Thursday, September 19, 2013

को भव सागर पार उतारे राम बिन कौन सम्हारे

को भव सागर पार उतारे राम  बिन कौन सम्हारे, ।

टूटी फूटी नाव हमारी पहुँच न पाई तट पर,
जैसे कोई प्यासा राही, भटक गया पनघट पर,
पास मेरे तुम मुस्काते हो  दोनो बाँह पसारे,
 को भव सागर पार उतारे राम बिन कौन सम्हारे |

मेरे राम मुझे शक्ति दे, मन में मेरे दृढ़ भक्ति दे,
राम काम मैं करूँ निरंतर, राम नाम चित्त धारे,
को भव सागर पार उतारे राम बिन कौन सम्हारे |

जीवन पथ की उलझन लख कर, खड़े न हो जाना तुम थक कर,
तेरा साथी, राम निरंजन, चलता साथ तुम्हारे,
को भव सागर पार उतारे राम बिन कौन सम्हारे |

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