Wednesday, June 4, 2014

गंगा दशहरा



8 जून 2014 को  गंगा दशहरा का पावन पर्व है । शिव शंकर की जटा से निकलने वाली माँ गंगा, जिनका जल जहां से होकर गया वहीं पवित्र तीर्थ हो गए।  हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गौ, गंगा एवं
गायत्री इन तीनों को पापनाशक त्रिवेणी बतलाया गया है। आज ही के दिन कलिमल का दहन
करने में सक्षम गंगाजी अवतरण हुआ था अतः आज गंगास्नान का विशेष महत्व  बताया गया
है। आइये पहले माँ गंगा के स्वरूप का चिंतन करते हैं। माँ गंगा जी का ध्यान इस
प्रकार है-

सितमकरनिषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम्

करधृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् ।

विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडाम्

कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥
अर्थात्
श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए
कलश तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु
तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकुट वाली
तथा सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ। 
  जब गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ उस समय ये दस प्रकार के योग बने थे-
ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो:
व्यतीपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।।
अर्थात् ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग,
गर और आनन्द योग, कन्या राशि में चंद्रमा तथा वृष राशि में सूर्य - इन दस योगों से
युक्त समय में अवतीर्ण हुई गंगा का स्नान दस पापों का हरण करता है।

    दस पाप निम्न माने जाते हैं –
 बिना दी हुई वस्तु को ले लेना, निषिद्ध हिंसा, परस्त्री गमन- ये तीन दैहिक पाप हैं।
कठोर वचन मुँह से निकालना, झूठ बोलना, चुगली करना और अनाप शनाप बातें बकना- ये वाणी
से होने वाले चार पाप हैं।
 दूसरे के धन को लेने का विचार करना, मन से दूसरों का बुरा सोचना और असत्य
वस्तुओं  में आग्रह रखना (व्यर्थ की बातों में दुराग्रह)- ये तीन मानसिक पाप हैं।
 इन दस पापों का हरण करने में यही गंगा दशहरा नामक पावन त्यौहार सक्षम है। स्कन्द
पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा तट पर रात्रि
जागरण करके दस प्रकार के दस-दस सुगंधित पुष्पों, फल, दस दीप, नैवेद्य और दशांग धूप
द्वारा गंगाजी की दस बार श्रद्धा के साथ पूजा करने का विधान है । इसके अंतर्गत
गंगाजी के जल में तिलों की दस अंजलि डालें। फिर गुड व सत्तू  के दस पिंड बनाकर
इन्हें भी गंगाजी में डाल दें। गंगाजी के लिए उक्त पूजा, दान, जप, होम ये सभी
कार्य-
'ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा'
इस मंत्र को जपते हुए  किए जाने चाहिए। इसके साथ ही ब्रह्माजी, विष्णुजी,  शिवजी,
सूर्य देव का, हिमवान् पर्वत और राजा भगीरथ का भी भलीभांति अर्चन-स्मरण करना चाहिए।
फिर दस ब्राह्मणों को दस के ही वजन में [दस ग्राम/किलो/सेर आदि] तिल दान करें व 
गंगा दशहरा स्तोत्र पढ़ें। गंगा जी का वह पवित्र स्तोत्र अनुवाद सहित प्रस्तुत है -

 ॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥

ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।

नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते रुद्ररुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेवस्वरुपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये॥
ॐ शिवस्वरूपा श्रीगंगा जी को नमस्कार है। कल्याणदायिनी गंगा जी को नमस्कार है। हे
देवि गंगे! आप विष्णुरूपिणी हैं, आपको नमस्कार है। हे ब्रह्मस्वरूपा! आपको नमस्कार
है, नमस्कार है। हे रुद्रस्वरूपिणी! शांकरी! आपको नमस्कार है। हे सर्वदेवस्वरूपा!
औषधिरूपा! देवी आपको नमस्कार है।
सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
आप सबके संपूर्ण रोगों की श्रेष्ठ वैद्य हैं, आपको नमस्कार है। स्थावर और जंगम
प्राणियों से प्रकट होने वाले विष का आप नाश करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। संसार
के विषय रूपी विष का नाश करने वाली जीवनरूपा आपको नमस्कार है। आध्यात्मिक, आधिदैविक
और आधिभौतिक तीनों प्रकार के क्लेशों का संहार करने वाली आपको नमस्कार है। प्राणों
की स्वामिनी आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
 शांति का विस्तार करने वाली शुद्ध स्वरूपा आपको नमस्कार है। सबको शुद्ध करने वाली
तथा पापों की शत्रुस्वरूपा आपको नमस्कार है। भोग, मोक्ष तथा कल्याण प्रदान करने
वाली आपको बार-बार नमस्कार है। भोग और उपभोग देने वाली भोगवती नाम से प्रसिद्ध आप
पाताल गंगा को नमस्कार है।
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥

