Thursday, September 17, 2015

‘सहस्त्रलिंगा’

आज हम आपको एक ऐसी जगह ले जाने वाले हैं जहां एक या दो नहीं, वरन् हज़ारों शिवलिंग मौजूद हैं।इस जगह को ‘सहस्त्रलिंगा’ के नाम से जाना जाता है, अर्थात् हज़ारों लिंग। ये ऐतिहासिक जगह कर्नाटक के उत्तर कन्नड ज़िले में एक नदी पर स्थित है। इस नदी का नाम शामला है। यहां चट्टान पर शिवलिंग बने हैं। यह शिवलिंग नदी के घटते जलस्तर के साथ ही दिखने लगते हैं |यहां आए पर्यटक बहते हुए हज़ारों शिवलिंग को देखकर अचंभित हो जाते हैं। यह दृश्य ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान शिव ‘शिवलिंग’ का रूप धारण कर नदी से बाहर आ रहे हैं और भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। इस भव्य दृश्य को देखने के लिए रोज़ाना पर्यटकों के साथ-साथ भगवान शिव पर आस्था रखने वाले भक्तों का यहां तांता लगा रहता है। दरअसल सिरसी के राजा सदाऐश्वर्य (1678-1718) ने इन शिवलिंगों का निर्माण करवाया था। शायद इतने वर्षों में यह जगह जलाशय में तब्दील हो जाने के कारण राजा द्वारा बनाए गए शिवलिंग पाने के नीचे छिप गए।कुछ छोटे आकार के और कुछ बड़े आकार के शिवलिंग यहां आसानी से देखे जा सकते हैं।शिवलिंग के अलावा कई बार भक्तों ने यहां कुछ बड़ी-बड़ी चट्टानें भी बहते पानी में देखी हैं, जिन पर पशु-पक्षियों की आकृतियां बनी हुई हैं।एक चट्टान पर शिव के वाहन नन्दी भी विराजमान हैं।


गणेश जी की पत्नियां

पहले गणेशजी का चेहरा भी मनुष्य के चेहरे की तरह था। लेकिन एक बार भगवान शिव जब माता पार्वती से मिलने पहुंचे तो गणेशजी ने उन्हें नहीं जाने दिया तब शंकरजी ने गणेश जी का सिर त्रिशूल से अलग कर दिया था।
इसके बाद गणेशजी के सिर में हाथी का सिर जोड़ा गया। हाथी के सिर की सुंदरता बढ़ाने वाले उनके दो दांत भी थे। लेकिन परशुराम के साथ युद्ध में गणेशजी का एक दंत भी टूट गया। और वो एकदंत कहलाए। उनका शरीर भी बड़ा था।
इसलिए उनसे कोई भी सुशील कन्या विवाह के लिए राजी नहीं होती थी। गणेशजी इस बात से नाराज थे। उन्होंने कहा, 'अगर मेरा विवाह नहीं हो रहा तो मैं किसी ओर का विवाह भी नहीं होने दूंगा।'
उन्होंने अपने चूहे को आदेश दिया कि जिस रास्ते से किसी भी देवता की बारात गुजरे उस रास्ते को और विवाह मंडप की भूमि को अंदर से खोखला कर विघ्न डालो। चूहे ने गणेशजी के कहने पर वैसा ही किया। सारे देवता परेशान हो गए। शिवजी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था| देवी पार्वती ने सलाह दी कि ब्रह्माजी से इस समस्या का हल पूंछा जाए।
तब ब्रह्माजी योग में लीन हुए और योग से ही दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि अवतरित हुईं। दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं। उन दोनों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और कहा वह उन्हें शिक्षा दें। गणेशजी तैयार हो गये। जब भी चूहा गणेशजी के पास किसी के विवाह की सूचना लाता तो ऋद्धि और सिद्धि ध्यान बांटने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं।
इस तरह विवाह निर्विघ्न होने लगे। एक दिन चूहा आया और उसने देवताओं के निर्विघ्न विवाह के बारे में बताया तब गणेश जी को सारा मामला समझ में आया।
गणेशजी के क्रोधित होने से पहले ब्रह्माजी उनके पास ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए। उन्होंने कहा, आपने स्वयं इन्हें शिक्षा दी है। मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें।

इस तरह ऋद्धि(बुद्धि- विवेक की देवी) और सिद्धि (सफलता की देवी) से गणेशजी का विवाह हो गया। और फिर बाद में गणेश जी के शुभ और लाभ दो पुत्र भी हुए।

“मनोकामना इच्छा पूर्ती श्री सिद्धि विनायक मंदिर”




