाप्याय-आप्याय दु:खातुरं मामानन्दयानन्दयशिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादयमृत्युंजय त्र्यंबक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।
।।श्रीगणेशाय नम:।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्ति:। रं कीलकम्। श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:। करन्यास ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:| ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम: |
अंगन्यास ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम: | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम | ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट |
अथ दिग्बन्धन: —
ॐ भूर्भुव: स्व: |
ध्यानम—
कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम | सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||
।।ऋषभ उवाच।। अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निशे:षपापौघहरं पवित्रम् । जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥ २ ॥ नमस्कृत्य महादेवं विश्वव्यापिनमीश्वरम्। वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ ३ ॥ शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: । जितेन्द्रियो जितप्राणश्चिंतयेच्छिवमव्ययम् ॥ ४ ॥ ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् । अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥ ५ ॥ ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्चरं चितानन्दनिमग्नचेता: । षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥ ६ ॥ मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे तन्नाम दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ ७ ॥ सर्वत्रमां रक्षतु विश्वमूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्चिदात्मा । अणोरणीयानुरुशक्तिरेक: स ईश्वर: पातु भयादशेषात् ॥ ८ ॥ यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्वं पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ॥ योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥ ९ ॥ कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: । स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥ १० ॥ प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: । चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥ ११ ॥ कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: । चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ १२ ॥ कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: । त्र्यक्षश्चतुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ १३ ॥ वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: । त्रिलोचनश्चारुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥ १४ ॥ वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ॥ सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥ १५ ॥ मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: । नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्वनाथ: ॥ १६ ॥ पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली । वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥ १७ ॥ कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: । दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥ १८ ॥ मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी । हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्वरो मे ॥ १९ ॥ ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्वरोऽव्यात् । जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥ २० ॥ महेश्वर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥ त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥ २१ ॥ पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे । गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥ २२ ॥ अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् । तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥ २३ ॥ तिष्ठतमव्याद्भुवनैकनाथ: पायाद्व्रजंतं प्रथमाधिनाथ: । वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥ २४ ॥ मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: । अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥ २५ ॥ कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: । घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥ २६ ॥ पत्त्यश्वमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् । अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया २७ ॥ निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य । शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥ २८ ॥ दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि । उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रहार्ति व्याधींश्च नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ २९ ॥ ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सर्वमंत्रस्वरूपाय सर्वयंत्राधिष्ठिताय सर्वतंत्रस्वरूपाय सर्वत्त्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकंठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणिमुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलाधारैकनिलयाय तत्त्वातीताय गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदांतसाराय त्रिवर्गसाधनायानंतकोटिब्रह्माण्डनायकायानंतवासुकितक्षककर्कोटकङ्खकुलिक पद्ममहापद्मेत्यष्टमहानागकुलभूषणायप्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाशदिक्स्वरूपायग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय सकललोकैकर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकल वेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय शाश्वतनिजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय निर्मदाय निश्चिंताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कारणाय निरंतकाय निष्प्रपंचाय नि:संगाय निर्द्वंद्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियय निस्तुलाय नि:संशयाय निरंजनाय निरुपमविभवायनित्यशुद्धबुद्ध परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय जय जय रुद्रमहारौद्रभद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव कपालमालाधर खट्वांगखड्गचर्मपाशांकुशडमरुशूलचापबाणगदाशक्तिभिंदिपालतोमरमुसलमुद्गरपाशपरिघ भुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदनविकटाट्टहासविस्फारितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार नागेन्द्रवलय नागेंद्रचर्मधरमृयुंजय त्र्यंबकपुरांतक विश्वरूप विरूपाक्ष विश्वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्वतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वल ज्वल महामृत्युमपमृत्युभयं नाशयनाशयचोरभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान्मारय मारय ममशमनुच्चाट्योच्चाटयत्रिशूलेनविदारय कुठारेणभिंधिभिंभधि खड्गेन छिंधि छिंधि खट्वांगेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय वाणै: संताडय संताडय रक्षांसि भीषय भीषयशेषभूतानि निद्रावय कूष्मांडवेतालमारीच ब्रह्मराक्षसगणान्संत्रासय संत्रासय ममाभय कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्वासयाश्वासय नरकमहाभयान्मामुद्धरसंजीवय संजीवयक्षुत्तृड्भ्यां मामाप्याय-आप्याय दु:खातुरं मामानन्दयानन्दयशिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादयमृत्युंजय त्र्यंबक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।
Wednesday, November 13, 2013
तुलसी स्तुतिः
आज, तुलसी विवाह या पूजा के दौरान इस प्रार्थना को सुने....
तुलसी स्तुतिः
नारायण उवाच:
अन्तर्हितायां तस्यां च गत्वा च तुलसीवनम्!
हरिः सम्पूज्य तुष्टाव तुलसीं विरहातुरः!! १ !!
श्रीभगवानुवाच:
वृन्दारूपाश्च वृक्षाश्च यदैकत्र भवन्ति च!
विदुर्बुधास्तेन वृन्दां मत्प्रियां तां भजाम्यहम् !! २ !!
पुरा बभूव या देवी त्वादौ वृन्दावने वने !
तेन वृन्दावनी ख्यातासौभाग्यां तां भजाम्यहम् !! 3 !!
असंख्येषु च विश्वेषु पूजिता या निरन्तरम् !
तेन विश्वपूजिताख्यां जगत्पूज्यां भजाम्यहम् !! ४ !!
असंख्यानि च विश्वानिपवित्राणियया सदा !
तां विश्वपावनीं देवीं विरहेण स्मराम्यहम् !! ५ !!
देवा न तुष्टाः पुष्पाणां समूहेन यया विना !
तां पुष्पसारां शुद्धां च द्रष्टुमिच्छामि शोकतः !! ६ !!
विश्वे यत्प्राप्तिमात्रेण भक्तानन्दो भवेद् ध्रुवम् !
नन्दिनीतेन विख्याता सा प्रीता भवताद्धिमे !! ७ !!
यस्यादेव्यास्तुला नास्तिविश्वेषु निखिलेषु च !
तुलसी तेन विख्याता तां यामि शरणं प्रियाम् !! ८ !!
कृष्णजीवनरुपा या शश्वत्प्रियतमा सती !
तेन कृष्णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम् !! ९ !!
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते प्रकृतिखण्डे तुलसी स्तुतिः
श्रीतुलसिमातां समर्पणमस्तु
Saturday, October 5, 2013
दया करो हे दुर्गा माता
तुमको सच्चे मन से ध्याता।
दया करो हे दुर्गा माता।।

