Friday, January 29, 2016

श्री गणेश संकट चतुर्थी

श्री गणेश संकट चतुर्थी या सकत चौथ के दिन श्री विध्नहर्ता की पूजा- अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते है. यह व्रत इस वर्ष 27 जनवरी, 2016 को है. माघ माह के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन को संकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है.
हिन्दू धर्म शास्त्रों में के अनुसार भगवान श्री गणेश कई रुपों में अवतार लेकर प्राणीजनों के दुखों को दूर करते हैं. श्री गणेश मंगलमूर्ति है, सभी देवों में सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. श्री गणेश चतुर्थी का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी जीवन में आने वाली सभी विध्न बाधाओं का नाश होता है. यह व्रत मुख्यत संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना के साथ किया जाता है . व्रत का आरंभ तारों की छांव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए. इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली को उपयोग करना चाहिए. व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अ‌र्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए.
व्रत कथा :किसी नगर में एक कुम्हार रहता था । एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा गर्म ही नहीं हुआ .। हारकर वह राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगा । राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा तो पंडित ने कहा कि हर बार आंवा लगाते समय बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा । राजा का आदेश हो गया । बलि आरम्भ हुई । जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चो में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता । इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आयी । दुखी बुढ़िया सोच रही थी की मेरा तो एक ही बेटा है ,वह भी मुझसे जुदा हो जाएगा । बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा "भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना । सकट माता रक्षा करेंगी । " बालक आंवा में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी । पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे,पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया । सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया । आंवा पक गया था । बुढ़िया का बेटा एवं अन्य बालक भी जीवित एंव सुरक्षित थे । नगर वासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना । सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे ।
सकट चौथ माता का एक प्रसिद्द मंदिर राजस्थान के अलवर जिले के सकट ग्राम में है .यह स्थान अलवर जिले की राजगढ़ तहसील में अलवर से करीब 60 किलोमीटर दूर है . 
 

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