नैमिषारण्य
यह स्थान उत्तर
प्रदेश के सीतापुर जिले मे है .सीतापुर की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी। इस
जगह का इतिहास प्राचीन, मध्य और आधुनिक तीनों युगों से
जुड़ा हुआ है। सीतापुर ऋषियों और
सूफियों की भूमि है। चक्र तीर्थ, मिश्रित या मिसरिख , नैमिषारण्य या नीमसार , श्री ललिता देवी मंदिर, मछरटा, बिसवाँ और खैराबाद आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है।
सरायं नदी
के तट पर स्थित सीतापुर उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। इस जिले का नाम भगवान
राम की पत्नी सीता के नाम पर रखा गया है। इस पवित्र भूमि के बारे में ऋषि वेद व्यास ने
पुराण में भी लिखा है। माना जाता
है कि सीतापुर जिले में स्थित नैमिषारण्य आए बिना चार धाम की यात्रा पूरी नहीं होती है। नैमिषारण्य काफी पुराने
स्थलों में से है। यह जिला
बाराबंकी, बहराईच, खीरी, हरदोई और लखनऊ जिलों से जुड़ा हुआ
है। इसके अलावा, सीतापुर स्थित खैराबाद में हजरत मकदूम और हजरत गुलजार शाह का दरगाह साम्प्रदायिक समन्वय का प्रतीक माना
जाता हैं।
चक्र तीर्थ: चक्र तीर्थ एक पवित्र कुण्ड है। यह कुंड सीतापुर जिले के नैमिषारण्य में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि नैमिषारण्य वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने अपने चक्र से राक्षसों को मार गिराया था। जिसके पश्चात् उसी जगह पर उन्होंने एक वृत्ताकार सरोवर बनाया था। इस सरोवर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है। प्रत्येक माह अमावस्या के दिन और विशेषतः सोमवती अमावस्या के दिन काफी संख्या में लोग इस सरोवर पर स्नान करने के लिए आते हैं।
मिश्रित: इस जगह को मिसरिख के नाम से भी जाना जाता है। मिसरिख सीतापुर
जिले के नैमिषारण्य से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि
महर्षि दधीचि ने यहां पर स्नान किया था। सभी तीर्थ स्थलों में स्नान करने के
बाद उन्होंने अपनी हड्डियां दान कर दी थी। जिसके बाद से इस जगह को मिश्रित या मिसरिख के नाम से
जाना जाता है। यहां स्थित
महर्षि दधीचि आश्रम और सीता कुंड में काफी संख्या में पर्यटक आते है।
एक कथा के अनुसार दैत्य वृत्तासुर को मारने के
लिए ऋषि दधीचि की अस्थियों से धनुष बनाना आवश्यक हो गया था . तब इंद्र ने दधीचि की
खोज प्रारम्भ की . पर किसी को मालूम न था कि ऋषि दधीचि किस वन मे तप कर रहे हैं .
इंद्र ने भगवान विष्णु की सहायता मांगी . भगवान ने कहा कि वह अपना चक्र फ़ेंक रहे
हैं और जहाँ चक्र गिरेगा ,दधीचि जी उसी के पास वन मे तप कर रहे होंगे . भगवान का
चक्र नैमिषारण्य में गिरा और पाताल मे प्रवेश कर गया . आज उसी स्थान पर चक्र तीर्थ
है और आज भी जल की निरंतर धारा अपने आप धरती से निकल रही है .
इंद्र ने चक्र गिरने के स्थान पर दधीचि ऋषी की
खोज की और उन्हें मिसरिख मे तप में लीन पाया . दधीचि ने अपनी अस्थिया देकर अपना
जीवन देना स्वीकार कर लिया .पर उन्होंने देह दान से पहले सभी तीर्थों मे स्नान
करने की अपनी इच्छा प्रकट की . इंद्र को चिंता हो गयी कि यदि दधीचि ऋषि सभी तीर्थों
को जाते हैं तो बहुत समय निकाल जाएगा और दैत्य इस बीच सारे देवताओं को समाप्त कर
देगा . तब देव गुरु ने कहा कि एक कुंद
बनाओ और उसमे सभी तीर्थों का जल लाकर भर दो . इंद्र ने अपने देवताओं की सहायता से
ऐसा ही किया . यह कुंड आज भी मिसरिख मे
बना है और इसे दधीचि कुंड कहते हैं. सभी
तीर्थों के जल को मिश्रित करने के कारण इस स्थान को भी मिश्रित कहते हैं .
