Monday, September 9, 2013

अजब हैरान हूं भगवन , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं.

अजब हैरान हूं भगवन  , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
कोई वस्तू नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं...

करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर पल
निरादर होगा यदि तुमको मैं घंटी से बुलाऊँ तो
अजब हैरान हूं भगवन  , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...

तुम्हीं हो मूर्ति में , तुम ही समाये हो इन फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन  , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...

लगाना भोग कुछ तुमको तो  एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन  , तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...

तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
तुम्हारे तेज के सम्मुख मैं दीपक क्या दिखाऊँगा ...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं..

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