Sunday, May 22, 2011

.हे राम .....हे कृष्ण...

हे राम ....हे कृष्ण ...हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ...
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ....
हे राम हे कृष्ण .....कैसे जगतपालक हो ..अपने अन्यान्य नामों की मर्यादा का का पालन भी नहीं कर पाते ...न मालूम सृष्टि कैसे चलाते हो ... जब "तुम्हीं "......"तुम्हीं "....जब सबका अंतिम ध्येय हो ....फिर क्यों माया का स्वांग रचाते हो ...सीधे ..सीधे अपने पास आने दो .....यम ,नियम ;ज्ञान -वैराग्य ;योग-साधना ;भक्ति .....कभी न ख़त्म होने वाली ...यदि यही सब आवश्यक थी ....तो जन्म से हमें क्यों नहीं सर्व गुण संपन्न बनाया ..............कर्म बंधन के नियम .....जैसे चाहे बना डाले ....निरंकुश समझते हो अपने आपको ...मुझे अपनाना ही पड़ेगा ....हे राम .....हे कृष्ण ...हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ...
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ....

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