Saturday, September 21, 2013

अनुपम माधुरी जोरी, हमारे श्याम श्यामा की।
रसीली रसभरी अखियाँ , हमारे श्याम श्याम की॥
कटीली भोंहे अदा बांकी, सुघर सूरत मधुर बतियाँ।
लटक गर्दन की मन बसियाँ, हमारे श्याम श्यामा की ॥
मुकुट और चन्द्रिका माथे, अधर पर पान की लाली।
अहो कैसी बनी छवि है, हमारे श्याम श्यामा की॥
परस्पर मिलके जब विहरें, वो वृन्दावन के कुंजन में।
नही बरनत बने शोभा, हमारे श्याम श्यामा की॥
नही कुछ लालसा धन की, नही निर्वाण की इच्छा।
सखी श्यामा मिले सेवा, हमारे श्याम श्यामा की॥

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