ललिता देवी
मंदिर: सीतापुर जिले के नैमिषारण्य स्थित श्री ललिता देवी मंदिर यहां के प्रमुख मंदिरों
में से है। श्री ललिता देवी को त्रिपुर सुंदरी
के नाम से भी जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी ललिता भगवान ब्रह्मा के आदेशानुसार इस
स्थान पर प्रकट हुई थी। मंदिर के
समीप ही चक्र तीर्थ स्थित है।
नैमिषारण्य का महत्व:
कहा जाता है कि नैमिषारण्य आए बिना बद्रीनाथ और
केदारनाथ की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती
है। महाभारत में भी कहा गया है कि जो भी यहाँ आकर पूरी श्रद्धा के साथ उपवास और उपासना करता है उसे सारे
विश्व की खुशियां मिलती है। भगवान बलराम, दधीचि मुनि, पाण्डव,
प्रभु नित्यानंद और रामानुजाचार्य भी इस
जगह पर आए थे। इस जगह पर लगभग 30,000
धार्मिक स्थल हे। पुराणों तथा महाभारत में वर्णित नैमिषारण्य वह पुण्य स्थान
है, जहाँ 88 सहस्र ऋषीश्वरों को वेदव्यास के शिष्य सूत ने महाभारत तथा पुराणों की
कथाएँ सुनाई थीं-
'लोमहर्षणपुत्र उपश्रवा: सौति: पौराणिको
नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेद्वदिशवार्षिके सत्रे, सुखासीनानभ्यगच्छम्
ब्रह्मर्षीन् संशितव्रतान् विनयावनतो
भूत्वा कदाचित् सूतनंदन:। तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिषारण्यवासिनाम्,
चित्रा:
श्रोतुत कथास्तत्र परिवव्रस्तुपस्विन:'
- 'नैमिष' नाम की व्युत्पत्ति के विषय में वराह पुराण में यह निर्देश हैं-
'एवंकृत्वा
ततो देवो मुनिं गोरमुखं तदा, उवाच निमिषेणोदं निहतं दानवं बलम्।
अरण्येऽस्मिं स्ततस्त्वेतन्नैमिषारण्य संज्ञितम्'
अर्थात् ऐसा करके उस
समय भगवान ने गौरमुख मुनि से कहा कि मैंने एक निमिष में ही इस
दानव सेना का संहार किया है, इसीलिए
(भविष्य में) इस अरण्य को लोग नैमिषारण्य कहेंगे। - वाल्मीकि रामायण से ज्ञात होता है कि यह पवित्र स्थली गोमती नदी के तट पर स्थित थी, जैसा कि आज भी हैं-
इस में श्रीराम का अश्वमेध यज्ञ के लिए नैमिषारण्य जाने का उल्लेख है। रघुवंश में भी नैमिष का वर्णन है-
'शिश्रिये श्रुतवतामपश्चिम् पश्चिमे वयसिनैमिष वशी'- जिससे अयोध्या के नरेशों का वृद्धावस्था में नैमिषारण्य जाकर वानप्रस्थाश्रम में प्रविष्ट होने की परम्परा का पता चलता है।
सत्यनारायण की कथा मे भी इस स्थान का उल्लेख प्रारम्भ में ही है -
"एकदा नैमिशारंये ऋषयः शौनकादयः "
श्री राम चरित मानस में भी तुलसीदास ने लिखा है -
तीरथ वर नैमिष विख्याता
अति पुनीत साधक सिद्धि दाता
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