Tuesday, October 30, 2012

श्री खंड महादेव यात्रा




श्री खंड महादेव यात्रा

देवभूमि हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है। यहां पर कई धार्मिक धाम हैं। कई प्रकार की वार्षिक यात्राएं होती हैं। कई यात्राएं तो काफी प्रचलित हो चुकी हैं परन्तु कई यात्राएं असुविधा और प्रचार नहीं होने के कारण बहुत ही कम धर्म प्रेमी लोग उनके बारे में जान पाते हैं। इनमें से एक यात्रा प्रभु शंकर जी की श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा है जो श्रावण मास में शुरू होती है और लगभग 10 दिन की यात्रा में हजारों लोग 70 फुट ऊंची शंकर स्वरूप पिंडी के दर्शन करके पुण्य के भागी बनते हैं। हर साल  जुलाई से यात्रा का शुभारंभ होता  है |यह अत्यंत कठिन और साहसिक यात्रा है। इसे शारीरिक तौर पर स्वस्थ लोग ही कर पाते हैं।
                             श्री खंड महादेव की यात्रा हिमाचल के जिला कुल्लू के निरमंड इलाके से शुरू होती है परन्तु इसका प्रचलित मार्ग शिमला से रामपुर बुशहर होते हुए कुल्लू जिला की तहसील निरमंड में पहुंच जाता है। वहां से बागीपुल तक सड़क मार्ग से जाते हैं। बागीपुल से 7 किलोमीटर कच्ची सड़क से जांव तक पहुंचा जा सकता है। यहीं से२५ किलोमीटर की  पैदल यात्रा का शुभारंभ होता है। शिव भक्त शिव के जयकारे लगाते हुए प्रकृति की गोद में आगे बढ़ते चले जाते हैं। 3 किलोमीटर की दूरी तय करने पर पहले पड़ाव सिंह गाड नामक स्थल पर पहुंचा जाता है। जहां श्री खंड सेवा दल के सदस्य शिव भक्तों के इंतजार में सेवा के लिए तत्पर दिखाई देते हैं। यात्री विश्राम, रहने की व्यवस्था, भोजन और चाय पानी की प्रत्येक वस्तु का ध्यान रखा जाता है। रात के समय सेवा दल के सदस्यों द्वारा आनंदमय संकीर्तन का आयोजन भी किया जाता है।
              अगले दिन आगे की यात्रा आरंभ की जाती है। दूसरा पड़ाव थाचडू नामक स्थल आता है। अधिकतर यात्री यहीं विश्राम करते हैं। यहां भी सेवा दल के सदस्यों द्वारा शिव भक्तों के लिए प्रत्येक प्रबंध होता है। अगली सुबह नाश्ता  आदि करने के बाद भक्तजन तीसरे पड़ाव भीमद्वार के लिए जयकारों के साथ प्रस्थान करते हैं। भीमद्वार में रात्रि विश्राम की पूर्ण व्यवस्था होती है। भीमद्वार में ही बकासुर नामक स्थल है। कहते हैं कि पांडव जब अज्ञात वास के दौरान यहां से गुजर रहे थे तो उनका सामना बकासुर नामक राक्षस से हुआ। भीम ने उस राक्षस को जमीन पर पटक कर दे मारा था। जिस स्थल पर राक्षस को पटक कर मारा गया था वह स्थल आज भी लाल रंग का है और अंदर से निरंतर जलधारा प्रवाहित होती रहती है।रास्ते मे नैन सर स्थान आता है | कहते है जब भस्मासुर भगवान शिव पर हाथ रखने के आया तब पार्वती जी दर गयी थी | उनके आंसू निकाल आये और इन्ही आंसुओं से यह नैन सर झील बन गयी |
             भीमद्वार से यात्रा अगले दिन जल्द से जल्द शुरू करनी पड़ती है क्योंकि 7 किलोमीटर लम्बी यात्रा में ग्लेशियर और कठिन चढ़ाई को पार करने पर भोले शंकर के दर्शनीय स्थल पर पहुंचा जाता है। वहां पर शंकर जी के पूरे परिवार अर्थात प्रभु शंकर, मां पार्वती, गणेश जी और भगवान कार्तिकेय जी के पिंडी स्वरूप के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि आसपास कितनी भी बर्फबारी हो लेकिन इस पिंडी पर जरा भी बर्फ नहीं टिक पाती। इस स्थल की ऊंचाई समुद्र स्थल से लगभग 19985 फुट की है।
              शिव भक्तों से निवेदन है कि इस यात्रा को यात्रा समझा जाए न कि मौज मस्ती और पिकनिक। अत्यंत सर्दी होने के कारण गर्म कपड़ों का विशेष ध्यान रखा जाए तथा पर्यावरण को साफ़  रखते हुए प्लास्टिक लिफाफों का बिल्कुल प्रयोग न करें। श्री कैलाश खंड महादेव यात्रा सच में एक सम्पूर्ण यात्रा है। इस यात्रा को करके भगवान शिव का आशीर्वाद लें और पुण्य के भागी बनें।

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