Monday, February 22, 2016

उज्जैन के 84 महादेव -भाग 19

84 महादेव : श्री च्यवनेश्वर महादेव(30)


पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन कल में महर्षि भृगु के पुत्र च्यवन थे जिन्होंने पृथ्वी पर कठोर तप किया। वितस्ता नाम की नदी के किनारे वर्षों वे तपस्या में बैठे रहे। तपस्या में लीन रहने के कारण उनके पूरे शरीर को धूल मिट्टी ने ढंक लिया और आस-पास बैल लग गई। एक समय राजा शर्याति अपने परिवार के साथ वन विहार करते हुए वहां पहुंचे। राजा की कन्या सुकन्या अपनी सखियों के साथ च्यवन ऋषि के तप स्थल पहुंची। वहां धूल मिटटी से बनी बांबी के बीच में दो चमकते हुए नेत्र दिखाई दिए। कौतुहलवश सुकन्या ने उन चमकते नेत्रों में कांटे चुभा दिए जिससे नेत्रों में से रुधिर निकलता हुआ दिखाई दिया। इस कृत्य से ऋषि च्यवन अत्यधिक दुखी हुए जिससे राजा शर्याति की सेना में बीमारियां फैलना शुरू हो गई। सारी बातें पता चलने पर शर्याति को ज्ञात हुआ कि उनकी बेटी सुकन्या ने महर्षि च्यवन की आंखों में शूल चुभा दिए हैं। तब राजा शर्याति महर्षि च्यवन के पास गए और अपनी कन्या के दुष्कृत्य के लिए क्षमा याचना की। उन्होंने सुकन्या को महर्षि च्यवन को पत्नी के रूप में सौंप दिया। महर्षि भी सुकन्या को पत्नी के रूप में पाकर प्रसन्न हुए जिसके फलस्वरूप शर्याति के राज्य में होने वाली बीमारियां रुक गईं।
कुछ समय बाद च्यवन के आश्रम में दो अश्विनीकुमार आए। वहां वे सुकन्या को देख मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने सुकन्या से पूछा कि तुम कौन हो? सुकन्या ने कहा कि वह राजा शर्याति की पुत्री एवं महर्षि च्यवन की पत्नी है। तब अश्विनीकुमार ने सुकन्या से कहा कि तुम वृद्ध पति की सेवा क्यों कर रही हो? हम दोनों में से किसी एक को अपना पति स्वीकार करो। सुकन्या मना करके वहां से जाने लगी। तभी अश्विनीकुमार ने कहा कि हम देवताओं के वैद्य है। हम तुम्हारे पति को यौवन संपन्न कर सकते हैं अगर तुम उन्हें यहां ले आओ। सुकन्या ने जाकर यह बात महर्षि च्यवन से कही। महर्षि इस बात को मान अश्विनीकुमार के पास पहुंचे। तब अश्विनीकुमार ने कहा कि आप हमारे साथ इस जल में स्नान के लिए उतरिये। फिर दोनों अश्विनीकुमार के साथ महर्षि ने भी जल में प्रवेश किया। कुछ समय बाद जल से बाहर आने पर वो तीनों युवावस्था से संपन्न एक रूप हो गए। उत्तम रूप एवं युवावस्था पाकर महर्षि भी अत्यंत प्रसन्न हुए एवं अश्विनीकुमार से बोले कि तुमने मुझ वृद्ध को युवा बना दिया, मैं तुम दोनों को इंद्र के दरबार में अमृत पान कराऊंगा। यह बात सुनकर वे दोनों अश्विनीकुमार स्वर्ग चले गए और महर्षि ने उनके अमृत पान के लिए यज्ञ आरम्भ किया। इंद्र भगवान को यह निंदनीय लगा। उन्होंने महर्षि से कहा कि में दारुण वज्र से तुम्हारा नाश कर दूंगा। इंद्र के ऐसे वचनों से भयभीत हो महर्षि महाकाल वन पहुंचे और वहां जाकर एक दिव्य लिंग का उन्होंने पूजन अर्चन किया। उनके पूजन से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने महर्षि च्यवन को इंद्र के वज्र प्रहार से अभय देने का आशीर्वाद दिया। तभी से यह लिंग च्यवनेशर कहलाया।
 
दर्शन लाभ
मान्यतानुसार के दर्शन से पापों का नाश होता है एवं भय आदि दूर होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके दर्शन करने से शिवलोक प्राप्त होता है। श्री च्यवनेश्वर महादेव का मंदिर इंदिरा नगर मार्ग में ईदगाह के पास स्थित है।

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