Wednesday, February 23, 2011

राम और राम कथा का दर्शन

राम और राम कथा का दर्शन

तुलसी दासजी द्वारा रचित रामचरितमानस केवल एक काव्य ग्रन्थ नही है अपितु ये तो एक कल्पवृक्ष है। बालकाण्ड इस वृक्ष की सबसे गहरी और मजबूत जड़े है. अयोध्याकाण्ड इसका तना है, अरण्यकाण्ड इसकी टहनियां है, किष्किन्धा काण्ड इसके पत्ते है, सुन्दरकाण्ड इसका फूल है, लंकाकाण्ड इस वृक्ष का फल है और उत्तरकाण्ड इसका रस है.

फूल की एक विशिष्ट पहचान होती है और वो वृक्ष की सुन्दरता में चार चाँद लगता है और वृक्ष से अलग होकर भी अलग अलग तरीके से काम में लिया जाता है | फूल जहाँ भी खिलता है अपनी ख़ुश्बू हर जगह फैला देता है, ठीक उसी प्रकार रामचरितमानस में सुन्दरकाण्ड की एक विशिष्ट पहचान है | इसके अन्दर में ज्ञान की खुश्बू फैली हुई है और सुन्दरकाण्ड का पाठ रामचरितमानस के साथ साथ और अलग से भी किया जाता है | जैसे फल खट्टे, मीठे और बीज वाले होते है वैसे ही लंकाकाण्ड खट्टा मीठा है और जिसमे युद्ध के विवरण का बीज है | जिस प्रकार रस फलो का निचोड़ है ठीक वैसे ही, ज्ञान और भक्ति मार्ग की अनुपम व्याख्या करता, उत्तरकाण्ड सम्पूर्ण रामचरितमानस का निचोड़ है |

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है। भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है। भगवान् राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन के द्वारा मनुष्य को उत्कृष्ट जीवन शैली जीने की कला दिखलाई है | उन्होंने ये समझाया है की प्रत्येक मनुष्य "आम" (साधारण) से "राम" (असाधारण) कैसे बन सकता है | भगवान् राम ने एक आदर्श पुत्र, भाई, शिष्य, पति, मित्र और गुरु बन कर ये ही दर्शाया की व्यक्ति को रिश्तो का निर्वाह किस प्रकार करना चाहिए.|

राम का दर्शन करने पर हम पाते है कि अयोध्या हमारा शरीर है जो की सरयू नदी यानि हमारे मन के पास है | अयोध्या का एक नाम अवध भी है. (अ + वध) अर्थात जहाँ कोई वध या अपराध न हों | जब इस शरीर का चंचल मन सरयू सा शांत हो जाता है और इससे कोई अपराध नहीं होता तो ये शरीर ही अयोध्या कहलाता है.|

शरीर का तत्व (जीव), इस अयोध्या का राजा दशरथ है | दशरथ का अर्थ हुआ वो व्यक्ति जो इस शरीर रूपी रथ में जुटे हुए दसों इन्द्रिय रूपी घोड़ों (५ कर्मेन्द्रिय + ५ ज्ञानेन्द्रिय) को अपने वश में रख सके | तीन गुण सतगुण, रजोगुण और तमोगुण, दशरथ की तीन रानियाँ कौशल्या, सुमित्रा और कैकई है | दशरथ रूपी साधक ने अपने जीवन में चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में प्राप्त किया था |

तत्वदर्शन करने पर हम पाते है कि धर्मस्वरूप भगवान् राम स्वयं ब्रहा है| शेषनाग भगवान् लक्ष्मण वैराग्य है, माँ सीता शांति और भक्ति है और बुद्धि का ज्ञान हनुमान जी है | रावण घमंड का, कुभंकर्ण अहंकार, मारीच लालच और मेंघनाद काम का प्रतीक है |. मंथरा कुटिलता, शूर्पनखा काम और ताडका क्रोध है |

चूँकि काम, क्रोध और कुटिलता ने संसार को वश में कर रखा है इसलिए प्रभु राम ने सबसे पहले क्रोध यानि ताडका का वध ठीक वैसे ही किया जैसे भगवान् कृष्ण ने पूतना का किया था । नाक और कान वासना के उपादान माने गए है, इसलिए प्रभु ने शुपर्नखा के नाक और कान काटे ।

भगवान् ने अपनी प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट रूप से दर्शाया है | उपरोक्त भाव से अगर हम देखे तो पाएंगे कि भगवान् सबसे पहले वैराग्य (लक्ष्मण) को मिले थे |. फिर वो भक्ति (माँ सीता) और सबसे बाद में ज्ञान (भक्त शिरोमणि हनुमान जी) के द्वारा हासिल किये गए थे |. जब भक्ति (माँ सीता) ने लालच (मारीच) के छलावे में आ कर वैराग्य (लक्ष्मण) को अपने से दूर किया तो घमंड (रावण) ने आ कर भक्ति की शांति (माँ सीता की छाया) हर ली और उसे ब्रम्ह (भगवान्) से दूर कर दिया. |

भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आँख, जीभ, चमड़ी), पांच कर्मेन्द्रियाँ (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ), तथा मन, बुद्धि,चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा |.

राम को पाने के लिए कही बाहर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है, जरुरत है तो केवल उसे अपने अन्दर जागृत करने की.

राम हमारे गौरव के प्रतिमान है, राम हमारे भारत की पहचान है |

राम हमारे घट घट के भगवान् है, राम हमारी पूजा है अरमान है |

राम हमारे अंतर्मन के प्राण है, मंदिर मस्जिद पूजा के सामान है |

राम नहीं है नारा बस विश्वास है, भौतिकता की नहीं है दिल की प्यास है,

राम नहीं मोहताज किसी के झंडो के, सन्यासी साधू संतो या पंडो के,

राम नहीं मिलते ईटों में गारा में, राम मिले है निर्धन की आंसू धारा में,

राम मिले है वचन निभाती आयु को, राम मिले है घायल पड़े जटायु को,

राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में, राम मिले है पंचवटी की छाँव में,

राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में, राम मिलेंगे हनुमान के सीने में,

राम मिले अनुसूया की मानवता को, राम मिले सीता जैसी पावनता को,

राम मिले ममता की माँ कौशल्या को, राम मिले है पत्थर बनी अहिल्या को,

राम नहीं मिलते मंदिर के फेरो में, राम मिले शबरी के झूठे बेरो में,

मैं भी एक सौगंध राम की खाता हूँ, मैं भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ,

मेरी भारत माँ मुझको वरदान है, मेरी पूजा है मेरा अरमान है, मेरी पूजा है मेरा अरमान है,

मेरा पूरा भारत धर्मस्थान है, मेरा राम तो मेरा हिन्दुस्तान है.

(कविता साभार : कविवर डा.हरिओम पंवार की सुप्रसिद्ध कविता राम मंदिर के अंश)


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