“मनोकामना इच्छा पूर्ती श्री सिद्धि विनायक मंदिर”
श्री सिद्धि विनायक मंदिर भारत वर्ष की राजधानी दिल्ली में मधुबन चौक के पास बरगद के पेड़ में स्थापित है| यह बरगद का पेड़ वर्षो पुराना है| श्रद्धालूओं एवं भक्तजनो की ऐसी आस्था है कि श्री सिद्धि विनायक जी का निवास इस बरगद के पेड़ के नीचे है, जहाँ वास्तविकता में साक्षात गणपति जी के होने का आभास होता है | शायद इसी आस्था के कारण वर्षो से इस बरगद के नीचे भक्त जन दीपक जलाकर पेड़ पर कलावा व धागा बांधकर पूजा अर्चना करते है | लोगो की ऐसी आस्था है कि श्री सिद्धि विनायक जी सभी भक्त जनो की मनोकामना पूरी करते है |
भक्तजन पूजन, भजन कीर्तन करते हुए भगवान सिद्धि विनायक के मंदिर में मनोकामना के लिए वट वृक्ष पर मोली व कलावा तथा दीपक जलाकर अचर्ना करते है |
 

धर्मग्रंथो में वर्णित 9 रहस्यमयी मणियां

धर्मग्रंथो में वर्णित 9 रहस्यमयी मणियां
1.पारस मणि : पारस मणि का जिक्र पौराणिक और लोक कथाओं में खूब मिलता है। इसके हजारों किस्से और कहानियां समाज में प्रचलित हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है। पारस मणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के आस-पास ही पाई जाती है। हिमालय के साधु-संत ही जानते हैं कि पारस मणि को कैसे ढूंढा जाए, क्योंकि वे यह जानते हैं कि कैसे कौवे को ढूंढने के लिए मजबूर किया जाए।
2.नीलमणि : नीलमणि एक रहस्यमय मणि है। असली नीलमणि जिसके भी पास होती है उसे जीवन में भूमि, भवन, वाहन और राजपद का सुख होता है। असली नीलमणि से नीली या बैंगनी रोशनी निकली है|
3.नागमणि : नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है।नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं जिसके सिर पर मणि थी।
4.कौस्तुभ मणि : कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। पुराणों के अनुसार यह मणि समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 मूल्यवान रत्नों में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान मणि है।
यह मणि जहां भी होती है, वहां किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती। यह मणि हर तरह के संकटों से रक्षा करती है। माना जाता है कि समुद्र के तल या पाताल में आज भी यह मणि पाई जाती है।
5.चंद्रकांता मणि : माना जाता है कि असली चंद्रकांता मणि जिसके भी पास होती है उसका जीवन किसी चमत्कार की तरह पलट जाता है। इस मणि की तरह ही उसका जीवन चमकने लगता है। उसकी हर तरह की इच्‍छाएं पूर्ण होने लगती हैं।कहते हैं कि झारखंड के बैजनाथ मंदिर में चंद्रकांता मणि है।
शुश्रुत संहिता में चन्द्र किरणों का उपचार के रूप में उल्लेख मिलता है जिनमें प्रमुख है अद्भुत चंद्रकांत मणि का उल्लेख। इस मणि की एक प्रमुख विशेषता होती है कि इसे चन्द्र किरणों में रखने पर इससे जल टपकने लगता है। इस जल में कई अद्भुत औषधीय गुण होते हैं।
रक्षोघ्नं शीतलं हादि जारदाहबिषापहम्।
चन्द्रकान्तोद्भवम् वारि वित्तघ्नं विमलं स्मृतम्।। सुश्रुत 45/27।।
अर्थात चन्द्रकांता मणि से उत्पन्न जल कीटाणुओं का नाश करने वाला है। शीतल, आह्लाददायक, ज्वरनाशक, दाह और विष को शांत करने वाला है।
6.स्यमंतक मणि : स्यमंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। यह बहुत काल तक भारत के क्षत्रिय शासकों के पास रहा फिर यह मुगलों के हाथ लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल किया और अब यह हीरा ब्रिटेन के म्यूजियम में रखा है।
7.स्फटिक मणि : स्फटिक मणि सफेद रंग की चमकदार होती है। यह आसानी से मिल जाती है। लोग स्फटिक की माला धारण करते हैं। इसको धारण करने से सुख, शांति, धैर्य, धन, संपत्ति, रूप, बल, वीर्य, यश, तेज व बुद्धि की प्राप्ति होती है तथा इसकी माला पर किसी मंत्र को जप करने से वह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।
8.लाजावर्त मणि : इस मणि का रंग मयूर की गर्दन की भांति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है। यह मणि भी प्राय: कम ही पाई जाती है।
लाजावर्त मणि को धारण करने से बल, बुद्धि एवं यश की वृद्धि होती ही है।
9.उलूक मणि : उलूक मणि के बारे में ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है। हालांकि अभी तक इसे किसी ने देखा नहीं है। माना जाता है कि इसका रंग मटमैला होता है।
यह किंवदंती है कि किसी अंधे व्यक्ति को यदि घोर अंधकार में ले जाकर द्वीप प्रज्वलित कर उसकी आंख से इस मणि को लगा दें तो उसे दिखाई देने लगता है। दरअसल यह नेत्र ज्योति बढ़ाने में लाभदायक है।

