Friday, July 2, 2010

बजरंग बाण

हनुमान् बजरंग बाण॥

निश्चय प्रेम प्रतीत ते विनय करैं सनमान॥
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करैं हनुमान॥
जै हनुमंत संत हितकारी॥
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन् के काज विलम्ब न कीजै ॥
आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥
ज़ैसै कूदि सिन्धु महि पारा॥
सुरसा बदन पैठि विस्तारा॥
आगै जाई लंकिनी रोका॥
मारेहु लात गई सुर् लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा॥
सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महं बोरा॥
अति आतुर जम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार को मार संहारा॥
लूम लपेट लन्क को जारा॥
लाह समान् लंक जरि गई॥
जय जय जय धुनि सुर पुर भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी॥
कृपा करहु उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता॥
आतुर हैं दुःख करहु निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर |
सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त् हठीले॥
बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा बज्र् लै बैरिहि मारो॥
महाराज् प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुन्कार महा-प्रभु धावो॥
बज्र् गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त् कपिसा॥
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥
सत्य होहु हरि शपथ् पाय के॥
राम दूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त् अगाधा ॥
दुख् पावत् जन् केहि अपराधा॥
पूजा जप ताप नाम् अचारा॥
नहिं जानत् कछु दास् तुम्हारा॥
वन् उपवन् मग् गिरि गृह माहीं ।
तुम्हरे बल् हम् डरपत नाहीं ॥
पांय परऊं कर् जोरि मनावौ॥
येहि अवसर् अब् केहि गोहरावौं॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता॥
शंकर सुवन बीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल कुल घालक॥
राम सहाय सदा प्रति पालक्॥
भूत् प्रेत् पिशाच् निसाचर्॥
अग्नि बैताल् काल् मारी मर॥
इन्हें मारु तोहिं शपथ् राम् की॥
राखु नाथ् मरजाद् नाम् की॥
जनक् सुता हरि दास् कहावो॥
ताकी शपथ् विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत् अकाशा॥
सुमिरत् होत् दुसह् दुख् नाशा॥
चरन् शरन कर् जोरि मनावौं॥
येहि अवसर् अब् केहि गहरावौं॥
उठु उठु चल् तोहे राम् दुहाई॥
पांय परौं कर् जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक् देत् कपि चंचल्॥
ॐ सं सं सहम पराने खल् दल॥
अपने जन को तुरत उबारो |
सुमरत होय आनंद हमारो |
यह बजरंग बाण जेहि मारो |
ताहि कहो फिर् कौन् उबारै॥
पाठ करे बजरंग् बाण् की॥
हनुमन्त् रक्षा करैं प्राण् की॥
यही बजरंग बाण जो जापै|
ताते भूत् प्रेत् सब कांपै॥
धूप् देय् अरु जपै हमेशा॥
ताके तन् नहिं रहे कलेशा॥

दोहा -प्रेम प्रतीतहि कपि भजै सदा धरैं उर ध्यान ॥
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥




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