Friday, August 17, 2012

पुरुषोत्तम माह

पुरुषोत्तम माह


कितना श्रेयस्कर है यह मलमास या अधिमास? इसका शब्दों में बखान करना सचमुच बहुत कठिन है। एक बार फिर अधिमासआज  18 अगस्त से प्रारंभ हो रहा है। यह अधिमास खगोलीय दृष्टि से पूर्णत: वैज्ञानिक है तो दूसरी ओर आध्यात्मिकता प्राप्त करने के लिए यह सर्वोत्तम है। बस हमें जानना आवश्यक है कि इस बीच हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। 


                              भारतीय पंचांग में अधिमास का बड़ा महत्व है। खगोलीय गणना के अनुसार, हर तीसरे वर्ष एक बार अधिक मास होता है। यह सौर और चंद्र मास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों में कहा गया है कि पुरुषोत्तम मास में किए गए जप, तप और दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं और इसी आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित बारह माह होते हैं। हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है। शास्त्रों में कहा गया-
यस्मिन चांद्रे न संक्रांति: सो अधिमासो निगह्यते
तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
यस्मिन मासे द्वि संक्रांति क्षय: मास: स कथ्यते
तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।।
अधिक मास क्या है?
जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास कहलाता है। इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं। सौर वर्ष 365. 2422 दिन का होता है, जबकि चंद्र वर्ष 354.327 दिन का होता है। इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का अंतर आ जाता है और तीन वर्ष में यह अंतर एक माह का हो जाता है। इस असमानता को दूर करने के लिए अधिक मास एवं क्षय मास का नियम बनाया गया है।
अधिक मास क्यों व कब?
यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है।  यही क्रम सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है, जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 माह के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जाएं तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी-कभी होता है।
अधिक मास के संदर्भ
अधिक मास कई नामों से जाना जाता है- अधिमास, मलमास, मलिम्लुच, संसर्प, अंहस्पति या अंहसस्पति, पुरुषोत्तम मास ।  इनकी व्याख्या जरूरी है। यह द्रष्टव्य है कि बहुत प्राचीन काल से अधिक मास निन्द्य ठहराए गए हैं। अग्नि पुराण  में प्रसंग आया है- वैदिक अग्नियों को प्रज्वलित करना, मूर्ति-प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रत, संकल्प के साथ वेद-पाठ, सांड़ छोड़ना (वृषोत्सर्ग), चूड़ाकरण, उपनयन, नामकरण, अभिषेक अधिमास में नहीं करना चाहिए। हेमाद्रि  ने वर्जित एवं मान्य कृत्यों की लंबी सूची दी है।
सामान्य नियम यह है कि मलमास में नित्य कर्मों एवं नैमित्तिक कर्मों (कुछ विशिष्ट अवसरों पर किए जाने वाले कर्मों) को करते रहना ही चाहिए, यथा संध्या, पूजा, पंच महायज्ञ (ब्रह्मयज्ञ, वैश्वदेव आदि), अग्नि में हवि डालना (अग्निहोत्र के रूप में), ग्रहण-स्नान (यद्यपि यह नैमित्तिक है) और अन्त्येष्टि कर्म (नैमित्तिक)। यदि शास्त्र कहता है कि यह कृत्य (यथा सोम यज्ञ) नहीं करना चाहिए तो उसे अधिमास में स्थगित कर देना चाहिए।
यह भी सामान्य नियम है कि काम्य (नित्य नहीं, वह जिसे किसी फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है) कर्म नहीं करना चाहिए। कुछ अपवाद भी हैं, यथा कुछ कर्म, जो अधिमास के पूर्व ही आरम्भ हो गए हों (यथा बारह दिनों वाला प्राजापत्य प्रायश्चित, एक मास वाला चंद्रायण व्रत), अधिमास तक भी चलाए जा सकते हैं।
   कुछ बातें मलमास के लिए ही व्यवस्थित हैं, यथा प्रतिदिन या कम से कम एक दिन ब्राह्मणों को 33 पूओं का दान करना चाहिए । कुछ ऐसे कर्म हैं, जो शुद्ध मासों में ही करणीय हैं, यथा वापी एवं तड़ाग (बावली एवं तलाब) खुदवाना, कूप बनवाना, यज्ञ कर्म, महादान एवं व्रत।
कुछ ऐसे कर्म हैं, जो अधिमास एवं शुद्ध मास, दोनों में किए जा सकते हैं, यथा गर्भ का कृत्य (पुंसवन जैसे संस्कार), ब्याज लेना, पारिश्रमिक देना, मास-श्राद्ध (अमावस्या पर), आह्निक दान, अन्त्येष्टि क्रिया, नव-श्राद्ध, मघा नक्षत्र की त्रयोदशी पर श्राद्ध, सोलह श्राद्ध, चान्द्र एवं सौर ग्रहणों पर स्नान, नित्य एवं नैमित्तिक कृत्य । जिस प्रकार हमारे यहां 13वें मास (मलमास) में धार्मिक कृत्य वर्जित हैं, पश्चिम देशों में 13वीं संख्या अभाग्यसूचक मानी जाती है, विशेषत: मेज पर 13 वस्तुओं की संख्या।
अधिक मास में क्या करें
इस माह में व्रत, दान, पूजा, हवन व ध्यान करने से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और किए गए पुण्यों का फल कई गुना प्राप्त होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, मलमास में किए गए सभी शुभ कर्मो का अनंत गुना फल मिलता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण की भी विशेष महत्ता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी महत्त्व है। अधिक मास में पुरुषोत्तम-माहात्म्य का पाठ, पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की उपासना, जप, व्रत, दानादि कृत्य करना चाहिए। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार, पुरुषोत्तम मास में गेहूं, चावल, मूंग, जौ, मटर, तिल, ककड़ी, बथुआ, कटहल, केला, घी, आम, जीरा, सोंठ, सुपारी, इमली, आंवला और सेंधा नमक आदि का सेवन करना चाहिए। परंतु ध्यान रहे कि पुरुषोत्तम मास में उड़द, राई, प्याज, लहसुन, गाजर, मूली, गोभी, दाल, शहद, तिल का तेल, दूषित अन्न व तामसिक भोजन का त्याग करना ही उचित है।
 दिन में मात्र एक बार भोजन तथा यथासंभव भूमि पर शयन करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास में शास्त्रीय नियमों का पालन करते हुए, जो इसमें श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह अपने कुल के साथ गोलोक में पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है। इस प्रकार मलमास के रूप में निंदित इस मास को श्रीहरि ने अपना पुरुषोत्तम नाम देकर जगत के लिए पूजनीय बना दिया।
पुरुषोत्तम मास कैसे हुआ?
हमारे पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र एवं योग के अतिरिक्त सभी मास के कोई न कोई देवता या स्वामी हैं, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता। अत: इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं। अधिक मास स्वामी के न होने पर विष्णुलोक पहुंचे और भगवान श्रीहरि से अनुरोध किया कि सभी माह अपने स्वामियों के आधिपत्य में हैं और उनसे प्राप्त अधिकारों के कारण वे स्वतंत्र एवं निर्भय रहते हैं। एक मैं ही भाग्यहीन हूं, जिसका कोई स्वामी नहीं है। अत: हे प्रभु, मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए। अधिक मास की प्रार्थना को सुन कर श्रीहरि ने कहा हे मलमास, मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं, वह मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और मेरा विख्यात नाम पुरुषोत्तम मैं तुम्हें दे रहा हूं और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूं। तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हो गया और भगवान श्रीहरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्रीहरि धाम को प्राप्त होते हैं।

