बन्दी-मोचन स्तोत्र
हा नाथ! हा नरा वरोत्तम! हा दयालो! सीता-पतेः रुचिर्कुन्तल-शोभि-वक्त्रम्।
भक्तार्ति-दाहक मनोहर-रुप-धारिन्! मां बन्धनात् सपदि मोचय माविलम्बम्।।
सम्मोचितोऽस्तु भरताग्रज-पुंगवाढ्याः। देवाश्च दानव-कुलाग्नि-सुदह्यमाना।
तत्सुन्दरी-शिरसि संस्थित-केश-बन्धः। सम्मोचितोऽस्तु करुणालय मां पादम्।।
अत्राह महा-सुरथेन सु-विगाढ़ पाशः। बद्धोऽस्मि मां पुरुषाशु देव!
नो मोचयिष्यसि यदि स्मरणर्तिरेक! त्वं सर्व-देव-परिपूजित-पाद-पद्मम्।।
लोको भवन्तमिदमुल्लसितो हसिष्ये। तस्मादविलम्बो हि मोचय मोचयाशु।
इति श्रुत्वा जगन्नाथो, रघुवीरः कृपा-निधिः। भक्तं मोचयितुं गतः, पुष्पकेनाशु-वेगिना।।
विशेषः- एक समय भगवान् श्रीराम ने हनुमान जी को आज्ञा दी कि आप जगन्नाथपुरी में रहें, नहीं तो समुद्र मेरी पुरी को डुबो देगा। अयोध्यापुरी में भगवान् श्रीराम की पूजा हो रही थी। शुद्ध घी के मगद के लड्डू व पूड़ी-कचौड़ियों की उत्तम सुगन्ध वायु देवता ने अपने पुत्र को अयोध्यापुरी से जगन्नाथपुरी में आकाश-मार्ग से पहुँचा दी। श्री हनुमान् जी जगन्नाथपुरी से अयोध्या जी में आ गए। भगवान् श्रीराम ने कहा कि ‘आप क्यों आ गए? समुद्र मेरी पुरी को डुबो सकता है।’ हनुमान जी ने कहा ‘आपके प्रसाद की सुगन्धि से हम अपने को रोक नहीं सके।’ तब भगवान् श्रीराम ने उनके पैरों में बेड़ी डाल दी और कहा कि ‘अब आप वहीं बन्दी बन कर रहें।’ श्री जगन्नाथपुरी में ‘बेड़ी हनुमान’ अब भी हैं। बेड़ी से मुक्त होने के लिए श्री हनुमान जी द्वारा उक्त स्तुति की गई, जिससे प्रसन्न होकर भगवान् तुरन्त पुष्पक विमान द्वारा पहुँचे और उन्हें मुक्त कर दिया।
इस स्तोत्र का नित्य कम से कम ११ पाठ करने से सब प्रकार का कष्ट दूर होता है एवं सभी प्रकार के बन्धन से मुक्ति मिलती है।
Sunday, October 17, 2010
बन्दी-मोचन स्तोत्र
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