Saturday, September 14, 2013

गोपिका विरह गीतं
एहि मुरारे कुंजविहारे एहि प्रणतजनबंधो
हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणा सिंधो ||
रासनिकुंजे गुंजति नियतं भ्रमरशतं किल कान्त
एहि निभृत पथपांथ ||
त्वामिह याचे दर्शन दानं हे मधुसूदन शांत ||
शून्यम कुसुमासनमिह कुंजे शून्यःकेलिकदंब:
दीनः  केकिक दंब :|
मृदुकलनादः किल सविशादं रोदिति यमुनास्वम्भः||
नवनीरजधरश्यामलसुन्दर चन्द्रकुसुमरुचिवेश
गोपीगणहृदयेश  |
गोवर्धनधर वृन्दावनचर वंशीधर परमेश |
राधारंजन कंसनिषूदन प्रणतिस्तावकचरणे
निखिल निराश्रयशरणे |
एहि जनार्दन पीताम्बरधर कुंजे मंथरपवने ||     

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