Thursday, November 26, 2015

गोवर्धन परिक्रमा

गोवर्धन परिक्रमा का प्रारंभ मानसी गंगा में स्नान करके होता है .इस कुंड में स्नान का फल गंगा स्नान से भी अधिक माना जाता है क्योंकि गंगा स्नान मुक्ति दिलाता है पर मानसी गंगा में स्नान से श्री कृष्ण का अनंत प्रेम मिलता है .
कहते है पहले यह झील बहुत विशाल होती थी पर जैसे जैसे गोवर्धन पर्वत श्राप के कारण छोटा होता जा रहा है ,वैसे ही यह झील भी अब छोटा कुंड बन गयी है .

कहते हैं कि नन्द और यशोदा की इच्छा गंगा में स्नान की हुई और उन्होंने कृष्ण से गंगा स्नान को जाने को कहा .कृष्ण के साथ सारे वृजवासी भी गंगा स्नान पर जाने को तैयार हो गए. कृष्ण ने सोचा कि इतने लोगों को लेकर गंगा तक जाना बहुत कठिन होगा .उन्होंने तब नन्द यशोदा को यह बात बताई व् कहा कि काश ! गंगा जी वृज में ही आ जाती . कृष्ण ने मन ही मन गंगा जी से प्रार्थना की और उनके मन से गंगा जी प्रकट हुई व इस कुंड का निर्माण हुआ .इस कुंड में तब नन्द यशोदा ने व सारे वृजवासिओं ने स्नान किया .
कहते है कि एक बार राधाजी व गोपियाँ मानसी गंगा को नौका से पार करना चाहती थी .उनके साथ में माखन के घड़े भी थे .कृष्णजी तब एक नौका पर मल्लाह बन कर आ गए व सभी को नाव में बैठा लिया . यह तय हुआ कि नौका का भाड़ा कुछ माखन होगा . कुछ दूर नाव चलाकर कृष्ण,जो मल्लाह बने थे ,रूक गए और राधा से कहा कि मुझे भूख आई है और मुझे माखन खिलाओ .
फिर कुछ देर में तेज तूफ़ान आ गया व नाव डगमगाने लगी . राधाजी बहुत डर गयी व कृष्ण जी के पास उनकी बाहों में आ गयी . तब उन्हें छिपी हुई बाँसुरी पता चली व मालूम हो गया कि वह मल्लाह कोई और नही पर कृष्ण ही थे और तूफ़ान भी उनकी इच्छा से आया था .

No comments:

Post a Comment