अधिमास में विशेष पूजन विधि
पवित्र स्थान पर अक्षत से अष्ट दल बना कर जल का कलश स्थापित करना चाहिए। भगवान राधा-कृष्ण की प्रतिमा रख कर पोडरा विधि से पूजन करें और कथा श्रवण की जाए। संध्या के समय दीपदान करना चाहिए। माह के अंत में धातु के पात्र में तीस की संख्या में मिष्ठान्न रख कर दान किया जाए। पुरुषोत्तम मास में भक्त भांति-भांति का दान करके पुण्य फल प्राप्त करते हैं। मंदिरों में कथा-पुराण के आयोजन किए जाते हैं। दिवंगतों की आत्मा की शांति के लिए पूरे माह जल सेवा करने का संकल्प लिया जाता है। मिट्टी के कलश में जल भर कर दान किया जाता है। खरबूजा, आम, तरबूज सहित अन्य मौसमी फलों का दान करना चाहिए। माह में स्नान कर विधि पूर्वक पूजन-अर्चन कथा श्रवण करना चाहिए।
पुरुषोत्तम मास में नियम-संयम के साथ भगवान की भक्ति-भाव से सविधि अर्चना करने से वे अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। पुरुषोत्तम मास का आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। इसमें धर्माचरण करते हुए निष्काम भाव से भगवान की पूजा-सेवा, कथा-श्रवण, संत-सत्संग और दीप-दान आदि पवित्र कर्म करने से जीव भगवत्कृपा का पात्र बन जाता है। इस मास में इस मंत्र का प्रतिदिन जप करना उचित रहेगा-
गोवर्धनधरम् वन्दे गोपालम् गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सव मीशानम् गोविंदम् गोपिका प्रियम्॥
मंत्र जपते समय भगवती श्री राधिका सहित द्विभुज मुरलीधर पीत वस्त्रधारी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास में तुलसी-पत्र से शालिग्राम की पूजा तथा श्रीमद्भ भागवत महापुराण का पाठ करने से अनंत पुण्य प्राप्त होता है। अवंतिका (उज्जयिनी) में श्रद्धालु पुराणोक्त सप्त सागरों में स्नान करके दान-पुण्य करते हैं। पुरुषोत्तम मास का सदुपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए करें। इस कृत्य से नर नारायण बन सकता है।

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