Tuesday, February 9, 2016

सावित्री देवी मंदिर

एक बार ब्रह्मा से भी भारी भूल हो गई थी. एक ऐसी भूल, जिससे उनकी पत्नी न सिर्फ उनसे रूठ गईं, बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए उनका साथ भी छोड़ गईं. यही नहीं, पत्नी के गुस्से का ही यह परिणाम था कि आज सृष्टि की रचना करने वाले की पूजा सिर्फ पुष्कर में ही होती है.
दूर पहाड़ों की चोटी पर विराजती हैं सावित्री, परमपिता ब्रह्मा की अर्द्धांगिनी सावित्री. लेकिन यहां सावित्री रूठी हुई हैं, नाराज हैं. यही वजह है कि ब्रह्मा के मंदिर से बिल्कुल अलग-थलग उन्होंने पहाड़ पर अपना बसेरा बनाया हुआ है.
एक बार ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना के लिए पुष्कर में यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में पत्नी का बैठना जरूरी था, लेकिन सावित्री को पहुंचने में देरी हो गई.
पूजा का शुभ मुहूर्त बीतता जा रहा था. सभी देवी-देवता एक-एक करके यज्ञ स्थली पर पहुंचते गए. लेकिन सावित्री का कोई अता-पता नहीं था. कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्माजी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ पूरा किया. उधर सावित्री जब यज्ञस्थली पहुंचीं, तो वहां ब्रह्माजी के बगल में गायत्री को बैठे देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे दिया. सावित्री का गुस्सा इतने में ही शांत नहीं हुआ. उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे. गाय को कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारा रहने का श्राप दिया.
क्रोध शांत होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और फिर वहीं की होकर रह गईं. कहते हैं कि यहीं रहकर सावित्री भक्तों का कल्याण करती हैं.
पुष्कर में जितनी अहमियत ब्रह्माजी की है, उतनी ही सावित्री की भी है. सावित्री को सौभाग्य की देवी माना जाता है. यह मान्यता है कि यहां पूजा करने से सुहाग की लंबी उम्र होती है. यही वजह है कि महिलाएं यहां आकर प्रसाद के तौर पर मेहंदी, बिंदी और चूड़ियां चढ़ाती हैं और सावित्री से पति की लंबी उम्र मांगती हैं.
 

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