Thursday, May 13, 2010

काज सुगम करते तुम

दुर्गम काज सुगम तुम करते कहते हें सब लोग
मेरा काज नहीं क्यों करते क्यों मैं भोगूँ भोग
तुम समरथ तुम स्वामी मेरे तुम हो मेरे भाई
फिर काहे आने में तुमने इतनी देर लगाई
पैरों में बैठालो मुझको ह्रदय धरे रघुनन्दन
रो रो करके चरण पकड़ कर करता हूँ मैं बंदन
संग राम के जाकर तुमने सीता को मिलवाया
मुझको भी कर कमलों का अब दे दो ठंडा साया

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