Saturday, June 29, 2013


और कछु माँगु नहीँ, हे देवन के देव।
भक्ति दान मोहि दीजिए,चरणकमल के सेव।।
जग मेँ आपन कोउ नहीँ,सुख दुख पूछन हार।
हे अनाथ के नाथ प्रभु,मेरी करहुँ सँभार।।
अर्थ न धर्म काम रुचि,गति न चहौ निर्वान।
जन्म जन्म रति राम पद,यह वरदान न आन।।
स्वामी मोहि न बिसारियो,लाख लोग
मिलि जाहिँ।
हमसे तुमको बहुत हैँ,तुमसे हमको नाहिँ।।
नहिँ विद्या नहिँ बाहु बल,नहिँ खर्चन को दाम।
मोसे पतित अपंग की, तुम पति राखहु राम।।
कामिहिँ नारि पियारि जिम,लोभिहिँ प्रिय
जिमिदास।
तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहु मोहिँ राम।।
बार बार वर माँगहूं,हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी, भक्ति सदा सत्संग।।

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