Thursday, April 28, 2011

सुन्दरकाण्ड की महिमा अपरम्पार ..

जय जय श्री राम !!!
मेरी प्रिय ग्रंथों मे से एक है ..रामचरितमानस ....और रामचरित मानस मे पसंदीदा काण्ड है ...सुन्दरकाण्ड ...अनूठा काण्ड ..
पहला ..तो यह काण्ड रामचरित मानस की कथा को आगे बढ़ता है ....इसी काण्ड मे सीता माता की जानकारी प्राप्त होती है ..
इस काण्ड मे सुन्दर शब्द भी कई बार आया है .....(१) सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर ..(२)कनक कोट विचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना ..
(३)स्याम सरोज दाम सम सुन्दर ..(४)तब देखी मुद्रिका मनोहर |राम नाम अंकित अति सुन्दर ||..(५)सुनहु तात मोहि अतिसय भूखा |लागी देखि
सुन्दर फल रूखा ||..(६) सावधान मन करि पुनि संकर |लागे कहाँ कथा अति सुन्दर ||..(७)हरषि राम तब कीन्ह पयाना |सगुन भए सुन्दर सुभ नाना ||..
(८) सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती |सहज कृपन सन सुन्दर नीती ||..
जय जय श्री राम ...जय हनुमान ....
सुन्दर काण्ड एक आशीर्वादात्मक काण्ड है .....इसीलिए भक्ति ...भगवत्कृपा ....भगवत्प्रीती पाने का सरल मार्ग बताता है ..इस काण्ड मे हनुमान ज़ी को चार बार आशीर्वाद मिला है ..पहले ,सुरसा ने दिया .आशीर्वाद ...
.राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान|
आसिष देई गई सो हरषि चलेऊ हनुमान ||
फिर लंकिनी ने आशीर्वाद दिया ..
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा |ह्रदय राखि कोसलपुर राजा ||
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई |गोपद सिन्धु अनल सितलाई ||
गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही | राम कृपा करि चितवा जाही ||
इसी तरह माता सीता ने भी आशीर्वाद दिया ..
अजर अमर गुननिधि सुत होहू |करहुं बहुत रघुनायक छोहू ||
माँ जानकी की सुधि लाने के पश्चात श्रीराम ने अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा ..
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही |देखेउँ करि बिचार मन माही ||
राम ज़ी केवल हनुमान ज़ी की ओर निहारते रहे ..और उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही ..इससे ज्ञात होता है .वे उपकार के बोझ से इतने बोझिल हो रहे थे की समझ नहीं पा रहे थे कि वे कहें तो क्या कहें....हनुमानजी रामजी की विवशता समझ गए और स्वयं ही आशीर्वाद मांगने लगे..
नाथ भगति देहु अति सुखदायनी | देहु कृपा करि अनपायनी ||
इस पर राम ज़ी केवल एवमस्तु ही कह पाए |
जय श्री राम !!!!जय जय हनुमान !!!
विभीषण की शरणागति सुन्दरकाण्ड की अन्य विशेषता है | तम का सत के प्रति आत्म समर्पण ..
तामस तनु कछु साधन नाहीं |प्रीती न पद सरोज मन माहीं ||
शरणागति के पहले विभीषण के मन मे कुछ वासना थी ..जिसके लिए वे प्रार्थना करते है ..
उर कछु प्रथम वासना रही |प्रभु पद प्रीति सरित सो बही ||
अब कृपाल निज भगति पावनी |देहु सदा सिव मन भावनी ||
श्रीराम ने एवमस्तु कहा और विभीषण के अंतर्मन की वासना को समाप्त करते हुए राजतिलक कर उन्हें लंकेश बना दिया |धन्य है श्रीराम की वत्सलता ...जो माँगा वह दिया ..जो नहीं माँगा वह भी दे दिया ...
श्री राम जय राम जय जय राम !!!
सुन्दरकाण्ड मे श्रीराम ने अपने मन की बात प्रकट करते हुए कहा है .
निर्मल मन जान सो मोहि पावा |मोहि कपट छल छिद्र न भावा ||
भगवान को निर्मल मन ही प्रिय है |कपट ..छल.. छिद्र..क्रमशः तन.मन .और आचरण से सम्बंधित है .कपट मानसिक होता है छल आचरण से या तन से ..तथा छिद्र चारित्रिक दोष से.रावन के मन मे कपट था ..और मारीच ने छल का प्रयोग किया था |
जय श्री राम ..जय जय हनुमान ....
