स्तुति
अक्ष मारि लंका दही ,जनकसुता दुःख टारि ।
वीर अन्जनानंद को बंदहूँ बारम्बार। ।
सीताजी का दुःख दूर करने वाले मेरा भी दुःख दूर करो । वीर बजरंगी को नमन करते हुए यही प्रार्थना करती हूँ ,
हे हनुमान !महाबलवान ,
सुजान महा दुःख कष्ट मेटैया ।
ज्ञान को पोषक ,भक्त कोतोषक बंध कटैया।
अंजनी पूत ,श्रीराम को दूत भगावत भूत जो मंजू बचैया।
राम को दास ,पूरे सब आस , मेट भव त्रास जो रामरटैया।
Wednesday, April 28, 2010
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