Thursday, October 15, 2015

वैष्णो देवी की विवाह की प्रतीक्षा

त्रेतायुग की बात है. दक्षिण भारत के रामेश्वरम में समुद्र तट पर एक गांव में
रत्नाकर पंडित रहते थे. रत्नाकर शिवजी और मां आदि शक्ति के बड़े भक्त थे पर उन्हें कोई संतान न थी.रत्नाकर की पत्नी हमेशा मां आदिशक्ति से संतान की गुहार लगाती रहती थीं. उन्होंने लगातार कई वर्षों तक मां की पूजा अर्चना की. कई सालों से संतानहीन रत्नाकर की पत्नी की प्रार्थना एक दिन मां सुन ली.
वह गर्भवती हुई तो एक रात रत्नाकर के सपने में एक बालिका ने आकर कहा- मैं तुम्हारे घर आ रही हूं पर एक शर्त पर, मैं जो कुछ करना चाहूं, रोकोगे नहीं.
पुजारी और सिद्ध पंडित रत्नाकर को यह आभास हो गया कि मां आदिशक्ति के सत, रज और तम को दिखाने वाले तीन रूप महासरस्वती, महालक्ष्मी और महादुर्गा ने मिलकर ही इस कन्या का रूप लिया है.
नियत समय पर इस दिव्य कन्या का जन्म हुआ. रत्नाकर को यह भी पता चल गया था कि यह कन्या मां आदिशक्ति ने धर्म की रक्षा के लिए ही प्रकट की है. रत्नाकर उसी भाव से कन्या का लालन पालन करने लगे. तीनों महाशक्तियों के मिलन के उस स्वरूप को उन्होंने त्रिकुटा नाम दिया. त्रिकुटा
का स्वभाव जन्म से ही अनूठा था. बचपन से ही वह पूजा पाठ और धार्मिक कार्यक्रमों को देख कर प्रसन्न होती.
अभी दसवां साल शुरु भी नहीं हुआ था कि त्रिकुटा को यह पता चल गया था कि भगवान विष्णु ने भगवान श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार ले लिया है. त्रिकुटा ने यह व्रत ले लिया कि वह भगवान श्रीराम से ही विवाह करेगी अन्यथा नहीं.
त्रिकुटा ने अपने पिता से कहा कि वह रामेश्वरम के तट पर रहकर तपस्या करना चाहती हैं. शर्त के मुताबिक रत्नाकर ने उसे नहीं रोका. दस बरस की उम्र से ही त्रिकुटा, समुद्रतट पर एक कुटी बना कर रहने लगी.
वह भगवान श्रीराम को पति मानकर उनको पाने के लिए कठोर तप करने लगी. इसी तरह बहुत बरस बीत गए. सीताहरण के बाद भगवान श्रीराम लक्ष्मण के साथ दलबल लेकर सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुंचे. श्रीराम को पुल बांधने तक यहां रुकना था. इस दौरान समुद्र तट पर एक ध्यानमग्न कन्या को देख बहुत चकित हुए. भगवान श्रीराम ने उस कन्या से पूछा कि तुम कौन हो और इस उम्र
में इतना कठोर तप करने का क्या अर्थ है. कन्या ने अपना परिचय पंडित रत्नाकर की पुत्री त्रिकुटा के रूप में देकर अपनी प्रतिज्ञा बतायी. त्रिकुटा ने भगवान श्रीराम से निवेदन किया कि वे उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लें.
इस पर भगवान श्रीराम ने कहा- यह संभव नहीं है. जब त्रिकुटा ने अपने कठोर तप का वास्ता दिया तो भगवान ने कहा- जब मैं सीता का पता लगाकर लौटूंगा तब तुम्हारे पास आऊंगा. यदि तुम मुझे पहचान लोगी तो मैं तुम्हें अपनाने के बारे में सोचूंगा.
भगवान श्रीराम जब लंका विजय के बाद पुष्पक विमान से लौट रहे थे तब रामेश्वरम के तट पर पहुंचते ही उन्होंने विमान रुकवाकर सारी सेना से कहा- थोड़ी देर रुकें मैं आता हूं. श्रीराम एक अत्यंत बूढे का वेश बनाकर त्रिकुटा के पास पहुंचे. त्रिकुटा उन्हें पहचान न सकी. तब भगवान श्रीराम अपने असली रूप में आ गए. उन्होंने त्रिकुटा से कहा- देवि आप इस परीक्षा में सफल न हो पाईं. वैसे भी इस जन्म में सीता से विवाह कर मैंने एक पत्नीव्रत का प्रण लिया है. इसलिए तुम्हारे साथ विवाह तो असंभव ही था. पर कलियुग में मैं कल्कि अवतार लूंगा तब तुम्हें पत्नी रूप में अवश्य स्वीकार करुंगा. उस समय तक तुम हिमालय स्थित त्रिकूट पर्वत जाकर भक्तों के कष्ट और दु:खों का नाश कर संसार का भला करती रहो. विष्णु का अंश होने, उनके वंश में पैदा होने और विष्णु पूजक होने के नाते सारा संसार तुम्हें मां वैष्णों के रूप में पूजेगा.
तभी से तीन पहाड़ों वाले त्रिकूट पर्वत पर माता वैष्णों देवी के नाम से विराजमान है. श्रीहरि का वरदान होने के कारण वैष्णों माता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं

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