Wednesday, July 13, 2011

गुरू-पूर्णिमा


गुरू-पूर्णिमा

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।

शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

भारत भर में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।

वास्तव में हम जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीखते हैं , वो ही हमारा गुरु हो जाता है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए |आजकल कुछ लोग गुरु का बहुत संकुचित अर्थ लेते हैं और केवल गुरु मन्त्र या दीक्षा देने वाले को गुरु मानते हैं |जन्म लेने के बाद हम सब से पहले मां से दूध पीना सीखते है और मां हर व्यक्ति की प्रथम गुरु होती है | फिर पिता से चलना सीखते हैं ,मित्रों से, बड़े भाई व बहनों से बहुत कुछ सीखते हैं अतः ये सब हमारे गुरु भी होते हैं |

गुरु को सूर्य के समान होना चाहिए |हनुमान चालीसा मे कहा गया है -

जय जय जय हनुमान गोसाईं , कृपा करहु गुरुदेव की नाईं |

हनुमान जी से प्रार्थना की गई है कि आप अपने गुरुदेव ( सूर्य देव ) की ही तरह कृपा करिए | सूर्य की यह विशेषता है कि वो अपनी ऊर्जा व शक्ति सभी को देता रहता है भले ही कोई उनकी पूजा करे या न करे | हनुमान जी से भी यही प्रार्थना की गयी है कि आप अपनी कृपा हमें देते रहे भले ही हम आपकी पूजा कर सके या न कर सकें | सूर्य को इसी लिए प्रथम गुरु माना गया है | गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सूर्य देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए |

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