Sunday, September 6, 2015

5 तत्वों के 5 मंदिर

शिव पुराण की कैलाश संहिता के अनुसार शिव से ईशान उत्पन्न हुए और ईशान से पांचतत्वों की उत्पत्ति हुई। पहला तत्व आकाश, दूसरा वायु, तीसरा अग्नि, चौथा जल और पांचवां पृथ्वी है। इन पांचों का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है। आकाश में एक ही गुण है -शब्द , वायु में शब्द और स्पर्श दो गुण है, अग्नि में शब्द, स्पर्श और रूप इन तीन गुणों की प्रधानता है, जल में शब्द, स्पर्श, रूप और रस ये चार गुण माने गए हैं और पृथ्वी शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन पांच गुणों से संपन्न है। उपरोक्त पांचों तत्वों से संबंधित शिव मंदिर दक्षिण भारत में स्थित है।
1. आकाश तत्व का शिव मंदिर तमिलनाडू के चिदंबरम में है .
2.वायु तत्व का शिव मंदिर श्री कालहस्ती, आंध्र प्रदेश में है .
3.कांचीपुरम में एकम्बरेस्वर मंदिर, जहां भगवान की पूजा उनके पृथ्वी रूप में की जाती है .
4.तिरुचिरापल्ली,( थिरुवनाईकवल) में जम्बुकेस्वर मंदिर, जहां भगवान की पूजा उनके जल रूप में की जाती है.
5.तिरुवनमलाई ,तमिलनाडू में अन्नामलाइयर मंदिर, जहां भगवान की पूजा अग्नि रूप में की जाती है.

वृहदेश्वर मंदिर

वृहदेश्वर मंदिर
बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह (13) मंजिले भवन की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।
यह कला की प्रत्येक शाखा - वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।
मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।





राजस्थान का घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां
एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग है। यह द्धादशवां ज्योतिर्लिंग राजस्थान राज्य के
सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल मे स्थित है। जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवें नं.12 पर बरोनी होकर (बरोनी से 21 किलोमीटर दूर) स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।
घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है।
वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उधान
रात्री के समय लाइटिंग में अदभुत छटायेँ बिखेरता हैं।
भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले
वर्षो मेँ कई दावे व आपत्तियां उठाई गई। लेकिन शिवपुराण के प्रमाण से ये
साबित हो गया है की यह द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय,शिवाड़ (राजस्थान) मेँ ही स्थित है। शिवपुराण के अनुसार बाहरवां (द्धादशवां) ज्योतिर्लिंग शिवालय
मेँ है। शिव महापुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में स्थित है। प्राचीन काल में शिवाड का नाम शिवालय ही था।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम | उज्जयिन्यां महाकालंओंकारं
ममलेश्वरम ||
केदारं हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम | वाराणस्यां च विश्वेशं त्रयम्बकं
गोतमी तटे ||
वैधनाथं चितभूमौ नागेशं दारुकावने | सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये
||
(शिव पुराण कोटि रूद्र संहिता 32-33)

कसार देवी मंदिर

दुनिया में तीन पर्यटक स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शन तो होते ही हैं, साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी हैं।
इनमें से एक भारत के उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थिति कसारदेवी मंदिर है। इन तीनों धर्म स्थलों पर हजारों साल पहले सभ्यताएं बसी थीं। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूपसे इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। कसारदेवी मंदिर के आसपास पूरा क्षेत्र वैन में धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं।
पिछले दो साल से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है।
अब तक हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं।

दुनिया में तीन पर्यटक स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शन तो होते ही हैं, साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी हैं।
इनमें से एक भारत के उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थिति कसारदेवी मंदिर है। इन तीनों धर्म स्थलों पर हजारों साल पहले सभ्यताएं बसी थीं। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूपसे इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। कसारदेवी मंदिर के आसपास पूरा क्षेत्र वैन में धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं।
पिछले दो साल से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है।
अब तक हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं।
 

