आज के घोरकलयुग में केवल एक देवता ऐसे हैं जो साक्षात रूपमें उपस्थित हैं और वे देव हैं रामभक्तहनुमान।संकटमोचन के रूप में पूजे जाने वाले इन देव के वैसे तो पूरे भारतवर्ष में कई धामहोंगे लेकिन राजस्थान के सरिस्काअभ्यारण के सुरम्य वातावरण में पवनपुत्र एक ऐसे रूप में विराजमान हैं जो शायद ही पूरी दुनिया मेंकहीं और होगा।
हनुमानजी का यहरूप मोहक ही नहीं अपने आप में निराला भी है।अन्य धामों से हटकरइस धाम में हनुमानजी की प्रतिमा शयन अवस्था में विराजमान हैं।हनुमानजी की अनोखीप्रतिमा वाला यह मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में स्थितहै।अलवर जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर सारिस्का अभ्यारण और अरावली की सुन्दर वादियों में स्थित इस मंदिर को पांडूपोल के नाम सेजाना जाता है।इस मंदिर का एक रोचक इतिहास है जो महाभारत काल सेजुड़ा हुआ है।कहा जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव पुत्र अपना बारह वर्ष कावनवास पूर्णकर चुके थे और अज्ञातवास का एक वर्ष पूर्ण करने के लिए छुपे-छुपे फिर रहे थे तभी वेराजस्थान के अलवर के समीप इस स्थान पर पहुंचे।उस समय उन्हें राह में दो पहाड़ियां आपस में जुडी नजरआईं जिससे उनका आगे का मार्ग अवरुद्ध हो रहा था तब माता कुंती नेअपने पुत्रों से पहाड़ी को तोड़ रास्ता बनाने को कहा।माता का आदेश सुनते हीमहावली भीम ने अपनी गदा से एक भरपूर प्रहार किया जिससे पहाड़ियों को चकनाचूर कर रास्ताबना दिया।भीम के इस पौरुष भरे कार्य को देख कर उनकी माता और भाई प्रशंसा करनेलगे जिससे भीम के मन में अहंकार पैदा हो गया।भीम का यह अहंकार तोड़ने के लिएहनुमानजी ने योजना बनाई और आगे बढ़ रहे पांडवों के रास्ते में बूढ़े वानर कारूप रखकर लेट गए।जब पांडवों ने देखा कि जिस राह से उन्हें गुजरना है वहां एकबूढा वानर आराम कर रहा है तो उन्होंने उससे रास्ता छोड़ने का आग्रहकरते हुए कहा कि वह उनका रास्ता छोड़ कहीं और जाकर विश्राम करे।पांडवों काआग्रह सुन हनुमानजी (जो बूढ़े वानर के रूप में मौजूद थे) ने कहा कि वे बूढ़े होने केकारण हिलडुल नहीं सकते अतः पांडव किसी दूसरे रास्ते से निकल जाएं।अपने अहंकार में चूर भीमको हनुमानजी की यह बात अच्छी नहीं लगी और हनुमानजी को ललकारने लगे।भीम कीललकार सुन हनुमानजी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा कि वे उनकी पूंछ को हटाकर निकल जाएंलेकिन भीम उनकी पूंछ को हटाना तो दूर हिला भी न सके और अपने अहंकार पर पछताने लगे साथ हीहनुमानजी से क्षमा याचना करने लगे।भीम के द्वारा क्षमा याचना करने परहनुमानजी अपने असली रूप में आए और बोले- तुम वीर ही नहीं महाबली हो लेकिन वीरोंको इस तरह अहंकार शोभा नहीं देता।इसके बाद हनुमानजी भीम को महाबलीहोने का वरदान देकर वहां से विदा हो गए लेकिन वह स्थान जहां वे लेटे थे आजभी उनके प्रसिद्ध धाम के रूप में पूज्य है।
पांडूपोल हनुमान मंदिर कानिर्माण जंगल में ही रहने वाले एक संत निर्भयादास ने कराया है।प्रति मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में हनुमानजी के इस अद्भुत रूप के दर्शनकरने भक्तों का मेला सा लगता है।यहीं से कुछ दूरी पर वह पहाड़ी भी मौजूद है जिसेभीम ने गदा से चकनाचूर कर रास्ता बनाया था।इस पहाड़ी को भीम पहाड़ी केनाम से जाना जाता है।इस पहाड़ी से जल की एक अविरल धारा बहती रहती है जिसे देखनेदूर-दूर से लोगआते हैं।हर वर्ष भादों के महीने में पांडूपोल हनुमानजी के दरवार में मेला लगता है जिसमेंलाखों की संख्या में महावीर हनुमानजी के भक्त एकत्रित होते हैं।
No comments:
Post a Comment