Sunday, March 11, 2012

भद्रा

भद्रा की उत्पत्रि के विषय में ऐसा माना जाता है कि दैत्यों को मारने के लिए भद्रा गर्दभ (गधा) के मुख और लंबे पुछँ और तीन पैर युक्त उत्पन्न हुई है। शुभ कार्यों में भद्रा त्यागना ही उचित माना जाता है |
भद्रा पंचांग के पांच अंगों में से एक करण पर आधारित है |यह एक अशुभ योग है। भद्रा (विष्टि करण ) में अग्नि लगाना, किसी को दंड देना इत्यादि दुष्ट कर्म तो किये जा सकते हैं पर मांगलिक कर्म करना वर्जित है |
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य नारायण और पत्नी छाया की कन्या है | भद्रा का स्वरुप काले वर्ण, लंबे केश तथा बड़े दांतं वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है।
जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न -बाधा पहुंचाने लगी और मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सम्पूर्ण जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। उसके दुष्ट स्वभाव को देख कर सूर्य देव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इस दुष्टा कुरूपा कन्या का विवाह कैसे होगा |सभी ने सूर्य देव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया
सूर्य देव ने तब ब्रह्मा जी से उचित परामर्श माँगा |ब्रह्मा जी तब विष्टि से कहा कि -'भद्रे, बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे, तो तुम उन्ही में विघ्न डालो , जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना। इस प्रकार विष्टि को उपदेश देकर बृह्मा जी अपने लोक चले गए ।
बृह्मा जी की सुनकर विष्टि अपने समय में ही देव-दानव-मानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी। इस प्रकार भद्रा की उत्पत्ति हुई।
भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है । कृष्णपक्ष की तृतीया , दशमी और शुक्ल पक्ष की चर्तुथी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी चतुर्दसी , शुक्लपक्ष की अष्टमी पूर्णमाशी के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।
जिस भद्रा के समय चन्द्रमा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि में स्थित तो भद्रा निवास स्वर्ग में होता है ।यदि चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में हो तो भद्रा पाताल में निवास करती है और कर्क , सिंह, कुंभ, मीन राशी का चन्द्रमा हो तो भद्रा का भुलोक पर निवास रहता है। शास्त्रों के अनुसार भुलोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है। तिथि के पूर्वार्ध की दिन की भद्रा कहलाती है। तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं | यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात्री की भद्रा दिन के समय आ जाय तो भद्रा को शुभ मानते हैं |
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारम्भ की ५ घटी जो भद्रा का मुख होती है , अवश्य त्याग देना चाहिए |

भद्रा पांच घटी मुख में , दो घटी कंठ में , ग्यारह घटी ह्रदय में और चार घटी पुच्छ में स्थित रहती है।
शास्त्रोक्त मत
• जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है ।
• जब भद्रा कण्ठ में रहती है तो धन का नाश होता है ।
• जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है ।
• जब भद्रा पुच्छ में होती हं, तो विजय की प्राप्त एवं कार्य सिद्ध होते है।
भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए व्रत इत्यादि बताया गया है | पर एक आसान उपाय भद्रा के १२ नामों का जप करना है |
धन्या दधमुखी भद्रा महामारी खरानना।
कालारात्रिर्महारुद्रा विष्टिस्च कुल पुत्रिका |
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयन्करी |
द्वादशैव तु नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
न च व्याधिर्भवैत तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते |
गृह्यः सर्वेनुकूला: स्यर्नु च विघ्रादि जायते |

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