Monday, January 9, 2012

शिवरीनारायण मंदिर


शिवरीनारायण मंदिर

शिवरीनारायण मंदिर छत्तीसगढ़ प्रांत के चंपा जांजगीर जिले के अंतर्गत आने वाले वाला एक प्रमुख प्रसिद्ध मन्दिर है | शिवरीनारायण मंदिर महानदी, जोंक नदी एवं शिवनाथ नदी के त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थित है | यह पावन स्थल हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र रहा है | शिवरी नारायण मंदिर के कारण ही यह स्थान छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है | मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा स्थापित रही थी, परंतु बाद में इस प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था |

इसी आस्था के फलस्वरूप माना जाता है कि आज भी भगवान जगन्नाथ जी यहां पर आते हैं | इसके साथ ही साथ इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि यहीं इस पवित्र स्थान पर भगवान श्री राम जी ने सीता की खोज करते हुए आगमन किया था तथा अपनी परम भक्त शबरी को दर्शन दिए व शबरी के जूठे बेर भी खाए थे | माना जाता है कि यहीं पर ऋषि मतंग का आश्रम भी था जहां पर भक्तिन शबरी ने श्री राम जी का इंतजार किया और उनके दर्शन प्राप्त किए | इस स्थान का उल्लेख सभी युगों में देखा जा सकता है जिस कारण यह स्थल सतयुग का बैकुंठपुर, त्रेता का रामपुर, द्वापर का विष्णुपुर तथा कलयुग का शिवरीनारायण कहलाया |

शिवरीनारायण मंदिर कथा

शिवरीनारायण मंदिर के संदर्भ में अनेक विचारों का प्रादुभार्व देखा जा सकता है | इस स्थान के बारे में विभिन्न धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है |इसके साथ ही मंदिर के साथ कई किवदंतीयां भी जुडीं हुई हैं, जिनसे मंदिर के महत्व तथा उसके धार्मिक स्वरूप के बारे में ज्ञात होता है | यह स्थल गुप्त तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है | माना जाता है कि श्री राम जी का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं |

इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि जगन्नाथ जी की विग्रह प्रतिमा को इस स्थान से पुरी ले जाया गया था अत: इस कारण हर साल माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ यहां पधारते हैं एवं इस दौरान जगन्नाथ में भगवान को भोग भी नहीं लगता है| याज्ञवलक्य संहिता ग्रंथ में इस बात के प्रमाण प्राप्त होते हैं |

स्कंद पुराण के अनुसार शबरीनारायण श्री सिंदूर गिरि क्षेत्र था| यहां पर घने जंगल होते थे तथा इस स्थान पर शबर जाति का शासन हुआ करता था | कहते हैं जब श्री कृष्ण जी को श्रापवश जरा नाम के शबर का तीर लगता है तो उनकी मृत्यु हो जाती है, जिस कारण शबर बहुत व्याकुल एवं ग्लानि से भरा होता है | वह दुखी एवं शोक के कारण पश्चाताप की अग्नि में जल रहा होता है |

इस दौरान श्री कृष्ण जी का दाह संस्कार किया जाता है व उनके मृत शरीर को समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाता है|. जरा को जब इस बात के बारे में पता चलता है तो वह भगवान के मृत शरीर को समुद्र से निकाल कर श्रीसिंदूरगिरि क्षेत्र में ले आता है जहाँ वह उस देह की पूजा करता है तथा तंत्र साधना की शुरूवात करता है और यही मृत देह 'नीलमाधव नाम से विख्यात होता है| .

इस बात का भी उल्लेख है कि बाद में नील माधव को पुरी में स्थापित किया गया था | कुछ विचारकों का कहना है कि नीलमाधव प्रतिमा को इंद्रभूति ने संभल के पहाडी क्षेत्र में स्थित एक गुफा में रखा और उस प्रतिमा के समक्ष तंत्र साधना आरंभ किया तथा इसी प्रकार इंद्रभूति के वंशज लगातार नीलमाधव की पूजा एवं उनके समक्ष तंत्र साधना करते रहे परन्तु बाद में इस प्रतिमा को पुरी में स्थापित कर दिया गया |

कहा जाता है कि जब जरा को नीलमाधव के चले जाने के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया और विलाप करने लगे | तब भगवान नीलमाधव ने उन्हें नारायणी रूप में दर्शन दिए तथा अपने इस रूप के गुप्त रूप से विराजमान रहने का वरदान भी दिया| तभी से यह स्थान गुप्त धाम कहलाया|

शिवरीनारायण मंदिर महत्व

शिवरीनारायण में प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है तथा स्नान दान के पवित्र कार्य संपन्न किए जाते हैं | जो भी इस पावन पर्व के समय यहां के दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है | इस अवसर पर देश भर से लोग यहाँ पहुँचते हैं तथा यहाँ पर होने वाली रथ यात्रा में भी शामिल होते हैं |

No comments:

Post a Comment