Tuesday, March 20, 2012

श्री हनुमान चालीसा (भाग-1)

।। श्री हनुमते नम: ।।

श्री हनुमान चालीसा



हमारी भारतीय संस्कृति में राम और कृष्ण की भांति हनुमानजी भी संस्कृति के आधार स्तंभ तथा निष्ठा के केन्द्र हैं । प्रत्येक भारतीय के हृदयमें उनका प्रेम शासन अभी भी चल रहा है । हनुमानजी भक्तों में ज्येष्ठ , श्रेष्ठ तथा अपूर्व हैं । ‘‘नर अपनी करनी करे तो नर का नारायण हो जाए’’ । इस प्रकार हनुमानजी ने अपने अंदर देवत्व स्वयं निर्माण किया है । मानव भी उच्च ध्येय और आदर्श रखें तो देवत्व प्राप्त कर सकता है । हनुमानजी ने अपने कर्तव्य से देवत्व प्राप्त किया है । हनुमान जी की स्वतंत्र उपासना की जा सकती है और उनका स्वतंत्र मंदिर भी हो सकता है । जिस प्रकार भगवान शिव का शिवालय नंदी के बिना अधूरा रहता है । उसी प्रकार भगवान श्रीराम के देवालय की पूर्णता हनुमान के मूर्ति के बिना अधूरी रहती है । परन्तु हनुमानजी के मंदिर में रामजी की मूर्ति नहीं भी है तो भी चलेगा , ऐसी अलौकिकता हनुमानजी में है । जन-समुदाय में रामजी के समान ही आदरणीय स्थान हनुमानजी को प्राप्त हुआ है । हनुमानजी की रामजी के प्रति एकनिष्ठता और एकनिष्ठ भक्ति अपूर्व है ।

गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम के दर्शन हनुमानजी की कृपासे ही प्राप्त हुए थे। इसीलिए गोस्वामीजी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है । तथा हनुमानजी के प्रति उनकी अपार श्रध्दा थी । तुलसीदासजी ने हनुमानजी पर कई रचनायें की है जैसे हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान बाहुक इत्यादि, उन्हीमें से हनुमान चालीसा एक है । ‘‘हनुमान चालीसा’’ उनके द्वारा रचित एक बहुत ही सिद्ध एवं लोकप्रिय ग्रंथ है ।

‘हनुमान चालीसा’ में उन्होने हनुमानजी के चरित्र तथा गुणों का वर्णन किया है । नियमित श्रध्दासे भक्ति-भावसे यदि हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो मनुष्य मनवांछित फल पाता है तथा उसकी मनोकामना पूर्ण होती है ।

आज मानव जीवन जड, भोगवादी तथा भावशून्य बनता जा रहा है । जहाँ थोडी बहुत धार्मिकता एवं अध्यात्मिकता है, वहाँ दम्भ तथा दिखावे का प्रदर्शन ज्यादा हो रहा है । ऐसी विषम स्थिति में मनुष्यमात्र के लिए विषेश तया युवकों और बालकों के लिए भक्त श्रेष्ठ श्री महावीर हनुमानजी की उपासना अत्यंत आवश्यक है । क्योंकि उनके चरित्र से हमें ब्रम्हचर्य व्रतपालन, चरित्र रक्षण, बल, बुध्दि, विद्या इत्यादि गुणों का विकास करने की शिक्षा प्राप्त होती है । हनुमानजी अपने भक्तों को बुध्दि प्रदान कर के उनकी रक्षा करतें है ।

हनुमानजी में राम का नाम और राम का काम, भक्ति और सेवा का अद्भुत समन्वय दिखायी देता है । विचारोंकी उत्तमता के साथ भगवान में अनुरक्ति और सेवा व्यक्ति के पूर्ण विकास की द्योतक है, जो हनुमानजी के चरित्र में देखी जा सकती है । जीवनमें केवल राम-राम रटने से काम नहीं चलता। रामका नाम और राम का काम दोनों का जीवनमें समन्वय होना चाहिए, यह हनुमानजी के चरित्र से हमें सीखने को मिलता है । हनुमानजी जिस तरह हर पल रामजी का ध्यान तथा स्मरण करते थे उसी प्रकार रामजी का काम करने को हर पल तैयार रहते थे । ‘‘राम काज करिबे को आतुर’’ ऐसा ‘हनुमान चालीसा’ में उल्लेख है । उसी प्रकार हमें भी भगवान के कार्य के लिए हरपल कटिबद्ध होना चाहिए । तथा हनुमानजी की भांति हमारे मन को सुंदर, सुगंधित, हृदय को मृदुल तथा बुद्धि को सुन्दर बनाना होगा ।



माथेपर चंदन लगाकर आदमी अध्यात्मिक नहीं बनता और कोई गुरु बन कर प्रवचन देने से भी अध्यात्मिक नहीं बनता । अध्यात्मिकता जीवन का मानसिक और बौध्दिक विकास (Psychological and Intellectual development) है। दैवी गुणों से संपन्न हमारे उपास्य देवता के जीवनका अध्ययन कर उनके दिव्य गुणों को अपने जीवनमें लाने का प्रयत्न करना चाहिए ।

नैतिक मूल्योंपर अविचल निष्ठा रखनी पडती है । इस सृष्टिमें भगवान ने भेजा है यह मनुष्य को समझना चाहिए । इस सृष्टिमें हमारा आगमन होने पर शांति से जीवन व्यतीत करना, भक्तिपूर्ण अंत:करण से जीना और अंतमे सृष्टि से विदा लेना, यह अपना ध्येय होना चाहिए । मानव को प्रभु से मिली हुई दो शक्तियाँ है - मन और बुध्दि ! इन शक्तियों के विकास द्वारा मानव स्वयं को ऊपर ले जा सकता है । ‘मुझमें भी कंकड में से शंकर, नर से नारायण और जीव से शिव बनने की शक्ति है’ ऐसा विचार केवल मनुष्य को ही आ सकता है । अनंत जन्मों की साधना के बाद प्राप्त हुए इस चिंतामणि स्वरुप मानव देह को उज्वल बनाकर प्रभु के चरणों मे अर्पण करना ही श्रेष्ठ भक्ति है । इसलिए सृष्टि में कैसे रहें, किस तरह जीयें और प्रभु की तरफ कैसे जायें, यह हमारी संस्कृति हमें सिखाती है ।

जीवनमें ज्ञान-कर्म और भक्ति का समन्वय होना चाहिए । कर्मयोग का हाथ, ज्ञानी की आँख और भक्त का हृदय इन तीनों के समन्वय से त्रिवेणी संगम होता है । ऐसा त्रिवेणी संगम हमें हनुमानजी के चरित्र में दृष्टिगोचर होता है ।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने ‘‘हनुमान चालीसा’’ में इन सभी गुणोंका चित्रण किया है, तथा गागरमें सागर रूपी अमृत उन्होने हनुमान चालीसा में भरा है । श्री हनुमानजी के चरित्र पर कुछ कहना हम जैसे साधारण मनुष्य के लिए असंभव है ।

हनुमानजी हमारे आदर्श हों तथा भगवान श्रीराम हमारे सहायक बने, इन दो महापुरूषोंके चरित्र को दृष्टि के सन्मुख रख कर अपने जीवन को सुयोग्य रीति से गढने के लिये भगवान हम सब की बुध्दि को वैसा बनायें तथा हमें योग्य शक्ति प्रदान करें यही प्रार्थना है ।



( शेष भाग-२ में )

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