Thursday, September 17, 2015

गणेश जी की पत्नियां

पहले गणेशजी का चेहरा भी मनुष्य के चेहरे की तरह था। लेकिन एक बार भगवान शिव जब माता पार्वती से मिलने पहुंचे तो गणेशजी ने उन्हें नहीं जाने दिया तब शंकरजी ने गणेश जी का सिर त्रिशूल से अलग कर दिया था।
इसके बाद गणेशजी के सिर में हाथी का सिर जोड़ा गया। हाथी के सिर की सुंदरता बढ़ाने वाले उनके दो दांत भी थे। लेकिन परशुराम के साथ युद्ध में गणेशजी का एक दंत भी टूट गया। और वो एकदंत कहलाए। उनका शरीर भी बड़ा था।
इसलिए उनसे कोई भी सुशील कन्या विवाह के लिए राजी नहीं होती थी। गणेशजी इस बात से नाराज थे। उन्होंने कहा, 'अगर मेरा विवाह नहीं हो रहा तो मैं किसी ओर का विवाह भी नहीं होने दूंगा।'
उन्होंने अपने चूहे को आदेश दिया कि जिस रास्ते से किसी भी देवता की बारात गुजरे उस रास्ते को और विवाह मंडप की भूमि को अंदर से खोखला कर विघ्न डालो। चूहे ने गणेशजी के कहने पर वैसा ही किया। सारे देवता परेशान हो गए। शिवजी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था| देवी पार्वती ने सलाह दी कि ब्रह्माजी से इस समस्या का हल पूंछा जाए।
तब ब्रह्माजी योग में लीन हुए और योग से ही दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि अवतरित हुईं। दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं। उन दोनों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और कहा वह उन्हें शिक्षा दें। गणेशजी तैयार हो गये। जब भी चूहा गणेशजी के पास किसी के विवाह की सूचना लाता तो ऋद्धि और सिद्धि ध्यान बांटने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं।
इस तरह विवाह निर्विघ्न होने लगे। एक दिन चूहा आया और उसने देवताओं के निर्विघ्न विवाह के बारे में बताया तब गणेश जी को सारा मामला समझ में आया।
गणेशजी के क्रोधित होने से पहले ब्रह्माजी उनके पास ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए। उन्होंने कहा, आपने स्वयं इन्हें शिक्षा दी है। मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें।

इस तरह ऋद्धि(बुद्धि- विवेक की देवी) और सिद्धि (सफलता की देवी) से गणेशजी का विवाह हो गया। और फिर बाद में गणेश जी के शुभ और लाभ दो पुत्र भी हुए।

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