Thursday, November 15, 2012

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक

श्री संकटमोचन हनुमानाष्टक हिन्दी अर्थ सहित

बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहुँ सो जात न टारो।
देवन आनि क
री बिनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग मे कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥१॥

अर्थ - हे हनुमान जी ! आप बालक थे तब आपने सूर्य को अपने मूख मे रख लिया जिससे तीनो लोकों मे अँधेरा हो गया। इससे संसार भर मे विपति छा गई, और उस संकट को कोई भी दूर नही कर सका। देवताओं ने आकर आपकी विनती की और आपने सूर्य को मुक्त कर दिया। इस प्रकार संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रुप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥२॥

अर्थ - बालि के डर से सुग्रीव पर्वत पर रहते थे। उन्होनें श्री रामचन्द्रजी को आते देखा, उन्होनें आपको पता लगा के लिए भेजा। आपने अपना ब्राह्मण का रुप धर कर के श्री रामचन्द्र जी से भेंट की और उनको अपने साथ लिवा लाये, जिससे आपने सुग्रीव के शोक का निवारण किया। हे, हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाए सिया सुधि प्रान उबारो।
को नही जानत है, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥३॥

अर्थ- सुग्रीव ने अंगद के साथ सीता जी की खोज के लिए अपनी सेना को भेजते समय कह दिया था कि यदि सीता जी का पता लगाकर नही लाए तो हम तुम सब को मार डालेंगे। सब ढ़ूँढ़ ढ़ूँढ़कर हार गये। तब आप समुद्र के तट से कूद कर सीता जी का पता लगाकर लाये, जिससे सबके प्राण बचे। हे हनुमान जी संसार मे ऐसा कौन है, जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सो कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सिय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
को नहीं जानत हैं, जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥४॥

अर्थ - जब रावण ने श्री सीता जी को भय दिखाया और कष्ट दिया और सब राक्षसियों से कहा कि सीता जी को मनावें, हे महावीर हनुमानजी, उस समय आपने पहुँच कर महान राक्षसों को मारा। सीता जी ने अशोक वृक्ष से अग्नि माँगी परन्तु आपने उसी वृक्ष पर से श्री रामचन्द्रजी कि अँगूठी डाल दी जिससे सीता जी कि चिन्ता दूर हुई। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

बान लग्यो उर लक्षिमण के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गृह द्रोन सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत हैं जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥५॥

अर्थ - रावन के पुत्र मेघनाद ने बाण मारा जो लक्ष्मण जी की छाती पर लगा और उससे उनके प्राण संकट मे पड़ गए। तब आपही सुषेन वैद्य को घर सहित उठा लाए और द्रोणाचल पर्वत सहित संजीवनी बूटी ले आये जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच गये। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग मे कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥६॥

अर्थ - रावण ने घोर युद्ध करते हुए सबको नागपाश मे बाँध लिया तब श्री रघुनाथ सहित सारे दल मे यह मोह छा गया की यह तो बहुत भारी संकट है। उस समय, हे हनुमान जी आपने गरुड़ जी को लाकर बँधन को कटवा दिया जिससे संकट दूर हुआ। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो॥७॥

अर्थ - अब अहिरावन श्री रघुनाथ जी को लक्षमण सहित पाताल को ले गया, और भलिभांति देवि जी की पूजा करके सबके परामर्श से यह निशचय किया कि इन दोनों भाइयों की बलि दूंगा, उसी समय आपने वहाँ पहुंच कर अहिरावन को उसकी सेना समेत मार डाला। हे हनुमानजी, संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता॥

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु बेखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो।
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

अर्थ - हे महाबीर आपने बड़े बड़े देवों के कार्य संवारे है। अब आप देखिये और सोचीए कि मुझ दीन हीन का ऐसा कौन सा संकट है जिसको आप दुर नहीं कर सकते। हे महाबीर हनुमानजी, हमारा जो कुछ भी संकट हो आप उसे शीघ्र ही दूर कर दीजीए। हे हनुमानजी, संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

॥दोहा॥

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

अर्थ- आपका शरीर लाल है, आपकी पूँछ लाल है और आपने लाल सिंदूर धारण कर रखा है, आपके वस्त्र भी लाल है। आपका शरीर बज्र है, और आप दुष्टों का नाश कर देते है। हे हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो, जय हो॥

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