Friday, January 29, 2016

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर इंदौर से 77 किमी एवं मोरटक्का से 13 किमी की दुरी पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है. यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर मान्धाता या शिवपूरी नामक द्वीप का निर्माण करती है यह द्वीप या टापू करीब 4 किमी लंबा एवं 2 किमी चौड़ा है. इस द्वीप का आकार ॐ समान है.
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है | स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर शेत्र की महिमा का उल्लेख है | ओम्कारेश्वर में 68 तीर्थ है | यहाँ 33 करोड़ देवता विराजमान है | 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप यहाँ पर है | इस प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है |
पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी एवं भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में अवतरित हुए .यह भी कहा जाता है कि देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग २ भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया. ऐसा कहा जाता है की ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग मम्लेश्वर में स्थित है. अन्य कथानुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता ने यहाँ कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया एवं यहाँ प्रकट हुए, तभी से भगवान ओंकारेश्वर में रूप में विराजमान हैं.
मंदिर में एक विशाल सभा मंडप है जो की लगभग 14 फुट ऊँचा है एवं 60 विशालकाय खम्बों पर आधारित है.मंदिर कुल मिला कर 5 मजिलों वाला है एवं सभी पर अलग अलग देवता स्थापित हैं. जो की नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: श्री ओंकारेश्वर , श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ , श्री गुप्तेश्वर, एवं ध्वजाधारी शिखर देवता हैं.
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है.यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं. एवं ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव व माता पार्वती प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहाँ आकर विश्राम करते हैं. अतएव यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की शयन आरती की जाती है .
भगवान् ओंकारेश्वर की शयन आरती के पश्चात रात्रि 9 बजे से 9.30 बजे तक भगवान् के शयन दर्शन होते है। जिसमे भगवान् के शयन हेतु चांदी का झूला लगाया जाता है, तथा शयन सेज बिछाई जाती है, तथा सेज पर चोपड़ पासा सजाया जाता है एवं संपूर्ण गर्भगृह का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है।
ओंकारेश्वर आने वालों दर्शनार्थियों के लिए झूला पुल एक विशेष आकर्षण है। यह पुल सीधे मुख्य मंदिर के द्वार तक पहुँचता है. एवं पूरे वर्ष उपयोग में लाया जाता है. यहाँ से नर्मदा नदी ओंकारेश्वर बांध एवं मंदिर का मनोरम द्रश्य दिखलाई पड़ता है।


मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर इंदौर से 77 किमी एवं मोरटक्का से 13 किमी की दुरी पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है. यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर मान्धाता या शिवपूरी नामक द्वीप का निर्माण करती है यह द्वीप या टापू करीब 4 किमी लंबा एवं 2 किमी चौड़ा है. इस द्वीप का आकार ॐ समान है.
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है | स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर शेत्र की महिमा का उल्लेख है | ओम्कारेश्वर में 68 तीर्थ है | यहाँ 33 करोड़ देवता विराजमान है | 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप यहाँ पर है | इस प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है |
पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी एवं भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में अवतरित हुए .यह भी कहा जाता है कि देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग २ भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया. ऐसा कहा जाता है की ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग मम्लेश्वर में स्थित है. अन्य कथानुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता ने यहाँ कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया एवं यहाँ प्रकट हुए, तभी से भगवान ओंकारेश्वर में रूप में विराजमान हैं.
मंदिर में एक विशाल सभा मंडप है जो की लगभग 14 फुट ऊँचा है एवं 60 विशालकाय खम्बों पर आधारित है.मंदिर कुल मिला कर 5 मजिलों वाला है एवं सभी पर अलग अलग देवता स्थापित हैं. जो की नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: श्री ओंकारेश्वर , श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ , श्री गुप्तेश्वर, एवं ध्वजाधारी शिखर देवता हैं.
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है.यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं. एवं ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव व माता पार्वती प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहाँ आकर विश्राम करते हैं. अतएव यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की शयन आरती की जाती है .
भगवान् ओंकारेश्वर की शयन आरती के पश्चात रात्रि 9 बजे से 9.30 बजे तक भगवान् के शयन दर्शन होते है। जिसमे भगवान् के शयन हेतु चांदी का झूला लगाया जाता है, तथा शयन सेज बिछाई जाती है, तथा सेज पर चोपड़ पासा सजाया जाता है एवं संपूर्ण गर्भगृह का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है।
ओंकारेश्वर आने वालों दर्शनार्थियों के लिए झूला पुल एक विशेष आकर्षण है। यह पुल सीधे मुख्य मंदिर के द्वार तक पहुँचता है. एवं पूरे वर्ष उपयोग में लाया जाता है. यहाँ से नर्मदा नदी ओंकारेश्वर बांध एवं मंदिर का मनोरम द्रश्य दिखलाई पड़ता.


मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर इंदौर से 77 किमी एवं मोरटक्का से 13 किमी की दुरी पर भगवान शिव का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है. यहाँ पर नर्मदा नदी दो भागों में बंट कर मान्धाता या शिवपूरी नामक द्वीप का निर्माण करती है यह द्वीप या टापू करीब 4 किमी लंबा एवं 2 किमी चौड़ा है. इस द्वीप का आकार ॐ समान है.
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है | स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर शेत्र की महिमा का उल्लेख है | ओम्कारेश्वर में 68 तीर्थ है | यहाँ 33 करोड़ देवता विराजमान है | 84 योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप यहाँ पर है | इस प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है |
पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी एवं भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में अवतरित हुए .यह भी कहा जाता है कि देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग २ भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया. ऐसा कहा जाता है की ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग मम्लेश्वर में स्थित है. अन्य कथानुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता ने यहाँ कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया एवं यहाँ प्रकट हुए, तभी से भगवान ओंकारेश्वर में रूप में विराजमान हैं.
मंदिर में एक विशाल सभा मंडप है जो की लगभग 14 फुट ऊँचा है एवं 60 विशालकाय खम्बों पर आधारित है.मंदिर कुल मिला कर 5 मजिलों वाला है एवं सभी पर अलग अलग देवता स्थापित हैं. जो की नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: श्री ओंकारेश्वर , श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ , श्री गुप्तेश्वर, एवं ध्वजाधारी शिखर देवता हैं.
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है.यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं. एवं ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव व माता पार्वती प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के पश्चात यहाँ आकर विश्राम करते हैं. अतएव यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की शयन आरती की जाती है .
भगवान् ओंकारेश्वर की शयन आरती के पश्चात रात्रि 9 बजे से 9.30 बजे तक भगवान् के शयन दर्शन होते है। जिसमे भगवान् के शयन हेतु चांदी का झूला लगाया जाता है, तथा शयन सेज बिछाई जाती है, तथा सेज पर चोपड़ पासा सजाया जाता है एवं संपूर्ण गर्भगृह का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है।
ओंकारेश्वर आने वालों दर्शनार्थियों के लिए झूला पुल एक विशेष आकर्षण है। यह पुल सीधे मुख्य मंदिर के द्वार तक पहुँचता है. एवं पूरे वर्ष उपयोग में लाया जाता है. यहाँ से नर्मदा नदी ओंकारेश्वर बांध एवं मंदिर का मनोरम द्रश्य दिखलाई है .

 


















No comments:

Post a Comment