Thursday, February 23, 2012

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..
जो रुखा - सूखा दिया हमें, कभी उसका भोग लगा जाना..

ना छत्र बना सका सोने का.. ना चुनरी मेरी तारो जड़ी..
ना पेड़े , बर्फी, मेवा है , है झोली मेरी खाली पडी ..
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ..इस अर्जी को ना ठुकराना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..


जिस घर के दिए मे तेल नहीं.. वहाँ ज्योत जलाऊ मै कैसे..
मेरा खुद ही बिछोना धरती पर, तेरी चौकी सजाऊँ मै कैसे..
जहाँ मै बैठा वही रुक के माँ.. बच्चो का दिल बहला जाना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..


तू भाग्य बनाने वाली है . मै तकदीर का मारा हूँ ..
हे मैया सम्भालो भिखारी को ... मैं तेरी आँख का तारा हूँ .
मै दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तुम भुला जाना..
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना..

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