मंदाकिनी नाम से प्रसिद्ध तथा स्वर्ग प्रदान करने वाली आप आकाश गंगा को बार-बार
नमस्कार है। आप भूतल, आकाश और पाताल तीन मार्गों से जाने वाली और तीनों लोकों की
आभूषण स्वरूपा है, आपको बार-बार नमस्कार है। गंगाद्वार, प्रयाग और गंगा सागर संगम
इन तीन विशुद्ध तीर्थ स्थानों में विराजमान आपको नमस्कार है। क्षमावती आपको नमस्कार
है। गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्निरूप त्रिविध अग्नियों में स्थित रहने वाली
तेजोमयी आपको बार-बार नमस्कार है।
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै  रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
शिवलिंग धारण करने वाली आपको नमस्कार है। सुधाधारामयी आपको नमस्कार है। जगत में
मुख्य सरितारूप आपको नमस्कार है। रेवतीनक्षत्ररूपा आपको नमस्कार है। बृहती नाम से
प्रसिद्ध आपको नमस्कार है। लोकों को धारण करने वाली आपको नमस्कार है। संपूर्ण विश्व
के लिए मित्ररूपा आपको नमस्कार है। समृद्धि देकर आनंदित करने वाली आपको नमस्कार है।

पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥

हे मां गंगा,आप पृथ्वीरूपा हैं, आपको नमस्कार है। आपका जल कल्याणमय है और आप उत्तम
धर्मस्वरूपा हैं, आपको नमस्कार है, नमस्कार है। बड़े-छोटे सैकड़ों प्राणियों से
सेवित आपको नमस्कार है। सबको तारने वाली आपको नमस्कार है, नमस्कार है। संसार बंधन
का उच्छेद करने वाली अद्वैतरूपा आपको नमस्कार है। आप परम शांत, सर्वश्रेष्ठ तथा
मनोवांछित वर देने वाली हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
आप प्रलयकाल में उग्ररूपा हैं, अन्य समय में सदा सुख का भोग करवाने वाली हैं तथा
उत्तम जीवन प्रदान करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मज्ञान
देने वाली तथा पापों का नाश करने वाली हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। प्रणतजनों की
पीड़ा का नाश करने वाली जगन्माता आपको नमस्कार है। आप समस्त विपत्तियों की
शत्रुभूता तथा सबके लिए मंगलस्वरूपा हैं, आपके लिए बार-बार नमस्कार है।

 शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
  शरणागतों, दीनों तथा पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली और सबकी पीड़ा दूर
करने वाली देवि नारायणि! आपको नमस्कार है। आप पाप-ताप अथवा अविद्यारूपी मल से
निर्लिप्त, दुर्गम दुख का नाश करने वाली तथा दक्ष हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है।
आप, पर और अपर सबसे परे हैं। मोक्षदायिनी गंगे! आपको नमस्कार है।
गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे॥
गंगे! आप मेरे आगे हों, गंगे! आप मेरे पीछे रहें, गंगे! आप मेरे उभयपार्श्व में
स्थित हों तथा गंगे! मेरी आप में ही स्थिति हो। आकाशगामिनी कल्याणमयी गंगे! आदि,
मध्य और अंत में सर्वत्र आप हैं गंगे! आप ही मूलप्रकृति हैं, आप ही परम पुरुष हैं
तथा आप ही परमात्मा शिव हैं। शिवे! आपको नमस्कार है।

     इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना, सुनना मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाले
पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा
हुआ होता है उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता है।


  'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा'

      इस मंत्र का भी गंगा दशहरा के दिन यथाशक्ति पाठ करना चाहिए। इस प्रकार विधिवत
पूजाकर दिनभर उपवास करने वाले के ऊपर बताये गये दस पापों को गंगा जी हर लेती हैं।