Monday, September 24, 2012

चिरंजीवी हनुमान

भारतीय विद्यानों ने सात लोगों को  चिरंजीवी माना  है :-
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांन  विभीषण।
कृप: परशुराम सप्तैते चिरंजीवीतः||

अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेद व्यास, हनुमान विभीषण , कृपाचार्य व परुशाराम को चिरंजीवी माना गया है | इसी श्रृंखला में हनुमान जी का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि हनुमान जी का लक्ष्य इनमे सबसे  बडा है, बल्कि अनन्त है। उसे एक सामान्य मानव जीवन अवधि तो क्या ऊपर वर्णित दीर्घायु में भी प्राप्त करना संभव नहीं। यह तो तभी संभव है जब प्राणी अनन्त समय तक  अहर्निश सशरीर प्रयास रत रहे। अब प्रश्न  उठता है कौन सा है वह लक्ष्य है व  क्यों होती है आवश्यकता उसे पाने के लिए अहर्निश प्रयास की |
     वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के चालीसवें सत्र में इस बारे में प्रकाश डाला गया है। लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञता स्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमान जी श्री राम से याचना करते हैं कि- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय: ||
"अर्थात हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहे।"" इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते है कि- एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका  तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा  अर्थात् ""हे कपिश्रेष्ठ। ऎसा ही होगा। इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेगी।"" स्पष्ट है हनुमान जी ने जब श्रीराम कथा के प्रचलित रहने तक शरीर में प्राण रखने की कामना प्रकट की तो श्रीराम ने उन्हें न केवल तब तक उनके शरीर में प्राण रहने का आर्शीवाद दिया अपितु इन लोकों अर्थात् ब्रह्माण्ड  के बने रहने तक रामकथा के स्थिर रहने का वचन भी दिया।
 सीधे शब्दों में  कहा जा सकता है कि जब तक यह ब्रह्माण्ड  रहेगा रामकथा स्थिर रहेगी और रामकथा की स्थिरता तक हनुमान जी सशरीर विद्यमान रहेगें। 
      राम चरित मानस में माँ जानकी ने भी उन्हें अजर एवं अमर होने का आर्शीवाद  दिया है। अजर अमर गुन निधि सुत होहु। करहु बहुत रघुनायक छोहु
         स्पष्ट है हनुमान जी 6 चिरंजीवियों से भी आगे बढकर अजर एवं अमर हैं और फिर वे अजर एवं अमर क्यों नहीं हो जब इन्होंने संकल्प लिया है कि - वांछितार्थ प्रदस्यामि भक्तानां राघवस्य तु। सर्वदा जागरूको स्मि, राम कार्य धुरंधर: श्री राम रहस्योपनिषद में  उनकी यह घोषणा है कि वह श्रीराम के भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए संकल्पित एवं मनसा-वाचा-कर्मणा सचेष्ट हैं। वह राम काज करने में न केवल धुरंधर हैं अपितु सदैव सजग एवं क्रियाशील भी हैं। रामकाज प्रारम्भ करने पर उसे पूर्ण किये बिना विश्राम लेना उन्हें तनिक भी पसन्द नहीं।
उनकी रामकथा सुनने की आतुरता एवं रामकाज के प्रति उत्साह की झलक हमें हर युग में मिलती  है। त्रेता युग में दशरथ पुत्र श्रीराम की सेवा में अपलक समर्पित हैं तो द्वापर में अर्जुन के रथ के ध्वज पर आसीन होकर महाभारत के चक्षुदर्शी साक्षी है। महाभारत की समाप्त पर भीम के बल दर्प को दूर करने के लिए वृद्ध  बानर के रूप में प्रस्तुत हैं तो कलियुग में भक्त कवि तुलसीदास को चित्रकूट के घाट पर श्रीराम के दर्शन कराने के लिए विप्ररूप में उपस्थित हैं। ये कुछ घटनाएं मात्र उदाहरण स्वरूप हैं वरना वे प्रतिदिन उन करोडों लोगों की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहायता करते हैं जो श्रीराम का स्मरण करते हैं और हाँ वे उनके सामने सशरीर प्रकट होने को भी आतुर हैं जो उन्हें अपने दृढ संकल्प, अगाध श्रद्घा एवं पूर्ण समर्पण से प्राप्त करने की क्षमता एवं पात्रता रखते हैं।

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