Wednesday, August 6, 2014

हिंदू धर्म के 10 पवित्र वृक्ष

हिंदू धर्म के 10 पवित्र वृक्ष,

1.पीपल देव : हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है। पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है। वैदिक काल में इसे अश्वार्थ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसकी छाया में घोड़ों को बांधा जाता था। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।
पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
पीपल परिक्रमा : स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है।
अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
पीपल पूजा : शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है।

2.बरगद या वटवृक्ष : बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। पीपल के बाद बरगद का सबसे ज्यादा महत्व है। पीपल में जहां भगवान विष्णु का वास है वहीं बरगद में ब्रह्मा, विश्णु और शिव का वास माना गया है। बरगद को साक्षात शिव भी कहा गया है। बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है।
हिंदू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
3.आम : हिंदू धर्म में जब भी कोई मांगलिक कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ लगाकर मांगलिक उत्सव के माहौल को धार्मिक और वातावरण को शुद्ध किया जाता है।
अक्सर धार्मिक पंडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। आम के वृक्ष की हजारों किस्में हैं और इसमें जो फल लगता है वह दुनियाभर में प्रसिद्ध है। आम के रस से कई प्रकार के रोग दूर होते हैं।
4. शमी :
वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ति से निजात पा सकता है।इसे भविष्यवक्ता वृक्ष भी कहते हैं |
5.बिल्व वृक्ष : बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम, पारिजात और पलाश आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है।
धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ| कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। 'शिवपुराण' में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है।
6.अशोक वृक्ष : अशोक वृक्ष को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र और लाभकारी माना गया है। अशोक का शाब्दिक अर्थ होता है- किसी भी प्रकार का शोक न होना। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है।
माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। अशोक का वृक्ष वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृमि, शोथ, विष तथा रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है। इसके उपयोग से चर्म रोग भी दूर होता है। अशोक का वृक्ष घर में उत्तर दिशा में लगाना चाहिए जिससे गृह में सकारात्मक ऊर्जा का संचारण बना रहता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है एवं अकाल मृत्यु नहीं होती।
अशोक का वृक्ष आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लंबे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं इसीलिए इसे 'ताम्रपल्लव' भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरे लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है।
7.नारियल का वृक्ष : हिन्दू धर्म में नारियल के बगैर तो कोई मंगल कार्य संपन्न होता ही नहीं। नारियल का खासा धार्मिक महत्व है। 60 फुट से 100 फुट तक ऊंचा नारियल का पेड़ लगभग 80 वर्षों तक जीवित रहता है। 15 वर्षों के बाद पेड़ में फल लगते हैं।
पूजा के दौरान कलश में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। यह मंगल प्रतीक है। नारियल का प्रसाद भगवान को चढ़ाया जाता है।
पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। ये भाग किसानों के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इस् से घरों के पाट, फर्नीचर आदि बनाए जाते हैं। पत्तों से पंखे, टोकरियां, चटाइयां आदि बनती हैं। इसकी जटा से रस्सी, चटाइयां, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक वस्तुएं बनती हैं। यह गद्दों में भी भरा जाता है। नारियल का तेल सबसे ज्यादा बिकता है।
8.अनार : अनार के वृक्ष से जहां सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता हैं वहीं इस वृक्ष के कई औषधीय गुण भी हैं। पूजा के दौरान पंच फलों में अनार की गिनती की जाती है।
अनार को दाडम या दाड़िम आदि अलग-अलग नाम से जानते हैं। अनार का वृक्ष भी बहुत ही सुंदर होता है जिसे बगिया की शोभा के लिए भी लगाया जा सकता है। इसकी कली, फूल और फल भी कुछ कम सुंदर नहीं होते।
अनार का प्रयोग करने से खून की मात्रा बढ़ती है। इससे त्वचा सुंदर व चिकनी होती है। रोज अनार का रस पीने से या अनार खाने से त्वचा का रंग निखरता है। अनार के छिलकों के एक चम्मच चूर्ण को कच्चे दूध और गुलाब जल में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा दमक उठता है। अपच, दस्त, पेचिश, दमा, खांसी, मुंह में दुर्गंध आदि रोगों में अनार लाभदायक है। इसके सेवन से शरीर में झुर्रियां या मांस का ढीलापन समाप्त हो जाता है।
9.नीम का वृक्ष : नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम का सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है। नीम को संस्कृत में निम्ब कहा जाता है। यह वृक्ष अपने औषधीय गुणों के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
नीम के पेड़ का औषधीय के साथ-साथ धार्मिक महत्त्व भी है। मां दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं नीमारी देवी भी कहते हैं। इस पेड़ की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएं से बुरी और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है।
10. केले का पेड़ : केले का पेड़ काफी पवित्र माना जाता है और कई धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
केला हर मौसम में सरलता से उपलब्ध होने वाला अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट करता है।

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