"चलेऊ हरषि हियँ धरि रघुनाथा "हनुमान ज़ी सभी कार्य भगवत स्मरण के साथ करते है जिस कार्य को हर्षोल्लास के साथ किया जाता है उसमे सफलता जरूर मिलती है ...फिर राम नाम के साथ ...क्या कहना ...भगवान् को हनुमान ज़ी ने अपने कर्म का साक्षी बनाया .चलेऊ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ..इससे पता चलता है कि हनुमान ज़ी लंका अकेले नहीं गए थे ..श्री राम ज़ी को अपने ह्रदय के सिंहासन पर विराजमान कर ले गए थे |तभी तो सीता ज़ी के सामने हनुमान ज़ी के ह्रदय मे विराजित राम ज़ी अपनी विरह व्यथा स्वयं कहते है ....कहेहु राम वियोग तव सीता ..अन्यथा हनुमान ज़ी अपनी माता स्वरुप सीता ज़ी से क्या यह कह सकते थे --जानत प्रिया एकु मनु मोरा ...या ..सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं |जानु प्रीति रसु एतनेहीं माहीं ||यहाँ राम ज़ी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी व्यथा कह रहे है |
श्री राम जय राम जय जय राम !!!
जय श्री राम ..जय जय हनुमान !!!
"लंकहि चलेऊ सुमिरि नरहरि" यहाँ राम को ही नरहरि शब्द से संबोधित किया गया है | रावन जैसे शत्रु कि नगरी मे जाने से पहले हिरन्यकश्यप के संहारक प्रहलाद जैसे भक्त के संरक्षक नरहरि भगवान का स्मरण उचित ही है | तुलसीदास के गुरु भी स्वामी नरहरि दास थे | एक भाव से तुलसीदास ज़ी ने अपने गुरु का स्मरण कर महान चरित का लेखन किया है |
हनुमान ज़ी कि जब सीता ज़ी से भेंट हो गई ..उन्हें सौपा गया कार्य पूरा हो गया ..तब उन्हें बहुत जोर कि भूख लग आई ....सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा |लागि देखि सुन्दर फल रूखा ||
सुन्दरकाण्ड मे राजनीति ,नीतिशास्त्र ,और व्यवहारशास्त्र का यथास्थान प्रयोग हुआ है |राजनीति के क्षेत्र मे "नीति विरोध न मारिअ दूता "...शत्रु पक्ष के किसी उपयुक्त व्यक्ति को अपने पक्ष मे मिलाकर दल बदल करा देना यह भी राजनीति की एक चाल है
हनुमान ज़ी ने विभीषण को श्री राम ज़ी से मिला कर राजनीती शास्त्र का उचित प्रयोग किया |सुन्दरकाण्ड मे समाज नीति और व्यवहार नीति का भी उचित प्रयोग किया गया है
परिवार की मर्यादा का विभीषण ने जिस तरह पालन किया वोह भी अनूठा है ...रावण का पाद प्रहार सहन करते हुए उन्होंने सहनशीलता का परिचय दिया ..तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहिं मारा ...इस पर भी ..अनुज गहे पद बारहिं बारा..
हनुमानजी स्वर्ण शैलाभदेह थे "कनक भूधराकार सरीरा "और "कंचन बरन बिराज सुबेसा "थे |
हनुमान ज़ी ने अपनी भूमिका मे कई वर्णों की भूमिका निभाई ...विप्र वेश मे सुग्रीव के कहने पर राम -लक्ष्मण से भेंट करने गए |लंकापुरी मे उन्होंने विभीषण को "विप्र रूप धरि वचन सुनाये " ब्राह्मन धर्म का निर्वाह किया |
लंकापुरी मे वाटिका विध्वंस ..अक्षय कुमार का वध ..मेघनाद के समक्ष अपना शौर्य और युद्ध कौशल प्रकट कर क्षत्रिय धर्म का निर्वाह किया ..धनिक वैश्य की भी भूमिका निभाई -वैश्य कर्जा देता है ऋण बांटता है ..हनुमान ज़ी राम ज़ी को कर्जा देकर यह काम पूरा किया और उनको सदा सदा के लिए कर्जदार बना दिया |श्री राम स्वयं कहते है .."सुनु सुत तोहि उरिन मै नाहीं |देखेउँ करि विचार मन माहीं ||
अनुष्ठान की दृष्टि से भी सुन्दरकाण्ड का विशेष महत्व है
कार्य की सफलता के लिए ...."प्रबिसि नगर कीजै सब काजा |....भारी से भारी विपदा के निवारण हेतु .."दीनदयाल बिरिदु सम्भारी |हरहु नाथ मम संकट भारी ||"का पाठ किया जाता है सुन्दरकाण्ड की महिमा अपरम्पार ..
जय श्री राम ..जय जय हनुमान ....
श्री राम जय राम जय जय राम !!!!

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