भाग्यशाली अंक 18

अंकशास्त्र के अनुसार हमारे जन्म की तारीख जिसे हम मूलांक कहते हैं, हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। यह मूलांक हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर असरदार साबित होता है।इस मूलांक के जरिये किसी व्यक्ति के स्वभाव, उसकी पसंद-नापसंद, उसके लिए जीवन में क्या अच्छा है तथा कौन सी चीज़ें उसके लिए बुरी साबित हो सकती हैं, यह सारी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ‘18’ के अंक को अंकशास्त्र विद्या के अनुसार बेहद असरदार माना गया है। यह अंक अपने आप ही आपके लिए सौभाग्यशाली साबित हो सकता है। इस अंक में ऐसे चमत्कारी प्रभाव हैं कि यह रुके हुए काम तो बनाता ही है, साथ ही इस अंक का परस्पर उपयोग एक धनहीन व्यक्ति को मालामाल बना सकता है।18 अंक दुनिया भर में काफी शुभ अंक माना जाता है। यह बात हर कोई जानता है कि अंकशास्त्र के भीतर यदि कोई अंक सबसे अशुभ माना गया है तो वह है 13। इस अंक का प्रभाव इतना अधिक है कि लोग इसे इस्तेमाल करने से भी कतराते हैं।पर 18 अंक को लेकर दुनिया भर में कई मान्यताएं देखी गई हैं। चीन में मान्यता है कि अंक 18 धन और समृद्धि का प्रतीक है। इसलिए व्यवसाय या नौकरी से संबंधित या फिर कोई भी धन से जुड़ा कार्य करने के लिए 18 तारीख को जरूर चुना जाता है।मान्यताओं के आधार पर अंक 18 का उच्चारण करने से सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है जो धन वैभव को आकर्षित करता है। चीन में यह विश्वास इतना गहरा है कि यहां लोग 18वें नंबर का घर और 18 नंबर का फ्लैट लेना पसंद करते हैं। एक लाईन में बने मकानों में सभी के दाम एक जैसे होते हैं लेकिन इनमें से 18वें नंबर का मकान सबसे महंगा बिंकता है। हमारे देश भारत में भी अंक 18 को शुभ माना जाता है।आज से ही नहीं बल्कि पौराणिक युग से 18 अंक को महत्व हासिल हुआ है। हिन्दू पुराणों की संख्या 18 रखी गई है, इसके अलावा शास्त्र भी कुल 18 ही हैं। महाभारत महाकाव्य को भी 18 भागों में ही बांटा गया है।18 कोजोड़ने से 9 मूलांक आता है जो गुरु से प्रभावित है, जो व्यक्ति के जीवन में धन और उन्नति का मार्ग खोलता है। इसलिये इस तारीख को जन्म लेने वाले लोग काफी भाग्य शाली माने जाते हैं। इसके अलावा 18 अंक की तरह ही भारत में अंक 9 का काफी इस्तेमाल किया जाता है।

सीता के वनवास का रहस्य

सीता के वनवास का रहस्य :
एक बार सीता  अपनी सखियों के साथ मनोरंजन के लिए महल के बाग में गईं. उन्हें पेड़ पर बैठे तोते का एक जोड़ा दिखा.
दोनों तोते आपस में सीता के बारे में बात कर रहे थे. एक ने कहा-अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार हैं जिनका नाम श्रीराम है. उनसे जानकी का विवाह होगा.श्रीराम ग्यारह हजार वर्षों तक इस धरती पर शासन करेंगे. सीता-राम एक दूसरे केजीवनसाथी की तरह इस धरती पर सुख से जीवन बिताएंगे.
सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगीं. उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई. सखियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए. सीता ने उन्हें प्यार से पुचकारा और कहा- डरो मत. तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो. यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला. मुझसे भयभीत होने की जरूरत नहीं.
दोनों का डर समाप्त हुआ. वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं. दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं. वे उनके आश्रम में ही रहते हैं. वाल्मिकी रोज राम-सीता जीवन की चर्चा करते हैं. वे यह सब सुना करते हैं और सब
कंठस्थ हो गया है.
सीता ने और पूछा तो शुक ने कहा- दशरथ पुत्र राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी. तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी.सीता पूछती जातीं और शुक उसका उत्तर देते जाते. दोनों थक गए. उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है. कई माह लगेंगे सुनाने में. यह कह कर दोनों उड़ने को तैयार हुए.
सीता ने कहा- तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया है. उनके बारे में बड़ी
जिज्ञासा हुई है. जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो.
शुकी ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है. पेडों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं. मैं
गर्भवती हूं. मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है.
सीताजी नहीं मानी. शुक ने कहा- आप जिद न करें. जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाउंगा. अभी तो हमें जाने दें.
सीता ने कहा- ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी. मैं इसे कष्ट न होने दूंगी. शुक को पत्नी से बड़ा प्रेम था. वह अकेला जाने को तैयार न था. शुकी भी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकती थी . उसने सीता को कहा- आप मुझे पति से अलग न करें. मैं आपको शाप दे दूंगी.
सीता हंसने लगीं. उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो. राजकुमारी को पक्षी के शाप से  क्या बिगड़ेगा.शुकी ने शाप दिया- एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा. शाप देकर शुकी ने प्राण त्याग दिए.
पत्नी को मरता देख शुक क्रोध में बोला- अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूंगा.
वही शुक(तोता) अयोध्या का धोबी बना जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्काषित कर दें.