व्रत-पूजन में दीप-धूप हैं,
नवदुर्गा के नवम् रूप हैं,
मैं देवी का भजन हूँ गाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
प्रथम दिवस पर शैलवासिनी,
शैलपुत्री हैं दुख विनाशिनी,
सन्तति का माता से नाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
द्वितीय दिवस पर ब्रह्मचारिणी,
देवी तुम हो मंगलकारिणी,
निर्मल रूप आपका भाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
बनी चन्द्रघंटा तीजे दिन,
मन्दिर में रहती हो पल-छिन,
सुख-वैभव तुमसे है आता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
कूष्माण्डा रूप तुम्हारा,
भक्तों को लगता है प्यारा,
पूजा से संकट मिट जाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
पंचम दिन में स्कन्दमाता,
मोक्षद्वार खोलो जगमाता,
भव-बन्धन को काटो माता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
कात्यायनी बसी जन-जन में,
आशा चक्र जगाओ मन में,
भजन आपका मैं हूँ गाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।

कालरात्रि की शक्ति असीमित,
ध्यान लगाता तेरा नियमित,
तव चरणों में शीश नवाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
महागौरी का है आराधन,
कर देता सबका निर्मल मन,
जयकारे को रोज लगाता।
दया करो हे दुर्गा माता।।

सिद्धिदात्री हो तुम कल्याणी
सबको दो कल्याणी-वाणी।
मैं बालक हूँ तुम हो माता।
दया करो हे दुर्गा माता।।
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