Monday, March 7, 2011

त्रिकोनेश्वर मंदिर

त्रिकोनेश्वर मंदिर

– त्रिकोनेश्वर मंदिर श्री लंका में उत्तर पूर्व तट पर स्थित त्रिन्कोमाल्ली शहर में है | यहाँ पर पार्वती देवी को शंकरी देवी के नाम से जाना जाता है | यह एक शक्तिपीठ भी है और कहते हैं कि यहाँ पर सती देवी का जांघ का हिस्सा गिरा था |श्री लंका में इस स्थान को बहुत पवित्र मानते हैं |

इस मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने शंकर जी से कहा हमारे पास रहने के लिए कोई सुन्दर महल नही है |मुझे अपने परिवार के लिए एक महल चाहिए | शंकर जी ने हँस कर कहा कि मैं तो योगी हूँ और मुझे रहने के लिए महल की क्या आवश्यकता है | पर पार्वती देवी ने जिद कर ली और कहा कि मुझे तो अभी आप महल बनवा कर दीजिये |

पार्वती जी की जिद पर शंकर जी ने विश्वकर्मा को एक सुन्दर महल बनाने को कहा |विश्वकर्मा कैलाश से दक्षिण की ओर गए और एक सुन्दर स्थान का चयन कर वहां महल बना दिया | यह स्थान वर्त्तमान लंका में था और वहां शीघ्र ही एक भव्य महल तैयार हो गया | पार्वती जी इस भव्य महल को देख कर अति प्रसन्न हो गयीं और शंकर जी से शीघ्र गृह प्रवेश के लिए एक विद्वान् पंडित को बुलाने को कहा | शंकर जी को तभी किसी पंडित के द्वारा ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप सुनाई पड़ा |उस शब्द की ओर जाने पर शिव जी और पार्वती जी को एक विद्वान् ब्राहमण के दर्शन हुए | उस ब्राहमण के दस मुख थे और वो उन मुखों से शिव नाम का जप कर रहा था |

उसे देख कर शिवजी ने कहा कि आज तुम्हारा तप पूर्ण हुआ है |पार्वती ने भी विद्वान् ब्राहमण को देख कर गृह प्रवेश उसी से कराने के लिए कहा |

रावण ने गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त निकाला और पूरे विधि विधान से पूजन करवाया |उसकी पूजा से प्रसन्न हो कर माँ पार्वती ने रावण से दक्षिणा में कुछ माँगने के लिए कहा |

रावण को वह महल ही पसंद आ गया था |उसने एक बार फिर माँ से कहा कि क्या उसे माँ मांगी दक्षिणा मिलेगी |माँ द्वारा उसे फिर आश्वस्त किये जाने पर उसने अपनी दक्षिणा मे वह महल ही मांग लिया |पार्वती अपने वचन से बंध गयी थी और उन्होंने वह महल रावण को दे दिया | रावण को आशा नहीं थी कि माँ पार्वती उसे यह महल दे देंगी पर महल मिल जाने पर उसने माँ से कहा कि आप जब तक चाहे इस महल में रह सकती है और आप से महल खाली करने को कोई नहीं कहेगा |

पार्वती देवी ने रावण की यह बात मान ली पर कहा अगर रावण ने माँ का कोई कहना नहीं माना तो वो उसके महल को छोड़ कर चली जायेंगी |

रावण ने माँ के लिए महल में एक पहाड़ी पर सुन्दर मंदिर बनवाया और माँ को वहां पर निवास दिया |माँ की कृपा से लंका हर तरह की सुख समृद्धि से भर गया |

जब रावण सीता का हरण करके लंका मे आया तब माँ उसके इस आचरण से बहुत क्रोधित हुई और सीता को वापस करने का आदेश दिया |पर रावण ने माँ की आज्ञा न मानी | उसकी बात पर माँ ने लंका नगरी छोड़ दी और उसके बाद लंका के राजा का सर्व नाश हो गया |जब रावण की मृत्यु के बाद विभीषण ने लंका का राज्य लिया तब उन्होंने माँ पार्वती से वापस आ कर लंका में रहने की प्रार्थना की |देवी ने प्रार्थना स्वीकार करके देवी शंकरी के रूप में पुनः लंका के इस स्थान पर रहना प्रारम्भ कर दिया |

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