Tuesday, June 12, 2012

फिर मेरी ही किस्मत में क्यूँ देर लगाना है

जब दर पे तुम्हारे ही अधमों का ठिकाना है | फिर मेरी ही किस्मत में क्यूँ देर लगाना है || तारोगे तो तर जायेंगे छोड़ोगे तो बैठे हैं | दरबार से अब हरगिज उठकर नहीं जाना है | फिर मेरी ही किस्मत में क्यूँ देर लगाना है || फरियाद को सुनने में है कौन सिवा तुमसे | गर् तुम न सुनोगे तो फिर किसको सुनाना है | फिर मेरी ही किस्मत में क्यूँ देर लगाना है || दृग बिंदु की शक्लों में ख्वाहिश है मेरे दिल की | जरिया तो है आँखों का आंसू का बहाना है | फिर मेरी ही किस्मत में क्यूँ देर लगाना है ||

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