Tuesday, February 16, 2016

उज्जैन के 84 महादेव-भाग 11

उज्जैन के 84 महादेव में 21 वें स्थान पर श्री कुक्कुटेश्वर महादेव आते हैं .
प्राचीन समय में कौषिक नाम के राजा हुआ करते थे। वे अपनी प्रजा का ध्यान रखते थे और उनके राज्य में सभी सुख सुविधाएं थीं। राजा कौषिक दिनभर मनुष्य रूप में रहते थे और रात को कुक्कुट (मुर्गे) का रूप ले लेते थे। इस कारण उनकी रानी विशाला हमेशा दुःखी रहती थी। राजा के कुक्कुट रूप लेने के कारण वे रति सुख का आनंद नहीं ले पाती थीं। एक दिन रानी ने दुःख के कारण मरने का विचार किया और वह गालव ऋषि के पास पहुंची। विशाला ने अपना दुख गालव ऋषि को बताते हुए इसका कारण पूछा।
गालव ऋषि ने बताया कि तुम्हारा पति पूर्व जन्म में राजा विदूरत का पुत्र था। वह विषयासक्त होकर मांसाहारी हो गया एवं अनेक कुक्कुटों का भक्षण किया। इस कारण क्रुद्ध होकर कुक्कुटों के राजा ताम्रचूड़ ने उसे श्राप दिया कि वह क्षय रोग से पीडित होगा। श्राप के कारण वह क्षीण होने लगा। राजकुमार कौषिक वामदेव मुनि के पास गया और अपने रोग का कारण पूछा। वामदेव मुनि ने ताम्रचूड़ की बात बताई। राजकुमार ने मुनि से श्रापमुक्ति का उपाय पूछा। मुनि ने उसे ताम्र्चूर्ण के पास जाने को कहा . ताम्रचुड़ ने कहा तुम निरोगी रहोगे और शासन करोगे परन्तु रात को अदृश्य हो जाओगे।
रानी ने गालव ऋषि से श्राप मुक्ति का उपाय पूछा तो उन्होनें बताया कि महाकाल वन में पक्षी योनि विमोचन लिंग जबलेश्वर के पास स्थित है वहां जाओ और उनका पूजन करो। राजा रानी महाकाल वन में आए और शिवलिंग का पूजन किया। रात्रि होने पर राजा कौषिक अदृश्य नहीं हुआ और रानी के साथ रति सुख को प्राप्त किया। मान्यता है कि इस कुक्कुटेश्वर शिवलिंग के दर्शन से कोई भी पितृ नरक को प्राप्त नहीं होता।
22 वें स्थान पर श्री कर्कटेश्वर महादेव आते हैं .
कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में धर्ममूर्ति नामक एक प्रतापी राजा थे। देवराज इंद्र की सहायता से उन्होंने सैकड़ों दैत्यों का संहार किया। वह तेजस्वी राजा इच्छानुसार अपना शरीर बनाने में सक्षम थे एवं सदा युद्ध में विजयी होते थे जिससे उनकी कीर्ति समस्त दिशाओं में फैली हुई थी। उनकी पत्नी भानुमति थी जो उनकी दस हज़ार रानियों में श्रेष्ठ थी और जो सदैव धर्म परायण रहती थी। पूर्ण वैभव, कीर्ति और सुख से सुसज्जित राजा ने एक बार अपने महर्षि वशिष्ठ से पूछा कि मुझे कीर्ति व उत्तम लक्ष्मी स्त्री किस कृपा से, किस पुण्य से प्राप्त हुई है।

प्रत्युत्तर में वशिष्ठ मुनि बोले कि पहले पूर्वजन्म में आप शुद्र राजा थे और कई दोषों से युक्त थे। आपकी यह स्त्री भी दुष्ट स्वभाव वाली थी। जब आपने शरीर त्यागा तब आप नरक में गए जहां कई यातनाएं आपको सहनी पड़ीं। वहां अनेक यातनाओं के बाद आपको यमराज ने केकड़े के रूप में जन्म दिया और आप महाकाल वन के रुद्रसागर में रहने लगे। महाकाल वन स्थित रुद्रसागर में जो मनुष्य दान, जप, तप आदि करता है वो अक्षय पुण्य को प्राप्त होता है। पांच वर्ष तक आप उसमें रहे फिर आप जब बाहर निकले तब एक कौआ आपको अपनी चोंच में भरकर आसमान में उड़ने लगा। तब आपने अपने पैरों से कौवे से बचने के लिए प्रहार किए जिसके फलस्वरूप आप उसकी चोंच से छूट गए। कौवे की चोंच से छूट आप स्वर्गद्वारेश्वर के पूर्व में स्थित एक दिव्य लिंग के पास गिरे और गिरते ही उस दिव्य लिंग के प्रभाव से आपने केकड़े का देह त्याग दिव्य विद्याधर के समान देह प्राप्त की। फिर जब आप अन्य शिवगणों के साथ शामिल हो स्वर्ग की ओर जा रहे थे तभी मार्ग में देवताओं ने शिवगणों से आपके बारे में पूछा। तब उन शिवगणों ने शिव लिंग के प्रभाव से आपके केकड़ा योनि से मुक्त होने के बारे में बताया तभी से इस दिव्य लिंग का नाम कर्कटेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी लिंग के माहात्म्य के कारण ही आपको पहले स्वर्ग की और फिर राज की प्राप्ति हुई है। महर्षि की बातें सुनकर राजा तुरंत महाकाल वन स्थित स्वर्गद्वारेश्वर के पूर्व में स्थित शिवालय पहुंचे और वहां ध्यानमग्न हो गए।
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार जो भी श्रद्धालु श्री कर्कटेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं उनके योनि दोष दूर होते हैं एवं वे शिवलोक को प्राप्त करते हैं। यहां दर्शन बारह मास किए जा सकते हैं लेकिन अष्टमी और चतुर्दशी के दिन दर्शन का विशेष महत्व माना गया है। उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री कर्कटेश्वर महादेव का मंदिर खटिकवाड़ा में स्थित है।

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