हनुमान जी द्वारा माँ सीता की स्तुति
जानकि त्वाम् नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥
दारिद्र्यरणसन्हर्त्री भक्तानामिष्टदायिनीम् ॥
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम ॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ॥
पौलस्त्यैश्वर्यसन्हर्त्री भक्ताभीष्टाम् सरस्वतीम् ॥
पतिव्रताधुरीणां त्वाम् नमामि जनकात्मजां ॥
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम ॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहं ॥
प्रसादाभिमुखीम् लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभां ॥
नमामि चन्द्रभगिनीम् सीताम् सर्वाङ्गसुन्दरीम् ॥
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरं ॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णु वक्षः स्थलालयां ॥
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥
आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥
नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥
सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥
(स्कन्द पुराण ४६/५०-५७)
जो मनुष्य वायुपुत्र हनुमान द्वारा वर्णित श्री राम और सीताजी के इन पाप नाशक स्तोत्रों का प्रतिदिन पाठ करता है , वह सदा मनोवांछित महान एश्वर्य का उपभोग करता है |( श्री राम की स्तुति का स्तोत्र 22.4.2011 को दिया जा चुका है )

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