डमड्डमड्ड्मड्ड्मन्निनादवड्ड्
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनि
धगध्दगध्दगज्ज्वलल्ललाटपट्टपा
धराधरेन्द्ननन्दिनीविलासबन्धु
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुध्ददुर्धरा
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरी
सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर, प्रसूनधुलिधोरणीविधुसराङध्रिपी
भुजंगराजमा्लया निबध्दजाटजूटक:, श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर:॥ (5)
ललाटचत्वरज्वलध्दनञ्ज्यस्फुलिं
सुधामयुखलेखया विराजमान शेखरं, महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न:॥ (6)
करालभाल्पट्टिकाधगध्दगध्दगज्ज्
धराधरेन्द्ननन्दिनीकुचाग्रचित्
नवीनमेघमण्डलीनिरुध्ददुर्धरस्फु
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर:, कलानिधानबन्धुर: श्रियं जगदधुरन्धर:॥ (8)
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्
स्मरच्छिदंपुरच्छिदं भवच्छिदंमखच्छिदं, गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥ (9)
अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी, रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्
स्मरान्तकंपुरान्तकं भवान्तकंमखान्तकं, गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥ (10)
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमभ्दुजंगमश्
मस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिध्दिमिध्दिमिद्ध्वनन्मृदंगतुन्गमंगल,ध्वनिक्रमप् रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव:॥ (11)
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो, र्गरिष्ठरत्नलोष्ठ्यो: सुहृद्विपक्षपक्षयो:।
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो:, समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥ (12)
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोचनो ललामभाललग्नक:, शिवेति मन्त्रामुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥ (13)
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुध्दिमेति सन्त्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम्॥ (14)
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भु:॥ (15)
धिमिध्दिमिध्दिमिद्ध्वनन्मृदं
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो:, समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥ (12)
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोचनो ललामभाललग्नक:, शिवेति मन्त्रामुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥ (13)
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुध्दिमेति सन्त्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम्॥ (14)
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भु:॥ (15)
शिव शिव शंकर भक्तजनप्रिय गंगाधर हर पालय माम् ।
ReplyDeleteहिमगिरिवास महेश कलाधर मृत्युञ्जय हर पालय माम् ।।
भोले नाथ तेरे दर पे आये है हम पूजारी
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