दुर्गम काज सुगम तुम करते कहते हें सब लोग
मेरा काज नहीं क्यों करते क्यों मैं भोगूँ भोग
तुम समरथ तुम स्वामी मेरे तुम हो मेरे भाई
फिर काहे आने में तुमने इतनी देर लगाई
पैरों में बैठालो मुझको ह्रदय धरे रघुनन्दन
रो रो करके चरण पकड़ कर करता हूँ मैं बंदन
संग राम के जाकर तुमने सीता को मिलवाया
मुझको भी कर कमलों का अब दे दो ठंडा साया
Thursday, May 13, 2010
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