Tuesday, May 17, 2011

जो पेड़ कभी मैंने लगाया था....

जो पेड़ कभी मैंने लगाया था , जिसे सींच सींच कर मैंने जियाया था |
वो पेड़ जब मुझसे बड़ा हो गया तो मेरा सर कितना गर्वाया था |
एक दिन आया एक निर्मोही पड़ोसी , जिसे पेड़ पर तरस नही आया |
हरे भरे पेड़ को काटा ,क्योंकि उनके घर पर थी उसकी छाया |
कितना दर्द सहा उस पेड़ ने, कितना उसने चीखा |
पर स्वारथ बस उस बन्दे ने किया पेड़ को सूखा |
पेड़ों में है जान, नहीं मूरख की समझ में आया |
हरे भरे प्यारे से पेड़ को, जिसने है कटवाया |

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